स्थलमंडल का विकास
पृथ्वी की उत्पत्ति के बाद स्थलमंडल का विकास भी एक श्रमिक प्रक्रिया के दौरान हुआ | पृथ्वी के रचना के क्रम में जब पदार्थ गुरुत्व बल के कारण सघन हो रहे थे | तो इससे अत्यधिक ऊष्मा उत्पन्न हुई जिसके कारण पदार्थ पिघलने लगे ऐसा पृथ्वी की उत्पत्ति के दौरान एवं उत्पत्ति के तुरंत बाद हुई |
अत्यधिक ताप के कारण पृथ्वी आंशिक रूप से द्रव अवस्था में रह गई | तथा भारी एवं हल्के घनत्व वाले पदार्थ घनत्व में अंतर के कारण अलग होना शुरू हो गया | जिसमें भारी पदार्थ जैसे लोहा पृथ्वी के केंद्र में एवं हल्के पदार्थ सतह के ऊपर आ गए समय के साथ पृथ्वी के ठंडी होने की प्रक्रिया में ये पदार्थ ठोस रूप में परिवर्तित होकर छोटे आकार के हो गए | जिससे भू - पर्पटी का विकास हुआ | कुछ समय बाद पृथ्वी का तापमान पुनः बढ़ा और फिर कम हुआ जिससे पृथ्वी के पदार्थों का अनेक परतो में विभेदन हुआ हुआ | जिसके फलस्वरूप पृथ्वी की सतह से कई परतो जैसे भू -पर्पटी , प्रवार एवं क्रोड का विकास हुआ |
वायुमंडल व जलमंडल का विकास
वर्तमान वायुमंडल के विकास की अवस्थाएं
(1 ) पहली अवस्था में वायुमंडलीय गैसों का ह्रास हुआ इस समय वायुमंडल में हाइड्रोजन एवं हीलियम की अधिकता थी |
( 2 ) दूसरी अवस्था में पृथ्वी के अंदर से निकली भाप एवं जलवाष्प ने वायुमंडल के विकास में सहयोग किया |
( 3) तीसरी एवं अंतिम अवस्था में वायुमंडलीय संरचना को जैव मंडल की प्रकाश संश्लेषण की प्रक्रिया में संशोधित किया |
पृथ्वी के ठंडा होने और विभेदन के दौरान पृथ्वी के अंदरूनी भाग से बहुत से गैस और जल वाष्प बाहर निकली जिससे वर्तमान वायुमंडल का उद्भव हुआ | आरंभ में वायुमंडल में जलवाष्प नाइट्रोजन कार्बन डाइऑक्साइड मीथेन अमोनिया अधिक मात्रा में थी जबकि स्वतंत्र ऑक्सीजन की मात्रा बहुत कम थी |
गैस उत्सर्जन
वैसी प्रक्रिया जिससे पृथ्वी के भीतरी भाग से गैस धरातल पर आई उस प्रक्रिया को गैस उत्सर्जन कहा जाता है | इसमें ज्वालामुखी प्रक्रिया सबसे महत्वपूर्ण है |
पृथ्वी के ठंडा होने के साथ-साथ जलवाष्प का संघनन भी शुरू हो गया | वायुमंडल में उपस्थित कार्बन डाइऑक्साइड गैस के वर्षा के पानी में घुलने से तापमान में और अधिक गिरावट आई जिसके परिणाम स्वरूप अधिक संघनन के कारण अत्यधिक वर्षा हुई |
पृथ्वी के धरातल पर वर्षा का जल गर्तो में इकट्ठा होने लगा जिससे महासागर का निर्माण हुआ | यह प्रक्रिया पृथ्वी की उत्पत्ति से लगभग 50 करोड़ सालों के अंतर्गत हुई | इससे पता चलता है कि महासागर 400 करोड़ वर्ष पुराने हैं | एवं 380 करोड़ वर्ष पहले जीवन का प्रारंभ हुआ | पृथ्वी पर जीवन की उत्पत्ति के लिए मूलतः कार्बन हाइड्रोजन तथा नाइट्रोजन जैसे तत्व प्रमुख रूप से उत्तरदायी थे |
जीवन की उत्पत्ति
पृथ्वी की उत्पत्ति का अंतिम चरण जीवन की उत्पत्ति व विकास से संबंधित है | नि:संदेह प्रारंभिक वायुमंडल जीवन के विकास के लिए अनुकूल नहीं था | आधुनिक वैज्ञानिक जीवन की उत्पत्ति को एक तरफ से रासायनिक प्रतिक्रिया बताते हैं | जिसमें सर्वप्रथम जटिल जैव अणु बने और उनका समुहन हुआ |और यह समूहन ऐसा था जो पुनः बनने में सक्षम था | और निर्जीव पदार्थों को जीवित तत्व में परिवर्तित कर सकता था | हमारे ग्रह पर जीवन के चिन्ह हम भिन्न भिन्न काल की चट्टानों में जीवाश्म के रूप में देख सकते हैं | 300 करोड़ वर्ष पुरानी भूगर्भिक शैलो में पाई जाने वाली सूक्ष्मदर्शी संरचना आज की शैवाल की संरचना में देखी जा सकती है |
भूवैज्ञानिक काल मापक्रम
महाकल्प कल्प युग जीवन / मूख्य घटनाएँ
नुतन कल्प चतुर्थ कल्प अभिनव आधुनिक मानव , अत्यंत नुुतन आदिमानव का विकास
सेनोजोइक तृतीये कल्प
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