अमेरिका-भारत टैरिफ विवाद : असली कारण ट्रंप का व्यक्तिगत मामला?
हाल ही में अमेरिका ने भारत पर 50% टैरिफ लगाने का बड़ा निर्णय लिया है। आधिकारिक बयान में कहा गया कि यह कदम भारत द्वारा रूस से कच्चा तेल खरीदने के कारण उठाया गया है। लेकिन अमेरिकी ब्रोकरेज फर्म Jeffries की रिपोर्ट में दावा किया गया है कि यह पूरा मामला सिर्फ रूस से तेल खरीद का बहाना है। असल वजह कुछ और है – और वह जुड़ी है पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के व्यक्तिगत अपमान और राजनीतिक स्वार्थ से।
इस रिपोर्ट के अनुसार, ट्रंप भारत से इसलिए नाराज़ हैं क्योंकि कुछ वर्ष पहले भारत और पाकिस्तान के बीच हुए चार दिन के युद्ध के दौरान ट्रंप ने दावा किया था कि उन्होंने इस युद्ध को रुकवाया। लेकिन भारत ने इस दावे को नकार दिया और कहा कि भारत-पाकिस्तान का मामला द्विपक्षीय है। यही बात ट्रंप को चुभ गई और अब उन्होंने रूस का बहाना बनाकर भारत पर आर्थिक दबाव बनाने की कोशिश की है।
अमेरिका और भारत के रिश्तों की पृष्ठभूमि
भारत और अमेरिका के बीच संबंध हमेशा उतार-चढ़ाव वाले रहे हैं। कभी दोनों देशों के बीच व्यापारिक साझेदारी मजबूत दिखती है तो कभी राजनीतिक टकराव देखने को मिलता है। शीत युद्ध के समय भारत ने गुटनिरपेक्ष नीति अपनाई थी, लेकिन सोवियत संघ के करीब रहा। वहीं अमेरिका पाकिस्तान के साथ खड़ा था। इस ऐतिहासिक पृष्ठभूमि ने दोनों देशों के बीच हमेशा कुछ अविश्वास बनाए रखा।
21वीं सदी में स्थिति बदली। तकनीकी, व्यापार और रक्षा के क्षेत्र में भारत और अमेरिका ने सहयोग बढ़ाया। लेकिन हर बार जब भी कोई बड़ा भू-राजनीतिक संकट आया, दोनों देशों के रिश्तों में तनाव देखने को मिला।
ट्रंप का कार्यकाल और भारत के साथ संबंध
डोनाल्ड ट्रंप जब राष्ट्रपति बने तो उन्होंने "अमेरिका फर्स्ट" नीति को प्राथमिकता दी। इसका असर भारत पर भी पड़ा। उन्होंने भारत से आयात होने वाले कुछ उत्पादों पर भारी टैरिफ लगाए। साथ ही H1-B वीज़ा नियमों को सख्त कर भारतीय आईटी सेक्टर को झटका दिया।
हालांकि, ट्रंप ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ व्यक्तिगत संबंध बनाने की भी कोशिश की। "Howdy Modi" और "Namaste Trump" जैसे कार्यक्रमों में दोनों नेताओं ने एक-दूसरे की तारीफ भी की। लेकिन अंदरखाने में कई मुद्दों पर मतभेद बने रहे।
चार दिन का युद्ध और ट्रंप का दावा
भारत और पाकिस्तान के बीच सीमाओं पर तनाव कोई नई बात नहीं है। लेकिन कुछ वर्ष पहले दोनों देशों के बीच ऐसा टकराव हुआ जिसे मीडिया ने "चार दिन का युद्ध" कहा। इस दौरान सीमा पर भारी गोलीबारी और सैन्य कार्रवाई देखने को मिली। हालात इतने बिगड़े कि अंतरराष्ट्रीय मीडिया ने इसे एशिया का सबसे बड़ा संकट कहा।
इसी दौरान डोनाल्ड ट्रंप ने दावा किया कि उन्होंने दोनों देशों के बीच युद्ध को रुकवाने में अहम भूमिका निभाई। ट्रंप का मानना था कि भारत इस दावे का स्वागत करेगा और इसे अमेरिकी मध्यस्थता का हिस्सा मानेगा।
भारत का जवाब
लेकिन भारत ने ट्रंप के इस दावे को तुरंत खारिज कर दिया। भारतीय विदेश मंत्रालय ने साफ शब्दों में कहा कि कश्मीर और भारत-पाकिस्तान विवाद द्विपक्षीय मुद्दा है और इसमें किसी तीसरे देश की भूमिका नहीं हो सकती।
भारत की इस स्पष्ट प्रतिक्रिया ने ट्रंप को नाराज़ कर दिया। उनके मुताबिक यह उनके वैश्विक नेतृत्व और मध्यस्थता की छवि पर चोट थी। यही वजह है कि उन्होंने भारत को लेकर निजी गुस्सा पाल लिया।
कश्मीर मसले पर अमेरिका का दृष्टिकोण
कश्मीर का मसला दशकों से भारत-पाकिस्तान के बीच विवाद का विषय रहा है। अमेरिका की पारंपरिक नीति यही रही है कि वह खुले तौर पर किसी एक पक्ष का समर्थन नहीं करता। लेकिन ट्रंप के समय में कई बार ऐसा लगा कि अमेरिका पाकिस्तान की बातों को ज्यादा महत्व दे रहा है।
ट्रंप ने कई बार यह बयान दिया कि वह भारत और पाकिस्तान के बीच मध्यस्थता करना चाहते हैं। लेकिन भारत ने बार-बार इसे ठुकरा दिया। भारत का कहना था कि शिमला समझौते और लाहौर समझौते के अनुसार कश्मीर का मुद्दा द्विपक्षीय है और इसमें किसी तीसरे पक्ष का हस्तक्षेप स्वीकार्य नहीं है।
Jeffries की रिपोर्ट क्या कहती है?
अमेरिकी ब्रोकरेज फर्म Jeffries ने अपनी ताजा रिपोर्ट में कहा है कि भारत पर लगाया गया 50% टैरिफ रूस से तेल खरीदने की वजह से नहीं है, बल्कि यह ट्रंप की व्यक्तिगत नाराजगी का परिणाम है। रिपोर्ट के अनुसार ट्रंप को लगता है कि भारत ने उनकी अंतरराष्ट्रीय साख को चोट पहुंचाई है।
रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि रूस से तेल खरीद को मुद्दा बनाना सिर्फ एक बहाना है। असल कारण भारत का स्वतंत्र रुख और ट्रंप के बयानों को नकारना है।
आर्थिक टैरिफ का असर
अमेरिका द्वारा 50% टैरिफ लगाए जाने का सीधा असर भारतीय उद्योगों और निर्यातकों पर पड़ेगा। विशेष रूप से टेक्सटाइल, स्टील, फार्मा और ऑटोमोबाइल सेक्टर पर भारी दबाव आएगा।
भारत के लिए यह फैसला कठिन स्थिति पैदा करता है क्योंकि अमेरिका उसका सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार है। हालांकि भारत ने इस पर कोई आधिकारिक प्रतिक्रिया अभी तक नहीं दी है, लेकिन माना जा रहा है कि आने वाले समय में यह विवाद गहराएगा।
क्या रूस सिर्फ बहाना है?
भारत ने रूस से सस्ता तेल खरीदकर अपनी ऊर्जा जरूरतों को पूरा किया है। पश्चिमी देशों को यह बात पसंद नहीं आई। लेकिन Jeffries की रिपोर्ट कहती है कि यह असली वजह नहीं है। असल वजह ट्रंप का व्यक्तिगत राजनीतिक हिसाब है।
इस रिपोर्ट ने अंतरराष्ट्रीय राजनीति में नई बहस छेड़ दी है कि क्या बड़े देशों के फैसले सिर्फ राष्ट्रीय हित से चलते हैं या कभी-कभी नेताओं के व्यक्तिगत गुस्से और स्वार्थ से भी प्रभावित होते हैं।
Jeffries रिपोर्ट का विश्लेषण
अमेरिकी ब्रोकरेज फर्म Jeffries ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि अमेरिका का यह कदम सिर्फ आर्थिक या रणनीतिक नहीं है, बल्कि इसमें व्यक्तिगत राजनीति की गंध साफ दिखती है। रिपोर्ट में बताया गया कि:
- ट्रंप को लगता है कि भारत ने उनके "वैश्विक मध्यस्थ" वाले दावे को ठुकराकर उनकी प्रतिष्ठा को चोट पहुंचाई।
- भारत की कश्मीर नीति हमेशा से स्वतंत्र रही है और यह अमेरिका सहित किसी भी तीसरे पक्ष की मध्यस्थता को स्वीकार नहीं करती।
- भारत ने रूस से तेल खरीदकर अमेरिका और पश्चिमी देशों के दबाव को नजरअंदाज किया। यह ट्रंप को और खटक गया।
- इसलिए रूस से तेल खरीद सिर्फ एक बहाना बना, असल में मामला व्यक्तिगत नाराजगी का है।
भारत की स्वतंत्र विदेश नीति
भारत हमेशा से रणनीतिक स्वायत्तता (Strategic Autonomy) की नीति पर चलता आया है। शीत युद्ध के समय भी भारत ने गुटनिरपेक्ष आंदोलन (NAM) के माध्यम से यही संदेश दिया था कि वह किसी एक ब्लॉक का हिस्सा नहीं बनेगा। आज भी भारत अपनी ऊर्जा जरूरतों और राष्ट्रीय हितों को प्राथमिकता देता है।
जब रूस पर पश्चिमी देशों ने प्रतिबंध लगाए, तब भी भारत ने सस्ते दाम पर रूस से तेल खरीदना जारी रखा। भारत ने साफ कहा कि उसका निर्णय राष्ट्रीय हितों और जनता की ऊर्जा सुरक्षा पर आधारित है।
यही स्वतंत्र रुख ट्रंप को बुरा लगा। उनके लिए यह व्यक्तिगत अहंकार का प्रश्न बन गया।
भारत पर टैरिफ का आर्थिक असर
अमेरिका भारत का सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार है। भारत से अमेरिका को निर्यात सालाना लगभग 120 बिलियन डॉलर के करीब है। यदि उस पर 50% टैरिफ लग जाता है तो:
- भारतीय निर्यातकों को भारी नुकसान होगा।
- फार्मा, टेक्सटाइल, स्टील और ऑटोमोबाइल सेक्टर पर सीधा असर पड़ेगा।
- भारतीय कंपनियों की वैश्विक प्रतिस्पर्धा क्षमता कम होगी।
- भारत की GDP वृद्धि दर पर दबाव आ सकता है।
हालांकि, यह भी सच है कि अमेरिका को भी नुकसान होगा क्योंकि भारत सस्ते और गुणवत्ता वाले उत्पादों का बड़ा सप्लायर है। टैरिफ बढ़ने से अमेरिकी उपभोक्ताओं को महंगे दाम चुकाने पड़ सकते हैं।
कश्मीर मुद्दे पर भारत का रुख
भारत ने हमेशा कहा है कि कश्मीर मुद्दा भारत और पाकिस्तान का द्विपक्षीय मामला है। 1972 का शिमला समझौता और 1999 का लाहौर समझौता इसी सिद्धांत पर आधारित हैं।
भारत ने अमेरिका सहित किसी भी तीसरे पक्ष की मध्यस्थता को अस्वीकार किया है। ट्रंप ने कई बार मध्यस्थता की पेशकश की, लेकिन भारत ने हर बार उसे ठुकराया। यही ट्रंप के लिए राजनीतिक अपमान का विषय बन गया।
अमेरिका की घरेलू राजनीति और भारत
ट्रंप की राजनीति में "ताकतवर नेता" की छवि सबसे अहम है। वे चाहते हैं कि दुनिया उनके फैसलों को मान्यता दे। भारत द्वारा उनका दावा न मानना अमेरिकी मीडिया और विपक्ष में उनकी आलोचना का कारण बन गया था।
यही वजह है कि अब जब उन्हें मौका मिला तो उन्होंने भारत पर टैरिफ का हथियार इस्तेमाल किया। इससे वे अपने समर्थकों को संदेश देना चाहते हैं कि वह अमेरिका के हितों के लिए सख्त कदम उठा सकते हैं।
रूस का बहाना क्यों?
Jeffries रिपोर्ट का कहना है कि ट्रंप ने रूस का नाम बहाने के तौर पर इस्तेमाल किया क्योंकि पश्चिमी देशों में रूस विरोधी भावनाएँ पहले से ही मजबूत हैं। रूस का हवाला देने से अमेरिका की घरेलू राजनीति में यह कदम ज्यादा जायज और स्वीकार्य लगता है।
लेकिन असलियत में रूस से तेल खरीद कोई नई बात नहीं है। भारत ने हमेशा अपनी ऊर्जा जरूरतों को ध्यान में रखकर खरीदारी की है। अमेरिका को यह पहले भी पता था, लेकिन तब इस तरह का कदम नहीं उठाया गया।
वैश्विक राजनीति पर असर
अमेरिका-भारत विवाद सिर्फ द्विपक्षीय मसला नहीं है। इसके असर पूरी दुनिया में देखने को मिल सकते हैं:
- एशिया-प्रशांत क्षेत्र में शक्ति संतुलन प्रभावित होगा।
- भारत अमेरिका से दूरी बढ़ाकर रूस और चीन के करीब जा सकता है।
- वैश्विक सप्लाई चेन पर असर पड़ेगा।
- अन्य देश भी अमेरिका की नीति को अविश्वसनीय मान सकते हैं।
भारत की संभावित रणनीति
भारत इस संकट से निपटने के लिए कई कदम उठा सकता है:
- राजनयिक वार्ता: भारत अमेरिका से बैक-चैनल डिप्लोमेसी के जरिए बातचीत कर सकता है।
- विविधीकरण: भारत अपने निर्यात बाजारों को विविध बना सकता है ताकि अमेरिका पर निर्भरता कम हो।
- घरेलू उद्योग को समर्थन: सरकार घरेलू निर्यातकों को सब्सिडी और कर राहत देकर झटका कम कर सकती है।
- रणनीतिक साझेदारी: भारत यूरोप, एशिया और अफ्रीका के देशों के साथ नए व्यापारिक समझौते कर सकता है।
भारत की जनता पर असर
यह विवाद सिर्फ सरकारों और कंपनियों तक सीमित नहीं रहेगा। आम जनता पर भी इसका असर पड़ेगा:
- अमेरिका में रहने वाले भारतीय प्रवासी प्रभावित हो सकते हैं।
- कुछ भारतीय उत्पाद महंगे हो सकते हैं।
- रोज़गार के अवसरों पर दबाव बढ़ सकता है।
क्या यह विवाद लंबे समय तक चलेगा?
यह इस बात पर निर्भर करता है कि भारत और अमेरिका किस तरह कूटनीतिक रास्ता निकालते हैं। यदि दोनों देश अपने व्यापारिक रिश्तों को प्राथमिकता देंगे तो यह विवाद धीरे-धीरे खत्म हो सकता है। लेकिन अगर ट्रंप अपने व्यक्तिगत स्वार्थ को ज्यादा अहमियत देते हैं तो मामला लंबा खिंच सकता है।
निष्कर्ष
अमेरिका द्वारा भारत पर 50% टैरिफ लगाने का असली कारण केवल रूस से तेल खरीद नहीं है। यह एक बहाना है। असलियत यह है कि ट्रंप भारत से नाराज़ हैं क्योंकि भारत ने उनके दावों को नकार दिया और अपनी स्वतंत्र नीति पर डटा रहा।
यह पूरा विवाद दिखाता है कि कभी-कभी बड़े देशों के फैसले केवल रणनीतिक या आर्थिक नहीं होते, बल्कि नेताओं के व्यक्तिगत अहंकार और राजनीतिक स्वार्थ से भी प्रभावित होते हैं।
भारत के सामने चुनौती है कि वह इस विवाद को कैसे संभाले और अपनी स्वतंत्र विदेश नीति को कायम रखते हुए आर्थिक नुकसान से कैसे बचे।
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