झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री शिबू सोरेन का 81 साल की उम्र में निधन, राजनीति जगत में शोक की लहर
झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री शिबू सोरेन का 81 साल की उम्र में निधन, राजनीति जगत में शोक की लहर
रांची, भारत - झारखंड मुक्ति मोर्चा (JMM) के संस्थापक और झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री शिबू सोरेन का 81 साल की उम्र में निधन हो गया। उन्होंने दिल्ली के सर गंगा राम अस्पताल में अंतिम सांस ली। उनके निधन की खबर से देशभर में शोक की लहर दौड़ गई है।
इलाज के दौरान हुआ निधन
शिबू सोरेन, जिन्हें 'दिशोम गुरु' के नाम से भी जाना जाता था, पिछले कुछ समय से बीमार चल रहे थे। उन्हें 19 जून, 2025 को इलाज के लिए दिल्ली के सर गंगा राम अस्पताल में भर्ती कराया गया था। अस्पताल के अनुसार, वे किडनी की गंभीर बीमारी से पीड़ित थे और उन्हें डेढ़ महीने पहले स्ट्रोक भी आया था। पिछले एक महीने से वे लाइफ सपोर्ट सिस्टम पर थे। डॉक्टरों के लाख प्रयास के बाद भी, आज सुबह 8:56 बजे उन्हें मृत घोषित कर दिया गया।
हेमंत सोरेन ने जताया दुख
झारखंड के मुख्यमंत्री और उनके बेटे हेमंत सोरेन ने अपने पिता के निधन की पुष्टि करते हुए गहरा दुख व्यक्त किया। उन्होंने सोशल मीडिया पर लिखा, "आज मैं शून्य हो गया हूं।"
बिहार के नेताओं ने दी श्रद्धांजलि
शिबू सोरेन के निधन पर बिहार के राजनीतिक जगत में भी शोक की लहर है। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार, लालू यादव, तेजस्वी यादव, संजय झा और पप्पू यादव सहित कई बड़े नेताओं ने उन्हें श्रद्धांजलि दी। सभी ने उनके निधन को भारतीय राजनीति के लिए एक बड़ी क्षति बताया है।
दिशोम गुरु का लंबा राजनीतिक सफर
शिबू सोरेन का राजनीतिक सफर दशकों लंबा रहा है। उन्होंने झारखंड राज्य के गठन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी और उन्हें झारखंड की राजनीति का एक अहम स्तंभ माना जाता है। उनका निधन न केवल उनके परिवार, बल्कि झारखंड और पूरे देश के लिए एक अपूरणीय क्षति है।
गुरुजी: शिबू सोरेन का जीवन परिचय
झारखंड की राजनीति में एक अमिट छाप छोड़ने वाले शिबू सोरेन को 'गुरुजी' के नाम से भी जाना जाता है. उनका जीवन संघर्ष, आदिवासी अधिकारों के लिए लड़ाई और राजनीति में एक लंबा सफर तय करने की कहानी है.
प्रारंभिक जीवन और शिक्षा
शिबू सोरेन का जन्म 11 जनवरी 1944 को झारखंड के नेमरा गांव (अब रामगढ़ जिले में) में हुआ था. उनके पिता, सोबरन सोरेन, एक शिक्षक थे, जिनकी हत्या के बाद युवा शिबू सोरेन ने एक नए रास्ते पर चलने का फैसला किया. उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा अपने गांव में ही प्राप्त की, लेकिन परिवार की आर्थिक स्थिति और सामाजिक चुनौतियों के कारण वे उच्च शिक्षा प्राप्त नहीं कर सके.
आंदोलन और राजनीति में प्रवेश
शिबू सोरेन ने अपने जीवन का अधिकांश समय झारखंड के आदिवासियों और गरीबों के अधिकारों के लिए समर्पित किया. 1970 के दशक में उन्होंने साहूकारों और जमींदारों के शोषण के खिलाफ एक बड़ा आंदोलन चलाया. इस आंदोलन ने उन्हें आदिवासियों के बीच एक लोकप्रिय नेता बना दिया. इसी दौरान उन्होंने झारखंड मुक्ति मोर्चा (JMM) का गठन किया. इस पार्टी का मुख्य उद्देश्य झारखंड को एक अलग राज्य बनाना और आदिवासी संस्कृति व अधिकारों की रक्षा करना था.
एक अलग राज्य के लिए संघर्ष
शिबू सोरेन ने झारखंड आंदोलन को एक नई दिशा दी. उन्होंने अपनी पार्टी के माध्यम से केंद्र और राज्य सरकारों पर दबाव बनाया. उनका संघर्ष 2000 में रंग लाया, जब झारखंड को बिहार से अलग करके एक नया राज्य बनाया गया. इस ऐतिहासिक जीत के बाद, शिबू सोरेन झारखंड की राजनीति के सबसे प्रभावशाली चेहरों में से एक बन गए.
राजनीतिक करियर
शिबू सोरेन ने अपने लंबे राजनीतिक जीवन में कई महत्वपूर्ण पद संभाले हैं:
* सांसद: वे कई बार लोकसभा के लिए चुने गए. पहली बार वे 1980 में दुमका सीट से सांसद बने.
* केंद्रीय मंत्री: उन्होंने केंद्र सरकार में कोयला मंत्री का पद भी संभाला.
* झारखंड के मुख्यमंत्री: शिबू सोरेन ने तीन बार झारखंड के मुख्यमंत्री का पद संभाला, हालांकि उनका कार्यकाल छोटा रहा.
* राज्यसभा सांसद: वर्तमान में वे राज्यसभा के सदस्य हैं और झारखंड की राजनीति में सक्रिय भूमिका निभा रहे हैं.
विवाद और उपलब्धियां
शिबू सोरेन का राजनीतिक जीवन विवादों से भी घिरा रहा. उन पर कई आरोप भी लगे, लेकिन उन्होंने हमेशा अपनी लड़ाई जारी रखी. उनके आलोचक और समर्थक दोनों ही यह मानते हैं कि उन्होंने झारखंड के आदिवासियों के लिए आवाज उठाई और उन्हें सामाजिक व राजनीतिक पहचान दिलाई.
शिबू सोरेन का जीवन संघर्ष, दृढ़ संकल्प और झारखंड के प्रति उनके समर्पण का प्रतीक है. उन्होंने झारखंड के लोगों के बीच 'गुरुजी' का सम्मान अर्जित किया और आज भी वे झारखंड की राजनीति में एक महत्वपूर्ण शख्सियत हैं.