सोमवार, 28 जून 2021

स्थलमंडल का विकास कैसे हुआ

 

      स्थलमंडल का विकास 






     पृथ्वी की उत्पत्ति के बाद स्थलमंडल का विकास भी  एक श्रमिक प्रक्रिया के दौरान हुआ  | पृथ्वी के रचना के क्रम में जब पदार्थ   गुरुत्व बल के कारण सघन हो रहे थे | तो इससे  अत्यधिक ऊष्मा  उत्पन्न हुई जिसके कारण पदार्थ पिघलने लगे ऐसा पृथ्वी की उत्पत्ति के दौरान एवं उत्पत्ति के तुरंत  बाद हुई |

 अत्यधिक ताप के कारण पृथ्वी आंशिक रूप से द्रव अवस्था में रह गई | तथा भारी एवं हल्के घनत्व वाले पदार्थ घनत्व में अंतर के कारण अलग होना शुरू हो गया | जिसमें भारी पदार्थ जैसे लोहा  पृथ्वी के केंद्र में एवं हल्के पदार्थ  सतह  के ऊपर आ गए समय के  साथ  पृथ्वी के ठंडी होने की प्रक्रिया में ये  पदार्थ ठोस रूप में परिवर्तित होकर छोटे आकार के हो गए | जिससे  भू - पर्पटी   का विकास हुआ |  कुछ समय बाद पृथ्वी का तापमान पुनः बढ़ा  और फिर कम हुआ जिससे पृथ्वी के पदार्थों का अनेक  परतो में विभेदन हुआ हुआ |  जिसके फलस्वरूप पृथ्वी की सतह से कई परतो जैसे भू -पर्पटी , प्रवार  एवं क्रोड का विकास हुआ |

     वायुमंडल  व जलमंडल का विकास

       वर्तमान वायुमंडल के विकास की अवस्थाएं

(1 )  पहली अवस्था में वायुमंडलीय  गैसों का ह्रास हुआ  इस समय वायुमंडल में हाइड्रोजन एवं हीलियम की अधिकता थी |

( 2 )  दूसरी अवस्था में पृथ्वी के अंदर से निकली भाप  एवं जलवाष्प ने  वायुमंडल के विकास में सहयोग किया |

( 3)  तीसरी एवं अंतिम अवस्था में वायुमंडलीय संरचना को  जैव  मंडल की प्रकाश संश्लेषण  की प्रक्रिया में  संशोधित किया |

        पृथ्वी के ठंडा होने और विभेदन  के दौरान  पृथ्वी के अंदरूनी भाग से बहुत से गैस और जल वाष्प  बाहर निकली  जिससे  वर्तमान वायुमंडल का उद्भव  हुआ | आरंभ में वायुमंडल में जलवाष्प नाइट्रोजन कार्बन डाइऑक्साइड मीथेन अमोनिया  अधिक मात्रा में थी जबकि स्वतंत्र ऑक्सीजन की मात्रा बहुत कम थी |

                           गैस उत्सर्जन  

  वैसी प्रक्रिया जिससे पृथ्वी के भीतरी भाग  से गैस धरातल पर आई उस प्रक्रिया को गैस उत्सर्जन कहा जाता है |  इसमें ज्वालामुखी प्रक्रिया सबसे महत्वपूर्ण है |

 पृथ्वी के ठंडा होने के साथ-साथ जलवाष्प  का संघनन भी शुरू हो गया | वायुमंडल में उपस्थित कार्बन डाइऑक्साइड गैस के वर्षा के पानी में घुलने से तापमान में और अधिक गिरावट आई जिसके परिणाम स्वरूप अधिक संघनन के कारण अत्यधिक वर्षा हुई |

 पृथ्वी के धरातल पर वर्षा का जल गर्तो  में इकट्ठा होने लगा   जिससे महासागर का निर्माण हुआ  | यह प्रक्रिया पृथ्वी की उत्पत्ति से लगभग 50 करोड़ सालों के अंतर्गत हुई | इससे पता चलता है कि महासागर 400 करोड़  वर्ष पुराने हैं | एवं 380 करोड़  वर्ष पहले जीवन का  प्रारंभ हुआ | पृथ्वी पर जीवन की उत्पत्ति के लिए मूलतः कार्बन हाइड्रोजन तथा नाइट्रोजन जैसे तत्व प्रमुख रूप से उत्तरदायी थे |

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                       जीवन की उत्पत्ति

 पृथ्वी की उत्पत्ति का अंतिम चरण जीवन की उत्पत्ति व विकास से संबंधित है | नि:संदेह प्रारंभिक वायुमंडल जीवन के विकास के लिए अनुकूल नहीं था | आधुनिक वैज्ञानिक जीवन की उत्पत्ति को एक तरफ से रासायनिक प्रतिक्रिया बताते हैं | जिसमें सर्वप्रथम जटिल जैव अणु बने और उनका समुहन हुआ |और यह समूहन  ऐसा था जो पुनः   बनने में सक्षम था | और निर्जीव पदार्थों को जीवित तत्व में परिवर्तित   कर सकता था | हमारे ग्रह पर जीवन के चिन्ह हम  भिन्न भिन्न काल   की चट्टानों में जीवाश्म के रूप में देख सकते हैं | 300 करोड़ वर्ष पुरानी भूगर्भिक  शैलो में पाई जाने वाली सूक्ष्मदर्शी संरचना आज की   शैवाल की संरचना में देखी जा सकती है | 

           भूवैज्ञानिक काल मापक्रम  

 महाकल्प          कल्प           युग            जीवन / मूख्य घटनाएँ

नुतन कल्प    चतुर्थ कल्प    अभिनव        आधुनिक मानव  ,                                                  अत्यंत नुुतन      आदिमानव का विकास                                

सेनोजोइक    तृतीये कल्प 

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