भारतीय कृषि के बारे में वर्णन करे
कृषि भारतीय अर्थव्यवस्था एवं सामाजिक व्यवस्था का प्रमुख आधार है एक ओर जहां यह भारत की अधिकांश जनसंख्या को प्रभावित करती है वहीं दूसरी ओर यह भारतीय जलवायु , मृदा एवं संस्थागत कारको से भी प्रभावित होती है |
भारत एक कृषि प्रधान देश अभी भी यहां की आधी से अधिक जनसंख्या का भरण पोषण कृषि पर निर्भर है | यद्यपि सकल राष्ट्रीय उत्पादन में कृषि का अंशदान 60% से घटकर 16.9% पहुंच गया है फिर भी इसकी भूमिका महत्वपूर्ण है क्योंकि यह लगभग 60% जनसंख्या के रोजगार का स्रोत है औद्योगिक क्षेत्र की प्रगति और उपलब्धि भी कृषिगत कच्चे माल पर ही निर्भर करती है |
भारत के कुल 328.726 मिलियन हेक्टेयर भौगोलिक क्षेत्र में से 195.10 मिलियन हेक्टेयर क्षेत्र पर कृषि की जाती है जबकि इसमें से 139.9 मिलियन हेक्टेयर क्षेत्र शुद्ध बुआई क्षेत्र है अर्थात यहां वास्तविक रूप से खेती होती है पिछले 60 वर्षों में शुद्ध बुवाई क्षेत्र में तीव्र गति से वृद्धि हुई है |
स्थानीय तौर पर पंजाब , हरियाणा पश्चिम बंगाल उत्तर प्रदेश , बिहार , कर्नाटक और महाराष्ट्र का 55% से अधिक प्रतिवेदित क्षेत्र शुद्ध बुआई क्षेत्र के रूप में पाया जाता है |
भारतीय कृषि के करने के कई प्रकार है
उतेरा कृषि
यह फसल उगाने की पारंपरिक पद्धति है जिसमें दूसरी फसल की बुआई पहली फसल के कटने से पूर्व ही कर दी जाती है | दूसरे शब्दों में कह सकते हैं कि यह एक सघन फसल कृषि की एक प्रकार है इस प्रकार की कृषि के लिए दोमट मिट्टी सबसे उपयुक्त मानी जाती है इसमें धान मुख्य फसलें होती है बाकी अन्य को इसके साथ उगाया जाता है वर्तमान समय में बढ़ती जनसंख्या की खाद्य आवश्यकताओं की पूर्ति मे यह कृषि बहुत लाभदायक है |
शुष्क कृषि
शुष्क कृषि मूलतः नाजुक ऊंची जोखिम वाली कम उत्पादक कृषि पारिस्थितिक तंत्र से संबंध है भारत के कृषि परिदृश्य में शुष्क क्षेत्रीय कृषि का विशेष स्थान है | देश में ये वे कृषि क्षेत्र है जहां वार्षिक वर्षा की मात्रा 75 सेंटीमीटर से कम पाई जाती है | क्षेत्र का विस्तार लगभग देश के कृषि क्षेत्र का 22% भाग समाहित है इसका 60% भाग राजस्थान , 20% भाग गुजरात एवं शेष पंजाब , हरियाणा , महाराष्ट्र , आंध्र प्रदेश और कर्नाटक राज्य में पाया जाता है | इन क्षेत्रों में वर्षा कम एवं अनिश्चित पाई जाती है जिसके कारण यह क्षेत्र हमेशा सूखे की चपेट में आते रहता है |
आर्द्र कृषि
आर्द्र कृषि 75 सेंटीमीटर से अधिक वार्षिक वर्षा वाले क्षेत्रों में की जाती है इन क्षेत्रों में वर्षा ऋतु के अंतर्गत वर्षा जल पौधों की जरूरत से अधिक होता है | यह प्रदेश बाढ़ तथा मृदा अपरदन का सामना करता है इन क्षेत्रों में वैसे फसल उगाई जाती है | जिन्हें पानी की अधिक मात्रा में आवश्यकता होती है |
जैसे चावल, जुट , गन्ना आदि की कृषि यहां की जाती है
व्यापारिक कृषि
व्यापारिक कृषि भारतीय कृषि की एक नई विशेषता है | वैश्वीकरण के प्रभाव के कारण कुछ क्षेत्रों में किसान गहन निर्वाह कृषि से व्यापारिक कृषि की ओर उन्मुख हुए हैं | यह कृषि व्यवसाय के उद्देश्य से की जाती है स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात भारतीय कृषि में कई प्रकार के परिवर्तन आए हैं | जैसी प्रौद्योगिकी का स्तर ऊंचा हुआ है | कृषि के मशीनीकरण में वृद्धि हुई है | किसान आर्थिक रूप से इतना समृद्ध हो गया है कि वह रासायनिक उर्वरक तथा उत्तम बीज खरीद सके उसके लिए सिंचाई , विद्युत तथा ऋण की भी व्यवस्था होने लगी है | प्रति हेक्टेयर तथा प्रति कृषक उपज में वृद्धि हुई है | अतः हमारी कृषि आदिकालीन जीविका के दौर से बाहर निकल आई है | परंतु अभी भी अधिकांश किसानों के पास बेचने के लिए अतिरिक्त उत्पाद नहीं बच पाते इस प्रकार भारत के अधिकांश क्षेत्रों में अब भी जीविका के रूप में ग्हण कृषि की जाती है |
रोपण कृषि
रोपण कृषि का प्रारंभ ब्रिटिश कंपनियों द्वारा औपनिवेशिक काल में शुरू किया गया जिसमें केवल बाजार में बेची जाने वाली नगदी फसलों को उगाया जाता है इसके अंतर्गत रबड़ , चाय , कोला , मसालों , नारियल , कॉफी आदि की फसलें उगाई जाती है इसमें वैज्ञानिक तरीकों से मशीनों का प्रयोग कर श्रमिकों की सहायता से कृषि की जाती है |
जैविक कृषि
भारत में परंपरागत कृषि पूरी तरह से रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों पर आधारित है | यह विषाक्त तत्व हमारी खाद्य पूर्ति व जल स्रोतों में नी: सृत हो जाते हैं | और हमारे पशुधन को हानि पहुंचाते हैं साथ में ही इस कारण मृदा के उर्वरता भी कम हो जाती हैं | अतः विकास की धारणीयता के लिए पर्यावरण मित्र प्रौद्योगिकी विकास के प्रयास अनिवार्य हो गया है | ऐसा ही एक प्रौद्योगिकी को जैविक कृषि कहा जाता है | अर्थात जैविक कृषि खेती करने की वह पद्धति है जो पर्यावरणीय संतुलन को पुनः स्थापित करके उसका संरक्षण और संवर्धन करती है | विश्व भर में सुरक्षित आहार की पूर्ति बढ़ाने के लिए जैविक विद्या से उत्पादित खाद्य पदार्थों की मांग में वृद्धि हो रही है |
प्रसंविदा कृषि ( कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग )
कृषको के द्वारा किसी समझौते के तहत कृषि करना जो उत्पादक तथा उत्पादन के क्रेता को लाभ पहुंचाए प्रसंविदा कृषि अर्थात कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग कहा जाता है | समझौते की शर्तों के अनुसार इसके अनेक मॉडल हो सकते हैं सामान्यता है यह देखा जाता है कि कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग का एक पक्ष तो किसान तथा दूसरा पक्ष कंपनी या संस्था होती है जो कृषि उत्पाद का एक निश्चित मूल्य पर खरीदने का समझौता करती है | तथा कृषक को उत्तम कोटि के बीज , उर्वरक , सिंचाई आदि की पूर्ति करता हैं |
इस प्रकार इस स्थिति में कृषक अपने लिए नहीं अपने इच्छा से भी नहीं बल्कि प्रसंविदा की दूसरी पार्टी के निर्देश पर उत्पादन करता है | इस स्थिति में किसानों को विशेष रूप से छोटे तथा सीमांत किसानों को भी वे सभी सुविधाएं मिल जाती है | जो उन्हें व्यक्तिगत स्थिति में प्राप्त नहीं हो पाती है | इसके अंतर्गत कृषक को अच्छी गुणवत्ता का आगत , आवश्यकता पड़ने पर ऋण तथा उत्पाद के लिए सही मूल्य सही समय पर बिना किसी कठिनाई के मिल जाता है |
भारत की फसल ऋतु के बारे में चर्चा करें .....
भारत की भौतिक संरचना ,जलवायु एवं मृदा संबंधी विभिन्नतायें ऐसी है जो विभिन्न प्रकार की फसलों की कृषि को प्रोत्साहित करती है भारत की तीन प्रमुख ऋतू फसल है |
खरीफ फसल
खरीफ फसल वर्षा काल की फसलें हैं जो जून-जुलाई में दक्षिण पश्चिम मानसून के प्रारंभ होने के साथ बोई जाती है | तथा सितंबर अक्टूबर तक काट ली जाती है | इसमें उष्णकटिबंधीय फसलें शामिल है जिसके अंतर्गत चावल , ज्वार, बाजरा , मक्का , जूट , मूंगफली , कपास, सन , तंबाकू , मूंग , आदि की कृषि की जाती है |
रबी फसल
रबी फसल सामान्यतः अक्टूबर में बोई जाती है और मार्च में काट दी जाती है इस ऋतु में सिंचाई की आवश्यकता ज्यादा पड़ती है इसके अंतर्गत प्रमुख फसलें गेहूं , चना , मटर , सरसों , राइ आदि है |
जायद फसल
जायद एक अल्पकालीन एवं ग्रीष्मकालीन फसल है | जो रबी एवं खरीफ के मध्यवर्ती काल में अर्थात अप्रैल में बोई जाती है | और जून तक काट ली जाती है | इसमें सिंचाई की सहायता से सब्जियों , खरबूजा , ककड़ी , खीरा , करेला आदि की कृषि की जाती है मूंग और कुल्थी जैसे दलहन फसलें भी इस समय उगाई जाती है |
भारत की प्रमुख फसलों के बारे में वर्णन करें ....
भारत की प्रमुख फसलों को कई भागों में बांटा जाता है जैसे खाद्यान फसले , दलहन फसले , तिलहनी फसलें एवं नगदी फसलें
भारत की खाद्य फसलें
भारत अधिक जनसंख्या वाला देश है | जिसके लिए भोजन पूर्ति के कारण भारतीय कृषि में खाद्यान्न फसलों की प्रधानता पाई जाती है जो संपूर्ण कृषि क्षेत्र की 61% भाग को अधिकृत किए हुए हैं इन खाद्य फसलों में अनाज और दालें है ₹ जिसमें चावल , गेहूं, ज्वार, बाजरा , मक्का , जो ,रागी , चना और अरहर प्रमुख है |
चावल
चावल एक खाद्य फसल है जिसकी कृषि देश के पूरे भाग में की जाती है | चावल मुख्यतः खरीफ की फसल है जिसे जून से अगस्त के बीच में बोया जाता है एवं कटाई नवंबर और दिसंबर के मध्य में की जाती है इसकी कृषि समुद्र तल से 200 मीटर की ऊंचाई तक पूर्वी भारत के आर्द्र भागो से लेकर उत्तर पश्चिमी भारत के शुष्क लेकिन सिंचित क्षेत्रों में सफलतापूर्वक की जाती है | दक्षिणी राज्य तथा पश्चिम बंगाल में जलवायु अनुकूलता के कारण एक कृषि वर्ष में चावल की दो या तीन फसलें उगाई जाती है | जिसे पश्चिम बंगाल में ऑस , अमन तथा बोरो कहा जाता है इसके लिए तापमान 23 से 29 डिग्री सेंटीग्रेड होनी चाहिए |
चावल की उपज के लिए दशाएँ
तापमान
चावल की कृषि के लिए कम से कम 20 डिग्री सेंटीग्रेड तापमान होनी चाहिए इसे बोते समय की 21 डिग्री सेंटीग्रेड, बढ़ते समय 24 डिग्री सेंटीग्रेड तथा पकते समय 27 डिग्री सेंटीग्रेड तापमान की आवश्यकता होती है |
वर्षा
चावल जल में अंकुरित होने वाला पौधा है इसे बोते समय खेत में लगभग 20 से 30 सेंटीमीटर गहरा जल भरा होना चाहिए चावल की फसल के लिए 125 से 200 सेमी वार्षिक वर्षा की आवश्यकता होती है बुवाई के समय वर्षा अधिक होनी चाहिए जैसे-जैसे पकने का समय आता है वैसे वैसे कम वर्षा की आवश्यकता रहती है |
मिट्टी
चावल की खेती के लिए उपजाऊ मिट्टी होना चाहिए इसके लिए चीकायुक्त दोमट मिट्टी उपयुक्त होती है | नदियों द्वारा लाई गई जलोढ़ मिट्टी में चावल का पौधा भलीभांति उगता है | चावल की खेती के लिए हल्के ढाल वाले मैदानी भाग अनुकूल होती है |
क्षेत्र एवं उत्पादन
भारत में पंजाब राज्य चावल उत्पादकता में शीर्ष स्थान पर है यद्यपि सभी राज्यों में चावल की कृषि की जाती है किंतु इसका अधिकांश कृषि क्षेत्र केवल 8 राज्यों मे पश्चिम बंगाल , उत्तर प्रदेश , आंध्र प्रदेश पंजाब , उड़ीसा , बिहार, छत्तीसगढ़ तथा तमिलनाडु में पाया जाता है उत्पादन के क्रम में पश्चिम बंगाल उत्तर प्रदेश तथा पंजाब क्रमश पहले दूसरे तथा तीसरे स्थान पर है |
गेहूं
चावल के बाद गेहूं देश का दूसरा महत्वपूर्ण खाद्यान्न फसल है इसके अंतर्गत वर्ष 2015-16 में कुल खाद्यान्नों के क्षेत्रफल का लगभग 25% भाग और उत्पादन का लगभग 36% भाग पाया जाता है विश्व की गेहूं उत्पादक देशों में भारत का दूसरा स्थान है वर्ष 1967- 68 के बाद गेहूं की कृषि की उल्लेखनीय प्रगति हुई है जिसके कारण ही देश खाद्यान्नों के मामले में आत्मनिर्भर हो सकता है भारत में गेहूं रबी की फसल के रूप में उगाया जाता है |
उपज की दशाएं
तापमान
गेहूं की खेती के लिए उगते समय 10 डिग्री सेंटीग्रेड तथा पकते समय 15 से 20 डिग्री सेंटीग्रेड तापमान की आवश्यकता होती है |
वर्षा
गेहूं की खेती के लिए 75 सेंटीमीटर वार्षिक वर्षा की आवश्यकता होती है 100 सेंटीमीटर से अधिक वार्षिक वर्षा वाले क्षेत्रों में गेहूं की कृषि नहीं की जाती है सिंचाई की सहायता से गेहूं 20 सेंटीमीटर वार्षिक वर्षा वाले क्षेत्रों में भी उगाया जा सकता है | वर्षा की मात्रा उगते समय अधिक होनी चाहिए |जैसे जैसे गेहूं का पौधा बढ़ता जाता है वैसे वैसे वर्षा की आवश्यकता कम होती जाती है तथा पकत्ते समय वर्षा गेहूं के लिए हानिकारक होती है |
मिट्टी
गेहूं की कृषि अनेक प्रकार की मिट्टी में की जा सकती है परंतु हल्की मृतिका मिट्टी , मृतिकायूक्त दोमट मिट्टी , भारी दोमट मिट्टी , बलुई दोमट मिट्टी इसके लिए उत्तम होती है गेहूं की कृषि में बड़े पैमाने पर यंत्रों का प्रयोग किया जाता है| इसलिए इसे समतल मैदानी भागों आवश्यकता होती है |
क्षेत्र एवं उत्पादन
गेहूं की खेती देश के सकल कृषि क्षेत्र के लगभग 15% भाग पर की जाती है गेहूं का देश के कुल अनाज और खाद्यान्न में क्रमशः 36.37% और 34.4% का योगदान रहा है | भारत के अधिकांश गेहूं का उत्पादन केवल छ: राज्य क्रमश: उत्तर प्रदेश प्रदेश, पंजाब , मध्य प्रदेश , हरियाणा , राजस्थान तथा बिहार से प्राप्त होता है | गेहूं के अंतर्गत कृषि क्षेत्र का 52.9% भाग सिंचाई युक्त है विश्व में गेहूं का सर्वाधिक उत्पादन चीन में तथा दूसरे स्थान पर भारत में होता है |भारत में उत्तर प्रदेश का गेहूं उत्पादन में प्रथम स्थान है यहां देश के कुल उत्पादन का 29% गेहूं पैदा होती है |
ज्वार
ज्वार अफ्रीकी मूल का पौधा है उत्तरी भारत में ये चारे के रूप में प्रयोग किया जाता है | परंतु प्रायद्वीपीय भारत मे यह महत्वपूर्ण खाद्य फसल है जवाहर खरीफ तथा रबी दोनों प्रकार की फसल है | खरीफ की फसल के रूप में यह 26 से 35 सेंटीग्रेड तापमान वाले इलाकों पैदा की जाती है | रबी की फसल को 16 सेंटीग्रेड से अधिक तापमान वाले इलाकों में बोया जाता है उगते समय इसे 30 सेंटीमीटर वर्षा की आवश्यकता होती है और 100 सेंटीमीटर से अधिक वर्षा वाले इलाकों में इसकी खेती संभव नहीं है | यह दोमट तथा बलूइयुक्त मिट्टी सहित कई प्रकार की मिट्टियों में उग सकती हैं | लेकिन चीकायुक्त , गहरी रेगुर मिट्टी इसके लिए आदर्श होती है ज्वार मुख्यता प्रायद्वीपीय भारत की फसल है महाराष्ट्र ज्वार उत्पादन में प्रथम स्थान पर है इसके बाद क्रमशः कर्नाटक , तमिलनाडु , मध्यप्रदेश एवं आंध्र प्रदेश इसके प्रमुख उत्पादक राज्य है |
बाजरा
बाजरा भी अफ्रीकी मूल का पौधा है सामान्यता शुष्क प्रदेशों की फसल या महत्वपूर्ण मोटा अनाज है जिसे भोजन के रूप में प्रयोग किया जाता है इससे पशुओं के चारे तथा छप्पर बनाने के लिए भी प्रयोग किया जाता है | यह एक शष्क जलवायु वाली फसल है जो 40 से 50 सेमी वार्षिक वर्षा वाले इलाकों में बोई जाती है | इसके लिए आदर्श तापमान 25 डिग्री से 30 डिग्री सेंटीग्रेड होता है |
इसकी वृद्धि के लिए प्रारंभिक चरणों में हल्की वर्षा के बाद तेज धुप बड़ी लाभकारी होता है | या खरीफ की फसल है जिसे मई से सितंबर तक बोया जाता है | और अक्टूबर से फरवरी मार्च तक काट लिया जाता है या वर्षा पर आधारित फसल है | जिसे सिंचाई की आवश्यकता नहीं होती है |
मक्का
मक्का मुख्यतः खरीफ की फसल है परंतु कुछ क्षेत्रों में से रबी के रूप में भी उगाया जाता है | यह मोटा अनाज है जिसे मनुष्य के लिए भोजन तथा पशुओं के लिए चारे के रूप में प्रयोग किया जाता है | इससे स्टार्च तथा ग्लुकोज प्राप्त किया जाता है | यह फसल भारतीय मूल की नहीं है बल्कि इसे 17 वी शताब्दी के आरंभ में अमेरिका से लाया गया था यह भारत की उत्तरी मैदान तथा उप हिमालयी क्षेत्र की महत्वपूर्ण फसल बन गई है यह फसल विभिन्न प्रकार की भौगोलिक परिस्थितियों में उग सकता है |
यह फसल मुख्य रूप से वर्षा आधारित फसल है | वर्षा ऋतु के आरंभ होने के कुछ समय पहले बोई जाती है | तमिलनाडु में यह रबी की फसल है | जहां पर इसे शीतकालीन वर्षा ऋतु आरंभ होने से पहले सितंबर अक्टूबर में बोया जाता है इसे 50 से 100 सेंटीमीटर वार्षिक वर्षा की आवश्यकता होती है | और इसे फसल को 100 से अधिक वार्षिक वर्षा वाले इलाकों में नहीं बोया जाता है वर्षा के बाद चमकीले धूप इसके लिए बहुत उपयोगी होती है |
मक्का की खेती के लिए नाइट्रोजन युक्त दोमट या लाल मिट्टी आदर्श होती है पहाड़ी इलाकों में यह खुरदरी मिट्टी में भी उग जाती है |
मक्का की खेती पूरे भारत में की जाती है आंध्र प्रदेश का उत्पादन एवं कर्नाटक का क्षेत्र इस दृष्टि से प्रथम स्थान पर है |
जौ
जौ की खेती पहले विस्तृत क्षेत्रफल पर की जाती थी लेकिन अब इसे सीमित क्षेत्र में ही बोया जाता है यह मोटा अनाज है जिसे भोजन तथा बियर एवं व्हिस्की बनाने के लिए प्रयोग किया जाता है | इसका पौधा उच्च तापमान तथा उच्च आर्द्रता को सहन नहीं करता इसके लिए लगभग 3 माह तक 10 से 15 डिग्री सेंटीग्रेड तापमान रहना चाहिए और वर्षा 75 से 100 सेमी से अधिक नहीं होनी चाहिए हल्की चिका एवं कॉप मिट्टी इसके लिए उपयुक्त होती है | इसे भारत के उत्तरी मैदान तथा पश्चिमी हिमालय की घाटियों में रबी की फसल के रूप में बोया जाता है भारत में जौ की कृषि का प्रचलन बहुत कम होते जा रहा है |
दलहनी फसलें
भारत विश्व में दलहन का सबसे बड़ा उत्पादक है दालों के अंतर्गत चना , अरहर , तुर , उड़द , मूंग , मसूर , मटर , लोबिया , मोठ आदि कई खाद्यान्न फसल है दलहन में प्रोटीन की मात्रा अधिक होती है इसमें से कुछ को पशुओं के चारे के रूप में भी प्रयोग किया जाता है यह मिट्टी को वायुमंडलीय नाइट्रोजन प्रदान करती है जिससे मिट्टी की उर्वरा शक्ति बढ़ती है |
दालों के उत्पादन में मध्यप्रदेश का प्रथम स्थान है जिसके बाद महाराष्ट्र स्थान आता है |
कुछ दलहनी फसलें निम्नलिखित है
चना
चना दलहन की एक प्रमुख फसल है जिसका दलहन की फसलों के सकल क्षेत्र में 40.4% और उत्पादन में का 51.2 योगदान है चना में 61.5% कार्बोहाइड्रेट 21% प्रोटीन होता है |
चना को विभिन्न प्रकार की मिट्टी में उगाया जाता है परंतु सूप्रवाहित दोमट मिट्टी सबसे उपयुक्त मानी जाती है | चना की बुवाई मध्य अक्टूबर-नवंबर में और कटाई मार्च-अप्रैल में की जाती है |
चना की खेती देश के विभिन्न भागों में की जाती है लेकिन विशेषकर मध्य प्रदेश महाराष्ट्र उत्तर प्रदेश राज्य में ज्यादा देखा जाता है |
अरहर
दालों में अरहर का दूसरा स्थान है इसे गन्ना और कपास के खेतों में चारों और बाड़ की तरह लगाया जाता है | यह वर्ष भर की फसल है जिस की बुवाई मई जुलाई एवं कटाई जनवरी अप्रैल में की जाती है इसे ज्यादातर मिश्रित फसल के रूप में हो उगाया जाता है | अरहर का सर्वाधिक उत्पादन मध्यप्रदेश राज्य में होता है | जबकि महाराष्ट्र , कर्नाटक अन्य प्रमुख उत्पादक राज्य है |
लोबिया
लोबिया एक दलहनी फसल है जिसका प्रयोग सब्जी के साथ साथ जानवरों के चारे में प्रयोग किया जाता है | लोबिया शीतोष्ण और समशीतोष्ण जलवायु में उगाया जाता है इसकी खेती खरीफ के रूप में वर्षा ऋतु में की जाती है | इसका उत्पादन मुख्य रूप से कर्नाटक , तमिलनाडु , मध्य प्रदेश , केरल तथा उत्तर प्रदेश के कुछ भागों में किया जाता है |
मूँग
मूंग एक दलहनी फसल है जिसका प्रयोग खाद्यान्न के रूप में किया जाता है | इसमें प्रोटीन की अधिक मात्रा पाई जाती है | मूंग की खेती खरीफ एवं जायद दोनों मौसम मे की जा सकती है लेकिन जायद में मूंग की खेती के लिए सिंचाई की आवश्यकता होती है | राजस्थान मूंग का सर्वाधिक उत्पादक राज्य है | आंध्र प्रदेश तथा तमिलनाडु इसके अन्य प्रमुख उत्पादक राज्य है |
तिलहन फसलें
जिस फसल से हमें तेल प्राप्त होता है उसे तिलहन फसल कहा जाता है | तील , सरसों , अलसी , मूंगफली , नारियल , अरंडी , सोयाबीन , सूरजमुखी आदि तिलहन फसल है |
तिलहन बहुत ही लाभकारी फसलों का समूह है इससे हमें निम्नलिखित लाभ प्राप्त होता है |
तिलहन फसल से हमें विभिन्न प्रकार के तेल प्राप्त होता है | जिसका प्रयोग खाना बनाने , दवाइयों बनाने तथा विभिन्न उद्योगों जैसे साबुन , मशीन का तेल , रोगन , मोमबत्ती आदि में किया जाता है |
तिलहन में से जो तेल निकाल लेने के बाद जो खली बच जाती है उसे पशुओं के लिए पौष्टिक आहार बनाया जाता है |
बहुत से तिलहन फसलों को बोने से भूमि की उपजाऊ शक्ति बढ़ जाती है |
तिलहन के उत्पादन से किसानों को अधिक धन प्राप्त होती है |
देश में तिलहन उत्पादन में गुजरात का स्थान सर्वोपरि है | राजस्थान , मध्य प्रदेश , महाराष्ट्र ,आंध्र प्रदेश आदि अन्य प्रमुख उत्पादक राज्य हैै |
मूंगफली
मूंगफली ब्राजील का मूल पौधा है| पिछले लगभग आधी शताब्दी से भारत में इसकी कृषि का का प्रचलन बहुत बढ़ गया है | आज यह भारत का सबसे महत्वपूर्ण तिलहन फसल है | और भारत के कुल तिलहन उत्पादन में मूंगफली का 15.15% योगदान है | मूंगफली में विटामिन तथा प्रोटीन प्रचुर मात्रा में होती है इससे बनस्पति घी बनाया जाता है और विभिन्न उद्योगों में प्रयोग किया जाता है |
यह उष्ण कटिबंधीय जलवायु का पौधा है जिसके लिए 20 डिग्री से 30 डिग्री सेंटीग्रेड तापमान तथा 50 से 75 सेमी वार्षिक वर्षा की आवश्यकता पड़ती है | यह अधिक आद्र जलवायु में नहीं पनपता है | पाला , लंबा सूखा तथा लंबी अवधि की वर्षा इसके लिए हानिकारक होती है इसके लिए बलुई दोमट मिट्टी उपयुक्त होती है |
भारत विश्व का दूसरा सबसे बड़ा मूंगफली का उत्पादक देश है | भारत में गुजरात मूंगफली का सबसे बड़ा उत्पादक राज्य है | इसके अलावा राजस्थान , आंध्र प्रदेश , तमिलनाडु , कर्नाटक , महाराष्ट्र में भी मूंगफली का उत्पादन होता है |
तोरिया एवं सरसों
मूंगफली के बाद तोरिया और सरसों भारत के दूसरे महत्वपूर्ण तिलहन फसल है इसमें तेल की मात्रा 25 से 45% तक होती है इसे खाना बनाने , अचार डालने तथा बालों में लगाने के लिए प्रयोग किया जाता है राजस्थान भारत में तोरिया और सरसों का सबसे बड़ा उत्पादक राज्य है |जो भारत के कुल उत्पादन का 48.10% उत्पादन करता है इसके अलावा उत्तर प्रदेश , मध्य प्रदेश , हरियाणा और गुजरात में भी इसका उत्पादन होता है |
अलसी
अलसी भी एक महत्वपूर्ण तिलहन फसल है जिसमें 35 से 47% तक तेल होता है इसका प्रयोग पेंट , वार्निश , छपाई की स्याही तथा जल विरोधी वस्त्र के लिए किया जाता है | इसकी खेती विभिन्न भौगोलिक परिस्थितियों में की जा सकती है | फिर भी इसके लिए 20 डिग्री सेंटीग्रेड तापमान तथा 75 सेमी वर्षा वाली ठंडी तथा आद्रता जलवायु अधिक उपयोगी होती है |
चीकायुक्त दोमट गहरी काली और काँप की मिट्टी मे भलीभांति उगती है यह रबी की फसल है जिसे अक्टूबर-नवंबर में बोया जाता है और मार्च-अप्रैल में काट लिया जाता है |
तिल
तिल भी एक प्रकार का तिलहन फसल है | जिसमें 45 से 50% तेल होता है | जिसका प्रयोग खाना बनाने तथा दवाइयों के लिए किया जाता है | तिल वर्षा पर आधारित फसल है जिसे सिंचाई की सुविधा उपलब्ध नहीं कराई जाती है | यह मुख्यता समतल भूमि की फसल है यह उत्तरी भारत में खरीफ तथा दक्षिणी भारत में रबी की फसल है |
सोयाबीन
सोयाबीन में 40 से 50% प्रोटीन तथा 20 से 22% तक तेल की मात्रा पाई जाती है | यह खरीफ मौसम में बोई जाती है | इसके लिए 13 डिग्री सेंटीग्रेड से 24 डिग्री सेंटीग्रेड का तापमान तथा 40 सेमी से 60 सेमी की वार्षिक वर्षा की आवश्यकता होती है | मध्य प्रदेश सोयाबीन के उत्पादन में अग्रणी है | इसलिए इसे सोया प्रदेश कहा जाता है | इसके अलावा महाराष्ट्र एवं राजस्थान में भी इसकी खेती की जाती है |
नकदी फसलो के बारे में बताएं
नकदी फसलों के अंतर्गत उन व्यापारिक फसलों को सम्मिलित करते हैं जिन्हें आमदनी के लिए सीधे या अर्ध्द प्रसंस्कृत रूप से किसानों द्वारा बेचा जाता है इसमें गन्ना ,तंबाकू , रेशेदार फसलें ,कपास ,जुट प्रमुख फसल है |
इन फसलों से उद्योगों को कच्चा माल प्राप्त होता है तथा किसानों को अपना जीवन स्तर सुधारने के साथ ही साथ कृषि विकास के लिए पूंजी की प्राप्ति होती है |
कुछ प्रमुख नकदी फसल निम्नलिखित है
गन्ना
भारत गन्ने की जन्मभूमि है गन्ना बाँस प्रजाति का पौधा है | गन्ना भारत की प्रमुख नकदी फसल है गन्ना से चीनी उद्योग को कच्चे माल की प्राप्ति होती है | चीनी , गुड़ , खाण्डसारी के अलावा इससे प्राप्त शीरे का उपयोग शराब निर्माण एवं खोई का इस्तेमाल कागज उद्योग में किया जाता है | गन्ना उत्पादन में विश्व में भारत का दूसरा स्थान पहले स्थान पर ब्राज़ील आता है |
गन्ना उत्पादन के लिए 100 से 150 सेमी वर्षा वाले इलाकों में गन्ना भलीभांति फलता फूलता है | कम वर्षा वाले क्षेत्रों में सिंचाई की आवश्यकता होती है कटाई से पहले शुष्क वातावरण हो तो गन्ने में मिठास अधिक हो जाती है |
गन्ना 11 से 12 महीने में पकता है | इस लंबे वर्धन काल में 20 से 30 डिग्री सेंटीग्रेड तापमान का होना आवश्यक है | गन्ने को बोते समय सामान्य तापमान बढ़ते समय अधिक तापमान तथा पकते समय कम तापमान की आवश्यकता होती है | पाला गन्ने के लिए हानिकारक होता है |
गन्ने की खेती के लिए गहरी दोमट मिट्टी जिसमें जल का बहाव भलीभांति होता हो उत्तम होती है चुनायुक्त मिट्टी गन्ने की वृद्धि में सहायता देती है | अतः नदी घाटियों , बाढ़ के मैदानों तथा डेल्टाई प्रदेशों की मिट्टी गन्ने की कृषि के लिए बहुत उपयुक्त होती है | गन्ना मिट्टी की उर्वरा शक्ति को जल्दी ही समाप्त कर देता है | अतः इसकी कृषि में बड़ी मात्रा में खाद एवं उर्वरकों की आवश्यकता होती है |
गन्ने के लिए मैदानी भाग उपयुक्त होती है क्योंकि यहां पर इसकी कृषि के विकास के लिए अनेक सुविधाएं प्राप्त होती है | क्योंकि मैदानों में गन्ने की कृषि के लिए बुलडोजर , कल्टीवेटर , हार्वेस्टर आदि यंत्रों का प्रयोग हो सकता है | गन्ने को चीनी मिलो तक पहुंचाने के लिए यातायात के साधन भी मैदानों में ही जुटाए जा सकते हैं |
गन्ने का सर्वाधिक विस्तार उत्तरी भारत के मैदानी भाग में पाया जाता है | इसकी खेती उत्तर प्रदेश , बिहार , पंजाब , हरियाणा , महाराष्ट्र तामिलनाडु , कर्नाटक , आंध्र प्रदेश , गुजरात आदि राज्यों में की जाती है गन्ने के उत्पादन में प्रथम स्थान उत्तर प्रदेश का है जबकि महाराष्ट्र , तमिलनाडु क्रमश: दूसरे व तीसरे स्थान पर है |
कपास
कपास एक विश्वव्यापी पौधा है विश्व में आधे से अधिक कपड़े कपास के रेशे से तैयार किया जाता है | कपास के बिनौले से तेल तथा घी बनाया जाता है | बिनौला तथा इसकी खली जानवरों को खिलाई जाती है | खली का खाद के रूप में भी प्रयोग किया जाता है | कपास के सूखे पौधे का प्रयोग इंधन के रूप में किया जाता है |
व्यापारिक दृष्टि से कपास का वर्गीकरण लंबाई के अनुसार किया जाता है |
लंबे रेशे वाली कपास
लंबे रेशे वाली कपास सबसे बढ़िया किस्म की कपास होती है | जिसके लिए से की लंबाई 60 मिली मीटर होती है | इसका रेशा लंबा , चमकीला , हल्का , मजबूत तथा मुलायम होता है इससे उच्च कोटि के वस्त्र बनाए जाते हैं यह कपास मिश्र , संयुक्त राज्य अमेरिका तथा पश्चिमी द्वीप समूह में पैदा की जाती है | भारत में भी इसकी कृषि होने लगी है |
मध्यम रेशे वाली कपास
मध्यम रेशे वाली कपास की लंबाई सामान्यता 25 से मिमी से 40 मिमी तक लंबा होता है | यह रेशा सुदृढ़ भी होता है संयुक्त राज्य अमेरिका इस कपास का सबसे बड़ा उत्पादक है | भारत में भी यह कपास उत्पन्न की जाती है | व्यापारिक दृष्टि से यह सबसे महत्वपूर्ण कपास है |
छोटे रेशे वाली कपास
छोटे रेशे वाली कपास का रेशा 25 मिमी से कम लंबा होता है | यह कपास भारत , चीन तथा दक्षिणी पूर्वी एशिया के अन्य देशों और ब्राजील में भी पैदा होती है | भारत में कपास के कुल क्षेत्र का 17% छोटे रेशेवाली 44% मध्यम रेशेवाली तथा 39% लंबे रेशे वाली कपास के अंतर्गत आता है |
कपास उपोष्ण तथा उष्णकटिबंधीय पौधा है | इसलिए इसे ऊंचे तापमान की आवश्यकता होती है | इसके लिए 21 से 25 सेंटीग्रेड तापमान अनुकूल होता है पाला इस पौधे का प्रथम शत्रु है इसके लिए वर्ष मैं 200 पाला रहित दिन होने अनिवार्य है| तेज चमकीली धूप कपास के पौधों को बढ़ने में सहायता देती है |
कपास की खेती के लिए 50 से 100 सेमी वर्षा पर्याप्त होती है | वर्षा थोड़े दिनों के अंतराल पर होते रहना चाहिए पकते समय शुष्क वातावरण की आवश्यकता होती है | सिंचित भूमि पर पैदा होने वाली कपास उत्तम होती है |
अच्छे अपवाह वाली हल्की दोमट मिट्टी जो जल को अपने अंदर अधिक देर तक सोख सके कपास की खेती के लिए उत्तम होती है | मिट्टी में चूने के अंश से कपास की खेती में वृद्धि होती है दक्षिणी भारत की लावा से बनी काली मिट्टी सर्वोत्तम होती है | या काले रंग की होती है जिसे रेगुर अथवा कपास की काली मिट्टी कहा जाता है | कपास की खेती से मिट्टी में उर्वरा शक्ति की मात्रा कम हो जाती है इसलिए इसकी कृषि के लिए उर्वरक की अधिक मात्रा में आवश्यकता होती है |
भारत विश्व का दूसरा बड़ा कपास उत्पादक देश है | जो विश्व का 16% कपास उत्पादन करता है | देश के लगभग 5% कृषित क्षेत्र पर कपास की खेती की जाती है | जो विश्व में सर्वाधिक भूमि है कपास के उत्पादन में गुजरात का प्रथम स्थान है | इसके अलावा महाराष्ट्र , आंध्र प्रदेश एवं पंजाब में भी इसकी खेती की जाती है |
पटसन या जूट
कपास के बाद जुट भारत की दूसरी महत्वपूर्ण रेशेदार फसल है |जुट का रेशा संस्ता ,मुलायम , मजबूत तथा लंबा होता है | इससे अनेक प्रकार की वस्तुएं बनाई जाती है | जिसमें बोरी, टाट, रस्सियाँ, कालीन कपड़े तथा सजावट का सामान आदि प्रमुख है | यह भारतीय मूल का पौधा है | और इससे यहां व्यापारिक फसल के रूप में उगाया जाता है पटसन खरीफ की फसल है |
पटसन गर्म तथा आद्र जलवायु में पनपने वाली फसल है | इसके वृद्धि काल में 24 से 35 सेंटीग्रेड तापमान 120-150 सेमी वर्षा तथा 80 से 90% आपेक्षीक आर्द्रता की आवश्यकता होती है | इसे बोने तथा इसे रेशे को धोने के लिए पर्याप्त जल की आवश्यकता होती है |
हल्की बलुई अथवा चुना युक्त दोमट मिट्टी इसके लिए बहुत अनुकूल होती है | यह मिट्टी की उपजाऊ शक्ति को बहुत जल्दी ही छीन कर देती है अत: यह उन इलाकों में बोई जाती है | जहां हर वर्ष नदियों द्वारा नई उपजाऊ मिट्टी लाकर बिछाई जाती है |
इस फसल को बोने तथा इसने रेशा प्राप्त करने के लिए सस्ते एवं कुशल श्रम की आवश्यकता होती है |
भारत विश्व में जूट का सबसे बड़ा उत्पादक देश है | स्वतंत्रता के पूर्व तो इसका जुट एवं जुट की वस्तुओं के क्षेत्र में विश्व में एकाधिकार था विभाजन के समय 30% जूट उत्पादक क्षेत्र पूर्वी पाकिस्तान अर्थात वर्तमान बांग्लादेश में चले जाने के कारण भारत की जूट मिलों को कच्चे माल की कमी का सामना करना पड़ा हालांकि जूट की खेती को प्रोत्साहित करने के लिए अनेक उपाय किए गए और इसका सकारात्मक फल भी मिला इसकी खेती पश्चिम बंगाल , बिहार , असम , उड़ीसा आदि राज्यों में की जाती है जट के उत्पादन में पश्चिम बंगाल का प्रमुख स्थान है और यह कुल उत्पादन का लगभग 75% उत्पादित करता है |
तम्बाकू
तंबाकू भारत में 1508 ईसवी में पुर्तगालियों द्वारा लाया गया था आज भारत ,चीन व ब्राजील के बाद तंबाकू का तीसरा बड़ा उत्पादक देश है इसकी पत्तियों का उपयोग सिगरेट , बीड़ी बनाने , हुक्का तथा पान में होता है |
इसके डंठल का उपयोग पोटाश उर्वरक में होता है जिसका चूर्ण कीटनाशक के तौर पर भी प्रयोग किया जाता है |
भारत में तंबाकू की दो किस्म पाई जाती है
निकोटियाना टीबेकम तथा निकोटियाना रक्टिका
तंबाकू उष्ण तथा उप उष्ण जलवायु का पौधा है | तथा 16 डिग्री से 35 डिग्री सेंटीग्रेड तापमान को सहन कर सकता है | इसे सामान्यतः 100 सेंटीमीटर वार्षिक वर्षा की आवश्यकता होती है |परंतु यदि वर्षा का कालिक वितरण समान हो तो यह 50 सेमी वार्षिक वर्षा मे भी पनप सकता है | कम वर्षा वाले क्षेत्रों में सिंचाई की आवश्यकता होती है |
यह ऐसी भुरभुरी बालूकायुक्त दोमट मिट्टी में उगती है | जो इसकी जड़ों के विकास में सहायक हो मिट्टी खनिज लवण से युक्त होना चाहिए ना कि जैविक तत्व से | यह निम्न मैदानी भागों से लेकर 1800 मीटर ऊंचे स्थानों पर बोई जाती है |
खेतों को फसल के लिए तैयार करने प्रतिरोपण , गुड़ाई , निराई , काटने तथा तंबाकू के प्रक्रमण तक सभी क्रियाओं के लिए सस्ते तथा कुशल श्रम की आवश्यकता होती है |
बागानी कृषि किसे कहते हैं इसके बारे में वर्णन करें ......
बागानी कृषि नई कृषि तकनीकों एवं मशीनों का इस्तेमाल करते हुए वाणिज्यिक आधार पर उगाए जाने वाले उष्णकटिबंधीय फसलों की एकल कृषि है जिसकी शुरुआत औपनिवेशिक काल के दौरान यूरोपीय भूस्वामी द्वारा की गई |
भारत में इसके अंतर्गत चाय , कहवा , रबड़ एवं मसालों की खेती की जाती है | आज देश में 30,000 से अधिक बागान है जिसमें 200000 से अधिक लोगों को रोजगार मिला हुआ है |
कुछ बागानी कृषि निम्नलिखित है
चाय
चाय देश की सबसे महत्वपूर्ण बागानी फसल है |यह दक्षिणी चीन के युवान पठार का मूल पौधा है | भारत विश्व में चीन के बाद चाय का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक देश है चाय की गुणवत्ता पर मिट्टी की विशेषताओं और ऊंचाई का विशेष असर पड़ता है | सामान्यतया ऊंचाई पर उगाई जाने वाली चाय का स्वाद एवं सुगंध अच्छी होती है |
चाय के कृषि के लिए भौगोलिक दशाएं
तापमान
चाय उष्ण तथा शीतोष्ण कटिबंधीय पौधा है इसके लिए 25° से 30° सेंटीग्रेड तापमान की आवश्यकता होती है |
वर्षा
चाय के लिए 200 से 250 सेमी वार्षिक वर्षा की आवश्यकता होती है | चाय की पत्तियों के निरंतर विकास के लिए वर्षा पूरे साल समान रूप से वितरित होनी चाहिए | बार बार बौछार का पडना और सुबह का कोहरा नई पत्तियों की तीव्र वृद्धि में सहायक होती है |
मिट्टी
चाय की खेती के लिए गहरी सूप्रवाहित उर्वर मिट्टी की आवश्यकता होती है मिट्टी में फास्फोरस , पोटाश , लोहान्स तथा ह्यूमस पर्याप्त मात्रा में होनी चाहिए ताकि चाय की झाड़ी तेजी से बढ़ सके चाय की कृषि के लिए अधिक वर्षा की आवश्यकता होती है | तो भी पानी चाय की झाड़ी की जड़ों में खड़ा नहीं रहना चाहिए नहीं तो पानी जमा रहने से इसकी जड़ों को गला देती है | और झाड़ी नष्ट हो जाती है इसलिए चाय की खेती पर्वतीय ढलानो पर की जाती है |
श्रम
चाय निराई गुड़ाई तथा काट छांट आदि कामों के लिए पर्याप्त मात्रा में श्रमिक की आवश्यकता होती है | चाय की पत्ती को झाड़ी से तोड़ने के लिए कुशल तथा संस्ता श्रमिक चाहिए यह काम मशीनों से नहीं हो सकता इसलिए इसमें औरत तथा बच्चे अपने हाथों से यह काम करते हैं |
क्षेत्र एवं उत्पादन
भारत में चाय का उत्पादन देश में कुल उत्पादन का लगभग 75% भाग केवल असम और पश्चिम बंगाल द्वारा प्रदान किया जाता है | चाय उत्पादन का दूसरा महत्वपूर्ण क्षेत्र नीलगिरी पहाड़ियों के सहारे स्थित है | जिसमें तमिलनाडु , केरल एवं कर्नाटक के भाग समाहित है |
असम राज्य देश में चाय का सबसे प्रमुख उत्पादक राज्य है | यहां चाय उत्पादन के प्रमुख क्षेत्र है | ब्रह्मपुत्र घाटी तथा सुरमा घाटी ब्रह्मपुत्र घाटी देश का सबसे बड़ा चाय उत्पादक क्षेत्र है | तथा पश्चिम बंगाल देश का दूसरा प्रमुख चाय उत्पादक राज्य है | यहां चाय का बागान दूआर एवं दार्जिलिंग पहाड़ियों में पाए जाते हैं | देश में तमिलनाडु का चाय उत्पादन में तीसरा स्थान है | चाय भारत के निर्यात की प्रमुख वस्तु है वर्ष 1965 से पूर्व भारत विश्व में चाय का सबसे प्रमुख निर्यातक देश था | परंतु आज श्रीलंका एवं चीन के बाद उसका तीसरा स्थान है |
कहवा
कहवा का पौधा अबीसीनिया मूल का पौधा है | देश में इसकी खेती अंग्रेजों द्वारा प्रारंभ की गई दक्षिण भारत के कर्नाटक , केरल और तमिलनाडु राज्यों में यह एक लोकप्रिय पेय पदार्थ है | कहवा कि पौधों के लिए उष्ण एवं आर्द्र जलवायु अच्छी मानी जाती है |
खाद्य एवं कृषि संगठन के अनुसार वर्ष 2016 में विश्व में कहवा उत्पादन में भारत का स्थान छठवां है | भारत में 0.4 मिलियन हेक्टेयर क्षेत्र में कॉफी उगाई जाती है | भारत में कॉफी के उत्पादन का अधिकांश भाग निर्यात कर दिया जाता है | कहवा का 85% क्षेत्र और लगभग 98% उत्पादन केवल कर्नाटक , केरल और तमिलनाडु राज्य द्वारा प्रदान किया जाता है | कहवा के उत्पादन में कर्नाटक देश का प्रथम राज्य है | जिसमें कहवा का दूसरा प्रमुख उत्पादक राज्य केरल है | तथा तमिलनाडु कहवा उत्पादन में तीसरे स्थान पर है |
रबड़
रबड़ ब्राजील मूल का पौधा है रबड़ के पौधों के लिए गर्म और नम जलवायु अच्छी होती है रबड़ के पौधों को पहले नर्सरी में उगाते हैं | एवं 0.4 से 0.6 मीटर की लंबाई प्राप्त करने पर इन्हें बागान में रोपित कर दिया जाता है | इसका उत्पादन केरल , तमिलनाडु , कर्नाटक , त्रिपुरा एवं असम आदि राज्यों में होता है रबड़ के उत्पादन में केरल का प्रथम स्थान है |
फल उत्पादन और फूलों की कृषि
आज भारत में विभिन्न प्रकार के मौसमों में विभिन्न प्रकार के फल फूल एवं सब्जियों का उत्पादन किया जाता है | इसको ट्रक फार्मिंग या हॉर्टिकल्चर के नाम से भी जाना जाता है | इसके उत्पादन में सामयिक एवं स्थानीय स्तर पर व्यापक अंतर दिखाई देता है | भारत में जहां फलों में आम , सेब , संतरा , अंगूर , केला , नाशपाती आदि की खेती की जाती है | वही फूलों में लिली , टयूलिप , गुलाब , मेरीगोल्ड आदि का स्थान आता है | जबकि सब्जियों में गोभी , आलू , बैंगन , लौकी , भिंडी गाजर , परवल की प्रमुखता है | भारत विश्व में फलो , फूलों एवं सब्जियों का चीन के बाद दूसरा सर्वाधिक उत्पादन करने वाला देश है |
भारतीय कृषि को प्रभावित करने वाले कारकों को लिखें ....
भारतीय कृषि को प्रभावित एवं निर्धारित करने में प्राकृतिक , सामाजिक , ऐतिहासिक , आर्थिक एवं प्रशासनिक कारक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है | भारतीय कृषि को भौतिक एवं आर्थिक कारक भी कृषि को प्रभावित करती है हरित क्रांति के बाद कृषि को प्रभावित करने वाले कारकों में भूमि सुधार , सिंचाई , उर्वरक , बैंकिंग विपणन आदि की भूमिका प्रमुख हो गई है | इन सभी कारकों को दो भागों में विभक्त किया किया गया है |
(1) संरचनात्मक कारक
कृषि के विकास क्षेत्र विशेष की भौतिक दशा अधोसंरचनात्मक सुविधा तथा संस्थागत कारकों पर निर्भर करता है | परंतु इन कारकों में कृषि के गुणात्मक एवं मात्रात्मक विकास में सर्वाधिक प्रभावशाली संरचनात्मक कारक ही है | संरचनात्मक कारक मूलतः विज्ञान व तकनीक पर आधारित है | इन कारकों के अंतर्गत सिंचाई , उर्वरक , बीज , वाणिज्यिक उर्जा , कीटनाशक , मशीनीकरण प्रमुख कारक है |
सिंचाई
भारतीय परिप्रेक्ष्य में अनिश्चित मानसूनी वर्षा की स्थानिक व कलिक भिन्नता , वर्षा का तीव्र विचलन , वर्षा की अनियमितता, मानसून विभांगता , वर्षा ऋतु की सीमित अवधि , वर्षा का मूसलधार स्वरूप आदि कुछ ऐसे कारक है | जिसके कारण सिंचाई की आवश्यकता हमेशा बनी रहती है | इसके अलावा अलग-अलग फसलों के लिए अलग-अलग समय एवं अलग-अलग जल की मात्रा की आवश्यकता होती है | इसके लिए सिंचाई महत्वपूर्ण हो जाती है |
अतः प्रति हेक्टेयर उच्च उत्पादकता और उच्च कृषि लाभ के लिए सिंचाई की सुविधाओं का होना आवश्यक है | नियोजन काल के दौरान विशेषता तीसरी पंचवर्षीय योजना के उपरांत हरित क्रांति के समय में सिंचाई के विकास को काफी ध्यान दिया गया | आधुनिक समय में सिंचाई का विकास विभिन्न प्रकार के तकनीकी आधार पर वर्गीकृत करने का कार्य किया गया है | जिससे सिंचाई का लक्षित उपयोग हो सके साथ ही साथ जल की हानि भी कम है |
सिंचाई के साधन
सतही व भौम जल की उपलब्धता , उच्चावच संरचना , मृदा जलवायु दशा में भिन्नता के कारण देश में सिंचाई के कई साधन विकसित हुए हैं इसमें तालाब , कुएं व नहर सम्मिलित है |
इन सभी सिंचाई साधनों के अपने अपने फायदे एवं नुकसान है गंगा के विशाल मैदान की मंद ढाल और कोमल मिट्टी जहां उस स्थान पर नहरों के विकास को प्रोत्साहित करती है | वही वह नहरो में जमे गाद से बाढ़ वहीं आमंत्रण देती है| इसके अलावा जलजमाव की समस्या से भूमिका लवनिकरण भी हो जाता है |
पूरे भारत में शुद्ध सिंचित क्षेत्र का लगभग 59% कुओं द्वारा , लगभग 25% नहरों द्वारा एवं लगभग 3.5% तालाबो द्वारा सिंचाई होता है | बाकी अन्य साधनों से सिंचाई होता है | उत्तरी भारत के जलोढ़ क्षेत्र में नलकूप , कुआँ , व नहर सिंचाई के प्रमुख साधन है दक्कन के पठार की रावेदार शिलाओ के क्षेत्र में तालाबों की प्रधानता है | नलकूपों द्वारा सिंचित भूमि का सर्वाधिक इसका उत्तर प्रदेश में पाया जाता है | उसके बाद राजस्थान व मध्यप्रदेश का स्थान आता है | हाल के वर्षों में लघु सिंचाई के अंतर्गत ड्रिप व स्प्रिंकलर सिंचाई का विकास हुआ है |
ड्रिप सिंचाई -
ड्रिप सिंचाई को टपक सिंचाई भी कहा जाता है | इसमें पौधों की जड़ों में बूंद-बूंद जल जल पहुंचाया जाता है जिससे जल की हानि बहुत कम होती है | एवं उसका अधिकतम उपयोग होता है | आधुनिक कृषि में इसका व्यापक प्रचलन बढ़ गया है |
ड्रिप सिंचाई के लाभ
ड्रिप सिंचाई के द्वारा नियमित पानी मिलने से उत्पादन में वृद्धि होती है |
इससे पानी की बचत होती है |
मृदा लवणता में कमी आती है |
अनावश्यक बहाव ना होने के कारण मृदा अपरदन में भी कमी आती है |
पानी में ही उर्वरक मिला देने से उर्वरक सीधे जड़ तक पहुंचते हैं जिससे उर्वरक की बचत होती है |
सिंचाई का पानी सीधे जड़ों तक पहुंचने के कारण आसपास की जमीन सुखी रहती है जिसे खरपतवार में कमी आती है |
स्प्रिंकलर सिंचाई
स्प्रिंकलर सिंचाई में जल को विभिन्न पाइप आदि के माध्यम से उच्च दबाव पर छोड़ा जाता है | जिससे यह लक्षित क्षेत्र या खेतों में ऊपर से पौधों को पानी उपलब्ध कराता है | ये स्थाई तौर पर लगाया जाता है इसका उपयोग गार्डन एवं सब्जी उत्पादन में काफी बढ़ा है | इसको फव्वारा सिंचाई की कहा जाता है |
बहुउद्देशीय परियोजनाएं
बहुउद्देशीय परियोजनााओं के द्वारा सिंचाई ,जल विद्युत उत्पादन , बाढ़ नियंत्रण , वृक्षहरापन , जलापूर्ति , मृदा संरक्षण , नौकायान , मत्स्य पालन , पर्यटन , वन जीवन संरक्षण का उद्देश रखा गया था
भारत की प्रमुख बहुउद्देशीय परियोजनाएं निम्नलिखित है
दामोदर घाटी परियोजना
दामोदर घाटी परियोजना की रूपरेखा संयुक्त राज्य अमेरिका की टेनेसी वैली अथॉरिटी के आधार पर तैयार की गई थी | दामोदर हुगली की सहायक नदी है इस परियोजना से झारखंड एवं पश्चिम बंगाल को लाभ हो रहा है | इस परियोजना अंतर्गत सिंचाई सुविधा के साथ-साथ ताप विद्युत गृह एवं गैस आधारित टरबाइन स्टेशन लगाए गए हैं |
भाखड़ा नांगल परियोजना
भाखड़ा नांगल परियोजना पंजाब , हरियाणा ,राजस्थान राज्य का संयुक्त उपक्रम है | इसके अंतर्गत बांध भाखड़ा नहर तंत्र पर विद्युत गृह शामिल है | भाखड़ा नांगल परियोजना सतलुज नदी पर स्थित है | यह विश्व का सबसे बड़ा सीधा गुरुत्व बांध है जिसकी लंबाई 518 मीटर तथा ऊंचाई 226 मीटर है जिसके द्वारा गोविंद सागर झील बनाई गई है |
कोसी परियोजना
कोसी नदी में आने वाली विनाशकारी बाढ़ की रोकथाम के उद्देश्य से इस परियोजना के लिए भारत और नेपाल के बीच वर्ष 1954 में समझौता हुआ था | हाल ही में भारत और नेपाल के बीच संयुक्त रुप से सप्तकोशी बहुउद्देशीय परियोजना है | और सुनकोशि संचयन के साथ विपथन कार्यक्रम को विकसित करने में सहमति दिखाई | इसमें जलविद्युत , सिंचाई , बाढ़ नियंत्रण और प्रबंधन तथा नौ परिवहन विकसित करने में सहायता मिलेगी इससे सप्तकोशी बांध 3000 मेगावाट बिजली का उत्पादन करेगा |
इस बांध पर बने बैराज से दो नहरें निकालने पर विचार किया जा रहा है | पूर्वी कोसी नहर तथा पश्चिमी कोसी नहर कोसी नहर प्रणाली द्वारा भारत और नेपाल के बड़े क्षेत्र को सिंचित किया जाएगा | पूर्वी कोसी नहर और हनुमान बैराज के मध्य विद्युत उत्पादन हेतु तीन नहर विद्युत गृह के निर्माण पर विचार किया गया है | प्रत्येक विद्युत गृह की स्थापित क्षमता 100 मेगावाट है |
रिहन्द बांध परियोजना
रिहंद बांध परियोजना उत्तर प्रदेश की सबसे बड़ी बहुउद्देशीय परियोजना है | इसके अंतर्गत सोन की सहायक रिहंद नदी पर एक बांध सोनभद्र जनपद में बनाया गया है | और इसके द्वारा रोके गए जल को गोविंद बल्लभ पंत सागर जलाशय में संग्रहित किया गया है | इसके द्वारा निकाली गई नहर से बिहार में भी सिंचाई होती है |
चम्बल परियोजना
यमुना नदी की सहायक नदी चम्बल नदी पर यह परियोजना राजस्थान और मध्य प्रदेश राज्यों का संयुक्त उपक्रम है | इसके अंतर्गत राना प्रताप सागर जलाशय का निर्माण किया गया है |
हीराकुंड बांध परियोजना
यह उड़ीसा राज्य में महा नदी पर निर्मित परियोजना है हीराकुंड बांध विश्व के सबसे लंबे बांधों में से एक है जिसकी लंबाई 4801 मीटर तथा ऊंचाई 61 मीटर है |
तुंगभद्रा परियोजना
यह परियोजना कृष्णा नदी की सहायक तुंगभद्रा नदी पर स्थित है | यह कर्नाटक व आंध्र प्रदेश राज्य का संयुक्त उपक्रम है इस परियोजना के अंतर्गत मल्लापुरम में एक बांध बनाया गया है |
नागार्जुन सागर परियोजना
इस परियोजना के अंतर्गत से कृष्णा नदी पर नंदीकोंडा के पास एक बांध बनाया गया है इससे जवाहरलाल नेहरू और लाल बहादुर शास्त्री नामक नहरे निकाली गई है |
गंडक परियोजना
यह उत्तर प्रदेश और बिहार राज्यों की संयुक्त परियोजना है जिसका कुछ लाभ नेपाल को भी दिया जा रहा है |
व्यास परियोजना
यह परियोजना पंजाब ,हरियाणा और राजस्थान राज्य की सम्मिलित परियोजना इसके अंतर्गत इंदिरा गांधी नहर में जाड़े के समय में नियमित जलापूर्ति बनाए रखने के लिए व्यास नदी पर धौलाधार पहाड़ियों में पोंग बांध बनाया गया है |
मयूराक्षी परियोजना
मयूराक्षी हुगली की सहायक नदी है इसमें मयूराक्षी नदी पर कनाडा बांध बनाया गया है इससे पश्चिम बंगाल एवं झारखंड राज्य लाभान्वित हो रहा है |
इंदिरा गाँधी नहर परियोजना
इंदिरा गांधी नहर परियोजना भारत की एक बहुत बड़ी सिंचाई परियोजना है इसके लिए ब्यास तथा सतलुज नदी पर बने हरिके बैराज से जल दिया जा रहा है |
नर्मदा घाटी परियोजना
इसके अंतर्गत गुजरात सरदार सरोवर परियोजना व नर्मदा सागर परियोजना सम्मिलित है इस परियोजना से मध्य प्रदेश और गुजरात राज्य लाभान्वित होगा |
टिहरी बांध परियोजना
इस बांध का निर्माण भागीरथी और भील गंगा के संगम के नीचे उत्तराखंड के टिहरी जिले में किया गया है |
उर्वरक ....
रासायनिक उर्वरक आधुनिक कृषि का दूसरा अवलंब है भारतीय परिपेक्ष में तो यह और भी महत्वपूर्ण हो जाता है | वस्तुत: भारत की जलवायु उष्ण कटिबंधीय होने के कारण यहां की मृदा में सार्वभौमिक रूप से नाइट्रोजन की कमी पाई जाती है | जो कि उर्वरकता निर्धारण में महत्वपूर्ण कारक है | उर्वरक के समुचित प्रयोग से प्रति हेक्टेयर उत्पादन में 30% तक वृद्धि हो सकती है | यही कारण है कि नियोजित विकास की रणनीति के अंतर्गत राष्ट्रीय स्तर पर उर्वरक संयंत्र की स्थापना के साथ-साथ सरकार ने इसके आयातो को बढ़ावा दिया है | इसकी सुविधा आम आदमी तक पहुंचाने के लिए सरकार ने सब्सिडी देने , रियायती ऋण ऋण देने तथा स्थानीय स्तर पर वितरण केंद्र खोलने ,मृदा परीक्षण केंद्र खोलने के कदम उठाया है |
भारत में उर्वरक की खपत
भारत में प्रति हेक्टेयर उर्वरक की खपत की मात्रा मात्र वर्ष 1951 के मात्र आधा की किलोग्राम से बढ़कर वर्तमान में 125.39 किग्रा प्रति हेक्टेयर पहुंच गई है | परंतु यह विश्व के विकसित देशों की तुलना में बहुत कम है | उर्वरक की खपत हर राज्य में अलग-अलग है शुष्क कृषि क्षेत्रों में जहां सिंचाई की सुविधा संतोषप्रद नहीं है |इसकी खपत कम पाई जाती है | देश का 60% कृषि क्षेत्रफल और वर्षा पर आधारित कृषि के अंतर्गत आता है | लेकिन इसके अंतर्गत केवल 20% उर्वरक की खपत होती है |
कृषि में रासायनिक उर्वरकों की तीन किस्में में नाइट्रोजन , फास्फोरस तथा पोटाश का प्रयोग 4:2: के अनुपात में किया जाना चाहिए किंतु भारत में यह अनुपात काफी असंतुलित हो गया है | भारत में हरित क्रांति के प्रारंभ के बाद उर्वरकों का अनियंत्रित इस्तेमाल भी प्रारंभ हो गया जिसके दुष्परिणाम देखने को मिल रहे हैं |
बीज ..
कृषि में बीज की भूमिका बहुत ही महत्वपूर्ण है क्योंकि बीज ही वह साधन है जो पुनरुउत्पादन के लिए जिम्मेदार होता है | पूर्व में सामान्यतया कृषक बीज के रूप में अपने उत्पादित फसल का ही एक भाग उपयोग में लाया करते थे | आज वर्तमान में बीज की संकल्पना बदल गई है | आज विभिन्न रूप से संवर्धित एवं परिवर्धित बीज का व्यापक प्रचलन भारतीय आधुनिक कृषि की प्रमुख विशेषता हो गई है | जिसके कारण कई उन्नत किस्म के बीज प्रचलन में आया है |
उन्नत किस्म के बीज
उत्तम प्रकार के बीजों से तात्पर्य न केवल उच्च उत्पादक प्रकार से है बल्कि लघु संवर्धन काल वाले बीज तथा आर्द्रता तथा कीट प्रतिरोधक क्षमता वाले बीजो से भी है | भारत की भौतिक परिस्थिति की पृष्ठभूमि में सूखा व जल अधिकता की स्थिति में उत्तम प्रकार के बीज अत्यंत आवश्यक है | इस बीजों के उपयोग से न केवल कृषि उत्पादन में आशातीत वृद्धि बल्कि पौधों की जैविक संरचना में महत्वपूर्ण परिवर्तन किए जा सकते हैं | भूमंडलीय तापमान को देखते हुए भी इसका प्रयोग अनिवार्य होता जा रहा है | तीसरी पंचवर्षीय योजना से ऐसे बीजों पर ध्यान देना शुरू किया गया सघन कृषि विकास कार्यक्रम में हरित क्रांति के माध्यम से प्रारंभ में में आयात द्वारा इसकी मांग पूर्ति की गई | किंतु स्थाई समाधान के लिए देश में अनुसंधान व विकास को बढ़ावा दिया गया और अनेक फसलों के उन्नत बीज प्राप्त करने में सफलता भी मिली इन बीजों के प्रयोग से राष्ट्रीय स्तर पर प्रति हेक्टेयर उत्पादकता बढ़ाने में मदद मिली |
राष्ट्रीय बीज नीति 2002
भारत में एम वी राव समिति की अनुशंसा पर जून 2002 में नई बीज नीति घोषित की गई इस नीति के अंतर्गत कृषि का उत्पादन एवं उत्पादकता बढ़ाने में जैव प्रौद्योगिकीय तकनीकों के महत्व को स्वीकार किया गया | इस नीति के अंतर्गत बीजों के विकास हेतु जैव प्रौद्योगिकीय तकनीकों को बढ़ावा देने पर जोर दिया गया | इसके अलावा नई तकनीकों द्वारा बीजों का उत्पादन , इसका विपणन , आयात निर्यात आदि के नियमन का भी प्रावधान इस नीति के अंतर्गत किया गया है |
कृषि में वाणिजियक शक्ति
कृषि क्षेत्र में ऊर्जा खपत में वृद्धि से कृषि उत्पादन में वृद्धि , कृषि उपज के सुरक्षित भंडारण उसका प्रसंस्करण व बाजार पहुँच सुनिश्चित होती है कटाई के बाद फसलों के उचित भंडारण से फसलों की बर्बादी नहीं होती है | जिससे फसलों के उपलब्धता बढ़ जाती है विभिन्न सरकारी प्रयासों के माध्यम से कृषि में ऊर्जा की खपत बढ़ाने के लिए कई पर कार्यक्रम चलाए गए हैं | इसके अंतर्गत विभिन्न बहुउद्देशीय परियोजनाओं के माध्यम से जल विद्युत की उपलब्धता को बढ़ाया गया है |
वर्तमान में देश की कुल ऊर्जा खपत का 20.43% कृषि क्षेत्र में होता है | जबकि वर्ष 1950- 51 में यह आंकड़ा मात्र 3.9% का था हालांकि राज्यों के स्तर पर ऊर्जा खपत में काफी की विषमता पाई जाती है |
कृषि यांत्रिकीकरण
कृषि कार्यों में यंत्रों के प्रयोग को कृषि यांत्रिकीकरण कहा जाता है | जिसे समय की बचत उत्पादन , लागत कम करने और कृषि उत्पादन बढ़ाने मैं मदद मिलती है प्रमुख कृषि उपकरणों में ट्रैक्टर , थ्रेसर , ट्रेलर , हार्वेस्टर प्रमुख है | लेकिन भारतीय किसानों द्वारा प्रयोग किए जाने वाले कृषि उपकरणों और औजार पुराने और प्रचलित भी हो गए हैं जिससे आधुनिक कृषि के विकास में अवरोध हो रहा है |
भारत सरकार सब्सिडी , ऋण आदि के माध्यम से कृषि यांत्रिकीकरण को बढ़ावा देने का प्रयास कर रही है | इन सबके अलावा उचित भंडारगृह की व्यवस्था , यातायात के साधनों का विकास , ऋण एवं पूंजी प्रदान करने वाली संस्थाएं , सरकारी नीतियां , जमीन सुधार आदि कई कारक है जिस पर कृषि निर्भर है |
कीटनाशक
हरित क्रांति के बाद भारतीय कृषि में कीटनाशक एवं पीड़कनाशक का उपयोग काफी बढ़ा है | जो खरपतवार के साथ-साथ विभिन्न आवांछनीय कीड़े - मकोड़े आदि को मारकर कृषि की उत्पादन बढ़ाने में सहायक है |
(2) संस्थागत कारक
आधुनिक भारतीय कृषि में उपज और उत्पादकता प्रत्यक्ष रूप से संस्थागत कारकों से प्रभावित होती है | आधुनिकीकरण के इस दौर में किसानों को विपणन , भंडारण , बैंकिंग और सहकारिता की उपलब्धता अनिवार्य सी लगती है | ऐसा इसलिए क्योंकि परंपरागत रूप से कृषक को उपरोक्त कारको के आधुनिकीकरण के दौर में बहुत ही आवश्यकता है | जो व्यक्तिगत एवं स्थानीय स्तर पर उपलब्ध नहीं हो पाता है इसलिए कृषि में संस्थागत विकास की अनिवार्यता बहुत ही अहम लगती है |
भारत में हरित क्रांति
भारत में वर्ष 1966 से खरीफ मौसम में नई कृषि नीति अपनाई गई जिसे आधुनिक उपज देने वाली किस्मों का कार्यक्रम के नाम से पुकारा गया |वर्ष 1967-86 में खाद्यान्नों के उत्पादन में वर्ष 1966- 67 की तुलना में लगभग 25% की वृद्धि हुई | यह वृद्धि इससे पहले कि योजना काल के 16 वर्षों में होने वाले परिवर्तनों की अपेक्षा कहीं अधिक तथा तीव्र थी अधिक वृद्धि का होना वास्तव में एक क्रांति के समान ही था | अतः इस वृद्धि को हरित क्रांति कहा गया
हरित क्रांति की मुख्य विशेषता
हरित क्रांति की मुख्य विशेषताएं निम्नलिखित है
अधिक उपज देने वाले बीजों का प्रयोग
उर्वरकों का अधिक प्रयोग
सिचाई में विस्तार
कीटनाशक औषधियों का प्रयोग
आधुनिक कृषि यंत्रों का प्रयोग
बहु फसल पद्धति का प्रयोग
ऋण सुविधाओं का विस्तार
मृदा परीक्षण कार्यक्रम की शुरुआत
भू संरक्षण पर बल
ग्रामीण विद्युतीकरण
बिक्री संबंधी सुविधाओं का विकास
सरकार द्वारा फसलों की कीमत का निर्धारण
हरित क्रांति सीमित फसलों एवं सीमित प्रदेशों में ही लागू की जा सके जिससे क्षेत्रीय एवं व्यक्तिगत विषमताओं को बढ़ावा दिया मशीनों की अधिक प्रयोग के कारण बेरोजगारी बढ़ी | उर्वरको एवं सिंचाई के अनियंत्रित प्रयोग से जमीन की उर्वरता कम हुई तथा कई जगह जलजमाव की समस्या पैदा होने लगी इन सब कमियों को देखते हुए वर्ष 2006 में द्वितीय हरित क्रांति इंद्रधनुषीय क्रांति का आवाहन किया गया |
भारतीय कृषि की समस्याओं के बारे में बताएं .......
भारतीय कृषि की प्रमुख समस्याएं निम्नलिखित है
जीवन निर्वाह कृषि
जीवन निर्वाह कृषि भारतीय कृषि की सबसे बड़ी समस्या है | यहां की आधे से अधिक जनसंख्या कृषि एवं उनसे जुड़े क्रियाकलापों से अपना जीवन यापन करती है | लेकिन इतने मानव संसाधनों के प्रयोग के बावजूद हमारी शकल घरेलू आय में कृषि का योगदान लगभग 17.4% है इसका मुख्य कारण भारतीय कृषि का जीवन निर्वाह प्रधान होना है |
कृषि पर जनसंख्या का भारी दबाव
अत्यधिक जनसंख्या और अपेक्षाकृत कम कृषि भूमि के कारण कृषि पर जनसंख्या का भारी दबाव पड़ रहा है | जिसके कारण यंत्रीकरण को बढ़ावा नहीं मिल पाता है और उत्पादन कम होता है |
जोतों का छोटा होना
सामाजिक व्यवस्था के कारण जोत क्रमशः से छोटी होती जा रही है जिसका प्रतिकूल असर कृषि उत्पादन व उत्पादकता पर पड़ता है |
मिट्टी का कम उर्वर होना
लगातार एक ही भूमि पर खेती किए जाने के कारण धीरे-धीरे जमीन की उत्पादकता कम होने लगती है |
मृदा अपरदन .
भारत में मानवीय और पर्यावरणीय कारणों से मृदा अपरदन एक बड़ी समस्या बनती जा रही है जिसके कारण कृषि पर असर पड़ रहा है |
सिंचाई की सुविधाओं का अभाव
भारतीय किसान आज भी अधिकांशत: वर्षा के जल पर सिंचाई के लिए निर्भर है जो एक बहुत बड़ी समस्या है जिसका सीधा असर कृषि पर पड़ता है |
किसानों का भाग्यवादी एवं रूढ़िवादी होना
बहुत से भारतीय किसान रूढ़िवादी होने के कारण कृषि के नए ढंग को आसानी से नहीं अपनाते इसके अलावा भारतीय किसान अशिक्षित तथा अप्रशिक्षित भी है | जिसके कारण कृषि के विकास में बाधा आती है |
प्रादेशिक असंतुलन
हरित क्रांति के बाद उसके असंतुलित प्रभाव के कारण होने वाला प्रादेशिक असंतुलन भी भारतीय कृषि की समस्या बन चुका है |
कृषि संबंधित अन्य गतिविधियों के बारे में लिखें .......
बढ़ती जनसंख्या तथा कृषि के व्यापारी करण के कारण हाल के वर्षों में कृषि संबंधी क्रियाओं का महत्व बढ़ गया है | विशेषकर सीमांत और गरीब किसानों तथा भूमिहीन मजदूरों के लिए यह तो वरदान साबित हुई है यही कारण है कि ग्रामीण विकास परियोजनाओं में इन्हे विशेष महत्व दिया जा रहा है | इन क्रियाओं में बागवानी , पशुपालन, मत्स्य पालन ,रेशम उत्पादन , कुकुट पालन ,मधुमक्खी पालन आदि सम्मिलित है |
रेशम उत्पादन
रेशम का उत्पादन रेशम के कीड़ों द्वारा प्राप्त किया जाता है यह रेशम के कीड़ों शहतूत , महुआ , साल , कुसुम आदि वृक्षों की पत्तियों पर पाले जाते हैं | विश्व में रेशम उत्पादन में भारत का दूसरा स्थान है यहां विश्व का 17% रेशम पैदा किया जाता है | भारत में चारों प्रकार का रेशम उत्पादन होता है | मलबरी , टसर , मूंगा , ईरी | रेशम के उत्पादन में कर्नाटक का प्रथम स्थान है | जिसके बाद क्रमश: आंध्र प्रदेश पश्चिम बंगाल तमिलनाडु , असम आता है | ये 5 राज्य मिलकर देश का लगभग 90% रेशम का उत्पादन करता है |
पशुपालन
भारत में विश्व के सबसे अधिक मवेशी है विश्व की कुल भैंसों का 57% और गाय बैलों का 15% भारत में वर्ष 2012 की पशुगणना के अनुसार देश में कुल 52.20 करोड़ मवेशी है | ये मवेशी देश की कृषि के मेरुदंड है | और देश के सकल घरेलू उत्पाद में इसका योगदान 1.6% है | योजना आयोग द्वारा भारत को 15 कृषि जलवायु क्षेत्रों में विभाजित किया गया है जिसमें से 6 क्षेत्र पशुपालन की दृष्टि से महत्वपूर्ण है | पशुओं की संख्या की दृष्टि से भारत का विश्व में महत्वपूर्ण स्थान है | इसके बावजूद भारत का पशुपालन उद्योग पिछड़ी अवस्था में है | पिछड़ी अवस्था होने का प्रमुख कारण है | उष्ण जलवायु , अच्छी नस्ल का आभाव , जीवन निर्वाह के रूप में पशुपालन को अपनाना , सामाजिक एवं धार्मिक मान्यताएं तथा मांस की मांग का कम होना आदि |
दुग्ध उत्पादन
भारत विश्व में देश का सबसे बड़ा उत्पादक देश है जो विश्व के 18.5% दूध का उत्पादन करता है दूध का उत्पादन वर्ष 1950-51 के 17 मिलियन टन से बढ़कर वर्ष 2014-15 तक 116.3 मिलियन टन हो गया है | जिसमें भैंस द्वारा 53.33% गाय द्वारा 41.47% और बकरियों द्वारा 3.71% का योगदान किया गया देश के दूध उत्पादन में उत्तर प्रदेश का प्रथम स्थान है | जिसके बाद राजस्थान व आंध्र प्रदेश का स्थान है |
देश में दूध उत्पादन में उल्लेखनीय वृद्धि को श्वेत क्रांति के नाम से जाना जाता है नेशनल डेहरी डेवलपमेंट जिसके अध्यक्ष वर्गीज कुरियन थे में वर्ष 1970 में ऑपरेशन फ्लड कार्यक्रम लागू किया जो विश्व का सबसे बड़ा डेयरी विकास कार्यक्रम था इसे तीन चरणों में लागू किया गया |
ऑपरेशन फ्लड I , डॉ वर्गीज कुरियन के नेतृत्व में राष्ट्रीय डेयरी विकास कार्यक्रम के अंतर्गत वर्ष 1970 में यह कार्यक्रम शुरू किया गया यह कार्यक्रम 10 राज्यों में शुरू किया गया जिसके अंतर्गत 17 फिडर डेयरियांँ स्थापित की गई पहले से स्थापित डेयरियो का विस्तार किया गया तथा दिल्ली , कोलकाता , मुंबई और चेन्नई में चार मदर डेयरी स्थापित की गई |
ऑपरेशन फ्लड II इसका उद्देश्य 144 अतिरिक्त नगरों में मार्केट को व्यवस्थित करना चारे की उपयुक्त व्यवस्था करना तथा पशुओं में बीमारियों की रोकथाम करना था |
ऑपरेशन फ्लड III का उद्देश्य राज्यों के 250 जिलों में 170 दूध केंद्र स्थापित करना था | ऑपरेशन फ्लड एकीकृत कार्यक्रम है | जिसमें 65092 डेयरी सहकारिता समितियों से 83.5 लाख किसानों को लाभ पहुंचाया गया इससे किसानों को आय का सुनिश्चित साधन मिल गया |
मत्यिस्की
भारत की जनसंख्या बड़ी तेजी से बढ़ रही है | और इसका कारण हमारा कृषि संसाधन हमारी बढ़ती हुई जनसंख्या की मांग को पूरा करने में असमर्थ है | ऐसी परिस्थिति में मात्स्यिकी की उद्योग का महत्व बढ़ता जा रहा है | मछली के प्रयोग से हमें पौष्टिक आहार मिलता है | इसमें प्रोटीन अधिक होता है | विटामिन व कार्बोहाइड्रेट होते हैं | अधिकांश भारतीयों के भोजन में प्रोटीन की कमी होती है |जो मछली के आहार से पूरी हो सकती है |
कुकुट पालन
कुकुट पालन के अंतर्गत मुर्गी , बत्तख, तीतर ,, बटेर , हंस या ताल मयूर आदि का मीट , अंडा एवं पंखों के लिए प्रजनन किया जाता है इसमें बहुत छोटी लागत से कम समय में गांव में लोगों को रोजगार दिया जा सकता है | एवं उसकी आय में वृद्धि की जा सकती है | कुक्कुट उद्योग पर्यावरण में अभिक्रियाशील नाइट्रोजन यौगिक को विमुक्त करती है |
पोल्ट्री के अवशिष्ट से वातावरण में नाइट्रोजन गैस का संलयन बढ़ता है | मुर्गियों की सबसे बड़ी संख्या आंध्र प्रदेश में पाई जाती है जिसके बाद तमिलनाडु ,पश्चिम बंगाल , महाराष्ट्र , कर्नाटक ,असम , उड़ीसा , झारखंड , बिहार एवं हरियाणा का स्थान आता है |
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