विश्व का भूगोल
ब्राह्मण्ड
आकाशगंगा के सभी पूंजो को सम्मिलित रूप को ब्राह्मण्ड कहा जाता है |
ब्रह्मांड की उत्पत्ति से संबंधित सिद्धांत
ब्राह्मण्ड की उत्पत्ति के संबंध में बिग बैंग सिद्धांत सबसे अधिक विश्वासनीय सिद्धांत माना जाता है | जिसका प्रतिपादन जॉर्ज लेमैत्रे ने किया था इसके अनुसार लगभग 13.7 अरब वर्ष पूर्व जब ब्रमांड के समस्त तत्व एक ही स्थान पर अत्यधिक संघनित रूप में था तब उसमे किसी कारण से विस्फोट हुआ जिस से निकलने वाले पदार्थ अत्यधिक तीव्र गति से प्रसारित हुए और ब्राह्मण्ड का वर्तमान स्वरूप प्राप्त हुआ | इसके पश्चात भी ब्राह्मण्ड का निरंतर विस्तार जारी है | जिसका प्रमाण आकाशगंगा के बीच बढ़ती हुई दूरी है |
कॉस्मिक थ्रेड नामक सिद्धांत के अनुसार ब्रह्मांड धागे जैसी संरचनाओ से आपस में जुड़ा हुआ है | इस सिद्धांत के लिए भारतीय वैज्ञानिक प्रोफेसर अशोक सेन को प्रथम यूरी मिलंतर अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार दिया गया |
ब्रह्मांड के रहस्य को जानने के लिए वर्ष 2010 में यूरोपीयन सेंटर फॉर न्यूक्लियर रिसर्च ने जिनेवा में पृथ्वी की सतह से 100 फीट नीचे 27 किलोमीटर लंबी सुरंग में लार्ज हैड्रन कोलाइडर नामक महाप्रयोग किया गया जिसे विज्ञान की दुनिया में बिग बैंग के नाम से जाना जाता है इसमें गॉड पाटीकल की अहम भूमिका है |
गॉड पार्टिकल परमाणु से भी छोटा अति सूक्ष्म कण है जिसे ब्रह्मांड के निर्माण का मूल कारण माना गया है | इस कण की परिकल्पना सर्वप्रथम वर्ष 1964 में पीटर हिग्स के द्वारा की गई थी | चूँकि भारतीय वैज्ञानिक सत्येंद्र नाथ बोस ने भी इससे संबंधित विचार दिया था | इसलिए इसे हिग्स बोसॉन भी कहा जाता है |
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आकाशगंगा
ब्राह्मण्ड में तारों के समूह को आकाशगंगा कहा जाता है इसमें तारों का विशाल समूह होता है | जिसमें हजारों करोड़ तारे हैं ब्रह्मांड में आकाशगंगा की संख्या करीब 10000 मिलियन मानी जाती है | और हर आकाशगंगा में अनुमानतः एक लाख मिलियन तारे हैं | इसी अनगिनत आकाशगंगा में एक भाग मंदाकिनी जो रात में दिखाई देने वाला तारों का समूह है | इसी का हिस्सा हमारा सौरमंडल है मंदाकिनी का आकार सर्पी्ला है | और सौरमंडल इसके बाह्रा भाग में अवस्थित है |
डॉप्लर विस्थापन
डॉप्लर विस्थापन आकाशगंगाओ से आने वाली प्रकाश स्पेक्ट्रम के आधार पर विश्व के विस्तार के बारे में बताया गया है | यदि स्पेक्ट्रम में रक्त विस्थापन की घटना हो तो प्रेक्षित आकाशगंगा पृथ्वी से दूर भाग रही है | और यदि स्पेक्ट्रम में बैगनी विस्थापन हो तो प्रेक्षित आकाशगंगा पृथ्वी के पास आ रही है चूकि अभी तक देखा गया है | कि स्पेक्ट्रम में रक्त विस्थापन की घटना के ही प्रमाण मिले हैं आत: है यह माना जाता है कि अकाश गंगा पृथ्वी से दूर भाग रही है |
निहारिका
निहारिका एक प्रकार का अत्यधिक प्रकाशमान अकाशीय पिंड है जो धूल एवं धूल कणों से मिलकर बना होता है | निहारिका को सौरमंडल का जनक माना जाता है | उसके ध्वस्त होने व क्रोड के बनने की प्रक्रिया शुरुआत लगभग 5 से 5.6 अरब वर्ष पहले हुई व ग्रह लगभग 4.56 से 4.6 अरब वर्ष पहले बना |
क्वैसर
यह वैसे आकाश पिंड है जो आकार में आकाशगंगा से छोटे हैं लेकिन उससे अधिक मात्रा में ऊर्जा का उत्सर्जन करता है | इसकी खोज वर्ष 1962 में की गई थी |
नक्षत्र मण्डल
रात्रि में आकाश में तारों के समूह द्वारा बनाई गई विभिन्न आकृतियों को नक्षत्र मंडल कहा जाता है | बिग बियर ऐसा ही एक नक्षत्र मंडल है बहुत आसानी से पहचान में आने वाला नक्षत्र मंडल स्मॉल बियर है | यह सात तारों का समूह है | जो बिग बियर का ही भाग है इसे सप्त ऋषि मंडल भी कहा जाता है | इसी सप्त ऋषि की सहायता से हम ध्रुव तारे की स्थिति को जान सकते हैं | ध्रुव तारा एक ही स्थान पर रहता है | और उत्तर दिशा को बताता है | अब तक 89 नक्षत्र मंडल की पहचान की गई है |
तारे
वैसे आकाशीय पिंड इनकी उत्पत्ति आकाशगंगा में मौजूद गैस एवं धुलकन के बादलों से हुई मानी जाती है | तारा कहलाता है | यह निरंतर ऊर्जा मुक्त करते रहता है | सूर्य भी एक तारा है |
तारे का जीवन चक्र
जब तारों के कोर में स्थिति इंधन समाप्त होने लगता है |तब तारे की मृत्यु होने लगती है | मृत होते तारों में अंततः तीव्र प्रकाश के साथ विस्फोट उत्पन्न होता है इसे सुपरनोवा विस्फोट कहा जाता है | विस्फोट के बाद तारे के अत्यधिक सघन कोर से बने भाग को न्यूट्रॉन तारा कहा जाता है |छोटे आकार की होने के कारण न्यूट्रॉन तारा तीव्र गति घूर्णन करती है |एवं विद्युत चुंबकीय किरणों का उत्पन्न करता है | ऐसे तारों को पलसर कहा जाता है | कफी बड़े तारे विस्फोट के बाद ब्लैक होल में परिवर्तित हो जाता है | जिसके अंतर्गत अत्यधिक गुरुत्वाकर्षण बल होने के कारण कोई भी पदार्थ या प्रकाश किरण इससे बाहर नहीं निकल पाती है |
सर्वप्रथम कैंब्रिज विश्वविद्यालय के प्रोफेसर जॉन मिशेल ने ब्लैक होल से संबंधित विचार प्रस्तुत किए इसके बाद 1976 ई में फ्रांसीसी वैज्ञानिक लाप्लास ने अपनी पुस्तक द सिस्टम ऑफ द वर्ल्ड मे ब्लैक होल के बारे में विस्तार से चर्चा की |
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