मंगलवार, 14 दिसंबर 2021

अपवाह तंत्र किसे कहते है ,भारत के अपवाह तंत्र के बारे में वर्णन करें

 

    अपवाह तंत्र किसे कहते है 

निश्चित वाहिकाओं के माध्यम से हो रहे जल प्रवाह को अपवाह कहा जाता है तथा इन वाहिकाओं के जाल को अपवाह तंत्र कहा जाता है | अपवाह तंत्र इस क्षेत्र की संरचना और उच्चावच द्वारा प्रभावित होता है |




                        जल ग्रहण क्षेत्र 

जब एक नदी विशिष्ट क्षेत्र से अपना जल बहाकर लाती है तो उसे जलग्रहण क्षेत्र कहते है | एक नदी एवं उसकी सहायक नदियो द्वारा अपवाहित क्षेत्र को अपवाह द्रोणी कहा जाता है | 

                         जल विभाजक 

जब एक अपवाह द्रोणी को दूसरे से अलग करनेवाली सिमा को जल विभाजक कहा जाता है | बड़ी नदियों के जलग्रहण क्षेत्र को नदी द्रोणी कहा जाता है जबकि छोटी नदियों द्वारा व नालो द्वारा अपवाहित क्षेत्र को जल सम्भर  कहा जाता है | 

            अपवाह प्रतिरूप क्या है ?

 किसी नदी बेसिन में प्रवाह रेखा जाल के दृश्य स्वरूप को अपवाह प्रतिरूप कहते हैं | भारत में भौगोलिक विषमताओं के कारण निम्न प्रवाह  प्रतिरूप है 

                      अध्यारोपित अपवाह 

 नदी घाटी का निर्माण सर्वप्रथम ऊपरी आवरण पर होता है इसके बाद  नदी निम्न कटाव द्वारा निर्मित घाटी का विस्तार तथा विकास निचली संरचना पर करती है |  ऐसी अवस्था में ऊपरी आवरण वाली घाटी का निकली संरचना पर आरोपन कर दिया जाता है |  सोन सवर्णरेखा   एवं बनास अध्यारोपित नदियां हैं | 

                      पूर्ववर्ती अपवाह 

 इस अपवाह प्रणाली में वैसी नदियां शामिल होती है जो हिमालय के उत्थान से पहले की होती है वे प्रवाहित होने के क्रम में उत्थान के साथ-साथ कटाव जारी रखती है तथा गहरे गार्ज एवं महाखड्ड का  निर्माण करती है |  इस प्रकार की पूर्ववर्ती नदियों में सिंधु , सतलुज , ब्रह्मपुत्र एवं अरुण आदि प्रमुख है | 

                        परवर्ती अपवाह 

 अनुवर्ती सरिताओं  के बाद उत्पन्न तथा कटको के अक्षों  का अनुसरण करने वाली नदियां परवर्ती सरिता है |  चंबल , केन , सिंधु बेतवा , सोन आदि नदियां गंगा व यमुना से समकोण  पर मिलती है | 

                      अनुगामी अपवाह 

 यह नदियां धरातलीय ढाल व संरचना के अनुसार बहती  है |अधिकांश प्रायद्वीपीय नदियां अनुगामी है |  गोदावरी , कृष्णा व  कावेरी नदिया बंगाल की खाड़ी में गिरती है जबकि पेरियार , शरावती व पोन्नानी  पश्चिमी घाट से निकलकर अरब सागर में गिरती है |  नर्मदा व तापी भी भ्रंश घाटी से होकर अरब सागर में गिरती है | 

                    अन्तः स्थलीय अपवाह 

 वैसे नदियां जो सागर तक नहीं पहुंच पाती है बल्कि मार्ग में ही लुप्त  हो जाती है अन्तः स्थलीय  अपवाह का निर्माण करती है | 

                        खंडित अपवाह 

 हिमालय के पाद  प्रदेश में उतरने वाली अनेक नदियां भावर में लुप्त  होकर आगे पुनः  धरातल पर प्रकट होती है | डेल्टा के निकट नदियाँ कई धाराओं में बंटकर गुम्फित  प्रारूप में बहती है इसलिए इसे खंडित अपवाह कहा जाता है | 

                     जालीनुमा अपवाह 

 जालिनुमा अपवाह तंत्र का विकास तब होता है जब मुख्य नदियां समानांतर बहती है तथा सहायक नदियां  समकोण पर मिलती हुई  जाल का निर्माण करती  हैं | सिंहभूम क्षेत्र में जालीदार आपवाह मिलता है | 

                       अरीय अपवाह 

 जब नदियां  किसी पर्वत से निकलकर सभी दिशाओं में बहती हो तो इसे अरीय अपवाह कहा जाता है |  अमरकंटक श्रेणी  से निकलने वाली नर्मदा , सोन तथा महानदी अरीय अपवाह के उदाहरण है | 

                       सामानांतर अपवाह 

जब  अनेक नदियां एक दूसरे के समानांतर प्रवाहित होती हुई प्रादेशिक ढाल का अनुसरण करती है   तो उसे समानांतर अपवाह कहा जाता है |  गंगा के ऊपरी मैदान में समानांतर  अपवाह पाया जाता है | 

                     आयताकार अपवाह 

 जब सहायक नदियां अपने मुख्य नदी से समकोण  पर मिलती है तो इस अपवाह प्रतिरूप को आयताकार अपवाह  कहा जाता है | 

     भारत के अपवाह तंत्र के बारे में वर्णन करें 

 किसी भी देश का अपवाह तंत्र वहां के उच्चवाच  तथा भूमि के ढाल  पर निर्भर करता है | भारत एक विशाल देश है | इसके उत्तर में हिमालय तथा दक्षिण में प्रायद्वीपीय  पठार है  जिसके बीच उत्तरी भारत का विशाल मैदान है | 

भारत के अपवाह तंत्र को कितने भागो में बाँटा जा सकता है 

 भारत के अपवाह तंत्र को मुख्य रूप से दो भागों में विभाजित किया जा सकता है   

   (1) हिमालयी अपवाह तंत्र 

  (2) प्रायद्वीपीय अपवाह तंत्र 

               (1) हिमालयी अपवाह तंत्र 

 भूगर्भवेताओं ने  हिमालयी  नदी तंत्र के उद्भव की व्याख्या इण्डो -ब्रंहा  परिकल्पना के आधार पर की है   जिसके अनुसार मध्य हिमालय  की उत्पत्ति के समय ब्रह्मपुत्र नदी का जल मध्य हिमालय के दक्षिण पर्वत पाद के सहारे पूर्व से पश्चिम प्रवाहित होकर वर्तमान पाकिस्तान की सिंधु नदी में मिलकर अरब सागर में जो साथ था इसे ही इण्डो - ब्रह्ना  या  शिवालिक नदी कहा जाता था  शिवालिक श्रेणी की उत्पत्ति के समय अरावली - दिल्ली कटक ऊपर उठा जिससे इण्डो ब्रह्ना  नदी छिन्न भिन्न   होकर वर्तमान तीन नदी तंत्र में विभाजित हो गई | 

     (i)  सिंधु  अपवाह तंत्र  (ii) गंगा अपवाह तंत्र  (iii)  ब्रह्मपुत्र अपवाह तंत्र

                   (i)  सिंधु  अपवाह तंत्र  

 भारत के उत्तर पश्चिम भाग में सिंधु तथा उसकी सहायक नदियां विस्तृत क्षेत्र को अपवाहित  करती है

 हिमालय से निकलने वाली सिंधु अपवाह तंत्र की  प्रमुख नदिया निम्नलिखित है

                              सिंधु नदी

 सिंधु नदी का उद्गम स्थल तिब्बती  क्षेत्र में कैलाश पर्वत श्रेणी में स्थित बोशवर  न्यू हिमानी के निकट होता है |  तिब्बत में इसे सिंगी खम्बान  अथवा शेरमुख कहा जाता है |  यह  2880 किलोमीटर लंबी है जिसमें भारत में केवल 709 किलोमीटर लंबी है तथा इसका संग्रहण क्षेत्र 11.65 वर्ग किलोमीटर है | यह भारत में 3.21 लाख वर्ग किमी है |  भारत-पाकिस्तान के बीच हुए सिंधु जल समझौता के अंतर्गत भारत सिंधु  व उसकी सहायक नदियों में झेलम और चिनाब के  20% जल का उपयोग कर सकता है | 

 सिंधु नदी की बाई ओर से मिलने वाली नदियों में पंजाब की पांच नदियां सतलुज , व्यास , रावी , चिनाब  और झेलम  मिलकर पचनद  बनाती है |  यह पांचो नदिया संयुक्त रूप से सिंधु नदी की मुख्यधारा से मिथनकोट जो पाकिस्तान में स्थित है के निकट मिलती है | 

                                झेलम नदी

 झेलम नदी कश्मीर घाटी के दक्षिण पूर्व में 4900 मीटर की ऊंचाई पर स्थित बेरीनाग के निकट स्थित एक झरने से निकलती है | यह बुलर झील से होती हुई पाकिस्तान सीमा के पास एक गहरा महाखड़ बनाती है तथा ट्रिग्मु  के पास चिनाब से मिल जाती है |  मुजफ्फराबाद के बाद यह  नदी भारत और पाकिस्तान के बीच 170 किलोमीटर लंबी सीमा बनाती है |  भारत में इसकी लंबाई 724 किलोमीटर है इसे वितस्ता  भी कहा जाता है | 

                            सतलुज नदी

 सतलुज नदी की उत्पत्ति तिब्बत से 4630 मीटर की ऊंचाई पर स्थित मानसरोवर के निकट राकसताल से होती है ,  जहां इसे लॉगचेन खम्बाब  के नाम से जाना जाता है |  यह शिपकी ला दर्रा के पास हिमाचल प्रदेश में प्रवेश करती है | स्पीति  नदी इसकी प्रमुख सहायक नदी है |  प्रसिद्ध भाखड़ा नांगल बांध सतलुज नदी पर स्थित है | इस नदी की कुल लंबाई 1450 किलोमीटर है जिसमें भारत में 1050 किलोमीटर है |  किसे शातुर्दि  भी कहा जाता है | 

                              चिनाब नदी

 चिनाब नदी का उद्गम स्थल हिमाचल प्रदेश के लाहौल जिले के बारालाचा दर्रे के दोनों ओर स्थित है यह बारा शिग्री ग्लेशियर से बहुत अधिक मात्रा में जल प्राप्त करती है |  सिंधु नदी की भारत में सबसे लंबी सहायक नदी है | इसकी लंबाई 1180 किलोमीटर है | इसे चंद्रभागा भी कहा जाता है | 

                            रावी नदी

 रावी नदी का उद्गम स्थल  हिमाचल प्रदेश के कुल्लू पहाड़ियों में रोहतांग दर्रे के समीप है | इसकी घाटी को चम्बा घाटी कहा जाता है | यह पाकिस्तान में सराय सिंधु के पास चिनाब से मिल जाती है | इस नदी की कुल लंबाई 725 किलोमीटर है |  इसे परुषणी भी कहा जाता है | 

                          व्यास नदी

 इस नदी का उद्गम स्थल रोहतांग दर्रे के पास ब्यास कुण्ड से होता है | यह नदी कुल्लू घाटी से गुजरती है |  इस नदी की कुल लंबाई 460 किलोमीटर है | इसे बिपाशा के नाम से भी जाना जाता है |

                     (ii) गंगा अपवाह तंत्र 

 गंगा नदी तंत्र का विस्तार देश के लगभग एक चौथाई क्षेत्र पर पाया जाता है | इससे उपजाऊ मैदान का निर्माण होता है जो भारत का अन्न भंडार है | इस अपवाह तंत्र में गंगा और उसकी सहायक नदियां सम्मिलित हैं | इन सहायक नदियों में एक ओर तो वे हैं जो हिमालय के हिमाच्छादित  क्षेत्रों से निकलती है  और दूसरी ओर वो है जो प्रायद्वीपीय  प्रदेश से आती है | 

                             गंगा नदी 

 गंगा नदी का उद्गम उत्तराखंड के उत्तरकाशी जनपद के 3900 मीटर की ऊंचाई पर स्थित गोमुख के निकट गंगोत्री हिमनद से होता है | यहां इसे भागीरथी कहा जाता है | देवप्रयाग में भागीरथी अलकनंदा से मिलती है |  इसके बाद दोनों  की संयुक्त धारा को गंगा के नाम से जाना जाता है | अलकनंदा की दो धाराएं धौलीगंगा एवं विष्णु गंगा विष्णुप्रयाग के निकट परस्पर मिलती है | बाद में इसमें पिंडर नदी कर्णप्रयाग के पास और मंदाकिनी रुद्रप्रयाग के पास मिलती है |

 हरिद्वार के पास गंगा मैदान में प्रवेश करती है जहां से  इलाहाबाद तक इसकी दिशा दक्षिण व  दक्षिण पूर्व की होती है | इलाहाबाद से फरक्का तक इसके प्रवाह की दिशा पूर्व की ओर है  फरक्का से आगे इसके मुख्य धारा दक्षिण पूर्व को प्रवाहित होती हुई बांग्लादेश में प्रवेश कर जाती है | यहां गंगा को  पदमा के नाम से जाना जाता है |

 गंगा नदी के उत्तर में हिमालय से तथा दक्षिण में प्रायद्वीपीय पठार से कई सहायक नदियां आकर मिलती है | इसमें कुछ सदानीरा तथा कुछ बरसाती नदियां हैं बाएं तट पर आकर मिलने वाली प्रमुख सहायक नदियों में राम गंगा , गोमती , टोंस , घाघरा , गंडक, बागमती और कोसी  है | दाहिने तट के सहारे मिलने वाली नदियों में यमुना , सोन , पुनपुन , दामोदर और रूपनारायण शामिल है |

                               यमुना नदी 

 यमुना नदी गंगा की सबसे प्रमुख सहायक नदी है तथा यह   यमुनोत्री हिमनद से निकलती है  | यह गंगा के समानांतर बहती हुई इलाहाबाद के निकट गंगा में मिल जाती है | इसकी कुल लंबाई 1326 किलोमीटर है | दक्षिण में विंध्याचल पर्वत से निकलकर चंबल , काली , सिंध , बेतवा , केन रिन्द , सेंगर तथा वरुणा नदियां इसमें आकर मिलती है |

                              चम्बल नदी 

 चंबल नदी मध्य प्रदेश के मालवा पठार में महू के निकट से निकलती है और उत्तर मुखी होकर एक महाखड से बहती  हुई राजस्थान में कोटा पहुंचती है  जहां से आगे यह है | यमुना नदी  में मिल जाती है | चंबल अपनी उत्खात भूमि  वाली भू-आकृति के लिए प्रसिद्ध है | जिसे चंबलखड़ कहा जाता है  इसकी लंबाई 965 किलोमीटर है | काली , सिंध , बनास , पार्वती व क्षिप्रा  इसकी प्रमुख सहायक नदियां  है |

                           घाघरा नदी 

 घाघरा नदी तिब्बत  के पठार में स्थित मापचाचुंग  हिमनद से निकलकर  नेपाल में बहने  के बाद यह  भारत में प्रवेश करती है |   इस नदी में प्राया बाढ़ आती है |

                              कोसी नदी

 कोसी नदी तीन नदियों के मिलने से बनती है | यह नदियां सिक्किम नेपाल तथा तिब्बत के हिमाच्छादित  प्रदेशों से निकलती है | यह नदी मार्ग परिवर्तन तथा आकस्मिक बाढ़ के लिए  प्रसिद्ध है | लगभग 200 वर्ष पूर्व यह  नदी पूर्णिया जिले के निकट होकर प्रवाहित हुआ करती थी | लेकिन अब यह इस स्थान से 160 किलोमीटर पश्चिम की ओर से होकर जाती है | कोसी नदी में अचानक जल स्तर बढ़ जाता है जिससे भयंकर बाढ़ आती रहती है इसलिए इसे  बिहार का शोक नदी  कहा जाता है |

                              गण्डक नदी 

 गंडक नदी दो धाराओं काली गंडक और त्रिशूल गंगा के मिलने से बनती हैं | यह नदी धौलागिरी व  माउंट एवरेस्ट के बीच से निकलती है | यह नदी बिहार के चंपारण जिले में यह मैदान में प्रवेश करती है | और पटना के निकट सोनपुर में गंगा नदी में जाकर मिलती है |

                              रामगंगा नदी

 यह गैरसैण के निकट गढ़वाल की पहाड़ियों से निकलती है | नजीबाबाद के निकट मैदान में प्रवेश करती है |  और अंत में कन्नौज के निकट गंगा नदी में मिल जाती है |

                              दामोदर नदी

 यह छोटा नागपुर पठार के पूर्वी किनारे पर दामोदर नदी बहती है | और भ्रंश घाटी से होती हुई हुगली नदी में गिरती है | बराकर इसकी मुख्य सहायक नदी है |  दामोदर नदी को बंगाल का शोक नदी कहा जाता था | 

                                सरयू नदी

 सरयू नदी का उद्गम स्थल नेपाल हिमालय में मिलाम हिमनद में है | इसे गौरी गंगा के नाम से जाना जाता है | भारत-नेपाल सीमा के साथ बहती हुई जहां इसे काली या चाइक  कहा जाता है |

                              महानन्दा नदी

 यह नदी दार्जिलिंग पहाड़ियों से निकलती है | और पश्चिम बंगाल में गंगा के बाएं तट पर मिलने वाली अंतिम सहायक नदी है |

                            सोन नदी

 यह अमरकंटक पहाड़ से निकलती है | यह गंगा के दक्षिणी तट की सहायक नदी है | पठार के उतरी किनारों पर जलप्रपातों  की श्रृंखला बनाती हुई यह नदी पटना के समीप आरा के पास गंगा नदी में मिलती है |

                     (iii)  ब्रह्मपुत्र अपवाह तंत्र

 ब्रह्मपुत्र अपवाह का विस्तार भारत के उत्तर पूर्वी क्षेत्र में है यहां  ब्रह्मपुत्र  तथा इसकी सहायक नदियां विस्तृत क्षेत्र को प्रभावित करती है |

                          ब्रह्मपुत्र नदी

 ब्रह्मपुत्र नदी कैलाश पर्वत श्रेणी में मानसरोवर झील के निकट स्थित चेमायुंगडुंग  हिमानी से निकलती है | यहाँ से यह सांगपो नाम से  महान हिमालय श्रेणी के समानांतर पूर्व की ओर 1100 किलोमीटर तक अनुदैर्ध्य  घाटी में प्रवाहित होती है | नामचा बरुआ  के निकट मध्य  हिमालय को काटकर एक महाखड्ड  का निर्माण करती है |और दिहांग  नाम से अरुणाचल प्रदेश में प्रवेश करती है |

 सादिया के पास दिबांग और लोहित नदियां बाएं किनारे पर आकर मिलती है | इसके बाद इसे ब्रह्मपुत्र नाम से जाना जाता है | इसके बाद यह  असम घाटी में प्रवेश करती है जहां कई सहायक नदियां मिलती है |

 धुबरी  के निकट ब्रह्मपुत्र दक्षिण की ओर मुड़कर बांग्लादेश में प्रवेश करती है | जहाँ इसे  जमुना के नाम से जाना जाता है |

 बांग्लादेश में यह  गंगा के साथ मित्र गंगा ब्रह्मपुत्र नामक विश्व का सबसे बड़ा डेल्टा बनाती है |

 असम के अधिकांश भाग में ब्रह्मपुत्र गुम्फित  नदी है यह अपने साथ बहुत से अवसाद लाती है और इसमें नदी विसर्प भी बहुत है | इसमें बहुत से द्वीप भी है | जिसमें सबसे प्रमुख माजुली द्वीप है |  यह लगभग 90 किलोमीटर लंबा  और 20 किलोमीटर चौड़ा है |  यह  विश्व का सबसे बड़ा नदी द्वीप है |

                              बराक नदी

 मणिपुर की पहाड़ियों से यह नदी निकलती है जिसे बराक  के नाम से जाना जाता है | यह दक्षिणी असम , मणिपुर एवं मिजोरम में प्रवाहित होती है | यह नदी बांग्लादेश में प्रवेश करके मेघना में मिल जाती है |

                (2) प्रायद्वीपीय अपवाह तंत्र 

 प्रायद्वीपीय पठार एक विस्तृत क्षेत्र है यह प्राचीन व  स्थित भूखंड है | अतएव  प्रायद्वीप की नदियां हिमालय की तुलना में अधिक पुरानी है | इसका सामान्य ढाल पूर्व की ओर है | इसलिए अधिकांश नदियां पश्चिमी घाट से निकलकर बंगाल की खाड़ी में गिरती है |

         बंगाल की खाड़ी में गिरने वाली नदियां 

                             महानदी

 महानदी छत्तीसगढ़ में रायपुर जिले के सिहावा के निकट अमरकंटक श्रेणी से निकलती है |  और उड़ीसा से होकर बहती हुई बंगाल की खाड़ी में जाकर गिरती है | इस  नदी की कुल लंबाई  857 किलोमीटर है एवं इसकी प्रमुख सहायक नदियां इब , माण्ड , हमदो , तथा केन है  इस नदी पर हीराकुंड बांध बना हैै |

                         गोदावरी नदी 

 गोदावरी प्रायद्वीपीय पठार की सबसे लंबी नदी है | इसकी लंबाई 1465 किलोमीटर है | यह महाराष्ट्र   के नासिक जिले में त्रियंबकेश्वर से निकलती है | दामोदर नदी को दक्षिण की गंगा या बृद्ध या बूढी  गंगा भी कहा जाता है |

                         कृष्णा नदी

 कृष्णा नदी की उत्पत्ति सह्याद्रि  में महाबलेश्वर के निकट एक झरने से होती है | इसका अपवाह तंत्र महाराष्ट्र ,  कर्नाटक तथा आंध्र प्रदेश में विस्तृत है | किस की कुल लंबाई 1400 किलोमीटर है कोयन , भीमा , मूसी , मुनेरु ,  घाटप्रभा , मालप्रभा , वारना , पंचगंगा , दूधगंगा व तुंगभद्रा  इसकी प्रमुख सहायक नदियां है | यह नदी एक बड़े डेल्टा का निर्माण करती है |

                          कावेरी नदी 

  यह नदी पश्चिमी घाट में कर्नाटक के कोडागु जिले में ब्रह्मागिरी श्रेणी से निकलती है | और कर्नाटक तथा तमिलनाडु राज्यों में बहती हुई कावेरिपट्टनम के निकट बंगाल की खाड़ी में गिरती है |

 कावेरी नदी को दक्षिण की गंगा ही कहा जाता है |

 इसकी कुल लंबाई 800 किलोमीटर है |

                   स्वर्णरेखा एवं ब्राह्मणी नदी

 सुवर्णरेखा एवं ब्राह्मणी नदीया छोटा नागपुर पठार पर  रांची के दक्षिण पश्चिम से निकलती है | ब्राह्मणी नदी कोयल और शंख नदियों के  मिलने से बनी है | जिसकी लंबाई 705 किलोमीटर है स्वर्ण रेखा की लंबाई 395 किलोमीटर है |

                           पेन्नार नदी

          पेन्नार नदी कर्नाटक के कोलार जिले की नन्दी दुर्ग पहाड़ी से निकलती है | इस का अपवाह क्षेत्र कृष्णा एवं कावेरी के मध्य स्थित है |

                          वंशधारा  नदी

 यह महानदी और गोदावरी के बीच पूर्व की ओर प्रवाहित होने वाली नदी है जो बंगाल की खाड़ी में अपना जल प्रवाहित करती है | उड़ीसा के कालाहांडी व रायगढ़ जिलों की सीमा से निकलकर 254 किलोमीटर तक बहते हुए आंध्रप्रदेश के कलिंगपतनम में बंगाल की खाड़ी में गिरती है |

        अरब सागर में गिरने वाली नदियां

                            नर्मदा नदी

 यह नदी मध्य प्रदेश तथा छत्तीसगढ़ की सीमा के निकट अमरकण्टक नामक पहाड़ी से निकलकर भाड़ौच के निकट अरब सागर की खाड़ी खंभात में जाकर गिरती है | इसकी कुल लंबाई 1312 किलोमीटर है | इसके उत्तर में विंध्याचल तथा दक्षिण में सतपुड़ा पर्वत है | यह नदी जबलपुर के निकट धुआंधार जलप्रपात का निर्माण करती है |

                            तापी नदी 

 यह नदी मध्य प्रदेश के बैतूल जिले में महादेव की पहाड़ियों के दक्षिण से निकलती है | इसकी कुल लंबाई 724 किलोमीटर है | इसका बेसिन मध्य प्रदेश , महाराष्ट्र तथा गुजरात में फैला हुआ है | यह नर्मदा के समानांतर पश्चिम दिशा में बहती हुई खंभात की खाड़ी में विलीन हो जाती है |

                             साबरमती नदी

 इसका उद्गम स्थल अरावली की पहाड़ियों में राजस्थान के  डुंगरपुर जिले में स्थित है | यहां से यह दक्षिण पश्चिम की दिशा में 320 किलोमीटर की दूरी तय करके खंभात की खाड़ी  में विलीन हो जाती है |

                            माही नदी 

 नदी की उत्पत्ति विंध्याचल पर्वत से होती है यह 533 किलोमीटर की दूरी तय करने के बाद यह खंभात की खाड़ी में गिरती है |

                       अन्त: प्रवाही नदी

 यह नदी राजस्थान में अजमेर के दक्षिण पश्चिम से निकलकर 320 किलोमीटर के पश्चात कच्छ के रण में दलदली क्षेत्र में विलुप्त हो जाती है | इस प्रकार यह अन्त: प्रवाह का उदाहरण प्रस्तुत करती है |


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