बुधवार, 30 जून 2021

झील किसे कहते है

       झील किसे कहते है 



 भूतल पर स्थित  वे विस्तृत गड्ढे  जो जल के द्वारा भरा रहता है तथा स्थल के आंतरिक भाग में स्थित होता है झील कहलाता है |

 यह कभी-कभी नदीमार्ग के मध्य मे  उत्पन्न होती है |  कभी-कभी नदियों का उद्गम स्रोत होता है | तो कभी-कभी नदियों का मुहाना भी होता है |  लेकिन सभी झीलों का अपना-अपना प्रकृति होती है |  अर्थात  या तो वे मीठे पानी की झील होती है |  या खारे पानी की झील होती है | 

    उत्पत्ति के आधार पर  झीलों का वर्गीकरण

                        भ्रंश  झील 

 इस प्रकार की झील का निर्माण भ्रंश या  दरारों में जल भर जाने के कारण  निर्माण होता है |  

                       रिफ्ट धाटी  झील 

  रिफ्ट घाटी में जल भरने से जो झील का निर्माण होता है उसे रिफ्ट घाटी झील कहा जाता है |

                ज्वालामुखी द्वारा निर्मित झील

                             क्रेटर झील 

 क्रेटर  झील ज्वालामुखी के मुख से निर्मित झील है | 

                         लावा क्षेत्र झील 

 लावा के  असमतल बहाव के कारण रिक्त स्थानों में बनी झील | 

                        लावा बांध झील 

  नदियों के प्रवाह मार्ग में ज्वालामुखी लावा प्रवाह के कारण अवरुद्ध जलमार्ग द्वारा बनी झील लावा बांध झील कहलाता है | 

                     हिमानीकृत  झील

 हिमताल झील हिमानी अपरदन के कारण  निर्मित झील है | 

                     नदी कृत झील

                           गोखुर झील 

  नदी मार्ग के  विसर्पण  एवम पुनः नदी द्वारा लघु मार्ग प्राप्त करने के  पश्चात छोड़ दिए गए भूभाग में जल भरा रहता है जिससे गोखुर झील का निर्माण होता है | 

                          प्रपाती झील  

 जलप्रपात के गिरने के स्थान पर निर्मित  अवनमन  कुंड जब विस्तृत हो जाता है  तो प्रपाती झील का निर्माण होता है | 

                          डेल्टाई झील 

 नदियों द्वारा मुहाना क्षेत्र में अत्यधिक  मंद ढाल एवं  भार के कारण मार्ग के निरंतर परित्याग या बहूमार्ग द्वारा इसका निर्माण होता है | 


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मंगलवार, 29 जून 2021

विश्व का भूगोल , ब्रह्मांड की उत्पत्ति कैसे हुई , ब्रह्मांड की उत्पत्ति से संबंधित सिद्धांत ,आकाशगंगा, डॉप्लर विस्थापन ,तारे का जीवन चक्र , आकाशगंगा किसे कहते है

 

         विश्व का भूगोल 

                   ब्राह्मण्ड







 आकाशगंगा के सभी   पूंजो को सम्मिलित रूप  को ब्राह्मण्ड  कहा जाता है |

         ब्रह्मांड की उत्पत्ति से संबंधित सिद्धांत

  ब्राह्मण्ड की उत्पत्ति के संबंध में बिग बैंग सिद्धांत  सबसे अधिक विश्वासनीय सिद्धांत माना  जाता है | जिसका प्रतिपादन जॉर्ज लेमैत्रे ने किया था  इसके अनुसार लगभग 13.7 अरब वर्ष पूर्व जब ब्रमांड के समस्त तत्व एक  ही स्थान पर अत्यधिक संघनित रूप में था तब उसमे किसी  कारण से विस्फोट हुआ जिस से निकलने वाले पदार्थ अत्यधिक तीव्र गति से प्रसारित हुए  और ब्राह्मण्ड का वर्तमान स्वरूप प्राप्त हुआ  | इसके पश्चात भी ब्राह्मण्ड का निरंतर विस्तार जारी है | जिसका प्रमाण  आकाशगंगा के बीच बढ़ती हुई दूरी है |

     कॉस्मिक थ्रेड  नामक सिद्धांत के अनुसार ब्रह्मांड धागे जैसी संरचनाओ से आपस में जुड़ा हुआ है |  इस सिद्धांत के लिए भारतीय वैज्ञानिक प्रोफेसर अशोक सेन को प्रथम यूरी मिलंतर अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार दिया गया |

 ब्रह्मांड के रहस्य को जानने के लिए  वर्ष 2010 में यूरोपीयन सेंटर फॉर न्यूक्लियर रिसर्च ने जिनेवा में पृथ्वी की सतह से 100 फीट नीचे 27 किलोमीटर लंबी सुरंग में लार्ज हैड्रन कोलाइडर नामक महाप्रयोग किया गया जिसे विज्ञान की दुनिया में बिग  बैंग के नाम से जाना जाता है इसमें गॉड पाटीकल की अहम भूमिका है |

 गॉड पार्टिकल परमाणु से भी छोटा अति सूक्ष्म कण है  जिसे ब्रह्मांड के निर्माण का मूल कारण माना गया है | इस कण की परिकल्पना सर्वप्रथम वर्ष  1964 में पीटर हिग्स  के द्वारा की गई थी  | चूँकि भारतीय वैज्ञानिक सत्येंद्र नाथ बोस ने भी  इससे संबंधित विचार दिया था  | इसलिए इसे हिग्स बोसॉन भी कहा जाता है |


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                     आकाशगंगा 

  ब्राह्मण्ड में तारों के समूह को आकाशगंगा कहा जाता है इसमें तारों का विशाल समूह होता है | जिसमें हजारों करोड़ तारे हैं ब्रह्मांड में आकाशगंगा की संख्या करीब 10000 मिलियन मानी जाती है | और हर आकाशगंगा में अनुमानतः एक लाख मिलियन तारे हैं  | इसी अनगिनत आकाशगंगा में एक भाग मंदाकिनी जो रात में दिखाई देने वाला तारों का समूह है | इसी का हिस्सा हमारा सौरमंडल है मंदाकिनी का आकार  सर्पी्ला है | और सौरमंडल इसके बाह्रा भाग में अवस्थित है |

                      डॉप्लर विस्थापन 

 डॉप्लर विस्थापन आकाशगंगाओ से आने वाली प्रकाश स्पेक्ट्रम के आधार पर विश्व के विस्तार के बारे में बताया गया है | यदि स्पेक्ट्रम में रक्त विस्थापन की घटना हो तो  प्रेक्षित  आकाशगंगा पृथ्वी से दूर भाग रही है | और यदि स्पेक्ट्रम में बैगनी विस्थापन हो तो प्रेक्षित  आकाशगंगा पृथ्वी के पास आ रही है चूकि अभी तक देखा गया है | कि स्पेक्ट्रम में रक्त विस्थापन की घटना के ही प्रमाण मिले हैं  आत: है यह माना जाता है कि  अकाश गंगा पृथ्वी से दूर भाग रही है |

                              निहारिका 

निहारिका  एक प्रकार का अत्यधिक प्रकाशमान अकाशीय पिंड है जो   धूल एवं धूल कणों से मिलकर बना होता है  | निहारिका को सौरमंडल का जनक माना जाता है | उसके ध्वस्त होने व  क्रोड के बनने की  प्रक्रिया  शुरुआत लगभग 5 से 5.6 अरब वर्ष पहले हुई व  ग्रह लगभग 4.56 से 4.6 अरब वर्ष पहले बना |

                            क्वैसर 

यह वैसे आकाश  पिंड है जो आकार में आकाशगंगा से छोटे हैं लेकिन उससे अधिक मात्रा में ऊर्जा का उत्सर्जन करता है | इसकी खोज वर्ष 1962 में की गई थी |

                        नक्षत्र मण्डल

  रात्रि में आकाश में तारों के समूह द्वारा बनाई गई विभिन्न आकृतियों को नक्षत्र मंडल कहा जाता है | बिग बियर ऐसा ही एक नक्षत्र मंडल है बहुत आसानी से पहचान में आने वाला नक्षत्र मंडल स्मॉल बियर है | यह सात तारों का समूह है | जो बिग बियर का ही भाग है इसे सप्त ऋषि मंडल भी कहा जाता है | इसी सप्त ऋषि की सहायता से हम ध्रुव तारे की स्थिति को जान सकते हैं | ध्रुव तारा एक ही स्थान पर रहता है | और उत्तर दिशा को बताता है | अब तक 89 नक्षत्र मंडल की पहचान की गई है |

                               तारे 

 वैसे आकाशीय पिंड इनकी उत्पत्ति आकाशगंगा में मौजूद गैस एवं धुलकन के बादलों से हुई मानी जाती है  | तारा कहलाता है | यह निरंतर ऊर्जा मुक्त करते रहता है | सूर्य भी एक तारा है |

                   तारे का जीवन चक्र

 जब तारों के कोर में स्थिति इंधन समाप्त होने लगता है |तब  तारे की मृत्यु होने लगती है | मृत होते तारों में अंततः   तीव्र प्रकाश   के साथ  विस्फोट उत्पन्न होता है इसे सुपरनोवा विस्फोट कहा जाता है | विस्फोट के बाद तारे के  अत्यधिक सघन कोर  से बने भाग को न्यूट्रॉन तारा कहा जाता है |छोटे आकार की होने के कारण न्यूट्रॉन तारा तीव्र गति घूर्णन करती है |एवं विद्युत चुंबकीय किरणों का उत्पन्न करता है | ऐसे तारों को पलसर कहा जाता है  | कफी बड़े तारे विस्फोट के बाद ब्लैक होल में परिवर्तित हो जाता है | जिसके अंतर्गत अत्यधिक गुरुत्वाकर्षण बल होने के कारण कोई भी पदार्थ या प्रकाश किरण इससे बाहर नहीं निकल पाती है |
      सर्वप्रथम कैंब्रिज विश्वविद्यालय के प्रोफेसर जॉन मिशेल ने ब्लैक होल से संबंधित विचार प्रस्तुत किए इसके बाद 1976 ई में फ्रांसीसी वैज्ञानिक लाप्लास ने अपनी पुस्तक द सिस्टम ऑफ द वर्ल्ड  मे ब्लैक होल के बारे में विस्तार से चर्चा की |

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सोमवार, 28 जून 2021

स्थलमंडल का विकास कैसे हुआ

 

      स्थलमंडल का विकास 






     पृथ्वी की उत्पत्ति के बाद स्थलमंडल का विकास भी  एक श्रमिक प्रक्रिया के दौरान हुआ  | पृथ्वी के रचना के क्रम में जब पदार्थ   गुरुत्व बल के कारण सघन हो रहे थे | तो इससे  अत्यधिक ऊष्मा  उत्पन्न हुई जिसके कारण पदार्थ पिघलने लगे ऐसा पृथ्वी की उत्पत्ति के दौरान एवं उत्पत्ति के तुरंत  बाद हुई |

 अत्यधिक ताप के कारण पृथ्वी आंशिक रूप से द्रव अवस्था में रह गई | तथा भारी एवं हल्के घनत्व वाले पदार्थ घनत्व में अंतर के कारण अलग होना शुरू हो गया | जिसमें भारी पदार्थ जैसे लोहा  पृथ्वी के केंद्र में एवं हल्के पदार्थ  सतह  के ऊपर आ गए समय के  साथ  पृथ्वी के ठंडी होने की प्रक्रिया में ये  पदार्थ ठोस रूप में परिवर्तित होकर छोटे आकार के हो गए | जिससे  भू - पर्पटी   का विकास हुआ |  कुछ समय बाद पृथ्वी का तापमान पुनः बढ़ा  और फिर कम हुआ जिससे पृथ्वी के पदार्थों का अनेक  परतो में विभेदन हुआ हुआ |  जिसके फलस्वरूप पृथ्वी की सतह से कई परतो जैसे भू -पर्पटी , प्रवार  एवं क्रोड का विकास हुआ |

     वायुमंडल  व जलमंडल का विकास

       वर्तमान वायुमंडल के विकास की अवस्थाएं

(1 )  पहली अवस्था में वायुमंडलीय  गैसों का ह्रास हुआ  इस समय वायुमंडल में हाइड्रोजन एवं हीलियम की अधिकता थी |

( 2 )  दूसरी अवस्था में पृथ्वी के अंदर से निकली भाप  एवं जलवाष्प ने  वायुमंडल के विकास में सहयोग किया |

( 3)  तीसरी एवं अंतिम अवस्था में वायुमंडलीय संरचना को  जैव  मंडल की प्रकाश संश्लेषण  की प्रक्रिया में  संशोधित किया |

        पृथ्वी के ठंडा होने और विभेदन  के दौरान  पृथ्वी के अंदरूनी भाग से बहुत से गैस और जल वाष्प  बाहर निकली  जिससे  वर्तमान वायुमंडल का उद्भव  हुआ | आरंभ में वायुमंडल में जलवाष्प नाइट्रोजन कार्बन डाइऑक्साइड मीथेन अमोनिया  अधिक मात्रा में थी जबकि स्वतंत्र ऑक्सीजन की मात्रा बहुत कम थी |

                           गैस उत्सर्जन  

  वैसी प्रक्रिया जिससे पृथ्वी के भीतरी भाग  से गैस धरातल पर आई उस प्रक्रिया को गैस उत्सर्जन कहा जाता है |  इसमें ज्वालामुखी प्रक्रिया सबसे महत्वपूर्ण है |

 पृथ्वी के ठंडा होने के साथ-साथ जलवाष्प  का संघनन भी शुरू हो गया | वायुमंडल में उपस्थित कार्बन डाइऑक्साइड गैस के वर्षा के पानी में घुलने से तापमान में और अधिक गिरावट आई जिसके परिणाम स्वरूप अधिक संघनन के कारण अत्यधिक वर्षा हुई |

 पृथ्वी के धरातल पर वर्षा का जल गर्तो  में इकट्ठा होने लगा   जिससे महासागर का निर्माण हुआ  | यह प्रक्रिया पृथ्वी की उत्पत्ति से लगभग 50 करोड़ सालों के अंतर्गत हुई | इससे पता चलता है कि महासागर 400 करोड़  वर्ष पुराने हैं | एवं 380 करोड़  वर्ष पहले जीवन का  प्रारंभ हुआ | पृथ्वी पर जीवन की उत्पत्ति के लिए मूलतः कार्बन हाइड्रोजन तथा नाइट्रोजन जैसे तत्व प्रमुख रूप से उत्तरदायी थे |

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                       जीवन की उत्पत्ति

 पृथ्वी की उत्पत्ति का अंतिम चरण जीवन की उत्पत्ति व विकास से संबंधित है | नि:संदेह प्रारंभिक वायुमंडल जीवन के विकास के लिए अनुकूल नहीं था | आधुनिक वैज्ञानिक जीवन की उत्पत्ति को एक तरफ से रासायनिक प्रतिक्रिया बताते हैं | जिसमें सर्वप्रथम जटिल जैव अणु बने और उनका समुहन हुआ |और यह समूहन  ऐसा था जो पुनः   बनने में सक्षम था | और निर्जीव पदार्थों को जीवित तत्व में परिवर्तित   कर सकता था | हमारे ग्रह पर जीवन के चिन्ह हम  भिन्न भिन्न काल   की चट्टानों में जीवाश्म के रूप में देख सकते हैं | 300 करोड़ वर्ष पुरानी भूगर्भिक  शैलो में पाई जाने वाली सूक्ष्मदर्शी संरचना आज की   शैवाल की संरचना में देखी जा सकती है | 

           भूवैज्ञानिक काल मापक्रम  

 महाकल्प          कल्प           युग            जीवन / मूख्य घटनाएँ

नुतन कल्प    चतुर्थ कल्प    अभिनव        आधुनिक मानव  ,                                                  अत्यंत नुुतन      आदिमानव का विकास                                

सेनोजोइक    तृतीये कल्प 

रविवार, 27 जून 2021

चट्टान किसे कहते है , आग्नेय चट्टान , अवसादी चट्टान तथा रूपान्तरित चट्टान के बारे में वर्णन करे

 

                चट्टान







           वे सभी पदार्थ जिससे भूपर्पटी का निर्माण हुआ है चट्टान कहलाता है | 

            चट्टानों का वर्गीकरण 

         चट्टानों को तीन भागों में बांटा गया है

    (1)  आग्नेय  चट्टान

    (2)  अवसादी चट्टान

   (3)  रूपांतरित चट्टान 

                      (1)  आग्नेय  चट्टान

       आग्नेय  चट्टान  का निर्माण पृथ्वी के आंतरिक भाग में मैग्मा एवं लावा  ठंडा होने के कारण  हुआ है | इसे प्राथमिक चट्टान भी कहा जाता है 

                आग्नेय  चट्टानों की प्रमुख विशेषताएं

   (1)    एक कठोर स्थूल  एवं संहत  होती है  |

   (2) इसमें  रवे  पाया जाता है | जिसका आकार  मैग्मा  के शीघ्र  ठंडा होने की गति पर निर्भर करता है |

 (3)  इसमें जीवाश्म  नहीं पाए जाते हैं |

 ( 4)  इसमें   परते नहीं होती है |

 (5) आग्नेय चट्टानों पर अपरदन क्रिया का प्रभाव बहुत कम होती है | 

 (6) इन  चट्टानों में खनिज तत्व  बहुलता से मिलता है |

              आग्नेय  चट्टानों  का आर्थिक महत्व

 विश्व के अधिकांश खनिज इन्हीं चट्टानों में मिलता है |  इसमें चुंबकीय लोहा  , निकिल , तांबा , सीसा , जस्ता , क्रोमाइट  , मैंगनीज  , टीन क्वार्ट्ज , कैल्साइट , अभरक , मैग्निशियम  युक्त सिलीकेट तथा कुछ दुर्लभ खनिज जैसे सोना , हीरा , प्लेटिनम आदि सम्मिलित है |

               (2)  अवसादी चट्टान   

 अवसादी चट्टानों का निर्माण प्राकृतिक कारको  द्वारा अनाच्छादित   पदार्थ जो परत दर परत जमा होता  गया बाद में दबाव या संपीड़न जैसे कारको  द्वारा यह कठोर होता गया और चट्टान का रूप धारण कर लिया जिसे अवसादी चट्टान कहा जाता है | 

 अवसादी चट्टानों की प्रमुख विशेषताएं निम्नलिखित है

 (1)  चट्टानों में जीव  जंतुओं तथा वनस्पति के जीवाश्म मिलते हैं | 

 (2)  यह चट्टान छिद्रमय  होता है |

 (3)  यह चट्टान  छिद्रमय होता है | जिसके कारण उसने पानी सुगमता से प्रवेश कर सकता है | यह चट्टाने आग्नेय  चट्टानों की अपेक्षा नरम होती है | और जल्दी टूट फूट जाती है |

  ( 4)  इन चट्टानों में परतें  स्पष्ट दिखाई देती है |

           अवसादी चट्टानों का आर्थिक महत्व

 आर्थिक महत्व वाले खनिज आग्नेय चट्टानों की  अपेक्षा अवसादी चट्टानों में कम पाए जाते हैं | लेकिन  लौह अयस्क , फास्फेट शैल चक्र, इमारती पत्थर ,  संगमरमर कोयला एवं सीमेंट बनाने वाले पदार्थों के स्रोत अवसादी चट्टानों में ही पाए जाते हैं |

 खनिज तेल भी अवसादी चट्टानों में ही पाया जाता है | बॉक्साइट मैंगनीज,  टीन  आदि खनिज व खनिजों के गौण अयस्क भी इसी चट्टानों में मिलता है  | आगरा एवं दिल्ली का लाल किला बलुआ पत्थर से बना है जो अवसादी चट्टान ही है |


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                  (3) रूपांतरित चट्टान

 परतदार शैल तथा  आग्नेय शैल में  रूप परिवर्तित होकर जिस शैल का निर्माण करता है | उसे रूपांतरित चट्टान कहा जाता है |

 रूपांतरण की क्रिया के दौरान चट्टान का संगठन तथा रूप बदल जाता है | लेकिन चट्टान में किसी प्रकार का विघटन या वजन नहीं होता है |

                    रूपांतरण के मुख्य कारक निम्न है

 (1)  ऊष्मा  -  चट्टानों के रूपांतरण के लिए सर्व प्रमुख कारण उस्मा को माना जाता है  | क्योंकि अधिक तापमान   के कारण मूल चट्टान पिघल जाती है | इस कारण उसके  खनिज कणो एवं काणो के क्रम में  पर्याप्त अंतर आ जाता है |

  (2)  दबाव या संपीडन -  पर्वत निर्माण के क्रिया के समय या भू हलचल के समय जब चट्टानों में मोड़ आने लगता है | तो उससे उत्पन्न दबाव के कारण चट्टानों के संगठन तथा रूप में परिवर्तन आ जाता है | इस प्रकार का दबाव खासकर पर्वतीय भागों में कार्य करता है |

 (3)  घोल   -   जल के साथ कार्बन डाई ऑक्साइड तथा ऑक्सीजन के मिलने से रासायनिक अभिक्रियाएं होती है  | जिसके कारण चट्टानों के रासायनिक पदार्थ तथा खनिज घुलकर  जल के साथ मिश्रित हो जाता है  | तथा जब इसका संपर्क चट्टानों से होता है तो उस चट्टानों के रासायनिक संगठन में काफी अंतर आ जाता है |

शनिवार, 26 जून 2021

चन्द्रमा के बारे में बताएं

 

                चन्द्रमा  


चन्द्रमा  पृथ्वी का एकमात्र उपग्रह है | चंद्रमा की विशिष्ट स्थिति तथा सापेक्षिक गति के कारण ही  चंद्रमा के विभिन्न कलाओं का निर्माण होता है | चंद्रमा एक प्रकाशहिन पिंड  है  | अर्थात चंद्रमा का अपना प्रकाश नहीं है  | यह सूर्य के प्रकाश के द्वारा प्रकाशित होता है | लेकिन इसके गोल आकृति के कारण जब इसके आधे भाग पर सूर्य का प्रकाश पड़ता है तो शेष आधा भाग अंधकार में रहता है |  और यह प्रक्रिया हमेशा चलती रहती है | चंद्रमा का घूर्णन और परिक्रमण समय समान 27 दिन 7 घंटे 43 मिनट होने के कारण चंद्रमा का केवल आधा भाग ही हमेशा पृथ्वी की ओर रहता है | जब चंद्रमा अपनी परिक्रमण गति के समय जब अपनी कक्षा में पृथ्वी से न्यूनतम दूरी पर होता है | तो उस स्थिति को उपभु कहा जाता है | तथा जब अधिकतम दूरी पर होता है | तो उस स्थिति को अपभू भी कहा जाता है | 

  पृथ्वी से हम केवल चंद्रमा के प्रकाशित भाग को ही घटता बढ़ता देखते हैं | जब चंद्रमा का प्रकाशित भाग प्रतिदिन बढ़ता जाता है | तो उसे शुक्ल पक्ष कहा जाता है | तथा जब चंद्रमा का प्रकाशित  बराबर  घटता रहता है | तो उसे कृष्ण पक्ष कहा जाता है | चंद्रमा के इस घटते बढ़ते स्वरूप को ही चंद्रमा की कलाएं कहा जाता है | चंद्रमा की गति के कारण चंद्रमा का दिन प्रतिदिन स्वरूप बदलता है | 

               चन्द्रमा के लिए मुख्य तथ्य 

 पृथ्वी से अधिकतम दूरी 406000 किलोमीटर (अपभु )

 पृथ्वी से  न्यूनतम दूरी 364000 किमी ( उपभु )

 पृथ्वी से औसत दूरी 384365 किमी

 तापमान दिन में 100° C रात में -180° C 

 भार पृथ्वी के भार  भार का 1/6 

 ब्यास 3476 की में

 समय चंद्रमा के प्रकाश को पृथ्वी तक पहुंचने में लगा समय  1.3 सेकंड

 रासायनिक संगठन सिलिकॉन लोहा एवं मैग्निश 


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शुक्रवार, 25 जून 2021

सौर मंडल किसे कहते है , ग्रह के बारे में वर्णन करे

 

            सौर मंडल

 सूर्य और उसके चारों ओर  भ्रमण करने वाले ग्रह को सौरमंडल कहा जाता है |


  



                          सूर्य

 सूर्य की अनुमानित आयु 4.5 अरब वर्ष मानी जाती है | इसका व्यास 1391016 किलोमीटर   (  पृथ्वी के व्यास 12756 किलोमीटर से 109 गुना अधिक ) है  |   जबकि  आयतन 1.98 6 × 10^3  किग्रा है |  सूर्य का औसत घनत्व 1.4 09 gm/cm3  है  यह मुख्यता हाइड्रोजन 71% हिलियम 27% आदि गैस का मिश्रण है |  इसके केंद्र का तापमान 1.57 × 10^7 केल्विन है जब की सतह का तापमान लगभग 5800° केलविन है  | सूर्य की ऊपरी सतह को प्रकाश मंडल कहा जाता है |  सूर्य   में  ऊर्जा संलयन की प्रक्रिया द्वारा उत्पन्न होती है |  इसी प्रक्रिया के कारण सूर्य सहित सभी तारे प्रकाश उत्पन्न करते हैं |  सूर्य के ऊपर जो दिखाई पड़ने वाला काला धब्बा होता है |  सौर कलंक कहलाता  है  | जिसका तापमान सतह के तापमान से कम होता है | यह विशाल चुंबकीय क्षेत्र वाला होता है एवं  सौर ज्वालाओ की उत्पत्ति में सहायक होता है |

                          सौर ज्वाला

 सूर्य से हर  दिशा में प्रक्षेपित प्रोटोन का अंतरिक्ष में होने वाला उत्सर्जन सौर ज्वाला कहलाता है | ज्वाला का मार्ग पृथ्वी की ओर होने पर पृथ्वी के चुंबकीय क्षेत्र में विशाल झंझावात उत्पन्न होती है | जिसके कारण संचार एवं विद्युत प्रणाली में बाधा उत्पन्न होती है | https://concludemealswednesday.com/bibgbj8w6?key=ebae55826fb9b8eb6c80d0eb21a04bfa

                            ग्रह

 सौर मंडल के सदस्यों को ग्रह कहा जाता है |

                        (1)  बुध ग्रह

 बुध ग्रह अपने अक्ष पर लगभग 59 दिनों में एक भ्रमण पूरा करता है | यह सूर्य का सबसे निकटतम ग्रह है | यह सबसे छोटा ग्रह भी है |  बुध ग्रह पर कोई भी वायुमंडल नहीं है  | बुध ग्रह का अपना कोई भी उपग्रह नहीं है |  यह सूर्य की 1.7 लाख किलोमीटर प्रति घंटे की गति से परिक्रमा करता है |

                          ( 2) शुक्र  ग्रह 

 शुक्र ग्रह बुध के बाद सूर्य का दूसरा निकटतम ग्रह है | जो आकार एवं भार में पृथ्वी के समान है | शुक्र ग्रह पृथ्वी का सबसे नजदीकी ग्रह है | इसलिए इसे पृथ्वी की बहन भी कहा जाता है | यह ग्रह  ग्रीस के सौंदर्य के देवता के उपनाम से प्रसिद्ध है  | शुक्र ग्रह पृथ्वी की अपेक्षा अधिक सुस्क है | एवं इस का वातावरण पृथ्वी की तुलना में नौ गुना अधिक  सघन है इसकी सतह का तापमान लगभग 400° डिग्री सेल्सियस है | इसकी सतह का तापमान अधिक होने के कारण यहां ग्रीन हाउस गैसों की प्रधानता है | इसके बाल मंडल में 97% कार्बन डाइऑक्साइड गैस पाई जाती है | इसकी सतह का 80% भाग ज्वालामुखी मैदानों से भरा पड़ा है | इसके  वायु मंडल में सल्फ्यूरिक अम्ल की बूंदों के बादल पाए जाते हैं | यह सूर्यास्त एवं सूर्योदय के समय दिखाई पड़ता है  | जिसके कारण इसे सांझ का तारा एवं भोर का तारा कहा जाता है | सर्वाधिक चमकीला ग्रह है इसका सर्वोच्च पर्वत मैक्स बेल्माउंट है | जो इस्टर टेरा  में अवस्थित है | जो  शुक्र की सतह से 11 किलोमीटर ऊंचा है |

                          (3) पृथ्वी ग्रह

 पृथ्वी सौर मंडल के सभी ग्रहों एवं उपग्रहों मैं एक महत्वपूर्ण ग्रह है | पृथ्वी एकमात्र ग्रह है ,जहां जीवन है | यह अपने अक्ष  पर पर पश्चिम से पूरब की ओर घूमती  है | इसका एकमात्र उपग्रह चंद्रमा पृथ्वी पर जल एवं वायुमंडल की उपस्थिति है | जिसके कारण इसे नीला ग्रह भी कहा जाता है  | पृथ्वी का रंग आकाश में  नीला दिखाई पड़ता है |

                         (4)   मंगल ग्रह

मंगल  ग्रह का नामकारण  युद्ध के रोमन देवता के आधार पर किया गया है  | पृथ्वी की तरह अक्ष  पर झुके होने के कारण  इस ग्रह पर भी  ऋतुएँ  पाई जाती है | मंगल ग्रह  सूर्य से अधिक दूरी पर स्थित है | इसलिए यहां ऋतुएँ  अधिक ठंडा एवं पृथ्वी की अपेक्षा अधिक काल वाली होती है  | मंगल ग्रह  लाल रंग लौह  ऑक्साइड की उपस्थिति के कारण होती है |

 मंगल ग्रह का  वायुमंडल पतली परत की होती है | इसके दोनों ध्रुवों पर वर्फ जमी होती है | इसकी सतह पर अवस्थित पर्वत निक्सओलम्पिया (    माउंट एवरेस्ट से तीन  गुना बड़ा ) है |  जो संभवत: सौरमंडल का सबसे ऊंचा पर्वत है |

  इसके दो  उपग्रह है  | फोबोस एवं डिमॉस   जो छोटे एवं आकार में अनुपयुक्त

    स्परिट , अपॉर्चुनिटी  , फीनिक्स , मार्स लैंडर ,  मंगल ग्रह के अध्ययन के लिए भेजे गए मानवरहित अंतरिक्ष यान है | भारत ने भी एक मानव रहित  अंतरिक्ष यान (  मंगलयान )  मंगल ग्रह पर भेजा है | मार्स 500 प्रोजेक्ट यूरोपीयन स्पेस एजेंसी   व रूस का संयुक्त प्रोजेक्ट है | जिसके अंतर्गत मंगल ग्रह पर मानव रहित अंतरिक्ष यान भेजा जाएगा |

                       ( 5 )   बृहस्पति ग्रह 

 यह सूर्य से पांचवा निकटतम ग्रह है | बृहस्पति ग्रह सभी ग्रहों में सबसे बड़ा है  | बृहस्पति ग्रह सर्वाधिक उपग्रह वाला ग्रह है | बृहस्पति ग्रह मुख्यता हाइड्रोजन एवं हीलियम का बना है  ,जो सौर मंडल के शेष समस्त ग्रहों के सम्मिलित  द्रव्यमान से 2.5 गुना अधिक  द्रव्यमान वाला वाला ग्रह  है | इसका वायुमंडलीय  दबाव पृथ्वी के वायुमंडलीय दबाव से एक करोड़ गुना अधिक है | इसके वायुमंडल में तीव्र  संवहन हवाएं चलती है | बृहस्पती के ज्ञात उपग्रहों में  गैनिमीड , कैलिस्टो , इयो , एवं यूरोपा है |  गैनिमीड  सौरमंडल का सबसे बड़ा उपग्रह है | जो आकार में  बुध से भी बड़ा है | बृहस्पती ग्रह का पलायन वेग  59.64 किमी/सेकंड है  जो सर्वाधिक है |

                        ( 6 )  शनि ग्रह 

 यह सूर्य से छठा निकटतम ग्रह है | लेकिन आकार में दूसरा बड़ा ग्रह है  | यह अपने  वलय के लिए अधिक प्रचलित है | जो हजारों फीट लंबा है | यह बल है 20 किलोमीटर से अधिक मोटा है | एवं  24 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से शनि की परिक्रमा कर रहा है |   यह सौरमंडल का सबसे कम घनत्व वाला ग्रह है  | इसका घनत्व 0.7 ग्राम सेमी^3 है | शनि के पलायन वेग का मान  32 किमी /सेकंड है , जो दूसरा सर्वाधिक है | इसके छल्ले हिमकणो एवं चट्टानों से बना है | बृहस्पती ग्रह की तरह  इसका भी आंतरिक भाग उष्ण है | इस के उपग्रहों की संख्या 62 है | इसके सर्वाधिक बड़ा उपग्रह टाइटन है |  जो सौरमंडल का दूसरा बड़ा उपग्रह है | जो बुध ग्रह से भी बड़ा है | शनि नग्न  आंखों से देखा जाने वाला अंतिम ग्रह है | शनि  के वायुमंडल में नाइट्रोजन तथा हाइड्रोकार्बन मिलता है |

                        ( 7 )  अरूण  ग्रह

 1781 ई.  मे  विलियम हरसिल ने अरुण ग्रह की खोज की थी |  यह आकार में तीसरा बड़ा ग्रह है | जो सूर्य से से सातवां निकटतम ग्रह है | इसके भी चारों ओर बलय है | जिसकी संख्या पाँच है | जो  क्रमश:  अल्फा , बीटा , गामा , डेल्टा एवं इपसिलॉन है | यह एक मात्र ऐसा ग्रह है |जो सूर्य की परिक्रमा  एक ध्रुव से दूसरे ध्रुव की ओर करता है| इसका वायुमंडल घना है| जिसमें हाइड्रोजन , हिलियम , लिथियम एवं   अमोनिया गैस मिलती है |  इससे लेटा हुआ ग्रह भी कहा जाता है |   अरुण के उपग्रहों की संख्या 27 है | जिसमें टाइटेनिया सबसे बड़ा   उपग्रह है |

                         ( 8 )  वरूण ग्रह 

 1846 ई.  मे जोहान गाले ने  वरुण ग्रह की खोज की यह सौरमंडल का चौथा सबसे बड़ा ग्रह है | यह सर्वाधिक ठंडा ग्रह है | इसके भी   चारों और  वलय मिलते हैं | तथा ये  वलय सिलीकेट या कार्बन आधारित तत्वों से बने हैं  | इसके वायुमंडल में 80% हाइड्रोजन एवं 19% हीलियम है | साथ ही साथ  मीथेन की भी उपस्थिति है | इसका उपग्रह ट्रिटॉन  पृथ्वी के उपग्रह चंद्रमा से बड़ा एवं  वरुण की सतह से अधिक निकट है| इसे  हरा ग्रह भी&nbs

गुरुवार, 24 जून 2021

ज्वालामुखी किसे कहते है , सक्रिय ज्वालामुखी, प्रसुप्त ज्वालामुखी , मृत ज्वालामुखी,ज्वालामुखी से मानव को लाभ ,ज्वालामुखी के उद्गार के कारण

 

           ज्वालामुखी

  


 ज्वालामुखी किसी ग्रह या या उपग्रह के सतह  पर उपस्थित हो वह मुख या  छिद्र  है  जिसके द्वारा  अत्यंत  गर्म पदार्थ जैसे लावा मैग्मा गैस राख इत्यादि पृथ्वी के धरातल पर प्रकट होती है | ज्वालामुखी कहलाती है |

 ज्वालामुखी से निकले हुए पदार्थ अक्सर एक पहाड़ का रूप ले लेती है |

 ज्वालामुखीयता  में  पृथ्वी के आंतरिक भाग में मैग्मा व गैस  उत्पन्न होने से लेकर भूपटल के नीचे ऊपर लावा प्रकट होने  उसके ठंडा व ठोस होने की समस्त प्रक्रिया शामिल की जाती है | इसके दो रूप है आभ्यन्तरिक और बाह्रा  | 

आभ्यांतरिक  क्रिया मैं पिघला पदार्थ धरातल के नीचे की जमकर ठोस रूप धारण कर लेती है | जिसमें बैथोलिथ , लैकोलिथ  , सिल , तथा  डाइक प्रमुख है |

बाह्रा क्रिया में धरातलीय  प्रवाह के रूप में लावा का जमकर ठोस रूप लेना गर्म जल के झरने और गैसों का उत्पन्न होना प्रमुख है |

 ज्वालामुखी शंकु के शीर्ष पर एक विदर ( क्रेटर ) होता है | जिसका आकार किप जैसा होता है | ज्वालामुखी जब शांत हो जाती है | तो इसमें जल भर जाता है | जिसे क्रेटर  झील कहते हैं | उत्तरी सुमात्रा की टोबा झील विश्व की विशालतम क्रेटर झीलो  में से एक है | भारत में महाराष्ट्र की लोनार झील क्रेटर झील का ही उदाहरण है | ज्वालामुखी जब तेज गति से विस्फोट करती है | तो शंकु का ऊपरी भाग उड़ जाता है |या धस  जाता है |  जिसके कारण काल्डेरा का निर्माण होता है विश्व का सबसे बड़ा काल्डेरा जापान का आसो है |

 ज्वालामुखी तीन प्रकार की होती है 

  ( 1 )  सक्रिय ज्वालामुखी

 ( 2 )  प्रसुप्त ज्वालामुखी

 ( 3 )  मृत ज्वालामुखी

                   ( 1 )  सक्रिय ज्वालामुखी 

 वैसे ज्वालामुखी जो  हाल ही में फटा हो और आगे भी फटने की संभावना बनी रहती है सक्रिय ज्वालामुखी कहलाती है | 

 इसमें प्राया विस्फोट तथा उद्भेदन होता ही रहता है | इसका मुंह हमेशा खुला रहता है | और समय-समय पर लावा ,  धुआँ   तथा अन्य पदार्थ बाहर निकलते रहता है |   जिससे  शंकु का निर्माण होते रहता है | इटली में पाए जाने वाला एटना ज्वालामुखी इसका प्रमुख उदाहरण है | जो 2500 वर्षों से सक्रिय है | सिसली द्वीप का स्ट्रांबोली ज्वालामुखी प्रत्येक 15 मिनट बाद  फटता है |  इसे भूमध्य सागर का प्रकाश स्तंभ कहा जाता है |

                   ( 2 )  प्रसुप्त ज्वालामुखी

  वैसे ज्वालामुखी  जिसमें काफी लंबे समय से  विस्फोट नहीं हुआ है लेकिन इसमें विस्फोट होने की संभावनाएं बनी रहती है प्रसुप्त ज्वालामुखी कहलाती है | 

 इस प्रकार की ज्वालामुखी  जब अचानक  क्रियाशील हो जाती है | तो जनधन की काफी क्षति होती है इस के मुख से गैसे तथा वाष्प निकलती है |

 इटली का विसुवियस  ज्वालामुखी कई वर्षों तक  प्रसुप्त रहने के बाद वर्ष 1931 में अचानक फटा |

                       ( 3 )  मृत ज्वालामुखी

  वैसे ज्वालामुखी जिसमें विस्फोट  प्राय: बंद हो जाती है  तथा भविष्य में कभी भी  विस्फोट  होने की सम्भावना  नहीं रहती है | मृत ज्वालामुखी कहलाती है  | इसका मुख मिट्टी लावा आदि पदार्थों से बंद हो जाती हैं | और मुख का गहरा क्षेत्र कालांतर में झील के रूप में परिवर्तित हो जाती है | जिसके ऊपर पेड़ पौधे उग आते हैं | म्यांमार का पोपा  मृत ज्वालामुखी का प्रमुख उदाहरण है | https://www.videosprofitnetwork.com/watch.xml?key=6742ad6922f95fec8a7c06602cd6125d

                    ज्वालामुखी उद्गार के कारण

       ज्वालामुखी उद्गार के प्रमुख कारण निम्नलिखित है

                      ( 1 )  प्लेट विवर्तनिकी

  जब दो प्लेट आमने सामने रहती है तो उनकी आपसी टक्कर के कारण कम घनत्व वाली प्लेट नीचे चली जाती है और 100 किमी की गहराई में पहुंचकर पिघल जाती है , एवं केंद्रीय विस्फोट के रूप में प्रकट होती है | 

 रचनात्मक प्लेट किनारों के सहारे भी ज्वालामुखी  क्रिया होती है | यहां महासागरीय कटक के सहारे दो प्लेट वितरित दिशाओं में अग्रसर होती है  | जिससे दाब मुक्ति के कारण मेंटल का भाग पिघल कर दरारें उद्भेदन के रूप में प्रकट होती है |

              ( 2 )  कमजोर भू - पटल का होना

 ज्वालामुखी उद्गार के लिए कमजोर  भूभागों का होना अति आवश्यक है  | क्योंकि ज्वालामुखी का लावा कमजोर  भूभागों को ही तोड़ का धरातल पर आती है | प्रशांत महासागर के तटीय भाग पश्चिम दीप समूह और एंडीज पर्वत क्षेत्र के ज्वालामुखी इसका प्रमुख उदाहरण है

             ( 3 )  भूगर्भ में अत्यधिक तापमान का होना

 भूगर्भ के आंतरिक भागों में नीचे जाने पर तापमान में निरंतर वृद्धि होती जाती हैं | तथा रेडियोधर्मी पदार्थों के विघटन धरातलीय दबाव के कारण भी एक ज्वालामुखी का उद्गार होता है |  इस प्रकार अधिक गहराई पर पदार्थ पिघल जाता है | और  भूतल के कमजोर भागों को तोड़कर बाहर निकल आता है |

             ( 4 )  गैस की उत्पत्ति

 गैसों में जलवाष्प अत्यंत महत्वपूर्ण है | अधिकांशत भूगर्भ में गैसों की उत्पत्ति का मुख्य कारण जल का रिसाव है | वर्षा का जल भूतल की दरारों तथा रंध्र द्वारा पृथ्वी के आंतरिक भागों में पहुंच जाता है | और वहां  पर अधिक तापमान के कारण यह जलवाष्प में परिवर्तित हो जाता है |  समुद्र तट के निकट समुद्री जल भी  रीसकर नीचे की ओर चला जाता है | और  जलवाष्प बन जाता है जिसके कारण इसका आयतन तथा दबाव बहुत बढ़ जाता है | जिसके परिणाम स्वरुप ज्वालामुखी विस्फोट होता है | 

                ज्वालामुखी से नि:सृत पदार्थ 

 ज्वालामुखी से गैस तरल एवं  ठोस तीनों प्रकार  के पदार्थ निकलती है |  ज्वालामुखी से बाहर निकलने वाली गैसों में 60 से 90% अंश जलवाष्प  का  ही होता है |  जो वातावरण के संपर्क में आते ही शीतल होकर संघनित हो जाती है | जिससे मूसलाधार वर्षा होती है | ज्वालामुखी से निकलने वाली गैसों में प्रज्वलित गैसे  ( हाइड्रोजन सल्फाइड  व कार्बन  डाईसल्फाइड  ) तथा अन्य गैसे  ( हाइड्रोक्लोरिक अम्ल व अमोनिया क्लोराइड ) सम्मिलित है |

 जब ज्वालामुखी से ठोस पदार्थ निकलती है | तो बारिक धूल कन से लेकर बड़े-बड़े टुकड़े होते हैं | जब छोटे छोटे नूकीले शिलाखंड लावा से चिपक कर संगठित हो  जाता है | तो  उसे  शंकोणाश्म  कहा जाता है | छोटे-छोटे टुकड़े को स्कोरिया एवं लावा के  झाग से निर्मित पदार्थ को प्यूमिस कहा जाता है |

                  ज्वालामुखी स्थलाकृतियाँ

                    बाह्रा स्थलाकृतियाँ

 (1)  राख अथवा सिण्डर शंकु  -  जब ज्वालामुखी निकास से बाहर आती है | तो लावा हवा में शीघ्र ही ठंडा होकर ठोस रूप में परिवर्तित हो जाती है | जिसे सिण्डर कहा जाता है | सिण्डर शंकु  हवाई  द्विप में अधिक पाए जाते हैं |

 (2)  मिश्रित शंकु -  मिश्रित शंकु सबसे ऊंचे और बड़े शंकु होता है | इसका निर्माण लावा राख तथा अन्य ज्वालामुखी पदार्थों के बारी-बारी से जमा होने से होता है | इसकी ढलानो पर अन्य कई छोटे-छोटे शंकु बन जाते हैं | जिन्हें परजीवी शंकु को कहा जाता है |

 (3) शंकुस्थ शंकु  -  इसमें   प्राय: एक शंकु के अंदर ही एक अन्य  शंकु बन जाता है | इसे शंकुओं का घोंसला भी कहा जाता है |

 (4)   क्षारीय लावा शंकु अथवा लावा शील्ड  -  पैठिक लावा में सिलिका की मात्रा कम होती है | और यह  अम्ल लावा की अपेक्षा अधिक तरल तथा पतला होता है |

 (5)  लावा पठार -  ज्वालामुखी विस्फोट से लावा निकलने पर विस्तृत  पठारो का निर्माण होता है |

 जैसे -  भारत का दक्कन का पठार संयुक्त अमेरिका का कोलंबिया का पठार

 (6)  ज्वालामुखी पर्वत -  जब ज्वालामुखी निकलती है तो शंकु बहुत बड़े आकार के हो जाते हैं | जिससे ज्वालामुखी पर्वत का निर्माण होता है |

                   अंतर्वेदी स्थलाकृतियाँ

 (1) बैथोलिथ  -  यह भूपर्पटी में अधिक गहराई पर निर्मित होता है | एवं अनाच्छादन की प्रक्रिया के द्वारा भूपटल पर प्रकट होती है |

 (2) लैकोलिथ -  यह गुंबदनुमा विशाल  अंतर्वेदी चट्टान  है | जिसका तल समतल व   पाइपरूपी लावा वाहक नली से जुड़ा होता है |

 (3)   डाइक  -  इसका निर्माण तब होता है | जब लावा का प्रवाह दरारों में धरातल के  समकोण पर होता है | यह दीवार की भांति संरचना बनाती है |

             ज्वालामुखी से मानव  को लाभ

 ज्वालामुखी से मानव को होने वाला लाभ निम्नलिखित है

 (1)  ज्वालामुखी हमारे लिए प्राकृतिक सुरक्षा  वाल्व के रूप में काम करता है | यह भूगर्भ में निर्मित उच्च दाब को बाहर निकालने में मदद करता है |

 (2)  लावा से निर्मित रेगुर   या काली कपास मिटटी , गेंहूं , गन्ना , तम्बाकु  आदि फसलों के लिए विशेष उपजाऊ होती है |

  (3)  अधिक तापमान वाली भाप को  संचित कर भूतापीय ऊर्जा का उत्पादन किया जाता है |

 (4)  ज्वालामुखी विस्फोट से सोना चांदी तांबा आदि मूल्यवान खनिज  पदार्थ प्राप्त होता है |

 (5)  ज्वालामुखी विस्फोट से पृथ्वी के आंतरिक भाग की स्थिति का ज्ञान प्राप्त होता है  |

 (6)  ज्वालामुखी प्रदेशों में गर्म जल के झरने मिलते हैं जिससे गंधक प्राप्त होता है जिसका प्रयोग चर्म रोग के चिकित्सा क्षेत्र में सहायक होता है |

 (7)  जब ज्वालामुखी का विस्फोट होता है तो उस से निकले लावा से ग्रेनाइट चट्टानों का निर्माण होता है | 

  (8)   ज्वालामुखी विस्फोट  से बहुत से  ध्रुम घाटी  का निर्माण होता है  | जिससे जलवाष्प एवं जल ,  फव्वारे की तरह निकलते रहता है | जो पर्यटन में सहायक है  |

मंगलवार, 22 जून 2021

भूकंप किसे कहते है , भूकंप के बारे में वर्णन करे , भूकंप आने के कारण , भूकंप के प्रभाव

 

        भूकंप किसे कहते है 




 भूकंप एक ऐसी प्रक्रिया है | जिसमें भूपटल के नीचे या ऊपर चट्टानों के बीच  कंपन या  गुरुत्वाकर्षण की स्थिति में क्षणिक  आव्यवस्था होने पर  पृथ्वी पर हलचल उत्पन्न होती है | इस प्रक्रिया को भूकंप कहा जाता है | अतः भूकंप का सामान्य अर्थ पृथ्वी के कंपन से है | यह कंपन सामान्यतः भूगर्भ में ऊर्जा की विमुक्ति के कारण होती हैं | भूकंप में कंपन होने पर तरंगे उत्पन्न होती है | जो अपने उद्गम केंद्र से चारों ओर फैल जाती हैं|

                               उद्गम केंद्र

        भूकंप का वह केंद्र जहां से भूकंपीय तरंगे उत्पन्न होती है |  भूकंप का उद्गम केंद्र कहा जाता है |

                               अधिकेंद्र 

 वह बिंदु जहां पर सर्वप्रथम  भूकंपीय तरंगे महसूस किया जाता है |  अधिकेंद्र कहलाता है | अधिक केंद्र पर ही सर्वाधिक विनाश होती है | अधिकेंद्र उद्गम केंद्र के ठीक ऊपर 90 डिग्री के कोण पर होता है |

                      भूकंपीय तरंगे

 भूकंपीय तरंगे मुख्यतः दो प्रकार की होती है 

                     (1) भूगर्भिक तरंगे 

                     (2) धरातलीय तिरंगे

                          भूगर्भिक तरंगे 

  भूगर्भिक तरंगे वह तरंग है | जो उद्गम केंद्र से ऊर्जा मुक्त होने के दौरान उत्पन्न होती है | तथा पृथ्वी के आंतरिक भागों से सभी दिशाओं में प्रसारित होती है |

                         धरातलीय तरंगे 

  भूगर्भिक तरंगे  एवं  धरातलीय शैलो  के मध्य अन्योन्य  क्रिया होती है | जिसके कारण एक नए तरंग उत्पन्न होती है जो धरातलीय तरंगे कहलाती है |

    भूकंप से तीन प्रकार की तरंगों का निर्माण होता है

 ( 1 ) P  तरंगे जिसे प्राथमिक या अनुदैध्र्य या संपीडन तरंगे कहते है ध्वनि के समान  इन तरंगो का संचरण वेग होता है  जिसके कारण यह ठोस गैस एवं द्रव तीनों माध्यमों से होकर गुजरती है सिस्मोग्राफ पर सर्वप्रथम  P तरंगों का ही  अंकन होता है 

P  तरंगों की ठोस माध्यम  में गति 7.8 किमी/ सेकंड होती है

 ( 2 ) S तरंगे  P   तरंग के उत्पत्ति के बाद  S तरंग का निर्माण होता  है जिसे द्वितीयक  या अनुप्रस्थ तरंग कहा जाता है  इस तरंग का संचरण वेग  अपेक्षाकृत कम होता है यह केवल ठोस माध्यम से ही होकर गुजर सकती हैं इसकी गति 4.5 से 6 किलोमीटर/सेकंड होती है

 ( 3 ) L   तरंग का संचरण केवल धरातलीय भाग पर होता है इसका वेग सबसे कम होता है इसका  वेग  1.5 से 3 किमी /सेकण्ड होती है  यह धरातल पर सबसे अंतिम में पहुंचती है आड़े तिरछे धक्का देकर चली जाती है  जिसके कारण सर्वाधिक विनाशक होती है

            भूकंप आने के कारण  

      भूकंप आने के प्रमुख कारण निम्नलिखित है

 (1)  जब ज्वालामुखी विस्फोट होती है जिसके कारण कंपन उत्पन्न होती है | जो भूकंप को जन्म देती है |

(2)  जब पृथ्वी की प्लेटों में असंतुलन उत्पन्न होती है | तो भूकंप का जन्म होता है |

 (3)  बृहतआकार जलाशयों के जल भर से सतह  पर असंतुलित दबाव पड़ता है  | जिसके कारण भूकंप उत्पन्न हो सकती है |

 (4)   वलन  या  भ्रंश जैसी टेक्टोनिक क्रियाओं से भी भूकंप उत्पन्न होती है |

(5)  हिमखंड  या शिलाओं  के खिसकने तथा गुफाओं की छतों के धंस जाने या खानो की छतो के गिर जाने से भी भूकंप आता है

                       भूकंप का पूर्वानुमान 

 भूकंप का  पूर्वानुमान लगाने में मानव एवं विज्ञान को अभी भी पूर्ण सफलता प्राप्त नहीं हुई है |  लेकिन  निम्नलिखित कारको द्वारा  भूकंप आने के कुछ संकेत प्राप्त करते हैं |

                       रेडॉन गैस का उत्सर्जन 

  किसी बड़े भूकंप के आने से पूर्व रेडॉन गैस का  उत्सर्जन बढ़ जाता है |  अतः  रेडॉन गैस के निकास पर दृष्टि रखने से किसी बड़े भूकंप के आने की चेतावनी मिल सकती है

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                        पशुओं का आचरण 

  प्रायः ऐसा देखने में आया है |  कि किसी बड़े भूकंप के आने से पहले जीव जंतु विशेषत:  बिलो में रहने वाले जीव जंतु असाधारण ढंग से व्यवहार करने लगती है |   वे अपने छिपने के स्थान से बाहर निकल आते हैं | चिड़िया जोर-जोर से चह  चहाती है |  कुत्ते एक नियत प्रकार से  भौकते  या रोते हैं |

                          भूकंप की माप 

 भूकंपीय घटनाओं का मापन भूकंपीय  तीव्रता एवं आघात की तीव्रता के आधार पर किया जाता है |  भूकंप की तीव्रता की मापनी  रिक्टर  स्केल  के नाम से जाना जाता है |  यह एक लोगरिथमिक स्केल होता है  | जिसमें 0 से 10 तक पाठ्यांक  दर्ज होता है | इसमें   प्रत्येक पाठयांक  पिछले  पाठयांक  से 10 गुना  अधिक परिमाण को दर्शाता है |

                           समभूकंप रेखा

        समान भूकंप की तीव्रता को मिलाने वाली रेखा को समभूकंप रेखा कहा जाता है

 आघात की तीव्रता या गहनता भूकंपीय झटको से हुई प्रत्यक्ष हानि द्वारा निर्धारित की जाती है | इसकी गहनता का पाठयांक  1 से 12 तक होती है |

                        सह  भूकंप रेखा 

 एक ही समय पर पहुंचने वाली तरंगों को मिलाने वाली रेखा को सह  भूकंप रेखा कहा जाता है 

                    भूकंप का विश्व वितरण

(1)  परिप्रशांत पेटी - परिप्रशांत  पेटी धरातल की सबसे बृहत एवं विस्तृत भूकंपीय पेटी है |  विश्व के दो तिहाई भूकंप इसी क्षेत्र में आता है | यह ज्वालामुखी या अग्निवलय वाले  क्षेत्र है | जो  न्यूजीलैंड ( प्रशांत के पश्चिमी तट या ऑस्ट्रेलिया महाद्वीप के पूर्वी तट )  से लेकर कमचट्का प्रायद्वीप आलस्का होते हुए  (  उत्तरी एवं दक्षिणी अमेरिका के पश्चिमी तट या  प्रशांत महासागर के पूर्वी तट ) फॉकलैंड तक फैला है  | यह प्लेटो के अभिसरण सीमा क्षेत्र में अवस्थित है  एवं नवीन मोड़दार पर्वतो  एवं ज्वालामुखी का क्षेत्र है |

( 2)  मध्य महाद्वीपीय पेटी -  यह भूमध्य सागर से लेकर पूर्वी द्वीप समूह (  भूमध्य सागर , काकेशस ,  तुर्की ,  ईरान,  आर्मीनिया ,  बलूचिस्तान , महान हिमालय के क्षेत्र यूनान ,  म्यांमार , इंडोनेशिया ) तक  फैली है |  मुख्यतः इन क्षेत्रों में संतुलन पूर्वक भूकंप आता है | इस पेटी में  विश्व के 21% भूकंप आता है |

 ( 3 )  मध्य अटलांटिक  पेटी -  यह पेटी अटलांटिक महासागर में उपस्थित मध्य अटलांटिक कटक के सहारे आइसलैंड से लेकर दक्षिण में बोवेट द्वीप तक फैली हुई है  |इसमें ज्वालामुखी उद्गार तथा कटक निर्माण प्रक्रिया के द्वारा भूकंप आता है |

                       भूकंप के प्रभाव 

 भूकंप एक प्राकृतिक आपदा है  | जिसके कारण स्थलखंड पर भूमि का हिलना धरातलीय विसंगति भूस्खलन  धरातलीय झुकाव हिमस्खलन जैसे प्रभाव पड़ते हैं |  अतिरिक्त तटबंध के टूटने आग लगने इमारतों का ध्वस्त होना वस्तुओं का गिरना इन सभी के कारण   जन धन की काफी हानि होती है | समुद्री भूकंपीय तरंगों के कारण सुनामी लहरें पैदा होती है | भूकंप से सर्वत्र विनाश    क्रिया ही दृष्टिगोचर नहीं होती है | बल्कि कभी-कभी नवीन भू जल स्रोत की धारा भी वह निकलती है  या खारे की जगह मीठा जल स्रोत भी परिलक्षित हो जाती है |

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                     पर्वत के बारे में वर्णन करे


पर्वत के बारे में वर्णन करे

सोमवार, 21 जून 2021

पर्वत के बारे में वर्णन करें ,नविन मोड़दार पर्वत , प्राचीन मोड़दार पर्वत , ब्लॉक पर्वत , वलित पर्वत , भ्रंश पर्वत

 

   पर्वत  के बारे में वर्णन करें




 धरातल पर स्थित वैसे उच्चावच  जिसका  शीर्ष  आधार ताल की तुलना में संकुचित हो तथा ढाल तीव्र हो पर्वत कहलाता है | 

 पर्वत अपने आसपास के क्षेत्र से अधिक ऊंचा होता है | जिसके कारण वह दूर से स्पष्ट रूप से दिखाई पड़ता है |

  पर्वतों की उत्पत्ति भू संचलन, ज्वालामुखी आदि क्रियाओं के द्वारा हुई है | 

              पर्वत विभिन्न स्वरूप के होते हैं

                            पर्वत श्रेणी 

  एक ही काल में निर्मित विभिन्न पर्वतों के निश्चित क्रम को पर्वत श्रेणी कहा जाता है | 

        जैसे  - हिमालय

                       पर्वत श्रृंखला 

 विभिन्न  युगों में भिन्न  भिन्न प्रकार से निर्मित लंबे तथा  संकरे पर्वतों का विस्तार होता है  पर्वत श्रृंखला कहलाता है | 

 जैसे  - अपलेसियन

                             पर्वत तंत्र 

 एक ही युग में एक ही प्रकार से निर्मित होने वाले समूह शामिल होते हैं इस प्रकार के पर्वत को पर्वत तंत्र कहा जाता है | 

                            पर्वत समूह 

  इसमें विभिन्न काल में अलग-अलग प्रकार से निर्मित पर्वत श्रेणीया , तंत्र एवं श्रृंखलाएं पाई जाती है |   पर्वत समूह कहलाता है |

                             पर्वत कटक 

   इसमें लंबे एवं  संकरे आकार की  संकीर्ण एवं ऊंची पहाड़ियों के पर्वत खंड शामिल होते हैं |    

          उत्पत्ति के आधार पर पर्वतों का  वर्गीकरण   

 उत्पत्ति के आधार पर पर्वतों को दो भागों में बांटा गया है 

 (1)  नवीन  मोड़दार पर्वत 

 (2)  प्राचीन  मोड़दार पर्वत 

              (1)  नवीन  मोड़दार पर्वत    

     टर्शियरी  युग के समय  बने  मोड़दार पर्वतों को नवीन मोड़ दार पर्वत कहा जाता है  | संसार के लगभग सभी ऊंचे पर्वत वलित पर्वत के अंतर्गत ही आता है | 

   जैसे  -  रॉकी , हिमालय ,  आल्पस, एंडीज आदि    

               (2)  प्राचीन  मोड़दार पर्वत 

        टर्शियरी युग  के पूर्व अर्थात कैलिडोनियन एवं हर्शिनियन निर्माणकारी हलचलो के कारण  उत्पन्न पर्वत प्राचीन  मोड़दार  पर्वत कहलाता है | 

    इन पर्वतों पर अपरदन अनाच्छादन एवं उत्थान की क्रियाओं का स्पष्ट प्रभाव पड़ा है |  जिसके कारण  वे अपने  मूल रूप को खो चुके हैं | इसमें से कुछ पर्वत अवशिष्ट पर्वत के रूप में बदल गया है | 

 जैसे -  अरावली ,  विंध्याचल ,  युवराल , अपलेसियन आदि

               पर्वतों के सामान्य प्रकार 

                           वलित  पर्वत 

ये वलन क्रिया द्वारा निर्मित तथा  सबसे ऊंचे तथा सबसे विस्तृत पर्वत है |

 जैसे -  हिमालय ,रॉकी , एटलस, एंडीज आदि |

                  भ्रंश या  ब्लॉक पर्वत

 वैसे पर्वत जो धरातलीय भागों में भ्रंश उत्पन्न होने के कारण धरातल का कुछ भाग ऊपर उठ जाता है या नीचे धंस जाता है तो ऊंचे  उठे भाग को  भ्रंश या ब्लॉक पर्वत कहा जाता है | 

 जैसे -  सतपुड़ा ,  ब्लैक फॉरेस्ट , साल्ट रेंज |

                     अवशिष्ट पर्वत

 वैसे पर्वत जो अपरदन क्रिया के बाद अवशेष के रूप में बचे रहता है या  पूरी तरह अपरदित्त होकर लगभग समतल हो जाता है | इस प्रकार ऊंचे उठे भाग को अवशिष्ट पर्वत कहा जाता है | 

     जैसे -  अरावली पर्वत | 

                    गुंबदाकार पर्वत

 जब धरातलीय भाग  चाप के आकार  उभार होता है तो धरातलीय भाग ऊपर  उठ जाता है | जिसे गुंबदाकार पर्वत कहा जाता है |

 जैसे  - सिनसिनाती 

                       संगृहित पर्वत

 धरातल के ऊपर मिट्टी , मलवा , लावा इत्यादि के निरंतर जमा होते रहने के कारण  निर्मित पर्वतों को संगृहित पर्वत कहा जाता है | 

 जैसे -  रेनियर , हुड  शास्ता | 

शनिवार, 19 जून 2021

ग्लोब के बारे में बताएँ , देशांतर रेखा किसे कहते है,अक्षांश रेखा क्या है ? अंतर्राष्टीय तिथि रेखा के बारे में बताएं , विषुवत रेखा किसे कहते है

 

              ग्लोब





 हमारी पृथ्वी गोलाकार है | जो सूर्य की परिक्रमा अपने दीर्घ वृत्ताकार पथ पर करती  हैं  | ग्लोब  पृथ्वी का यथार्थ निरूपण है | यद्यपि ग्लोब पर धरातल की आकृतियों एवं दिशाओं का प्रदर्शन  शुद्धता पूर्वक किया जा सकता है | तथापि ग्लोब के प्रयोग में कई असुविधाएं आती है |  ग्लोब पर सभी स्थान अक्षांश एवं देशांतर रेखाओं  ( जो काल्पनिक रेखाएं हैं ) की सहायता से दर्शाए जाती है   

                    अक्षांश रेखा 

 किसी स्थान की भूमध्य रेखा से उत्तर तथा दक्षिण की ओर गुणात्मक दूरी को उस स्थान का अक्षांश कहा जाता है |  तथा एक ही गुणात्मक दूरी वाले स्थान को मिलाने वाली रेखा को अक्षांश रेखा कहा जाता है |

  भूमध्य रेखा से ध्रुवों तक 90° अक्षांश होते हैं  भूमध्य रेखा से हम  जैसे-जैसे  ध्रुवों की ओर बढ़ते जाते हैं अक्षांश रेखा का मान बढ़ता जाता है | यदि हम भूमध्य रेखा से उत्तर की ओर जाते हैं तो उस स्थान का अक्षांशीय मान (°N) लिखते हैं   और दक्षिण जाने पर  (°S) लिखते हैं | सभी अक्षांश रेखाएं समांतर होती है दो अक्षांशों के मध्य की दूरी लगभग 111 किमी होता है |

                          विषुवत रेखा 

 उत्तरी और दक्षिणी ध्रुवों को मिलाने वाली काल्पनिक रेखाओ को  देशांतर रेखा कहा जाता है | यह रेखाएं समांतर नहीं होती है,  क्योंकि ध्रुवों से विषुवत रेखा की ओर बढ़ने पर देशांतरो के बीच की दूरी बढ़ती जाती है |  विषुवत रेखा पर इसके बीच की दूरी 111.32 किमी होती है |

 ब्रिटेन के ग्रीनविच ( जहां प्राचीन वेधशाला अवस्थित है ) से गुजरने वाली रेखा को प्रधान मध्यान रेखा कहा जाता है | एवं इसके दोनों ओर 180° अंशो  में देशांतर रेखाएं विभाजित है | चुकी 1° देशांतर रेखा को पार करने में 4 मिनट का समय लगता है  | अतः प्रधान मध्यान रेखा 0° से 90° पूर्व या पश्चिम पर जाने में 6 घंटे का समय लगता है |

 भारत में माध्य प्रामाणिक समय रेखा 82.5°  पूर्व मिर्जापुर ( उत्तर प्रदेश ) से होकर गुजरती है | जो ग्रीनविच के  मध्याह्न से 5 घंटे 30 मिनट आगे है |

 समय की सुविधा एवं देश में एकरूपता बनाए रखने के लिए अधिकांश देशों में एक ही  माध्य प्रमाणिक समय  निर्धारित किया गया है   | जबकि संयुक्त राज्य अमेरिका में 7 एवं सर्वाधिक 9 टाइम जोन रूस में है  | ऑस्ट्रेलिया में तीन टाइम जोन है जबकि भारत एवं चीन में एक  टाइम जोन निर्धारित किया गया है | क्रोनोमीटर यंत्र की सहायता से ग्रीनविच समय के साथ-साथ किसी भी स्थान का देशांतर ज्ञात किया जाता है |

      महत्वपूर्ण अक्षांश एवं देशांतर रेखाओं पर स्थित देश

                  विषुवत रेखा ( पश्चिम से पूर्व ) 

  इक्वाडोर ,  कोलंबिया ,  ब्राजील  , साओटोमे प्रिंस्पी , गैबोन , कांगो गणराज्य , जनतांत्रिक कांगो गणराज्य , युगांडा , केन्या , सोमालिया , मालदीव , इंडोनेशिया , किरीबाती 

                कर्क रेखा  ( पश्चिम से पूर्व  ) 

  चिली  , अर्जेंटीना , पराग्वे , ब्राजील , नामीबिया , बोत्सवाना  , दक्षिण अफ्रीका , मोजाम्बिक , मेडागास्कर , तथा आस्ट्रेलिया ,

0° देशांतर ( उतर से दक्षिण  ) -  यूनाइटेड किंगडम फ्रांस स्पेन , अल्जीरिया , माली , बुर्किना फासो , टोगो  घाना 

                 वृहत वृत्त और न्यून वृत्त 

                              वृहत वृत्त  

 बृहत वृत  वे  वृत होते हैं  | जिसके तल पृथ्वी के बीचों बीच से गुजरते हुए पृथ्वी को दो सामान भागों में विभक्त करती है | वृहत वृत्त  कहलाती है |

                             न्यून वृत्त  

वे वृत्त जो पृथ्वी के बीच से नहीं गुजरती है |  और ना ही पृथ्वी को दोस्त समान भागों में बांटती है , न्यून वृत्त  कहलाती है  |

 भूमध्य रेखा एवं सभी देशांतर रेखाएं  वृहत वृत्त होती है |   नाविक वृहत वृत्त का अनुसरण करता है | क्योंकि यह पृथ्वी पर किन्ही दो स्थानों के बीच की न्यूनतम दूरी को दर्शाती है | धरातल पर अनेक वृहत  वृत्त खींचे जा सकते हैं |

                 अंतरराष्ट्रीय तिथि रेखा 

1884 ई.  मैं वाशिंगटन में  हुई संधि के बाद 180°  याम्योत्तर के लगभग (  स्थलखंडों को छोड़कर )  एक काल्पनिक रेखा निर्धारित की गई जिसे अंतर्राष्ट्रीय तिथि रेखा कहा जाता है | अंतर्राष्ट्रीय तिथि रेखा  आर्कटिक सागर ,  चुक्सी  सागर ,  बेरिंग जल संधि व प्रशांत महासागर से गुजरती है बेरिंग जल संधि अंतर्राष्ट्रीय तिथि रेखा के समांतर स्थित है | इस रेखा के पूर्व से पश्चिम की ओर यात्रा करने पर या पार करने पर एक दिन घट जाएगा जबकि पश्चिम से पूर्व की ओर यात्रा करने पर 1 दिन बढ़ जाएगा अंतर्राष्ट्रीय तिथि रेखा सीधी रेखा ना होकर टेढ़ी-मेढ़ी रेखा है | ताकि यह किसी स्थलखंड से होकर ना गुजरे यह रेखा चार बार विचलित होती है | वर्ष 2011 में समुआ द्वीप   को अंतर्राष्ट्रीय तिथि रेखा के पश्चिम में कर दिया गया है |  इसी तरह टोकेलाउ भी अंतर्राष्ट्रीय तिथि रेखा के पश्चिम में आ गया है| इस परिवर्तन का मुख्य कारण इन द्वीप  की आस्ट्रेलिया व न्यूजीलैंड से भौगोलिक समीपता  एवं व्यापार की अधिकता है |

 विषुवत रेखा सबसे बड़ी अक्षांश रेखा होती है | जिसकी लंबाई लगभग 40069   किमी होती है | विषुवत रेखा से ध्रुवों की ओर जैसे-जैसे बढ़ते हैं | वस्तु के  भार में बढ़ोतरी होती जाती है | वस्तु के भार में यह बढ़ोतरी घूर्णन  बल के  कमी के कारण होती है  | उत्तरी गोलार्ध में   विषुवत रेखा से  23.5°  अंश पर खींचा गया काल्पनिक वृत्त   कर्क रेखा है | दक्षिणी गोलार्ध में  विषुवत रेखा से 23.5 अंश पर   खींचा गया काल्पनिक वृत्त  मकर रेखा है | 66.5° N अक्षांश रेखा  को आर्कटिक  वृत्त एवं 66.5° S को अंटार्कटिक वृत्त कहा जाता है|   इसे उप  ध्रुवीय यह ब्रिज भी कहा जाता है |  इसी काल्पनिक रेखा पर पृथ्वी का अक्ष  बिंदु स्थित है | https://www.videosprofitnetwork.com/watch.xml?key=6742ad6922f95fec8a7c06602cd6125d  

                         देशांतर रेखा 

 उत्तरी तथा दक्षिणी ध्रुवों को मिलाने वाली काल्पनिक रेखाओं को देशांतर रेखाएं कहा जाता है | देशांतर रेखाएं समानांतर नहीं होती है , क्योंकि ध्रुव से विषुवत रेखा की ओर बढ़ने पर देशांतर के बीच की दूरी बढ़ती जाती है | विषुवत रेखा पर इनके बीच की दूरी अधिकतम 111.32 किमी होता है | ब्रिटेन के ग्रीनविच ( जहां प्राचीन वेदशाला अवस्थित है ) से गुजरने वाले रेखा को प्रधान मध्यान रेखा कहा जाता है |  एवं इसके दोनों तरफ 180° अंशो  की देशांतर रेखाएं विभाजित है | चूँकि 1°  देशांतर रेखा को पार करने में 4 मिनट का समय लगता है | आत: प्रधान मध्यान रेखा 0°  से 90° डिग्री पूर्व या पश्चिम पर जाने पर 6 घंटे का समय लगता है |  भारत में मध्य प्रमाणिक समय रेखा 82.5 पूर्व मिर्जापुर  ( उत्तर प्रदेश  ) से होकर गुजरती है |  जो ग्रीनविच मध्यान से 5 घंटे 30 मिनट आगे है | 
     समय की सुविधा एवं देश में एकरूपता बनाए रखने के लिए विश्व के  अधिकांश देशों में एक ही माध्य प्रमाणिक समय निर्धारित किया गया है | जबकि संयुक्त राज्य अमेरिका में 7 एवं सर्वाधिक 9 टाइम जोन रूस में है | वहीं आस्ट्रेलिया में तीन टाइम जोन है | भारत एवं चीन में एक टाइम जोन  निर्धारित है | क्रोनोमीटर यंत्र की सहायता से ग्रीनविच समय के साथ साथ किसी भी स्थान का देशांतर ज्ञात किया जाता है |
https://concludemealswednesday.com/bibgbj8w6?key=ebae55826fb9b8eb6c80d0eb21a04bfa


शुक्रवार, 18 जून 2021

पृथ्वी के उत्पति के बारे में बताएं ? पृथ्वी के बारे में बताएं , पृथ्वी की उत्पति के सिद्धांत ,पृथ्वी के गति के बारे में वर्णन करे


           पृथ्वी क्या है 





 पृथ्वी सौर मंडल में धरती पर जीवन है | जलवायु परिवर्तन के लिए पृथ्वी को एक साथ बनाने में मदद करें | परिवर्तन और परिक्रमण गति जीवन का मूल आधार है |

              पृथ्वी की पैदाइशी

 पृथ्वी के पैदा होने के कारण पैदा होने के बाद भी यह वैज्ञानिक विज्ञान के अनुसार पूर्णत: वैज्ञानिक होते हैं। मेन्क् था | जन्म के संबंध में जानकारी है 2 |

                 ( १ ) अद्वैतवाद संकल्पना

                 (२) द्वैतवाद संकल्पना

                  ( १ ) अद्वैतवाद संकल्पना  

 अद्वैतवादी संकल्पना के अनुसार, उसकी पत्नी के पास एक ही समय है ( )

                    (२) द्वैतवाद संकल्पना   

  द्वैतवाद निर्णय लेने वालों के लिए एक से अधिक विशेष कर देने वाले के सलाहकार हैं | 

     धरती की पैदाइश पैदा हो रही है | फिर भी प्रभामंडल , पृथ्वी पर शनि ग्रह और विरान ग्रह | शांत हवा भी वायरल था | जो और हील से बना था | और आज के लिए वायरलैस से लॅाफट था | अतः ऐसा माना जाता है कि यहां अनेक ऐसी घटनाएं एवं क्रियाएं हुए जिसके कारण यह एक सुंदर ग्रह में परिवर्तित हो गया | पृथ्वी पर पर्यावरण का विकास 460 करोड़ वर्ष पूर्व |

                      पृथ्वी की गति

 पृथ्वी सूर्य से पृथ्वी के भविष्य के ग्रह ग्रह आकार में बदलते हैं | यह अक्ष पर पूर्व से पश्चिम की ओर 1610 घंटा

पृथ्वी की गति दो प्रकार से होती है |

             (1) गति गति 

            (२) परिक्रमण गति

             (1) गति गति  

 पृथ्वी पर स्थिर है | गति की गति कहा जाता है |

          (२) परिक्रमण गति  

  पृथ्वी सूर्य के चारों ओर एक स्थिर कक्षा की गतिविधियों की गति है 

     पृथ्वी की गति में वृद्धि | दिन-रात और जलवायु परिवर्तन | धरती का परिवर्तन एक जलवायु परिवर्तन के बाद तापमान में बदलाव करता है | पृथ्वी के अक्ष पर परिक्रमण गति भिन्न-भिन्न भिन्न-भिन्न प्रकार की होती है और इसी समय में अंतर होता है | 

 पृथ्वी को सूर्य के समान समय में 365 घंटे 5 मिनट 48 सेकंड का समय |

 पृथ्वी को सूरज की एक सुखी कहा जाता है |उसे सौर वर्ष | जाता सौर सौर कैलेंडर वर्ष 6 वर्ष बढ़ रहा है | हर साल बेहतर प्रदर्शन करने वाले | इस वर्ष 366 वर्ष का आनंद लें | दिन 29

              पृथ्वी का परिक्रमण और ग्रीष्मकाल 

 21 नवंबर को उत्तर ध्रुव और 22 दिसंबर को सूर्य की ओर ध्रुव है | 21 अक्टूबर और 23 ध्रुव 21 जून की प्रकृति को गर्मागर्म कहा जाता है | 22 दिसंबर की स्थिति और स्थिति अयनांत है | संक्रांति संक्रांति की तिथि से सूर्य की ओर से प्रभामंडल समाप्त हो गया है। जो मास का है | 

 जब भी 21 अक्टूबर और 23 को कोई भी ध्रुव सूर्य की ओर से पढ़ें | रात 12 बजे तक | ️️️️️️️️️️ 21 मार्च को वसंतुवत कहा जाता है | 23 को शरद ऋतु और कहा गया |

 3 को पर्यावरण के पर्यावरण के अनुकूल होने की स्थिति में 3 जुलाई 4 जुलाई को सूर्य और पृथ्वी के बीच की औसत अंतराल में | मौसम 4 नवंबर की स्थिति है |

            पृथ्वी का वास्तविक

  पृथ्वी का संपूर्ण धरातलीय 510066100

 धरती के रास्ते 14.89 लाख

 धरती का आयतन 1.08321×10^12 खेल 

 पृथ्वी की सतह का तापमान 15 डिग्री

 धरती का भारी भारीपन 5.53 ग्राम/ सेमी 

 धरती का विषुवतीय पराधि 40076 किमी 

 पृथ्वी का ध्रुव 40008 

 पृथ्वी के अक्ष का वर्ग तल पर झुकाव 23.5° 

 पृथ्वी के अक्ष का वर्ग तल पर किन 66.5°

 पृथ्वी की घड़ी 23 घंटे 56 मिनट 4 सेकंड

 पृथ्वी की परिक्रमण समय 365 दिन 6 घंटे


https://www.videosprofitnetwork.com/watch.xml?key=6742ad6922f95fec8a7c06602cd6125d