गुरुवार, 25 जून 2020

रासायनिक समीकरण किसे कहते है ? , संतुलित रासायनिक समीकरण किसे कहते है ? ,असंतुलित रासायनिक समीकरण किसे कहते है ? , रासायनिक समीकरण को लिखने का नियम क्या है ? , रासायनिक समीकरण को कैसे संतुलित किया जाता है ?

रासायनिक समीकरण किसे कहते है ? , संतुलित रासायनिक समीकरण किसे कहते है ? ,असंतुलित रासायनिक समीकरण किसे कहते है ? , रासायनिक समीकरण को लिखने का नियम क्या है ? ,रासायनिक समीकरण को कैसे संतुलित किया जाता है ?

                 रासायनिक समीकरण - 

किसी रासायनिक अभिक्रिया में भाग लेने वाले पदार्थो के संकेतो एवं सूत्रों की सहायता से उस अभिक्रिया का संक्षिप्त निरूपण रासायनिक समीकरण कहलाता है |
        जैसे - हाइड्रोजन और क्लोरीन के मिश्रण को सूर्य की प्रकाश में रखा जाता है तो हाइड्रोजन क्लोराइड का निर्माण होता है |इस अभिक्रिया को निम्न समीकरण द्वारा निरूपित कर सकते है |
    जैसे -
             H2 + Cl2 ➝  2HCl |

         रासायनिक समीकरण लिखने के नियम - 

रासायनिक अभिक्रिया को रासायनिक समीकरण के रूप में निम्न नियमो का पालन करके लिखा जाता है -
  (1) अभिक्रिया के अभिकारकों को उसके संकेतो या अणुसूत्र के पदों में समीकरण के बायीं ओर लिखा जाता है |

  (2) अभिकारकों के सूत्रों के बीच धन चिन्ह (+) दिया जाता है |

 (3) अभिक्रिया के प्रतिफलों को उनके संकेतो या अनुसुत्रो के पदों में समीकरण के दायी ओर लिखा जाता है |

 (4) प्रतिफलों के सूत्रों के मध्य धन चिन्ह (+) दिया जाता है |

(5) अभिकारकों और प्रतिफलों को एक तीर चिन्ह ( ➝) दिया जाता है |तीर चिन्ह यह दिखाता है की अभिक्रिया किस दिशा की तरफ हो रही है |
         A + B ➝ C + D
      इस रासायनिक समीकरण में A और B अभिकारक है जबकि C और D प्रतिफल है |

         संतुलित रासायनिक समीकरण - 

वैसे रासायनिक समीकरण जिसमे समीकरण के दोनों तरफ प्रत्येक तत्व के परमाणुओं की संख्या समान होती है संतुलित रासायनिक समीकरण कहलाती है |
          जैसे - H2 + Cl2 ➝ 2HCl
        चुकी उपरोक्त समीकरण में हाइड्रोजन और क्लोरीन के बीच होने वाली रासायनिक अभिक्रिया को निरूपित करनेवाले समीकरण के दोनों ओर हाइड्रोजन और क्लोरीन के परमाणुओं की संख्या समान है |

          असंतुलित रासायनिक समीकरण - 

          वैसे रासायनिक समीकरण जिसमे समीकरण के दोनों तरफ तत्वों के परमाणुओं की संख्या समान नहीं होती है |असंतुलित रासायनिक समीकरण कहलाता है |
        जैसे - H2+ O2 ➝ H2O
                उपरोक्त समीकरण में समीकरण के दोनों ओर हाइड्रोजन के परमाणुओं की संख्या तो समान है | लेकिन ऑक्सीजन के परमाणुओं की संख्या समान नहीं है|इसलिए यह समीकरण असंतुलित समीकरण है |
                   रसायनशास्त्र के अध्यन के अंतर्गत हमलोग असंतुलित रासायनिक समीकरण को उपयोग नहीं करते है | क्योंकि ऐसा करना पदार्थो के द्रव्यमानो के संरक्षण के नियम का उलंघन है |

       रासायनिक समीकरण को संतुलित कैसे किया जाता है -


 संतुलित रासायनिक समीकरण में तीर चिन्ह ( ➝ ) के बाएं और दाएँ दोनों ओर प्रत्येक प्रकार की परमाणुओं की संख्या समान होती है |जो अनश्वरता के नियम पर आधारित होती है जिसके अनुसार सामान्य रासायनिक अभिक्रिया में पदार्थो का न तो निर्माण होता है और न ही उसका नाश होता है अर्थात रासायनिक अभिक्रिया परमाणु संरक्षित रहता है |
         रासायनिक समीकरण को संतुलित करने में दो बातो को ध्यान में रखना आवश्यक होता है - 
 (1) अभिक्रिया से संबंधित प्रत्येक पदार्थ के सूत्र / संकेत ज्ञात होनी चाहिए |
 (2) बायीं ओर के सूत्रों के अधोलिखित के अंक समीकरण के संतुलित करने के क्रम में परिवर्तन हो सकता है |

                 अनुमान द्वारा संतुलन की विधि - 

इस विधि में समीकरण से संबंधित पदार्थो के संकेत और सूत्रों को के ठीक पहले आवश्यक गुणक का प्रयोग करते है |गुणक का चयन इस प्रकार किया जाता है की समीकरण के तीर चिन्ह के दोनों ओर प्रत्येक प्रकार के परमाणुओं की संख्या समान हो जाए |
      जैसे   -  Fe + H2O ➝ Fe3O4 + H2
            को संतुलित करने के लिए समीकरण में प्रयुक्त तीर चिन्ह ( ➝)  के दोनों ओर के प्रत्येक प्रकार के परमाणुओं की संख्या को गिनती करते है |
                   बायीं ओर                    दायीं ओर
       Fe            1                               3 
       H             2                               2 
       O             1                               4 
               इस￰ समीकरण के सूत्र के प्रतिफल में   Fe3O4 और H2 है |H पहले से ही संतुलित है Fe को संतुलित करने के लिए समीकरण में Fe के पहले गुणक 3 लिख देते है |
       यह इस प्रकार
                 3 Fe + H2O ➝ Fe3O4 + H2
 हो जाता है |
       O को संतुलित करने के लिए    H2O    के ठीक पहले 4 गुणक लिख देते |जो इस प्रकार हो जाता है |
        3Fe + 4 H2O ➝ Fe3O4 + H2
                 अब हाइड्रोजन असंतुलित हो जाता है जिसको संतुलित करनेके लिए H2 के ठीक पहले 4 गुणक लिख दिया जाता है जो इस प्रकार हो जाता है |
       3Fe + 4H2O ➝ Fe3 + 4H2
हो जाता है|
 अब दोनों ओर के परमाणुओं कीसंख्या का मिलान  करने पर

                     बायीं ओर                    दायीं ओर 
   Fe                 3                             3  
   H                  8                             8 
   O                  4                             4 
          इस प्रकार पाया की दोनों ओर की परमाणुओं की संख्या समान है |इस प्रकार समीकरण को संतुलित कर सकते है |

https://youtu.be/7lmZJ4TSyn0 

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रासायनिक अभिक्रिया किसे कहते है ? रासायनिक अभिक्रिया की विशेषताओं को लिखें ?

रासायनिक अभिक्रिया किसे कहते है ? रासायनिक अभिक्रिया की विशेषताओं को लिखें ? 

                     रासायनिक अभिक्रिया -

      जब कोई पदार्थ अकेले या किसी अन्य पदार्थो से क्रिया करके भिन्न गुण वाले एक या एक से अधिक नए पदार्थो का निर्माण का निर्माण करता है | तब इस प्रकार की अभिक्रिया को रासायनिक अभिक्रिया कहा जाता है |

    अभिकारक - वैसे पदार्थ जो रासायनिक अभिक्रिया में भाग लेकर नए पदार्थ का निर्माण करता है अभिकारक कहलाता है |

         जैसे - H2 + Cl2 ➝ 2HCl
   तीर के बाएं तरफ के पदार्थ को अभिकारक कहा जाता है | इसमें H2 और Cl2 , ये दोनों अभिकारक है |

           प्रतिफल - जब पदार्थ रासायनिक अभिक्रिया में भाग लेता है तो रासायनिक अभिक्रिया के फलस्वरूप बने नए पदार्थ को प्रतिफल कहा जाता है | अर्थात तीर चिन्ह के दाहिने तरफ के पदार्थ को प्रतिफल कहा जाता है |
     जैसे - CaCO3 ➝ CaO + CO2
 इसमें CaO और CO2 प्रतिफल है |

       रासायनिक अभिक्रियाओं की विशेषताएं -


 (1) गैस की उत्पति - कुछ रासायनिक अभिक्रिया के फलस्वरूप गैस की उत्पति होती है |
     जैसे - दानेदार जस्ता की अभिक्रिया तनु हाइड्रोक्लोरिक अम्ल या तनु सल्फ्यूरिक अम्ल से कराई जाती है | तो हाइड्रोजन गैस की उत्पति होती है |
(2) रंग में परिवर्तन - कुछ रासायनिक अभिक्रियाओं के फलस्वरूप रंग में भी परिवर्तन होता है |
              जैसे - पोटैशियम डाइक्रोमेट के अम्लीय विलयन का रंग नारंगी होता है | लेकिन इसमें सल्फर डाईऑक्साइड गैस प्रवाहित किया जाए तो विलयन का रंग नारंगी से हरा हो जाता है |
(3) ताप में परिवर्तन  - कुछ रासायनिक अभिक्रियाओं के फलस्वरूप ताप में परिवर्तन होता है |
       जैसे - कलि चुना के एक ढेले पर जल गिराया जाता है| तो पर्याप्त मात्रा में ऊष्मा उत्पन्न होती है | जिससे उसका ताप बढ़ जाता है |

           *  ऊष्माक्षेपी  अभिक्रिया - 

वैसी रासायनिक अभिक्रिया जिसमे अभिक्रिया के दौरान ऊष्मा उत्पन्न होती है | उसे ऊष्माक्षेपी अभिक्रिया या केवल ऊष्माक्षेपी कहा जाता है |
  जैसे -  कली चुना पर जल गिराया जाता है | तो उससे ऊष्मा उत्पन्न होती है | यह ऊष्माक्षेपी अभिक्रिया है |

           *  ऊष्माशोषी अभिक्रिया -

 वैसी रासायनिक अभिक्रिया जिसमे अभिक्रिया के दौरान ऊष्मा का शोषण होता है | उसे ऊष्माशोषी अभिक्रिया कहा जाता है |
             जैसे - एक परखनली में थोड़ा अमोनियम क्लोराइड लेकर उसमे बेरियम हाइड्राऑक्साइड का विलयन डाला जाता है | तो अभिक्रिया के फलस्वरूप बेरियम क्लोराइड , अमोनिया एवं जल का निर्माण होता है |इस अभिक्रिया - मिश्रण का ताप घट जाता है ,जिससे स्पर्श करने पर ठंडक महसूस होती है |
(4) अवस्था में परिवर्तन - कुछ रासायनिक अभिक्रियाओं के फलस्वरूप उस पदार्थ की अवस्था में भी परिवर्तन होता है |जैसे - मोमबत्ती को जलाने पर मोम का कुछ हिस्सा द्रवित होकर निचे गिर जाता है और कुछ भाग वाष्प में परिवर्तित हो जाता है |
(5) अवक्षेप का बनना - कुछ रासायनिक अभिक्रिया के फलस्वरूप विलयन से अवक्षेप का निर्माण होता है| अर्थात विलयन से अवक्षेप पृथक हो जाता है|
       जैसे - सोडियम क्लोराइड के जलीय विलयन में सिल्वर नाइट्रेट  के जलीय विलयन डालने पर सिल्वर क्लोराइड का दही जैसा सफ़ेद अवक्षेप प्राप्त होता है |

बुधवार, 17 जून 2020

निस्तापन और भर्जन में अंतर लिखें ?

निस्तापन और भर्जन में अंतर लिखें ?

 निस्तापन और भर्जन में अंतर निम्नलिखित है -


 (1) वैसी प्रक्रिया जिसमे अयस्क को उच्च ताप पर वायु की अनुपस्थिति में उसके द्रवणांक से कम ताप पर गर्म कर धातु को उसके ऑक्साइड में परिवर्तित्त करने की प्रक्रिया को निस्तापन कहा जाता है |
           जबकि वैसी अभिक्रिया जिसमे अयस्कों को वायु की प्रयाप्त आपूर्ति की स्थिति में तीव्रता से गर्म करके धातु को ऑक्साइड में परिवर्तित करने की क्रिया को भर्जन कहा जाता है |
(2) निस्तापन की प्रक्रिया में अयस्कों को वायु की अनुपस्थिति में गर्म किया जाता है |
           जबकि भर्जन की प्रक्रिया में अयस्कों को वायु की उपस्थिति में गर्म किया जाता है |
(3) निस्तापन अभिक्रिया , ऑक्साइड एवं कार्बोनेट अयस्कों के लिए प्रयुक्त होती है | 
           जबकि भर्जन की प्रक्रिया सल्फाइड अयस्कों के लिए प्रयुक्त होती है |

https://youtu.be/_X4rdnJkJvQ

ऐलुमिनियम का निष्कर्षण कैसे किया जाता है ?

ऐलुमिनियम का निष्कर्षण कैसे किया जाता है ? 

ऐलुमिनियम के प्रमुख अयस्क -

  (1) बॉक्साइड ( Al2O3.2H2O )
 (2) कोरण्डम ( Al2O3 ) 
(3) क्रायोलाइट ( Na3 AlF6 ) 

           ऐलुमिनियम धातु का निष्कर्षण मुख्यतः बॉक्साइड अयस्क से किया जाता है |सबसे पहले बॉक्साइड अयस्क को सांद्रण किया जाता है | सान्द्रीकृत अयस्क को चुना की उपस्थिति में सोडियम कार्बोनेट के साथ गर्म किया जाता है| जिसके परिणामस्वरूप सोडियम ऐलुमिनेट का निर्माण होता है|

Al2O3 + Na2CO3 ⟶ 2NaAlO2 + CO2

 बचे शेष अवशेष को जल के साथ मिला दिया जाता है | जिससे सोडियम ऐलुमिनेट जल में घुल जाता है | जबकि अविलेय अपद्रव्य यथावत रह जाता है| जिसे छानकर अलग कर दिया जाता है |इसके बाद छनित द्रव में 50-60 °C पर कार्बन डाइऑक्सइड गैस प्रवाहित किया जाता है| जिससे ऐलुमिनियम हाइड्राऑक्साइड का अवक्षेप प्राप्त होता है |अवक्षेप को छानकर सूखा लिया जाता है | इसके बाद इसे   तीव्रता से गर्म कर shudh ऐलुमिनियम ऑक्साइड (ऐलूमिना ) प्राप्त कर लिया जाता है |

                2NaAlO2 + 3H2O + CO2 ⟶ Al(OH)3 + Na2CO3

   2Al(OH)3 ⟶ Al2O3 + 3H2O

 ऐलूमिना को वैधुत अपघटन की क्रिया द्वारा शुद्ध ऐलुमिनियम प्राप्त किया जाता है जो कैथोड  पर एकत्रित हो जाता है |



https://youtu.be/_X4rdnJkJvQ

अयस्क के सांद्रण के विधि (1) हाथ से चुनकर विधि , (2) गुरुत्व पृथकरण विधि , (3) फेन प्लवन विधि , (4) चुंबकीय पृथकरण विधि , (5) गलनिक पृथकरण विधि , (6) निक्षालन विधि के बारे में बताएँ

अयस्क के सांद्रण के विधि (1) हाथ से चुनकर विधि ,

(2) गुरुत्व पृथकरण विधि , (3) फेन प्लवन विधि , (4) चुंबकीय पृथकरण विधि , (5) गलनिक पृथकरण विधि , (6) निक्षालन विधि   के बारे में बताएँ 

अयस्क के सांद्रण के प्रमुख विधियाँ निम्नलिखित है - 

(1) हाथ से चुनकर विधि - 

      अयस्क के सांद्रण का वह विधि जिसमे अयस्क में उपस्थित बड़े आकार के अशुद्धियों को हाथ से चुनकर अलग किया जाता है | हाथ से चुनकर विधि कहलाता है |

(2) गुरुत्व पृथकरण विधि -

       अयस्क के सांद्रण का वह विधि जिसमे उपस्थित अशुद्धिओ को हटाने के लिए अयस्क के चूर्ण को जल के साथ मिश्रित कर उसे कई मेढ़ों से युक्त एक कम्पन करने वाले टेबुल से होकर प्रवाहित किया जाता है | जिससे अयस्क के भारी कण मेढ़ो द्वारा रोक लिया जाता है | जबकि अशुद्धि मेढ़ों के ऊपर से निकल जाता है | इस विधि को गुरुत्व पृथकरण विधि कहा जाता है |

(3) फेन प्लवन विधि - 

     अयस्क का सांद्रण का वह विधि जिसमे अयस्क के भारी चूर्ण को जल से भरी एक टंकी में डालते है | उसके बाद जल में थोड़ा तेल डालकर वायु प्रवाह के द्वारा जल को आलोड़ित किया जाता है |जिससे झाग उत्पन्न होता है | जिसके परिणामस्वरूप विलेय अशुद्धि जल में घुल जाते है | तथा अयस्क हलके होने के कारण फेन के साथ जल की सतह पर आ जाता है जिसे छान कर अलग कर लिया जाता है | पुनः झाग को समाप्त करने के लिए उसमे थोड़ा अम्ल मिलाते है | उसके  बाद  अयस्क को  छान कर सूखा लेते है |

 (4) चुंबकीय पृथकरण विधि - 

        अयस्क का सांद्रण का वह विधि जिसमे उपस्थित अपद्रव्यों में से कोई एक चुंबकीय पदार्थ उपस्थित रहता है | तो इस अयस्क को पीसकर महीन चूर्ण बना लिया जाता है | इसके बाद चूर्ण को विधुत चुंबकीय बेलनों के बेल्ट पर डालकर  मशीन को चालू कर दिया जाता है | जिसके कारण चुंबकीय पदार्थ चुंबक से आकर्षित होकर एक पात्र में गिरता है | जबकि अचुंबकीय पदार्थ उससे दूर होकर एक दूसरे पात्र में गिरता है |जिसे अलग कर लिया जाता है |

(5) गलनिक पृथकरण विधि - 

       अयस्क के सांद्रण का वह विधि जिसमे अयस्क का द्रवणांक उसमे उपस्थित अपद्रव्यों के द्रवणांक से कम होता है | तो ऐसे अशुद्ध पदार्थ को गर्म करके पिघला दिया जाता है |इसके बाद अयस्क को एक ढालुएँ तल से होकर प्रवाहित किया जाता है |जिसके परिणामस्वरूप अयस्क तल से आगे बढ़ जाता है | जबकि अपद्रव्य पीछे छूट जाता है |इसी विधि को गलनिक पृथकरण विधि कहा जाता है |

(6) निक्षालन विधि - 

                   इस विधि का उपयोग वैसे अयस्कों के लिए किया जाता है जिसमे उपस्थित अपद्रव्यों के रासायनिक गुण भिन्न भिन्न होता है | सर्वप्रथम अयस्क को चूर्ण बना लिया जाता है | इसके बाद इस चूर्ण को एक विलायक में डाला जाता है | जिससे अयस्क इसमें घुल जाता है , अपद्रव्य अविलेय अवस्था में ही रह जाता है जिसे अलग कर लिया जाता है | 
        जैसे - बॉक्साइड अयस्क में Fe2O3 , SiO2 आदि अशुद्धि के रूप में रहता है जिसे सोडियम हाइड्राऑक्साइड के विलयन में डाला जाता है जिससे अयस्क के Al2O3 एवं SiO3 घुलकर क्रमशः सोडियम ऐलुमिनेट एवं सोडियम सिलिकेट का निर्माण करता है | अविलेय अपद्रव्यों को छानकर अलग कर लिया जाता है | छनित द्रव थोड़ा ताजा बने ऐलुमिनियम हाइड्राऑक्साइड मिलकर उसे आलोड़ित किया जाता है जिससे द्रव में उपस्थित सोडियम ऐलुमिनेट ,ऐलुमिनियम हाइड्राऑक्साइड के अवक्षेप बनकर अलग हो जाता है | सोडियम सिलिकेट विलयन में ही शेष रह जाता है | इस अवक्षेप को छानकर साफ करके सूखा लिया जाता है | इसके बाद इसे गर्म करके Al2O3 में परिवर्तित किया जाता है जिसे ऐलूमिना कहा जाता है | Al2O3 + 2 NaOH ⟶ 2NaAlI3 + H2O , NaAlO2 + 2H2O  ⟶ Al(OH)3 +NaOH , 2Al(OH)3 ⟶ + 3H2O

मंगलवार, 16 जून 2020

धातुएं विधुत का सुचालक और अधातुएँ विधुत का कुचालक क्यों होती है ? कारण सहित बताएँ. ?

धातुएं विधुत का सुचालक और अधातुएँ विधुत का कुचालक क्यों होती है ? कारण सहित बताएँ. ? 

धातुएँ विधुत का सुचालक -  धातुओं के परमाणुओं में मुक्त इलेक्ट्रॉन रहता है जो विधुत धारा का संचालन करती है| इसलिए धातुएं   विधुत का सुचालक होती है|
  अधातुएँ विधुत का कुचालक - अधातुओ के परमाणुओं में मुक्त इलेक्ट्रॉन नहीं रहता है जिसके कारण विधुत धरा का संचालन नहीं होता है इसलिए अधातुएँ विधुत का कुचालक होती है ?

https://youtu.be/7lmZJ4TSyn0

ऐलुमिनोथर्मिक विधि क्या है ? , ऐलुमिनोथर्मिक विधि की उपयोगिता बताएँ ?

ऐलुमिनोथर्मिक विधि क्या है ? , ऐलुमिनोथर्मिक विधि की उपयोगिता बताएँ ?

ऐलुमिनोथर्मिक विधि - कुछ धातुओं के ऑक्साइड ऐसे होते है की उसे कार्बन द्वारा अवकृत नहीं किया जा सकता है , क्योंकि कार्बन के साथ उच्च ताप पर ये कार्बाइड का निर्माण करता है| ऐसी स्थिति में अवकरण की क्रिया ऐलुमिनियम धातु के द्वारा कराई जाती है| 
    इस क्रिया को ऐलुमिनोथर्मिक विधि कहा जाता है |इस विधि का उपयोग करके फेरिक ऑक्साइड तथा ऐलुमिनियम के मिश्रण से प्राप्त द्रवित लोहा द्वारा मशीन के छिद्रो तथा रेल पटरियो में पड़े दरारों  को भरा जाता है|

द्विधर्मी ऑक्साइड क्या है ? द्विधर्मी ऑक्साइड के दो उदहारण दें ?

द्विधर्मी ऑक्साइड क्या है ? द्विधर्मी ऑक्साइड के दो उदहारण दें ? 

       वैसे धातुओं के ऑक्साइड जिसमे अम्लीय और भास्मिक दोनों गुण मौजूद होते है द्विधर्मी ऑक्साइड कहलाती है|
     अर्थात द्विधर्मी ऑक्साइड अम्ल एवं भस्म दोनों के साथ अभिक्रिया करता है|
    जैसे ZnO ￰तनु HCl के साथ अभिक्रिया करके ZnCl2 और H2O बनता है|
         ZnO + 2HCl ➡ ZnCl2 +H2O इसके विपरीत , ZnO को NaOH विलयन के साथ गर्म करने पर सोडियम जिंकेट  और जल का निर्माण करता है| 
ZnO +2NaOH ➡ Na2ZnO2 +H2O

https://youtu.be/_X4rdnJkJvQ


सोडियम को जल में डूबाकर रखा जाता है क्यों ?

सोडियम को जल में डूबाकर क्यों रखा जाता है ?

उत्तर-
 सोडियम अतिक्रियाशील धातु है ये कमरे के ताप पर ही वायु के ऑक्सीजन के संयोग करके भास्मिक ऑक्साइड का निर्माण कर लेती है |सोडियम की क्रियाशीलता ऑक्सीजन के साथ इतनी तीव्र है की इसे वायु में खुला छोड़ते  ही जलने लगती है |इसलिए सोडियम को जल में डूबकर रखा जाता है |

https://www.youtube.com/channel/UCtLt476T0I-t-mOTAHo30rA

मिश्रधातु किसे कहते है ? , मिश्रधातु के गुणों को लिखे ?

मिश्रधातु किसे कहते है ? , मिश्रधातु के गुणों को लिखे ?

  मिश्रधातु - दो या दो से अधिक धातुओं अथवा एक धातु एवं एक अधातु का समांग मिश्रण मिश्रधातु कहलाता है |
          जैसे - सोल्डर , पीतल , ब्रॉन्ज आदि मिश्रधातु है |        मिश्रधातु के गुण निम्नलिखित है - 
(1) ये अपने अवयवों से अधिक कठोर होता है |
(2) मिश्रधातु के तन्यता एवं आघातवर्धनीयता अपने अवयवों से अपेक्षाकृत कम होता है |
(3) मिश्रधातु संक्षारण अवरोधक होता है |
(4) मिश्रधातु के द्रवणांक उसके अवयवों से अपेक्षाकृत कम होता है |
(5) इसकी विधुत चलकता अपेक्षाकृत कम होती है |
(6) इसकी गुणवत्ता  अपने अवयवों की तुलना में बढ़ जाती है |

सोमवार, 15 जून 2020

संक्षारण किसे कहते है ? , संक्षारण रोकने का क्या उपाय है ?

संक्षारण किसे कहते है ? , संक्षारण रोकने का क्या उपाय है ?

सं￰क्षारण - धातुओं की सतह पर वायु के ऑक्सीजन ,कार्बन डाइऑक्साइड , सल्फर डाइऑक्साइड ,जलवाष्प ,हइड्रोजन सल्फाइड ,इत्यादि की अभिक्रिया के फलस्वरूप धातु का क्षय धातु का संक्षारण कहलाता है |
        धातुओं का संक्षारण प्रकृति में होनेवाली एक अवांछनीय प्रक्रिया है जो धातु की ऊपरी सतह पर होती है |जिसके कारण धातु की सतह पर छोटे छोटे छिद्र हो जाता है |
       जैसे लोहे के एक टुकड़े को आद्र वायु में कुछ दिनों तक खुला छोड़ दिया जाता है तो उसकी सतह पर भूरे रंग की एक परत बन जाती है जिसे जंग भी कहा जाता है इस प्रक्रिया को जंग लगना या लोहे का संक्षारण कहा जाता है |

     संक्षारण को रोकने के उपाय 
    (1) धातु की परत पर लेप चढ़ा कर - धातु की बाहरी परत पर ग्रीज या वार्निश की एक पतली परत चढ़ा कर संक्षारण को रोका जा सकता है |
(2) रंगाई करके - धातु की सतह को किसी अम्ल अवरोधक रंग से रंगाई करके संक्षारण से बचाया जा सकता है |
(3) विधुत लेपन के द्वारा - विधुत अपघटन की क्रिया द्वारा किसी धातु पर अन्य धातु की लेप चढ़ा कर  धातुओं को संक्षारण  से बचा सकते है |
(4) जस्तीकरण करके - धातु की किसी वस्तु को पिघले हुए जस्ता में डूबा देने पर उस वस्तु की सतह पर जस्ता की एक परत बैठ जाती है जिसे जस्तीकरण कहा जाता है | अर्थात जस्तीकरण कर धातु को संक्षारण से बचाया जा सकता है |
(5) धातुओं को मिश्र धातुओं में परिवर्तित करके - कुछ धातुओं को मिश्र धातुओं में परिवर्तित करके धातुओं को संक्षारण से बचाया जा सकता है |
(6) धातुओं द्वारा स्वयं रक्षा कवच बना लेना - कुछ धातु अपनी सतह पर स्वयं अपना रक्षा कवच बना लेती जिसके बाद वह संक्षारण से बच जाती है |
       जैसे - ऐनोडीकरण - ऐलुमिनियम  धातु को खुली हवा छोड़ दिया जाता है तो उसकी सतह पर ऑक्साइड की एक परत बैठ जाती है | जिसके कारण ऐलुमिनियम धातु का संक्षारण रुक जाता है |

रविवार, 14 जून 2020

धातुकर्म किसे कहते है ? , गैंग , निस्तापन ,भर्जन ,गालक ,धातुमल ,प्रगलन ,अयस्क का सांद्रण की परिभाषा लिखे

धातुकर्म किसे कहते है ? , गैंग ,निस्तापन ,भर्जन ,गालक ,धातुमल ,प्रगलन ,अयस्क का सांद्रण  की परिभाषा लिखे 


धातुकर्म   -  

अयस्कों  से धातुओं के निष्कर्षण  और उसके शोधन  की प्रक्रिया को धातुकर्म कहते है |

 (1)  गैंग   (  Gangue ) - 

  पृथ्वी के गर्भ  से निकलने वाले अयस्क  में अनक प्रकार के अवांछनीय  पदार्थ मिले होते है जिसे गैंग कहा जाता है |

(2)  निस्तापन ( calcination )  - 

 अयस्क को उच्च ताप पर वायु की अनुपस्थिति  में उसके द्रवणांक से कम ताप पर गर्म कर धातु को उसके ऑक्साइड में परिवर्तित करने की प्रक्रिया  को निस्तापन कहा जाता है |

(3) भर्जन (  Roasting )   -

  सल्फाइड  अयस्कों को वायु की पर्याप्त  उपस्थिति में तीव्रता से गर्म करके धातु को ऑक्साइड में परिवर्तित करने की प्रक्रिया को भर्जन कहा जाता है |

(4) ￰गालक (  Flux ) - 

वैसे पदार्थ जिसे निस्तापित  या भर्जित  अयस्क को कोक  के साथ मिश्रित  करके मिश्रण  को गर्म किया जाता है जिससे अयस्क में उपस्थित अगलनीय  पदार्थ दूर हो जाता है |

(5)  धातुमल   (  slag ) -

 द्रावक  अयस्क में उपस्थित आद्रवणशa अपद्रव्यों के साथ संयोग करके उसे द्रवणशील पदार्थ में परिवर्तित कर देता है जिसे धातुमल कहा जाता है |चुकी ये हल्का  होता है जिसके कारण ये धातु के ऊपर तैरने लगता है जिसे हटा दिया जाता है

(6)  प्रगलन (smelting) - 

धातु के ऑक्साइड को कोक के साथ गर्म करके उसे धातु में परिवर्तित करने की प्रक्रिया को प्रगलन कहा जाता है |

(7)  अयस्क का सांद्रण  ( Dressing of ore ) - 

 अयस्क में उपस्थित अपद्रव्यों  को दूर करने की प्रक्रिया को अयस्क का सांद्रण कहा जाता है |

वैधुत संयोजक यौगिक और सहसंयोजक यौगिक में अंतर लिखें

वैधुत संयोजक यौगिक और सहसंयोजक यौगिक में अंतर लिखें ?

वैधुत संयोजक यौगिक और सहसंयोजक यौगिक में
 अंतर निम्नलिखित है  - 
 (1)  वैधुत संयोजक यौगिक इलेक्ट्रॉन  के पूर्ण स्थानांतरण के फलस्वरूप बनता है |
           जबकि सहसंयोजक यौगिक पारस्परिक  साझा के फलस्वरूप बनता है |
(2)  वैधुत संयोजक यौगिक आयनो से बने होते है |
             जबकि सहसंयोजक यौगिक उदासीन  अणुओं से बने होते है |
 (3)  वैधुत संयोजक यौगिक के क्वथनांक और द्रवणांक उच्च होते है |
       जबकि सहसंयोजक यौगिक के क्वथनांक और द्रवणांक निम्न होते है |
 ( 4 ) वैधुत संयोजक यौगिक के अणुओं की कोई निश्चित आकृति नहीं होती है |
         जबकि सहसंयोजक यौगिक अणुओं की एक निश्चित ज्यामितीय  आकृति होती है |
(5)  वैधुत संयोजक यौगिक मुख्यतः क्रिस्टलीय  ठोस पदार्थ होते है |
      जबकि  सहसंयोजक यौगिक ठोस या द्रव दोनों होते है |(6) विधुत अपघटन करने पर वैधुत संयोजक यौगिक विघटित  हो जाते है |
       जबकि विधुत अपघटित  करने पर सहसंयोजक यौगिक प्रायः विघटित नहीं होता है |
(7)  ये ठोस अवस्था में विधुत  के कुचालक होते है लेकिन जलीय विलियन  की अवस्था में विधुत के सुचालक होते है  |               जबकि  सहसंयोजक यौगिक विधुत के कुचालक होते है |
 (8)  वैधुत संयोजक यौगिक विलयन में तीव्रता  से अभिक्रिया करता है |
       जबकि सहसंयोजक यौगिक विलयन में प्रायः धीरे धीरे अभिक्रिया करती है |
(9)  वैधुत संयोजक यौगिक जल में प्रायः विलेय किन्तु  बेंजीन ,क्लोरोफॉर्म  आदि कार्बनिक विलायकों में प्रायः अविलेय होते है |
     जबकि सहसंयोजक यौगिक जल में अविलेय किन्तु कार्बनिक विलायकों में विलेय होते है |

शनिवार, 13 जून 2020

रासायनिक बंधन किसे कहते है ? ये कितने प्रकार के होते है लिखे ? , आयनिक यौगिक और सहसंयोजक यौगिक की विशेषताओं को लिखें

रासायनिक बंधन किसे कहते है ? ये कितने प्रकार के होते है लिखे ? आयनिक यौगिक और सहसंयोजक  यौगिक की विशेषताओं को लिखें

          रसायनिक बंधन -


 वैसे रसायनिक बल जो किसी अणु परमाणुओं को एक साथ बांधकर रखता है रासायनिक बंधन कहलाता है |
           रसायनिक बंधन मुख्यतः दो प्रकार के होता है
(1)  वैधुत संयोजक या आयनिक बंधन (2)  सहसंयोजक बंधन |

  (1)  वैधुत संयोजक या आयनिक बंधन - 

                जब दो परमाणुओं के बीच एक परमाणु से दूसरे परमाणु में एक या एक से अधिक इलेक्ट्रॉनों के स्थानांतरण के फलस्वरूप बने रसायनिक बंधन को वैधुत संयोजक बंधन या आयनिक बंधन कहा जाता है |
       इसे ध्रुवीय बंधन भी कहा जाता है |

(2)  सहसंयोजक बंधन - 

       जब दो परमाणु आपस में इलेक्ट्रॉनों का साझा करके अपना अष्टक पूरा करता है तब उसके बीच जो बंधन बनता है उसे सहसंयोजक बंधन कहा जाता है |

            सहसंयोजक बंधन तीन प्रकार के होते है -  

(1)  एकल सहसंयोजक बंधन
(2)  द्विक सहसंयोजक बंधन
(3)  त्रिक सहसंयोजक बंधन

(1)  एकल सहसंयोजक बंधन  - 


               जब दो परमाणुओं के बीच एक जोड़ा इलेक्ट्रॉनों     का साझा होता है तब उसके बीच बने बंधन को एकल सहसंयोजक बंधन कहा जाता है |

(2)  द्विक सहसंयोजक बंधन  -  


        जब दो परमाणुओं के बीच दो जोड़ा इलेक्ट्रॉनों का साझा करके जो बंधन का निर्माण होता है उसे द्विक सहसंयोजक बंधन कहा जाता है |

 (3)  त्रिक सहसंयोजक बंधन  -


        जब दो परमाणुओं के बीच तीन जोड़ा इलेक्ट्रॉनों का साझा करके जो बंधन बनता है उसे त्रिक सहसंयोजक बंधन कहा जाता है |

 वैधुत संयोजक या आयनिक यौगिक की विशेषताएँ -


  (1)  वैधुत संयोजक या आयनिक यौगिक धनआवेश  और ऋणावेश आयनो के बने होते है |

(2)  आयनिक यौगिक के द्रवणांक और क्वथनांक उच्च होते है |

 (3)  आयनिक यौगिक जल में प्रायः विलेय लेकिन बेंजीन , ऐसीटोन , कार्बन डाइसल्फाइड और टेट्राक्लोराइड जैसे कार्बनिक विलायकों में अविलेय होता है |

(4)  आयनिक यौगिक द्रवित या जलीय विलयन की अवस्था में विधुत का सुचालक होता है |

 सहसंयोजक यौगिक की विशेषताएँ -

  (1)  सहसंयोजक यौगिक प्रायः वाष्पशील द्रव या गैस होता है  |
 (2)  सहसंयोजक यौगिक के द्रवणांक और क्वथनांक प्रायः निम्न होता है |
 (3)  सहसंयोजक यौगिक जल में प्रायः अविलेय लेकिन कार्बनिक विलायकों में प्रायः विलेय होता है |
(4)  सहसंयोजक यौगिक विधुत के कुचालक होते है |

गुरुवार, 11 जून 2020

आपको एक उत्तल लेंस ,एक अवतल लेंस ,तथा एक काँच की वृत्ताकार पट्टिका दी गई है |उनकी सतहों को बिना छुए आप उनमे अंतर कैसे बताएँगे ?

आपको एक उत्तल लेंस ,एक अवतल लेंस ,तथा एक काँच की वृत्ताकार पट्टिका दी गई है |उनकी सतहों को बिना छुए आप उनमे अंतर कैसे बताएँगे    

उत्तर -
अगर हमें एक उत्तल लेंस , एक अवतल लेंस , और एक काँच की वृताकार पट्टिका दी जाती है उसको बिना छुए निम्नलिखित विधिओ द्वारा जाँचा जा सकता है -

इसके लिए सभी को बारी बारी से किताब की छपी एक पृष्ट के सामने लाते है
( a ) यदि छपे अक्षर अपने वास्तविक आकार से बड़े दिखाई देते है तो वह उत्तल लेंस होगा |

( b ) यदि छपे अक्षर अपने वास्तविक आकार के बराबर दिखाई देती है तो वह वृताकार पट्टिका होगा |
( c ) यदि छपे अक्षर अपने वास्तविक आकार से छोटा दिखाई देता है तो वह अवतल लेंस होगा |


इसे भी देखे 
https://youtu.be/JSAImnurmDI

इसे भी जाने -

https://kindui.blogspot.com/2020/06/converging-diverging.html?m=1


किसी उत्तल लेंस द्वारा जब सूर्य की किरणों को किसी कागज पर फोकसित करते है तो वह जल उठता है ? कारण स्पष्ट करे

किसी उत्तल लेंस द्वारा जब सूर्य की किरणों को किसी कागज पर फोकसित करते है तो वह जल उठता है ? कारण स्पष्ट करे 


उत्तर -

सूर्य से आनेवाली प्रकाश की किरणों के साथ साथ उष्मीय ऊर्जा भी आती है | इसलिए जब उत्तल लेंस द्वारा सूर्य से आती प्रकाश की किरण को कागज पर फोकसित किया जाता है तो सूर्य के प्रकाश के साथ साथ ऊष्मा भी उस कागज के छोटे से हिस्से पर फोकसित होती है , जिसके कारण कागज का वह हिस्सा जलने लगता है |


इसे भी जाने
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इसे भी  youtube पर जाकर देखे -

https://youtu.be/JSAImnurmDI

उत्तल लेंस को अभिसारी और अवतल लेंस को अपसारी लेंस क्यों कहा जाता है   को जानने के लिए link को click करे 

https://kindui.blogspot.com/2020/06/converging-diverging.html?m=1

मंगलवार, 9 जून 2020

परमाणु एवं आयन में क्या अंतर है ?

परमाणु एवं आयन में क्या अंतर है ? 

परमाणु और आयन में अंतर निम्नलिखित है - 

(1)  परमाणु विद्युततः   उदाशीन होता है |
                  जबकि आयन पर धन आवेश या ऋणावेश रहता है |
 (2)  परमाणु में प्रोटॉन और इलेक्ट्रॉन कीसंख्या समान होती है |
              जबकि  आयन में प्रोटॉन की संख्या निश्चित होती है लेकिन इलेक्ट्रॉन की संख्या कम या ज्यादा होती है |
 (3)  परमाणु का आकार धन आयन से बड़ा होता है |                       जबकि आयन का आकार परमाणु के आकार से छोटा होता है |
(4)  परमाणु का आकार ऋणायन से छोटा होता है |
                 जबकि आयन का आकार परमाणु के आकार से बड़ा होता है |
 (5) यह अस्थाई होता है |
                         जबकि आयन स्थाई होता है |
(6)  परमाणु के संयोजी शेल में 1 से लेकर 7 तक इलेक्ट्रॉन रहता है |
          जबकि आयन के संयोजी शेल में 8 इलेक्ट्रॉन रहता है  (7)  परमाणु के गुण इसके संयोजी शेल में इलेक्ट्रॉन की उपस्थिति के कारण होता है |
          जबकि आयन के गुण इसके आवेश के कारण होता है |

आयन किसे कहते है ? आयन कितने प्रकार के होते है ? धनायन और ऋणायन की विशेषताओं को लिखें ?

आयन किसे कहते है ? आयन कितने प्रकार के होते है ? धनायन और ऋणायन की विशेषताओं को लिखें ?

आयन - 


   जब कोई परमाणु एक या एक से अधिक संयोजी इलेक्ट्रॉन का त्याग या ग्रहण कर धनाविष्ट या ऋणाविष्ट होता है तो ये परमाणु आयन कहलाता है |

    आयन दो प्रकार के होते है

( 1 ) धनायन
( 2 ) ऋणायन

( 1 ) धनायन - 

              जब कोई परमाणु एक या एक से अधिक संयोजी इलेक्ट्रॉन का त्याग कर धनाविष्ट होता है तो उसे धनाय, कहते है |

जैसे - सोडियम का परमाणु एक इलेक्ट्रॉन का त्याग कर सोडियम आयन में परिवर्तित हो जाता है |

( 2 ) ऋणायन - 


जब कोई परमाणु एक या एक से अधिक संयोजी इलेक्ट्रॉन का

ग्रहण कर ऋणाविष्ट हो जाता है तो उसे ऋणायन कहा जाता है |

      धनायन की विशेषतएँ 


( 1 ) धनायन पर धन आवेश  रहता है क्योंकि धनायन में प्रोटॉन की संख्या इलेक्ट्रॉन की संख्या से अधिक रहती है |
(  2 )  किसी धनायन में अपने मूल परमाणु से कम इलेक्ट्रॉन रहता है | जैसे सोडियम (Na)  परमाणु में कुल 11 इलेक्ट्रान होते है लेकिन सोडियम आयन में 10 इलेक्ट्रॉन ही रहता है | (3)  परमाणु के धनायन में परिवर्तित हो जाने पर भी उसकी परमाणु संख्या अपरिवर्तित रहती है |
(4)  धनायन का आकार उसके मूल परमाणु के आकार से छोटा होता है |
(5) धनायन का इलेट्रॉनिक विन्यास उसके निकटतम उत्कृष्ट गैस से सदृश होता है |

    ऋणायन की विशेषताएँ  -  

(1)  ऋणायन पर ऋण आवेश रहता है |
(2)  ऋणायन में अपने मूल परमाणु से अधिक इलेक्ट्रान रहता है |
 (3) ऋणायन का आकार अपने मूल परमाणु के आकार से बड़ा होता है |
 (4)  मूल परमाणु के ऋणायन में परिवर्तित हो जाने पर उसके परमाणु संख्या में कोई परिवर्तन नहीं होता है |
(5)  ऋणायन के गुण अपने मूल परमाणु के गुण से बिलकुल भिन्न होता है |
(6)  ऋणायन और उसके निकटतम उत्कृष्ट गैस के इलेक्ट्रॉनिक विन्यास एक ही होते है |

सोमवार, 8 जून 2020

उत्तल लेंस को अभिसारी ( converging ) लेंस और अवतल लेंस को अपसारी ( diverging ) लेंस क्यों कहा जाता है ?

उत्तल लेंस को अभिसारी ( converging ) लेंस और अवतल लेंस को अपसारी ( diverging ) लेंस क्यों कहा जाता है ?

उत्तर -

           उत्तल लेंस को अभिसारी लेंस 

किसी प्रकाशीय स्रोत से निकलनेवाली प्रकाश की किरणे उत्तल लेंस से अपवर्तन के बाद प्रकाश की किरणपुंज को एक बिंदु पर अभिसरित अर्थात एक बिंदु पर एकत्रित  कर देती है |इसलिए उत्तल लेंस को अभिसारी ( converging ) लेंस कहा जाता है |

         अवतल लेंस को अभिसारी लेंस 

           जब किसी प्रकाशीय स्रोत से निकलनेवाली प्रकाश की किरण अवतल लेंस से अपवर्तन के बाद प्रकाश की किरणपुंज को आगे की ओर फैला देती है इसलिए अवतल लेंस को अपसारी लेंस कहा जाता है |

इसे भी जाने 
https://youtu.be/_X4rdnJkJvQ

उत्तल लेंस और अवतल लेंस में अंतर लिखें ?

उत्तल लेंस और अवतल लेंस में अंतर लिखें ?

   उत्तल लेंस और अवतल लेंस में अंतर निम्नलिखित है

( 1 ) वैसे गोलीय लेंस जिसका दोनों किनारो की अपेक्षा बिच का भाग मोटा होता है उत्तल लेंस कहलाता है |
                जबकि वैसे गोलीय लेंस जिसका दोनों किनारो की अपेक्षा बीच का भाग पतला होता है अवतल लेंस कहलाता है |

( 2 ) उत्तल लेंस में मध्य भाग की अपेक्षा दोनों किनारा  पतला होता है |
            जबकि अवतल लेंस में मध्य भाग की अपेक्षा दोनों किनारा मोटा होता है |

( 3 ) उत्तल लेंस प्रकाश को अभिसरित करता है |
               जबकि अवतल लेंस प्रकाश को अपसरित करता है |

( 4 ) उत्तल लेंस की फोकस वास्तविक होता है |
                जबकि अवतल लेंस की फोकस काल्पनिक होता है |

( 5 ) उत्तल लेंस में बना प्रतिबिम्ब वास्तविक और आभासी दोनों प्रकार का बनता है |
          जबकि अवतल लेंस में बना प्रतिबिम्ब आभासी होता है |

( 6 )  उत्तल लेंस में बना प्रतिबिम्ब सीधा और उल्टा दोनों प्रकार का बनता है |
         जबकि अवतल लेंस में बना प्रतिबिम्ब सीधा बनता है |

रविवार, 7 जून 2020

लेंस किसे कहते है ? ये कितने प्रकार के होते है वर्णन करें ?

लेंस किसे कहते है ? ये कितने प्रकार के होते है वर्णन करें ? 

     लेंस -

                पारदर्शक पदार्थ का वह टुकड़ा जो दो निश्चित ज्यामितीय सतहों से घिरा रहता है लेंस कहलाता है |

          लेंस दो प्रकार के होते है -

( 1 ) उत्तल लेंस

( 2 ) अवतल लेंस

        उत्तल लेंस - 


   वैसे गोलीय लेंस जिसमे दोनों किनारो की अपेक्षा मध्य का भाग अधिक मोटा अर्थात चौड़ा होता है उत्तल लेंस कहलाता है |
    उत्तल लेंस तीन प्रकार के होते है

( 1 ) उभयोत्तल उत्तल लेंस -

              वैसे उत्तल लेंस जिसके दोनों तल उत्तल हो उसे उभयोत्तल उत्तल लेंस कहते है |

( 2 ) समतलोतल उत्तल लेंस -

         वैसे उत्तल लेंस जिसका एक तल समतल और दूसरा तल उत्तल हो तो उसे समतलोतल उत्तल लेंस कहते है |

( 3 ) अवतलोतल उत्तल लेंस -

        वैसे उत्तल लेंस जिसका एक तल अवतल और दूसरा तल उत्तल हो तो उसे अवतलोतल उत्तल लेंस कहते है |

   ( 2 ) अवतल लेंस - 


           वैसे गोलीय लेंस जिसमे दोनों किनारो की अपेक्षा बिच का भाग अधिक पतला होता है अर्थात मध्य भाग की अपेक्षा किनारे का भाग अधिक चौड़ा होता है उसे अवतलोतल उत्तल लेंस कहते है |

     अवतल लेंस भी तीन प्रकार के होते है -

( 1 ) उभयावताल अवतल लेंस

             वैसे अवतल लेंस जिसका दोनों तल अवतल हो उसे उभयावताल अवतल लेंस कहते है

( 2 ) समतलावतल अवतल लेंस

           वैसे अवतल लेंस जिसका एक तल समतल और दूसरा तल तल अवतल होता है उसे समतलावतल अवतल लेंस कहते है |

( 3 ) उत्तलावतल  उत्तल लेंस -

                  वैसे अवतल लेंस जिसका एक तल उत्तल और दूसरा तल अवतल होता है उसे उत्तलावतल  उत्तल लेंस कहते है  |


   

अपवर्तनांक किसे कहते है ?

अपवर्तनांक किसे कहते है ?

      अपवर्तनांक - 

शून्य में प्रकाश की चाल और उस माध्यम में प्रकाश की चाल के अनुपात को अपवर्तनांक कहा जाता है |

   अपवर्तनांक को अंग्रेजी अक्षर के n से सूचित किया जाता है |

किसी माध्यम का अपवर्तनांक =

    शून्य में प्रकाश की चाल / उस माध्यम में प्रकाश की चाल

जैसे

पानी का अपवर्तनांक =

            शून्य में प्रकाश की चाल / पानी में प्रकाश की चाल

          = 300000 / 225000 

           = 4 / 3 = 1.33 

काँच का अपवर्तनांक = 

           शून्य में प्रकाश की चाल / कांच में प्रकाश की चाल

          = 300000 / 200000 

           = 3 / 2 = 1.5

कुछ पदार्थो के अपवर्तनांक 

पानी का अपवर्तनांक = 1.33 

वायु का अपवर्तनांक = 1.0003

बेंजीन का अपवर्तनांक = 1.5
ऐलकोहल का अपवर्तनांक = 1.36
हिरा का अपवर्तनांक = 2.42
सेंधा  नमक का अपवर्तनांक. = 1.54
बर्फ का अपवर्तनांक = 1.31
नीलम का अपवर्तनांक = 1.77

      आपेक्षिक अपवर्तनांक - 

किसी दो माध्यमो के निरपेक्ष  अपवर्तनांको के अनुपात को आपेक्षिक अपवर्तनांक कहा जाता है |

   यह भी जाने 

https://kindui.blogspot.com/2020/06/blog-post_6.html?m=1

लेंस किसे कहते है 

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