बुधवार, 17 जून 2020

अयस्क के सांद्रण के विधि (1) हाथ से चुनकर विधि , (2) गुरुत्व पृथकरण विधि , (3) फेन प्लवन विधि , (4) चुंबकीय पृथकरण विधि , (5) गलनिक पृथकरण विधि , (6) निक्षालन विधि के बारे में बताएँ

अयस्क के सांद्रण के विधि (1) हाथ से चुनकर विधि ,

(2) गुरुत्व पृथकरण विधि , (3) फेन प्लवन विधि , (4) चुंबकीय पृथकरण विधि , (5) गलनिक पृथकरण विधि , (6) निक्षालन विधि   के बारे में बताएँ 

अयस्क के सांद्रण के प्रमुख विधियाँ निम्नलिखित है - 

(1) हाथ से चुनकर विधि - 

      अयस्क के सांद्रण का वह विधि जिसमे अयस्क में उपस्थित बड़े आकार के अशुद्धियों को हाथ से चुनकर अलग किया जाता है | हाथ से चुनकर विधि कहलाता है |

(2) गुरुत्व पृथकरण विधि -

       अयस्क के सांद्रण का वह विधि जिसमे उपस्थित अशुद्धिओ को हटाने के लिए अयस्क के चूर्ण को जल के साथ मिश्रित कर उसे कई मेढ़ों से युक्त एक कम्पन करने वाले टेबुल से होकर प्रवाहित किया जाता है | जिससे अयस्क के भारी कण मेढ़ो द्वारा रोक लिया जाता है | जबकि अशुद्धि मेढ़ों के ऊपर से निकल जाता है | इस विधि को गुरुत्व पृथकरण विधि कहा जाता है |

(3) फेन प्लवन विधि - 

     अयस्क का सांद्रण का वह विधि जिसमे अयस्क के भारी चूर्ण को जल से भरी एक टंकी में डालते है | उसके बाद जल में थोड़ा तेल डालकर वायु प्रवाह के द्वारा जल को आलोड़ित किया जाता है |जिससे झाग उत्पन्न होता है | जिसके परिणामस्वरूप विलेय अशुद्धि जल में घुल जाते है | तथा अयस्क हलके होने के कारण फेन के साथ जल की सतह पर आ जाता है जिसे छान कर अलग कर लिया जाता है | पुनः झाग को समाप्त करने के लिए उसमे थोड़ा अम्ल मिलाते है | उसके  बाद  अयस्क को  छान कर सूखा लेते है |

 (4) चुंबकीय पृथकरण विधि - 

        अयस्क का सांद्रण का वह विधि जिसमे उपस्थित अपद्रव्यों में से कोई एक चुंबकीय पदार्थ उपस्थित रहता है | तो इस अयस्क को पीसकर महीन चूर्ण बना लिया जाता है | इसके बाद चूर्ण को विधुत चुंबकीय बेलनों के बेल्ट पर डालकर  मशीन को चालू कर दिया जाता है | जिसके कारण चुंबकीय पदार्थ चुंबक से आकर्षित होकर एक पात्र में गिरता है | जबकि अचुंबकीय पदार्थ उससे दूर होकर एक दूसरे पात्र में गिरता है |जिसे अलग कर लिया जाता है |

(5) गलनिक पृथकरण विधि - 

       अयस्क के सांद्रण का वह विधि जिसमे अयस्क का द्रवणांक उसमे उपस्थित अपद्रव्यों के द्रवणांक से कम होता है | तो ऐसे अशुद्ध पदार्थ को गर्म करके पिघला दिया जाता है |इसके बाद अयस्क को एक ढालुएँ तल से होकर प्रवाहित किया जाता है |जिसके परिणामस्वरूप अयस्क तल से आगे बढ़ जाता है | जबकि अपद्रव्य पीछे छूट जाता है |इसी विधि को गलनिक पृथकरण विधि कहा जाता है |

(6) निक्षालन विधि - 

                   इस विधि का उपयोग वैसे अयस्कों के लिए किया जाता है जिसमे उपस्थित अपद्रव्यों के रासायनिक गुण भिन्न भिन्न होता है | सर्वप्रथम अयस्क को चूर्ण बना लिया जाता है | इसके बाद इस चूर्ण को एक विलायक में डाला जाता है | जिससे अयस्क इसमें घुल जाता है , अपद्रव्य अविलेय अवस्था में ही रह जाता है जिसे अलग कर लिया जाता है | 
        जैसे - बॉक्साइड अयस्क में Fe2O3 , SiO2 आदि अशुद्धि के रूप में रहता है जिसे सोडियम हाइड्राऑक्साइड के विलयन में डाला जाता है जिससे अयस्क के Al2O3 एवं SiO3 घुलकर क्रमशः सोडियम ऐलुमिनेट एवं सोडियम सिलिकेट का निर्माण करता है | अविलेय अपद्रव्यों को छानकर अलग कर लिया जाता है | छनित द्रव थोड़ा ताजा बने ऐलुमिनियम हाइड्राऑक्साइड मिलकर उसे आलोड़ित किया जाता है जिससे द्रव में उपस्थित सोडियम ऐलुमिनेट ,ऐलुमिनियम हाइड्राऑक्साइड के अवक्षेप बनकर अलग हो जाता है | सोडियम सिलिकेट विलयन में ही शेष रह जाता है | इस अवक्षेप को छानकर साफ करके सूखा लिया जाता है | इसके बाद इसे गर्म करके Al2O3 में परिवर्तित किया जाता है जिसे ऐलूमिना कहा जाता है | Al2O3 + 2 NaOH ⟶ 2NaAlI3 + H2O , NaAlO2 + 2H2O  ⟶ Al(OH)3 +NaOH , 2Al(OH)3 ⟶ + 3H2O

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