प्राकृतिक संसाधन किसे कहते है ?
प्राकृतिक संसाधन : पृथ्वी द्वारा प्राप्त वैसे सामग्री जो हमारे जीवन को सुगमय बनता है तथा लोगो को जरूरतों को पूरा करने के लिए किया जाता है प्राकृतिक संसाधन कहलाता है |
किसी देश की अर्थव्यवस्थ वहां पर उपलब्ध प्राकृतिक संसाधनों पर निर्भर करती है इसलिए उनकी स्थिति , उपलब्धता , विकास तथा संरक्षण की जानकारी आवश्यक है |
कुछ प्राकृतिक संसाधन निम्नलिखित है
भूमि संसाधन किसे कहते है इसके बारे में वर्णन करे
भूमि एक प्राकृतिक संसाधन है जिसका अनेक कार्यों के लिए उपयोग होता है | पर्यावरण की सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए इसका उचित उपयोग आवश्यक है |देश का भू राजस्व विभाग भू उपयोग संबंधी अभिलेख रखता है |भूख उपयोग संवर्गों का योग कुल प्रतिवेदन क्षेत्र के बराबर होता है |जो कि भौगोलिक क्षेत्र से भिन्न है भारत की प्रशासकीय इकाइयों के भौगोलिक क्षेत्र की सही जानकारी देने का दायित्व भारतीय सर्वेक्षण विभाग के पास है |
भू राजस्व तथा सर्वेक्षण विभाग दोनों में मूलभूत अंतर यह है कि भू राजस्व द्वारा प्रस्तुत क्षेत्रफल प्रतिवेदित क्षेत्र पर आधारित है जो की कम या अधिक हो सकता है | जबकि कुल भौगोलिक क्षेत्र भारतीय सर्वेक्षण विभाग के सर्वेक्षण पर आधारित है और यह स्थाई होता है |
भू उपयोग वर्गीकरण
भारत के 328.726 मिलियन हेक्टेयर भौगोलिक क्षेत्र में से केवल 305.51 मिलियन हेक्टेयर भौगोलिक क्षेत्र के बारे में ही भूमि उपयोग आंकड़े प्राप्त है | भारत का वर्तमान भूमि उपयोग प्रतिरूप स्थलाकृति , जलवायु , मिट्टी , मानव क्रियाओं , और प्रौद्योगिकी आदानों ऐसे अनेक कारको का प्रतिफल है |
वनों के अधीन क्षेत्र
वर्गीकृत वन क्षेत्र तथा वनों के अंतर्गत वास्तविक क्षेत्र दोनों पृथक है | सरकार द्वारा वर्गीकृत वन क्षेत्र का सीमांकन इस प्रकार किया जाता है जहां वन विकसित हो सकते हैं |भू राजस्व अभिलेखों में इसी परिभाषा को सतत अपनाया गया है इस प्रकार इस संवर्ग के क्षेत्रफल में वृद्धि दर्ज हो सकती है किंतु इसका अर्थ यह नहीं कि यहां वास्तविक रूप से वन पाए जाएंगे |
वनों के वर्गीकरण तथा वृक्षारोपण कार्यक्रम के फलस्वरूप हमारे देश में वन क्षेत्र में कुछ वृद्धि हुई है |
वर्ष 1950 से 1951 में वन प्रदेश केवल 4.0 करोड़ हेक्टेयर था वही वन रिपोर्ट वर्ष 2017 के अनुसार देश में वनों के अधीन 802088 वर्ग किलोमीटर है | जो देश की कुल भूमि का 24.39% है |
अन्य कृषि रहित भूमि
वैसे भूमि जिस पर कृषि नहीं की जाती है कृषि रहित भूमि कहा जाता है परंतु इसमें परती भूमि को सम्मिलित नहीं किया जाता है | इस भूमि में निरंतर कमी आ रही है इस प्रकार की भूमि के अग्रलिखित उपवर्ग हो सकते हैं |
स्थाई चरागाह तथा अन्य चराई भूमि देश के कई भागों में इस प्रकार की भूमि को साफ करके कृषि योग्य बनाया जा सकता है |
वृक्षों , फसलों तथा उपवनों के अधीन भूमि -
इस वर्ग में ऐसी भूमि सम्मिलित की गई है जिस पर बाग वा अनेक प्रकार के पेड़ पाए जाते हैं | जिसमें फल आदि प्राप्त होते हैं वर्तमान समय में देश की बढ़ती हुई जनसंख्या की खाद्यान पूर्ति के लिए भूमि के बहुत से भाग पर कृषि होने लगी है |
कृषि योग्य परंतु बंजर भूमि
यह वह भूमि है जो किसी भी काम के लिए प्रयोग नहीं की जाती है| आधुनिक तकनीकी सहायता से उत्तम बीज , खाद तथा सिंचाई की व्यवस्था करके कृषि के लिए इसका प्रयोग किया जा सकता है | बढ़ती हुई जनसंख्या के संदर्भ में भारत के लिए इस भूमि का बड़ा महत्व है पंजाब , हरियाणा तथा उत्तर प्रदेश में इस भूमि का काफी विस्तार मिलता है पिछले कुछ वर्षों में इस भूमि में सुधार करने के प्रयास किए गए हैं |
परती भूमि
यह वह भूमि है जिस पर पहले कृषि की जाती थी परंतु अब इस भूमि पर कृषि नहीं की जाती है ऐसे भूमि पर निरंतर कृषि करने से भूमि की उपजाऊ शक्ति कम हो जाती और ऐसी भूमि पर कृषि करना आर्थिक दृष्टि से लाभदायक नहीं रहता है | अतः इसे कुछ समय के लिए खाली छोड़ दी जाता है | इसे फिर से उर्वरा शक्ति का विकास होता है और वह कृषि के लिए उपयुक्त हो जाती है |
कृषित भूमि
यह वह भूमि है जिस पर वास्तविक रूप से कृषि की जाती है इसे कुल या सकल बोया गया क्षेत्र भी कहा जाता है | भारत में लगभग आधी भूमि पर कृषि की जाती है जो विश्व में सर्वाधिक भाग है भारत की कुल भूमि का 43.41% भाग कृषित है |
निवल बोया गया क्षेत्र
यह वह भूमि है जिस पर फसलें उगाई व काटी जाती है यह निवल बोया गया क्षेत्र कहलाता है | स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद इसमें पर्याप्त वृद्धि हुई है इस वृद्धि के मुख्य कारण निम्नलिखित है |
रेह तथा उसर भूमि को उपजाऊ बनाना
बेकार खाली पड़ी भूमि को कृषि योग बनाना
कृषि भूमि को पड़ती भूमि के रूप में ना छोड़ना
चारागाह तथा बागों के लिए उपयोग की गई भूमि को कृषि के लिए प्रयोग करना
सबसे अधिक कृषित भूमि पंजाब तथा हरियाणा में पाई जाती है जहां 80% भूमि पर कृषि की जाती है |
एक से अधिक बार बोया गया क्षेत्र
भारत में कुल कृषित क्षेत्र का लगभग 25% भाग ऐसा है जिस पर वर्ष में एक से अधिक बार फसल प्राप्त की जाती है |इससे यह स्पष्ट होता है कि हम अपनी भूमि का उचित प्रयोग नहीं कर रहे हैं क्योंकि 75% भूमि पर वर्ष में केवल एक ही फसल उगाई जाती है |
जल संसाधन के बारे में बताएं
जल बहुमुल्य प्राकृतिक संसाधन है और देश के सामाजिक और आर्थिक विकास का मूल आधार है | भारत में ताजे जल का मुख्य स्रोत वर्षन है | वर्षन से भारत में 4000 घन किमी जल प्राप्त होती है |
अकेले मानसूनी वर्षा द्वारा 3000 घन किमी जल प्राप्त होता है| इसका बहुत सा भाग या तो वाष्पीकरण तथा वाष्पोत्सर्जन द्वारा वायुमंडल में चला जाता है या फिर भूमी मे रिसकर भूमिगत जल का भाग बन जाता है | जल संसाधन मंत्रालय के अनुसार हमारे देश में कुल 1869 घन किमी जल उपलब्ध है परंतु भू आकृतिक परिस्थितियों तथा जल संसाधनों के असमान वितरण के कारण उपयोग के योग कुल 1122 अरब घन मीटर जल ही उपलब्ध है |
भारत में उपलब्ध कुल जल को दो विभिन्न वर्गों में बांटा जा सकता है धरातलीय जल तथा भूगर्भिक जल
धरातलीय जल
सतही जल हमें नदियों , झीलों , तालाबों तथा अन्य जलाशयों के रूप में मिलता है | नदियों में जल वर्षा होने अथवा बर्फ के पिघलने से प्राप्त होता है सबसे अधिक सतही जल नदियों में पाया जाता है भारत की नदियों का अनुमानित औसत वार्षिक प्रवाह 8869 अरब धन मीटर है | परंतु स्थालाकृति , जल विज्ञान संबंधी तथा अन्य बाधाओं के कारण केवल 690 अरब घन मी धरातलीय जल ही उपयोग के लिए उपलब्ध है कुल धरातलीय जल का लगभग 60% भाग भारत के तीन प्रमुख नदियों सिंधु , गंगा और ब्रह्मपुत्र में से होकर बहता है भारत में निर्मित तथा निर्माणाधीन जल भंडार की क्षमता स्वतंत्रता के समय केवल 18 अरब घन मी थी जो अब बढ़कर 147 अरब घन मीटर हो गई है यह भारतीय नदी द्रोणीओं में प्रवाहित होने वाली कुल जल राशि का 8.47% है |
भौम जल या भूगर्भिक जल
वर्षा से प्राप्त हुए जल की कुल मात्रा का कुछ भाग भूमि द्वारा सोख लिया जाता है | इसका 60% भाग मिट्टी की ऊपरी सतह तक ही पहुंचता है | यही जल कृषि उत्पादन के लिए बहुत महत्वपूर्ण है शेष जल धरातल के भीतर प्रवेश स्तर तक पहुंचता है इस जल को कुआं खोदकर प्राप्त किया जाता है अनुमान है | कि भारत में कुल अपूरणीय भौम जल क्षमता लगभग 432 अरब घन मीटर है |
देश में भूगर्भिक जल का वितरण बहुत आसामान है इस पर चट्टान की संरचना धरातलीय दशा जलापूर्ति की दशा आदि कारणों का प्रभाव पड़ता है भारत के समतल मैदानी भागों में स्थित जल चट्टानों वाले अधिकांश भागों में भूगर्भीय जल की अपार राशि विद्यमान है यहां पर प्रवेश्य चट्टाने पाई जाती है | जिसमें से जल आसानी से रिसकर भूगर्भिक जल का रूप धारण कर लेता है लगभग 42% से अधिक भौम जल भारत के विशाल मैदानो के राज्यो में पाया जाता है |
इसके विपरीत प्रायद्वीपीय पठारी भाग कठोर तथा अप्रवेश्य चट्टानों का बना हुआ है | जिसमें से जल रिसकर नीचे नहीं जा सकता इसलिए इस क्षेत्र में भूगर्भिक जल का अभाव है |
भौम जल का उपयोग
भौम जल का लगभग 92% भाग कृषि में प्रयोग किया जाता है तथा शेष 8% भाग घरेलू औद्योगिक तथा अन्य संबंधित उद्देश्यों की पूर्ति करता है | भारत में भूमिगत जल के विकास की बड़ी संभावनाएं हैं| क्योंकि अभी तक कुल उपलब्ध संसाधनों का केवल 37.23% भाग ही विकसित किया गया है |
राज्य स्तर पर भौम जल संसाधनों की कुल संभावित क्षमता की दृष्टि से बहुत विषमता में पाई जाती है | राज्यों में भौम जल के विकास में अंतर जलवायु के कारण पाया जाता है |
जल संसाधनों का प्रबंधन एवं संरक्षण…
जल के प्रबंधन एवं संरक्षण का उद्देश्य जल की बढ़ती हुई मांग को पूरा करना तथा जल के स्रोतों को ह्रास से बचाना है जल संसाधनों के संरक्षण के लिए निम्नलिखित कदम उठाए हैं|
धरातलीय जल का संरक्षण करने के लिए नदियों पर बांध बनाकर वर्षा ऋतु के अतिरिक्त जल का संरक्षण किया जा सकता है अन्यथा वह जल भरकर समुद्र में चला जाता है |
हमें भूजल पुनर्भरण की संस्कृति विकसित करनी होगी ताकि तेजी से समाप्त हो रहे हो भू जल का संरक्षण किया जा सके इसके लिए वर्षा जल संग्रहण सबसे अच्छी तकनीकी है |
वनीकरण द्वारा वर्षा जल के भूमि रिसने की दर को बढ़ाया जा सकता है |
जल के पुनर्चक्रण तथा पुनः प्रयोग द्वारा हम जल की कमी को पूरा कर सकते हैं |
उपयुक्त तकनीक का विकास कर समुद्री जल का खराबपन दूर कर उसका उपयोग करना|
जल सम्भर प्रबंधन कार्यक्रम द्वारा जल के स्रोतों का संरक्षण करना
रेन वाटर हार्वेस्टिंग की तकनीक को लोकप्रिय बनाना |
राष्ट्रीय जल नीति
जल की आपूर्ति , मांग तथा उसके तर्कसंगत उपयोग व प्रबंधन को ध्यान में रखकर केंद्रीय सरकार ने तीन राष्ट्रीय जल नीतियाँ अपनाई है |
राष्ट्रीय जल नीति 1987
यह राष्ट्रीय स्तर पर जल संसाधन संबंधित प्रथम नीति है इस नीति का मुख्य उद्देश्य जल का राष्ट्रीय हित में प्रबंधन करना तथा योजना तैयार करना था इस नीति में जल के विकास संबंधी योजना बनाने का अधिकार राज्य सरकारों को दिया गया |
राष्ट्रीय जल नीति 2002
वर्ष 2002 में वर्ष 1987 की नीति के स्थान पर एक नई नीति अपनाई गई इस नीति में उपयुक्त रूप से विकसित सूचना व्यवस्था , जल संरक्षण के परंपरागत तरीकों , जल प्रयोग , गैर परंपरागत तरीकों और मांग के प्रबंधन को महत्वपूर्ण तत्व के रूप में स्वीकार किया गया है | इसमें सबके लिए पेयजल की व्यवस्था को सर्वोच्च प्राथमिकता दी गई है |
राष्ट्रीय जल नीति 2012
राष्ट्रीय जल बोर्ड ने जून 2012 को हुई अपनी 14वीं बैठक में संस्तुत प्रारूप राष्ट्रीय जल नीति को प्रस्तुत किया | इस नीति में भू जल के उपयोग पर प्रयोक्ता शुल्क लगाने के लिए तर्कसंगत प्रणाली विकसित करने की भी बात कही गई है प्रत्येक राज्य में जल विनियामक प्राधिकरण की स्थापना और पड़ोसी देशों के साथ द्विपक्षीय सहयोग पर करार किया गया है |
महासागरीय संसाधन के बारे में लिखें …
अन्य प्राकृतिक संसाधन की तरह महासागरीय संसाधन भी महत्वपूर्ण संसाधन है इसे दो वर्गों में बांटा जा सकता है |
खनिज संसाधन
खनिज संसाधन अनेक महत्वपूर्ण समुद्री बेसिन में पाए जाते हैं नीचे पाए जाने वाले समुद्री खनिजों में नॉड्यूल्स तथा मैग्नीज ऑक्साइडो तथा कोबाल्ट, निकेल , तांबे तथा लोहे के सल्फाइडों के टुकड़े पाए जाते हैं आज विश्व के कुल तेल एवं प्राकृतिक गैस उत्पादन का पाँचवें भाग से अधिक भाग का उत्पादन अपतट कओं से आता है |
भारत का पश्चिमी तट पूर्वी तट की तुलना में अधिक संसाधनों से युक्त है उदाहरण स्वरूप बॉम्बे हाई मे लगभग 750 करोड टन का पेट्रोलियम भंडार है पूर्वी तट कावेरी , गोदावरी तथा महानदी के डेल्टा में भी प्राकृतिक गैस और तेल के विशाल भंडार पाए जाते हैं इसके अतिरिक्त समुद्री मछलियां , मोती , शैवाल तथा प्रवाल भित्तियाँ भी समुद्री संसाधनों के अंतर्गत आता है |
बहु धात्विक नॉड्युल्स
1970 के दशक के आरंभ में गहरे समुद्र में बहु धात्विक नॉड्यूल्स के व्यापक स्रोत का पता चला है इसमें प्रमुख हैं मैंगनीज , पिण्ड , जिसमें मुख्यत: कोबाल्ट , तांबा , निकेल एवं मैंगनीज धातु पाई जाती है इन पिण्डो मे अनेक भौतिक तथा रासायनिक पदार्थ पाए जाते हैं जो विभिन्न आकारों में पाए जाते हैं |
Note गहरे समुद्र खनन में भारत के प्रयास से
[ हिंद महासागर में बहु धात्विक पिण्डो की खोज सर्वप्रथम वर्ष 1977 में गोवा स्थित राष्ट्रीय समुद्र विज्ञान संस्थान द्वारा की गई इस कार्य के लिए गार्डन रीच वर्कशॉप कोलकाता द्वारा निर्मित प्रथम महासागरीय अनुसंधान पोत गवेषणी का प्रयोग किया गया जिसमें 28 जनवरी 1981 को पहली बार हिंद महासागर की गहराइयों से बहु धात्विक खनिज पिण्डोंफ को निकालने में सफलता प्राप्त की
गणेषणी के बाद आर पार एक भुवनेश्वर नामक जलयान का निर्माण भी सागर तल से बहु धात्विक पिण्डो को निकालने के उद्देश्य से किया गया इस प्रकार भारत वर्ष 1987 में विश्व का पहला देश बना जिससे खनन क्षेत्र में पंजीकृत बहु धात्विक संसाधनों की पहचान एवं आकलन का कार्य किया इन संसाधनों के उत्खनन के लिए प्रौद्योगिकी तथा कार्मिकों के विकास के क्षेत्र में भारत में काफी प्रगति की है ]
जैविक संसाधन…
समुद्र हमारी पृथ्वी के जीवीए पर्यावरण का सबसे बड़ा घटक है समुद्री जल में अनेक प्रकार के पौधे एवं जीव पनपते हैं समुद्री जैविक संसाधन के अंतर्गत पादप प्लवक , प्राणी प्लवक , नितलस्थ प्राणी जल कृषि तथा मत्स्य शामिल है |
भारतीय प्रयोग के लिए निर्धारित विशिष्ट आर्थिक क्षेत्र में 70 मीटर से अधिक गहराई में समुद्री जीव संसाधनों का आकलन करने तथा महासागर जीव विज्ञान कारको में मत्स्य उपलब्धता का संबंध जोड़ने के उद्देश्य से वर्ष 1997 -1998 में बहु विषयों तथा बहू संस्थानों वाला कार्यक्रम आरंभ किया गया |
इस कार्यक्रम का मूल उद्देश्य है सतत विकास तथा प्रबंधन के लिए भारत के ईईजेड मैं उपलब्ध समुद्री जीव संसाधनों की उपलब्धता की वास्तविक एवं विश्वसनीय जानकारी प्राप्त करना तथा भारतीय समुद्रों में समुद्री जीव संसाधनों की उपलब्धता को बढ़ाना |
समुद्री जल से शुद्ध जल की प्राप्ति …
प्राकृतिक रूप से समुद्र तटीय क्षेत्र के समुद्र जल में विभिन्न प्रकार के लवण जैसे सोडियम क्लोराइड मैग्निशियम क्लोराइड इत्यादि पाए जाते हैं जो उसे खारा बनाता है समुद्री जल में फ्लोरीन होने के कारण फ्लोरोसिस नामक बीमारी हो जाती है जिससे हड्डियों में दर्द होता रहता है |
समुद्री जल के खारेपन को दूर करने के लिए बहुत से उपाय किए गए हैं जो निम्नलिखित हैं |
सौर ऊर्जा तकनीक
सौर ऊर्जा तकनीक के अंतर्गत सूर्यताप को केंद्रित करके समुद्री जल को उबाला जाता है और इससे उत्पन्न वाष्प से शुद्ध जल को प्राप्त किया जाता है भारत में गुजरात के अविनया गांव में इस तकनीक से पर्याप्त जल उपलब्ध कराया जाता है |
लैश डिस्टीलेशन तकनिक
इस तकनीक के अंतर्गत गर्म किए गए समुद्री खारे जल को अनेकों ऐसे कक्ष से गुजारा जाता है जिसके अंदर दाब वायुमंडलीय दाब से कम हो जाता है इससे इसकी कक्ष के प्रत्येक भाग में वाष्पीकरण होता है तथा इस वाष्प को ट्यूबों के बंडल में संघनित कर लिया जाता है इस प्रकार प्रत्येक चरण में आसवित जल को एकत्र करके शुद्ध जल के रूप में प्रयोग किया जाता है |
इलेक्ट्रोडायलिसिस तकनिक
इस तकनीक के अंतर्गत समुद्री जल का खरापन दूर करने के लिए लोहे की चुनी हुई झीलियो का प्रयोग किया जाता है यह तकनीक 5000 पीपीएम से कम मात्रा में खरापन दूर करने की सबसे कम खर्चीली तकनीक है भारत में इस पद्धति का सफलतापूर्वक प्रयोग किया जा रहा है |
विपरीत परासरण तकनीक
यह तकनीक सर्वाधिक प्रचलित है इस तकनीक में अनुकूल परासरण झिल्लियों का प्रयोग किया जाता है जो उच्च दबाव के अंतर्गत समुद्री जल से खरापन को दूर करती हैं भारत के समुद्री तट के क्षेत्रों में 50000 से 100000 लीटर की क्षमता वाले संस्थान लगाए गए भारत हेवी इलेक्ट्रिकल्स लिमिटेड द्वारा विपरीत परासरण तकनीक पर आधारित देश के सबसे बड़े डिसैलिनेशन प्लांट का डिजाइन तैयार किया गया है इसे तमिलनाडु में स्थापित किया गया है | जहां से जलाभाव वाले रामनाथपुरम जिले के 226 गांव में से 26 लाख से अधिक व्यक्तियों को पीने का पानी उपलब्ध कराया जाएगा इस प्लांट की क्षमता 38 लाख लीटर समुद्री पानी को पीने योग्य बनाने की है |
समेकित तटीय व समुद्री क्षेत्र प्रबंधन …
तटीय इलाकों की समस्याओं जैसे मिट्टी का अपरदन , प्रदूषण और अधिवास का नष्ट होना आदि से निपटने के लिए वैज्ञानिक उपाय और तकनीकों का उपयोग करने के उद्देश्य से समेकित तटीय व समुद्री क्षेत्र प्रबंधन कार्यक्रम वर्ष 1998 में शुरू किया गया इसमें मैंग्रोव , पर्वतों तथा अन्य जीव विज्ञान के महत्वपूर्ण क्षेत्रों की स्थिति का आकलन दूरसंवेदी यंत्रों से किया जा सकता है |
तटीय समुद्र निगरानी एवं अनुमान प्रणाली
समुद्री पर्यावरण की स्थिति का लंबे समय के लिए अनुमान लगाने के लिए तटीय समुद्र निगरानी एवं अनुमान प्रणाली को वर्ष 1990 में लागू किया गया | इसमे समुद्र से मिलने वाले औद्योगिक व घरेलू अस्वच्छ अपशिष्ट जल में रसायनों की मात्रा का आकलन किया जाता है वर्तमान समय में यह भारत के 76 तटीय इलाकों में कार्यरत है |
एकॉस्टिक टाइड गेज
यह एक प्रकार की समर्पित संकेत प्रसंस्करण प्रणाली है जिसके एनालॉग इलेक्ट्रॉनिक हार्डवेयर के सभी हिस्से महासागर विकास विभाग के विभिन्न केंद्रों में विकसित किए गए हैं एटीजी प्रणाली का डिजाइन एवं विकास इस प्रकार किया गया है कि बिना किसी सहयोग के यह अकेले एक महीने तक ज्वार भाटे में काम कर सकते हैं |
मत्स्यन
हमारे देश में मत्स्यन के लिए एक प्रमुख व्यवसाय है यह व्यवसाय निर्यात द्वारा विदेशी मुद्रा अर्जित करने में सहायक है भारत में लगभग 18000 प्रकार की मछलियां पकड़ जाती है इसमें से कुछ हीं जाति की मछलियां पर्याप्त मात्रा में पकड़ी जाती है मत्स्यन उत्पादन के क्षेत्रों को दो भागों में बांटा जा सकता है समुद्री मत्स्य क्षेत्र और ताजे जल के मत्स्य क्षेत्र |
समुद्री मत्स्य क्षेत्र
समुद्र में लगभग 200 मीटर की गहराई तक महाद्वीपीय मग्नतट पर मछलियों के विकास तथा प्रजनन के लिए अनुकूल परिस्थितियां होती है और वहां से बहुत बड़ी मात्रा में मछली पकड़ी जाती है |
ताजे जल के मत्स्य क्षेत्र
ताजे जल के मत्स्य क्षेत्र जैसे नदियों , नहरों , तालाबों , नालो पोखरो आदि में ताजा जल होता है और इसमें से पकड़ी जाने वाली मछली को ताजे जल की मछली कहा जाता है यह देश के आंतरिक भागों में पाई जाती है इसलिए इसे अंतर्देशीय मछली भी कहा जाता है |
भारत में मत्स्य उत्पादन
भारत का विश्व के मछली उत्पादन में दूसरा स्थान है विश्व के कुल उत्पादन में भारत का योगदान लगभग 5.4% है | प्रारंभ में समुद्री मछली का उत्पादन अधिक होता था परंतु बाद में अंतर्देशीय मछली के उत्पादन में बड़ी तीव्रता से वृद्धि हुई है समुद्री मछली के संदर्भ में भारत का अधिकांश मछली उत्पादन पश्चिमी तट पर होता है जहां 75% समुद्री मछलियां पकड़ी जाती है बाकी की 25% मछलियां पूर्वी तट से पकड़ी जाती है |
भारत में ताजे जल की मछलियां गंगा , ब्रह्मपुत्र व सिंधु तथा इसकी सहायक नदियों में बड़ी मात्रा में पकड़ी जाती है दक्षिण भारत की नदियों में भी मछलियां पकड़ी जाती है यद्यपि देश के सभी राज्यों एवं केंद्र शासित प्रदेशों में कुछ न कुछ मछली का उत्पादन होता है परंतु लगभग 70% उपज में केवल छ: राज्यों पश्चिम बंगाल , आंध्र प्रदेश , गुजरात , केरल , तमिलनाडु एवं महाराष्ट्र का योगदान है कुल मछली उत्पादन में आंध्र प्रदेश प्रथम स्थान पर है जबकि सागरीय मछली उत्पादन में गुजरात प्रथम स्थान पर है और अन्त: स्थलीय मछली के उत्पादन में आंध्र प्रदेश प्रथम स्थान पर है |
महासागरीय विकास कार्यक्रम
भारत में महासागरीय अनुसंधान की योजना बनाने तथा उनके समन्वय एवं स्वदेशी क्षमताओं के विकास हेतु वर्ष 1976 में विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग के अंतर्गत महासागर विज्ञान और प्रौद्योगिकी एजेंसी की स्थापना की गई महासागर विकास की गतिविधियों को आयोजित समन्वित और प्रोत्साहित करने के लिए एक नोडल संस्था के रूप में जुलाई 1981 में कैबिनेट सचिवालय के अधीन महासागर विकास विभाग की स्थापना की गई मार्च 1982 से महासागर विकास विभाग को पृथक रूप से एक केंद्रीय राज्य मंत्री के अधीन कर दिया गया वर्ष 1982 में समुद्री कानून के संबंध में हुए संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन में समझौते के अनुमोदन के लिए एक अंतरराष्ट्रीय कानून स्थापित किया गया वर्ष 1982 में यूनाइटेड नेशंस कन्वेंशन ऑन द लॉ द सी द्वारा निर्मित इस नए समुद्री क्षेत्र के प्रभाव पर भी भारत द्वारा हस्ताक्षर किए गए थे |
संबंधित प्रमुख संस्थान
पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय
महासागर विकास मंत्रालय का नाम बदलकर उसे पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय कर दिया गया तथा इसकी अधिसूचना 12 जुलाई 2006 को जारी की गई यह मंत्रालय महासागर संसाधन , महासागरों की स्थिति मानसून , तूफान , भूकंप आदि विषयों से संबंधित अध्ययन हेतु सर्वोत्तम सेवाएं उपलब्ध कराता है |
राष्ट्रीय सागर विज्ञान संस्थान
नई दिल्ली स्थित वैज्ञानिक और औद्योगिक अनुसंधान परिषद के अंतर्गत वर्ष 1966 में गोवा में एक राष्ट्रीय समुद्री विज्ञान संस्थान की स्थापना की गई इस संस्थान की स्थापना का मुख्य उद्देश्य भारत के समीपवर्ती सागरों के भौतिक , रासायनिक , जीवविज्ञान विज्ञान , भूगर्भ विज्ञान और इंजीनियरिंग पक्षों के संबंध में पर्याप्त ज्ञान विकसित करना है |
इस संस्थान के पास स्वयं अपना महासागरीय अनुसंधान पोत गवेषणी है जिसके कारण भारत सागर क्लब में स्थान पा सका था इसके अतिरिक्त संस्थान द्वारा सागर विकास की बहुउद्देशीय सागर जलयान सागर कन्या और समुद्री वैज्ञानिक अनुसंधान जलयान सागर सम्पदा का प्रबंधन कार्य भी सौंपा गया है संस्थान का आंकड़ा केंद्र सागर संबंधी आंकड़ों का भंडारण और प्रबंध भी करता है तथा समुद्री क्षेत्र के उपभोक्ता समुदाय को इस आंकड़ों के संबंध में जानकारी उपलब्ध कराता है |
राष्ट्रीय महासागर प्रौद्योगिकी संस्थान
महासागर विकास के अंतर्गत समुद्री क्षेत्र से संबंधित प्रौद्योगिकी विकास करने के उद्देश्य से चेन्नई में राष्ट्रीय महासागर प्रोद्योगिकी संस्थान की स्थापना नवंबर 1993 में एक पंजीकृत संस्था के तौर पर की गई |