मानव नेत्र क्या है मानव नेत्र के बारे में वर्णन करें ?
मानव नेत्र
मानव नेत्र या आँख एक अद्भुत प्रकृति प्रदत प्रकाशीय यंत्र है
मानव नेत्र की वनावट
मानव नेत्र लगभग गोलीय होता है आँख के गोले जिसे नेत्र गोलक कहा जाता है | जो सबसे बाहरी परत सफ़ेद मोटे अपारदर्शी चमड़े की होती है |
मानव नेत्र लगभग फोटो कैमरे की भांति कार्य करता है जिसका व्यास लगभग 25 मिमी होता है | मानव नेत्र की मांसपेशियों में समंजन क्षमता होती है | जिसके कारण ही मनुष्य स्वस्थ नेत्र से निकटतम 25 सेंटीमीटर तथा अधिकतम अनंत तक की वस्तुओं को स्पष्ट देख सकता है |
आंख जो वास्तव में एक फोटो कैमरा की तरह कार्य करता है | जिस तरह कैमरा में आगे लेंस और पीछे फोटो फिल्म होता है | उसी प्रकार आंख में आगे लेंस तथा पीछे रेटीना होता है | कैमरा में जो काम शटर का होता है वही काम आंख में पलक करता है |
परितारिका या आइरिस की सहायता से आंख के लेंस से होकर जाने वाले प्रकाश के परिमाण को घटाया या बढ़ाया जा सकता है | अंधेरे में परितारिका के बीच का छेद जिसे पुतली कहा जाता है स्वतः फैल जाती है और तेज रोशनी में सिकुड़ जाती है | अतः कैमरा में जो काम ( प्रकाश के परिमाण को नियंत्रित करना) डायफ्राम करता है | वही काम आंख में पुतली का कार्य होता है |
जब प्रकाश की किरण किसी वस्तु से प्रावर्तित होकर आंख पर पड़ती है | तो वे कॉर्निया तथा स्फटिक लेल से अपवर्तन के बाद रेटिना पर पड़ती है और वहां वास्तु का प्रतिबिंब बनता है | यह प्रतिबिंब वस्तु की अपेक्षा उल्टा और छोटा बनता है | लेकिन मस्तिष्क में वस्तु को सीधा और बड़ा देखने की संवेदना होती है |
वास्तु दूर रहे या निकट हम उसे साफ साफ देखते हैं | आंख ऐसा अपने लेंस की फोकस दूरी को बदलकर करता है | यह परिवर्तन सिलियरी मांस पेशियों के तनाव के घटने बढ़ने से होता है आंख के इस सामर्थ्य को समंजन छमता कहा जाता है |
मानव नेत्र के मुख्य भाग निम्नलिखित है
दृढ पटल या श्वेत पटल
मानव नेत्र एक खोखले गोले के समान होता है | यह बाहर से एक दृढ़ व आपारदर्शी श्वेत परत से ढका होता है | इसी परत को दृढ़ पटल कहा जाता है | यह नेत्र के भीतरी भागों के सुरक्षा तथा प्रकाश के अपवर्तन में सहायता करता है |
रक्त पटल
रक्त पटल आंख पर आपतित होने वाले प्रकाश का अवशोषण करता है तथा आंतरिक प्रावर्तन को रोकता है |
कॉर्निया
श्वेत पटल या दृढ पटल के अगला कुछ उभरा हुआ भाग पारदर्शी होता है जिसे कॉर्निया कहा जाता है | नेत्र में प्रकाशित इसी भाग से होकर प्रवेश करता है |
कॉरॉयड
दृढ पटल या श्वेत पटल के नीचे गहरे भूरे रंग की परत होती है जिसे
कॉरॉयड कहते है |
आइरिस
कॉरॉयड परत आगे आकर दो परतो में विभक्त हो जाती है आगे वाली आपारदर्शी परत सिकुड़ने फैलने वाली डायफ्राम के रूप में रहती है जिसे आइरिश कहा जाता है | इसे परितारिका भी कहा जाता है |
पुतली
कॉर्निया से आया प्रकाश पुतली से होकर ही लेंस पर पड़ता है पुतली की यह विशेषता होती है कि अंधकार में यह अपने आप बडी व अधिक प्रकाश में अपने आप छोटी हो जाती है इस प्रकार नेत्र में सीमित प्रकाश ही जा पाता है इस क्रिया को पुतली समायोजन कहा जाता है |
नेत्र लेंस
आईरिस के ठीक पीछे पारदर्शी उत्तक का बना द्वि उत्तल लेंस होता है जिसे नेत्र लेंस कहा जाता है | नेत्र लेंस का अपवर्तनांक लगभग 1.44 होता है नेत्र लेंस अपने ही स्थान पर टिका रहता है |
जलीय द्रव
कॉर्निया तथा लेंस के बीच के भाग में जल के समान एक नमकीन पारदर्शी द्रव भरा रहता है जिसे जलीय द्रव कहा जाता है इसका अपवर्तनांक 1.336 होता है |
काँचाभ कक्ष तथा काँचाभ द्रव
नेत्र लेंस तथा रेटीना के बीच के भाग को काँचाभ कक्ष कहा जाता है इसमें गाढा पारदर्शी एवं उच्च अपवर्तनांक वाला द्रव भरा रहता है | इसे काँचाभ द्रव कहा जाता है |
रेटिना
रक्त पटल के नीचे तथा नेत्र के सबसे अंदर की ओर एक पारदर्शी झिल्ली होती है जिसे रेटिना कहा जाता है | इसे दृष्टि पटल भी कहा जाता है | यह प्रकाश सुगराही होती है तथा इस पर दृष्टि तंत्रिकाओं का जाल फैला होता है |
किसी भी वस्तु का प्रतिबिंब रेटिना पर बनता है | जो रेटिना पर 1/10 सेकण्ड तक रहता है | दृष्टि का यह गुण दृष्टि निर्बंध कहलाता है तथा रेटीना के अंदर प्रकाश सुग्राही दो प्रकार की सेले पाई जाती है | जो सेल प्रकाश की तीव्रता में आभास कराती है | वे दंडाकार सेल कहलाती है | इसके विपरीत जो सेल मनुष्य को वास्तु के रंग का आभास कराती है वे शंक्वाकार सेल कहलाती है |
रेटिना के बीचो बीच एक पीला भाग होता है जहां पर बना हुआ प्रतिबिंब सबसे अधिक स्पष्ट दिखाई देता है | इसे पित बिंदु कहा जाता है | रेटीना के जिस स्थान को छेदकर दृष्टि तंत्रिकाये मस्तिष्क को जाती है वहां पर प्रकाश का कोई प्रभाव नहीं पड़ता है | इस स्थान पर प्रकाश सुग्राहिता शून्य होती है | इसे अंध बिंदु कहा जाता है |