शुक्रवार, 2 जुलाई 2021

वर्षा किसे कहते है ये कितने प्रकार के होते है वर्णन करे

 

            वर्षा क्या है 






 स्वतंत्र हवा के लगातार ऊपर  उठने से  उसमें उपस्थित   जलवाष्प का संघनन होना प्रारंभ हो जाता है |  जब  संघनन क्रिया के दौरान संघनित काणो का आकार  बढ़ जाता है | तब हवा का प्रतिरोध उस कण को रोकने में असफल हो जाता है | जिसके परिणाम स्वरूप  यह कण पृथ्वी   की  सतह पर पानी के रूप में गिरता है | जिसे  वर्षा कहा जाता है | 

                         वर्षा कई प्रकार के होते हैं

                     (1) संवहनीय वर्षा

 जब पृथ्वी की सतह बहुत अधिक गर्म हो जाती है | तब उसके संपर्क में  आने वाली हवा गर्म होकर ऊपर की ओर उठने लगती है | जिससे संवहनीय धाराओं का निर्माण होता है जब ऊंचाई पर पहुंचती है | तो ऊंचाई में पहुंचने  के  बाद  संवहनीय  धाराएं  पूर्णता संतृप्त हो जाती है | जिसके  पश्चात संघनन  से काले  कपासी  वर्षा मेघ का निर्माण होता है | तथा घनघोर वर्षा होती है |  जिसे संवहनीय वर्षा के रूप में जाना जाता है  |

                     (2)  पर्वतीय वर्षा

                जब वायु  से मिश्रित  जलवाष्प  गर्म होकर किसी पर्वत या  पठार की ढलान के साथ ऊपर चढ़ता है | तो यह वायु  रुद्धोष्म प्रक्रिया से ठंडी होने लगते हैं | और धीरे-धीरे  संतृप्त हो जाती है | जिसके परिणाम स्वरूप संघनन की प्रक्रिया शुरू हो जाती है | संघनन के पश्चात होने वाली इस प्रकार की  वर्षा को पर्वतीय वर्षा कहा जाता है |

 संसार की अधिकांश वर्षा इसी रूप में होती है | ऊंचाई जैसे-जैसे बढ़ती जाती है | वर्षा की मात्रा भी बढ़ती जाती है | इस प्रकार पर्वतीय क्षेत्रों की जो ढाल पवन के सम्मुख होती है | वहां अत्यधिक वर्षा होती है जिसे पवनाभिमुख  ढाल  कहते हैं | इसके विपरीत है ढलान पर जहां पवन ढलान से नीचे उतरती है | सापेक्षिक आद्रता में कमी आती है | जिसके कारण कम वर्षा होती है | इसे वृष्टि छाया प्रदेश कहा जाता है | भारत में इसका सर्वोत्तम उदाहरण पश्चिमी घाट में स्थित महाबलेश्वर है | जहां वर्षा 600 सेंटीमीटर तथा पुणे जहां वर्षा 70  सेमी  होती है | जो कि एक दूसरे से मात्र कुछ  किलोमीटर दूरी पर स्थित है महाबलेश्वर पावनाभिमुखी ढाल पर अवसथित है | जबकि पुणे पवनविमुखी ढाल पर स्थित है  |

                    (3) चक्रवातीय वर्षा 

 चक्रवातो के कारण होने वाले वर्षा को चक्रवाती वर्षा कहा जाता है | इस प्रकार की  वर्षा विशेषकर शीतोष्ण कटिबंधीय क्षेत्रों में होती है | जहां गर्म एवं शीतल वायुराशियों  के टकराने के कारण  भीषण  तूफानी दशाएं उत्पन्न होती है | और गर्म वायुराशियों के शीतल वायुराशियों के ऊपर चढ़ जाने की प्रक्रिया में संघनित होना शुरू हो जाती है और वर्षा कराती है | 


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