सोमवार, 21 जुलाई 2025

19 साल बाद मुंबई लोकल ट्रेन धमाके के सभी 12 आरोपी बरी

 19 साल बाद मुंबई लोकल ट्रेन धमाके के सभी 12 आरोपी बरी

19 साल बाद भी गुनहगार बेनकाब नहीं: मुंबई लोकल ट्रेन धमाके के सभी 12 आरोपी बरी, न्याय पर गहरा सवाल!






मुंबई: 2006 में मुंबई की लोकल ट्रेनों को दहला देने वाले सिलसिलेवार बम धमाकों के 19 साल बाद, बॉम्बे हाई कोर्ट ने मामले के सभी 12 आरोपियों को बरी कर दिया है. इस फैसले ने न केवल पीड़ितों और उनके परिवारों के लिए न्याय की उम्मीदों को झटका दिया है, बल्कि यह सवाल भी खड़ा कर दिया है कि आखिर इन भीषण हमलों का असली गुनहगार कौन था, जिसमें 189 लोगों की जान चली गई थी और लगभग 800 लोग घायल हुए थे.

हाई कोर्ट का फैसला: अभियोजन पक्ष की नाकामी

बॉम्बे हाई कोर्ट ने अपने विस्तृत फैसले में अभियोजन पक्ष पर गंभीर सवाल उठाए हैं. कोर्ट ने स्पष्ट रूप से कहा कि प्रॉसिक्यूशन आरोपियों के खिलाफ दोष साबित करने में पूरी तरह नाकाम रहा. पेश किए गए सबूतों को ठोस तथ्यविहीन बताया गया, और अभियोजन पक्ष के सभी गवाहों के बयान को अविश्वसनीय करार दिया गया.

आरोपियों के बरी होने की मुख्य वजहें

अदालत ने जिन प्रमुख बिंदुओं पर आरोपियों को बरी किया, वे अभियोजन पक्ष की जांच और सबूतों की गुणवत्ता पर गंभीर सवाल उठाते हैं:

 * सबूतों का अविश्वसनीय होना: कोर्ट ने पाया कि अभियोजन पक्ष द्वारा पेश किए गए सबूत विश्वसनीय नहीं थे और उनमें कई खामियां थीं.

 * पहचान परेड में गंभीर खामियां: पहचान परेड (Identification Parade) में गंभीर प्रक्रियात्मक अनियमितताएं पाई गईं, जिससे उनकी विश्वसनीयता संदिग्ध हो गई.

 * गवाहों की गवाही संदिग्ध: कई गवाहों की गवाही में विरोधाभास और असंगतियां थीं, जिससे उनकी विश्वसनीयता पर संदेह पैदा हुआ.

 * जबरन ली गई गवाही कानूनन अमान्य: कोर्ट ने उन गवाहियों को अस्वीकार कर दिया, जो कथित तौर पर जबरन या दबाव में ली गई थीं, क्योंकि ऐसी गवाहियां कानूनन अमान्य होती हैं.

तो फिर मुंबई लोकल ट्रेन बम धमाके का जिम्मेदार कौन?

बॉम्बे हाई कोर्ट के इस फैसले के बाद, मुंबई लोकल ट्रेन बम धमाकों का जिम्मेदार कौन है, यह सवाल एक बार फिर अधर में लटक गया है. 189 लोगों की मौत और सैकड़ों लोगों के घायल होने के बाद भी, 19 साल बाद भी गुनहगारों का पता नहीं चल पाया है. यह फैसला न केवल न्याय प्रणाली के लिए एक बड़ी चुनौती है, बल्कि उन पीड़ित परिवारों के लिए भी एक त्रासदी है, जिन्हें अब तक न्याय नहीं मिल पाया है. यह देखना बाकी है कि अब जांच एजेंसियां इस मामले में आगे क्या कदम उठाती हैं.


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