सोमवार, 4 अगस्त 2025

झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री शिबू सोरेन का 81 साल की उम्र में निधन, राजनीति जगत में शोक की लहर

 झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री शिबू सोरेन का 81 साल की उम्र में निधन, राजनीति जगत में शोक की लहर 






झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री शिबू सोरेन का 81 साल की उम्र में निधन, राजनीति जगत में शोक की लहर 

रांची, भारत - झारखंड मुक्ति मोर्चा (JMM) के संस्थापक और झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री शिबू सोरेन का 81 साल की उम्र में निधन हो गया। उन्होंने दिल्ली के सर गंगा राम अस्पताल में अंतिम सांस ली। उनके निधन की खबर से देशभर में शोक की लहर दौड़ गई है।

इलाज के दौरान हुआ निधन

शिबू सोरेन, जिन्हें 'दिशोम गुरु' के नाम से भी जाना जाता था, पिछले कुछ समय से बीमार चल रहे थे। उन्हें 19 जून, 2025 को इलाज के लिए दिल्ली के सर गंगा राम अस्पताल में भर्ती कराया गया था। अस्पताल के अनुसार, वे किडनी की गंभीर बीमारी से पीड़ित थे और उन्हें डेढ़ महीने पहले स्ट्रोक भी आया था। पिछले एक महीने से वे लाइफ सपोर्ट सिस्टम पर थे। डॉक्टरों के लाख प्रयास के बाद भी, आज सुबह 8:56 बजे उन्हें मृत घोषित कर दिया गया।

हेमंत सोरेन ने जताया दुख

झारखंड के मुख्यमंत्री और उनके बेटे हेमंत सोरेन ने अपने पिता के निधन की पुष्टि करते हुए गहरा दुख व्यक्त किया। उन्होंने सोशल मीडिया पर लिखा, "आज मैं शून्य हो गया हूं।"

बिहार के नेताओं ने दी श्रद्धांजलि

शिबू सोरेन के निधन पर बिहार के राजनीतिक जगत में भी शोक की लहर है। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार, लालू यादव, तेजस्वी यादव, संजय झा और पप्पू यादव सहित कई बड़े नेताओं ने उन्हें श्रद्धांजलि दी। सभी ने उनके निधन को भारतीय राजनीति के लिए एक बड़ी क्षति बताया है।

दिशोम गुरु का लंबा राजनीतिक सफर

शिबू सोरेन का राजनीतिक सफर दशकों लंबा रहा है। उन्होंने झारखंड राज्य के गठन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी और उन्हें झारखंड की राजनीति का एक अहम स्तंभ माना जाता है। उनका निधन न केवल उनके परिवार, बल्कि झारखंड और पूरे देश के लिए एक अपूरणीय क्षति है।


गुरुजी: शिबू सोरेन का जीवन परिचय

झारखंड की राजनीति में एक अमिट छाप छोड़ने वाले शिबू सोरेन को 'गुरुजी' के नाम से भी जाना जाता है. उनका जीवन संघर्ष, आदिवासी अधिकारों के लिए लड़ाई और राजनीति में एक लंबा सफर तय करने की कहानी है.

प्रारंभिक जीवन और शिक्षा

शिबू सोरेन का जन्म 11 जनवरी 1944 को झारखंड के नेमरा गांव (अब रामगढ़ जिले में) में हुआ था. उनके पिता, सोबरन सोरेन, एक शिक्षक थे, जिनकी हत्या के बाद युवा शिबू सोरेन ने एक नए रास्ते पर चलने का फैसला किया. उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा अपने गांव में ही प्राप्त की, लेकिन परिवार की आर्थिक स्थिति और सामाजिक चुनौतियों के कारण वे उच्च शिक्षा प्राप्त नहीं कर सके.

आंदोलन और राजनीति में प्रवेश

शिबू सोरेन ने अपने जीवन का अधिकांश समय झारखंड के आदिवासियों और गरीबों के अधिकारों के लिए समर्पित किया. 1970 के दशक में उन्होंने साहूकारों और जमींदारों के शोषण के खिलाफ एक बड़ा आंदोलन चलाया. इस आंदोलन ने उन्हें आदिवासियों के बीच एक लोकप्रिय नेता बना दिया. इसी दौरान उन्होंने झारखंड मुक्ति मोर्चा (JMM) का गठन किया. इस पार्टी का मुख्य उद्देश्य झारखंड को एक अलग राज्य बनाना और आदिवासी संस्कृति व अधिकारों की रक्षा करना था.

एक अलग राज्य के लिए संघर्ष

शिबू सोरेन ने झारखंड आंदोलन को एक नई दिशा दी. उन्होंने अपनी पार्टी के माध्यम से केंद्र और राज्य सरकारों पर दबाव बनाया. उनका संघर्ष 2000 में रंग लाया, जब झारखंड को बिहार से अलग करके एक नया राज्य बनाया गया. इस ऐतिहासिक जीत के बाद, शिबू सोरेन झारखंड की राजनीति के सबसे प्रभावशाली चेहरों में से एक बन गए.

राजनीतिक करियर

शिबू सोरेन ने अपने लंबे राजनीतिक जीवन में कई महत्वपूर्ण पद संभाले हैं:

 * सांसद: वे कई बार लोकसभा के लिए चुने गए. पहली बार वे 1980 में दुमका सीट से सांसद बने.

 * केंद्रीय मंत्री: उन्होंने केंद्र सरकार में कोयला मंत्री का पद भी संभाला.

 * झारखंड के मुख्यमंत्री: शिबू सोरेन ने तीन बार झारखंड के मुख्यमंत्री का पद संभाला, हालांकि उनका कार्यकाल छोटा रहा.

 * राज्यसभा सांसद: वर्तमान में वे राज्यसभा के सदस्य हैं और झारखंड की राजनीति में सक्रिय भूमिका निभा रहे हैं.

विवाद और उपलब्धियां

शिबू सोरेन का राजनीतिक जीवन विवादों से भी घिरा रहा. उन पर कई आरोप भी लगे, लेकिन उन्होंने हमेशा अपनी लड़ाई जारी रखी. उनके आलोचक और समर्थक दोनों ही यह मानते हैं कि उन्होंने झारखंड के आदिवासियों के लिए आवाज उठाई और उन्हें सामाजिक व राजनीतिक पहचान दिलाई.

शिबू सोरेन का जीवन संघर्ष, दृढ़ संकल्प और झारखंड के प्रति उनके समर्पण का प्रतीक है. उन्होंने झारखंड के लोगों के बीच 'गुरुजी' का सम्मान अर्जित किया और आज भी वे झारखंड की राजनीति में एक महत्वपूर्ण शख्सियत हैं.


रविवार, 3 अगस्त 2025

Google का भारत में मेगा डेटा सेंटर: आंध्र प्रदेश में बनेगा एशिया का सबसे बड़ा डेटा सेंटर

 

गूगल का बड़ा कदम: विशाखापट्टनम में बनेगा एशिया का सबसे बड़ा डेटा सेंटर, भारत के डिजिटल भविष्य को मिलेगी नई उड़ान



Google का भारत में मेगा डेटा सेंटर: आंध्र प्रदेश में बनेगा एशिया का सबसे बड़ा डेटा सेंटर

विशाखापट्टनम, आंध्र प्रदेश – भारत के डिजिटल भविष्य को एक नई दिशा देते हुए, Google ने आंध्र प्रदेश के विशाखापट्टनम में एशिया का सबसे बड़ा डेटा सेंटर बनाने का ऐलान किया है। यह एक मेगा-प्रोजेक्ट है, जिसमें कंपनी ने ₹50,000 करोड़ का भारी-भरकम निवेश करने का फैसला किया है। यह डेटा सेंटर न सिर्फ भारत के टेक्नोलॉजी इंफ्रास्ट्रक्चर को मजबूत करेगा, बल्कि देश को डेटा के क्षेत्र में एक वैश्विक लीडर के रूप में स्थापित करने में भी मदद करेगा।

परियोजना से जुड़ी महत्वपूर्ण बातें

यह डेटा सेंटर 1 गीगावॉट (GW) की विशाल क्षमता के साथ स्थापित किया जाएगा, जो भारत की मौजूदा कुल डेटा सेंटर क्षमता (1.4 GW) के लगभग बराबर है। इस प्रोजेक्ट का कुल निवेश ₹50,000 करोड़ है, जिसमें से ₹16,000 करोड़ विशेष रूप से नवीकरणीय ऊर्जा (Renewable Energy) के क्षेत्र में खर्च किए जाएंगे। यह दिखाता है कि Google अपनी परियोजनाओं में स्थिरता और पर्यावरण संरक्षण को कितना महत्व देता है।

Google की पेरेंट कंपनी, Alphabet, ने इसी साल अप्रैल में घोषणा की थी कि वह वैश्विक स्तर पर डेटा सेंटर क्षमता को बढ़ाने के लिए ₹6.25 लाख करोड़ का निवेश करेगी। भारत में यह मेगा प्रोजेक्ट इसी वैश्विक रणनीति का एक हिस्सा है।

आंध्र प्रदेश सरकार की तैयारी और भविष्य की योजना

आंध्र प्रदेश सरकार ने इस प्रोजेक्ट को लेकर अपनी प्रतिबद्धता दिखाई है। राज्य के आईटी मंत्री नारा लोकेश ने बताया कि विशाखापट्टनम में तीन केबल लैंडिंग स्टेशन (Cable Landing Station) स्थापित किए जाएंगे, जिससे हाई-स्पीड डेटा ट्रांसफर संभव हो पाएगा। उन्होंने यह भी कहा कि राज्य ने पहले ही 1.6 GW क्षमता के डेटा सेंटर निवेश की पुष्टि कर दी है और अगले पांच वर्षों में 6 GW क्षमता के डेटा सेंटर बनाने का महत्वाकांक्षी लक्ष्य रखा है। यह राज्य को देश के डेटा सेंटर हब के रूप में स्थापित करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।

क्या होता है डेटा सेंटर?

डेटा सेंटर एक अत्याधुनिक सुविधा होती है, जिसमें नेटवर्क से जुड़े कंप्यूटर सर्वरों (Computer Servers) का एक विशाल समूह होता है। इसका उपयोग बड़ी कंपनियों द्वारा बड़े पैमाने पर डेटा को स्टोर करने, प्रोसेस करने और मैनेज करने के लिए किया जाता है। आज के डिजिटल युग में, जहाँ हर सेकंड अरबों-खरबों डेटा जनरेट होता है, डेटा सेंटर एक रीढ़ की हड्डी की तरह काम करते हैं। Facebook, Twitter, WhatsApp, Instagram, YouTube, बैंकिंग, हेल्थकेयर और टूरिज्म जैसी सभी सेवाएं इन्हीं डेटा सेंटरों पर निर्भर करती हैं।

डेटा सेंटर में डेटा मुख्य रूप से तीन स्तरों (layers) से गुजरता है:

 * मैनेजमेंट लेयर (Management Layer): यह वह शुरुआती स्तर है जहाँ यूज़र द्वारा किए गए अनुरोध का डेटा पहुँचता है। यहाँ डेटा की निगरानी और नियंत्रण किया जाता है।

 * वर्चुअल लेयर (Virtual Layer): इस स्तर पर SQL जैसी प्रोग्रामिंग भाषाओं का उपयोग करके यूज़र के प्रश्नों का उत्तर डेटा से निकाला जाता है।

 * फिजिकल लेयर (Physical Layer): यह सबसे निचली लेयर है जो सर्वर और हार्डवेयर जैसे भौतिक उपकरणों को मैनेज करती है, जहाँ डेटा वास्तव में संग्रहीत होता है।

निष्कर्ष: भारत के लिए एक बड़ा अवसर

Google का यह मेगा प्रोजेक्ट भारत को डेटा इंफ्रास्ट्रक्चर के क्षेत्र में एक वैश्विक नेतृत्वकर्ता बना सकता है। इससे न केवल टेक्नोलॉजी और डिजिटल ग्रोथ को बढ़ावा मिलेगा, बल्कि इससे भारी संख्या में रोजगार के अवसर भी पैदा होंगे। यह इनोवेशन और ‘डिजिटल इंडिया’ के लक्ष्य को एक नई ऊर्जा देगा, जिससे भारत की अर्थव्यवस्था को गति मिलेगी और देश तकनीकी क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनेगा।