मंगलवार, 10 जून 2025

मनुष्य में वहन तंत्र के घटक कौन कौन से है ? इन घटको के कार्य क्या है ?

मनुष्य में वहन तंत्र के घटक कौन कौन से है ? इन घटको के कार्य क्या है ? 

मनुष्य में वहन तंत्र के घटक कौन कौन से है ? इन घटको के कार्य क्या है ? 


मनुष्य में वहन तंत्र, जिसे संचार प्रणाली (Circulatory System) भी कहते हैं, शरीर में विभिन्न पदार्थों के परिवहन का कार्य करता है। इसके मुख्य घटक निम्नलिखित हैं:

1. रक्त (Blood):

 * कार्य:

   * ऑक्सीजन और पोषक तत्वों का परिवहन: फेफड़ों से ऑक्सीजन और छोटी आंत से अवशोषित पोषक तत्वों को शरीर की सभी कोशिकाओं तक पहुंचाता है।

   * कार्बन डाइऑक्साइड और अपशिष्ट पदार्थों का परिवहन: कोशिकाओं से कार्बन डाइऑक्साइड और अन्य अपशिष्ट पदार्थों को गुर्दे और फेफड़ों तक ले जाता है ताकि उन्हें शरीर से बाहर निकाला जा सके।

   * हार्मोन का परिवहन: अंतःस्रावी ग्रंथियों (endocrine glands) द्वारा स्रावित हार्मोन को उनके लक्ष्य अंगों तक पहुंचाता है।

   * तापमान का विनियमन: शरीर के तापमान को नियंत्रित करने में मदद करता है।

   * संक्रमण से बचाव: सफेद रक्त कोशिकाएं (WBCs) और एंटीबॉडी शरीर को संक्रमण से बचाते हैं।

   * थक्का जमना: प्लेटलेट्स (platelets) चोट लगने पर रक्त का थक्का बनाने में मदद करते हैं, जिससे रक्तस्राव रुकता है।

2. रक्त वाहिकाएँ (Blood Vessels):

ये नलिकाएँ हैं जिनके माध्यम से रक्त पूरे शरीर में प्रवाहित होता है। ये तीन मुख्य प्रकार की होती हैं:

 * धमनियां (Arteries):

   * कार्य: हृदय से ऑक्सीजन युक्त रक्त को शरीर के विभिन्न अंगों तक ले जाती हैं (फुफ्फुसीय धमनी को छोड़कर, जो हृदय से फेफड़ों तक ऑक्सीजन रहित रक्त ले जाती है)। इनकी दीवारें मोटी और लचीली होती हैं ताकि हृदय के पंपिंग दबाव को सहन कर सकें।

 * शिराएँ (Veins):

   * कार्य: शरीर के विभिन्न अंगों से कार्बन डाइऑक्साइड युक्त रक्त को वापस हृदय तक ले जाती हैं (फुफ्फुसीय शिरा को छोड़कर, जो फेफड़ों से ऑक्सीजन युक्त रक्त को हृदय तक ले जाती है)। इनमें वाल्व (valves) होते हैं जो रक्त को केवल एक दिशा में, यानी हृदय की ओर, बहने में मदद करते हैं।

 * केशिकाएँ (Capillaries):

   * कार्य: ये सबसे छोटी रक्त वाहिकाएँ हैं जो धमनियों और शिराओं को जोड़ती हैं। इनकी दीवारें एक कोशिका जितनी पतली होती हैं, जिससे ऑक्सीजन, पोषक तत्व, कार्बन डाइऑक्साइड और अपशिष्ट पदार्थों का कोशिकाओं और रक्त के बीच आदान-प्रदान आसानी से हो सके।

3. हृदय (Heart):

 * कार्य:

 यह एक पेशीय अंग है जो पूरे शरीर में रक्त को पंप करता है। यह एक दोहरा पंप (double pump) के रूप में कार्य करता है:

   * दायां भाग: शरीर से ऑक्सीजन रहित रक्त प्राप्त करता है और उसे फेफड़ों तक पंप करता है ताकि वह ऑक्सीजन ले सके।

   * बायां भाग: फेफड़ों से ऑक्सीजन युक्त रक्त प्राप्त करता है और उसे शरीर के बाकी हिस्सों तक पंप करता है।

     वहन तंत्र  - वहन तंत्र शरीर में जीवन के लिए आवश्यक सभी पदार्थों को पहुंचाने और अपशिष्ट पदार्थों को हटाने के लिए एक कुशल प्रणाली के रूप में कार्य करता है, जिससे शरीर के सभी अंग ठीक से काम कर सकें।


रविवार, 8 जून 2025

विद्युत धारा का उष्मीय प्रभाव किन कारको पर निर्भर करता है ?

 विद्युत धारा का उष्मीय प्रभाव किन कारको पर निर्भर करता है ?

विद्युत धारा का उष्मीय प्रभाव (जिसे जूल का तापन नियम भी कहते हैं) मुख्य रूप से तीन कारकों पर निर्भर करता है:

 * विद्युत धारा की मात्रा (Current, I): जितनी अधिक विद्युत धारा प्रवाहित होगी, उतनी ही अधिक ऊष्मा उत्पन्न होगी। ऊष्मा की मात्रा धारा के वर्ग के समानुपाती होती है (H \propto I^2)। इसका मतलब है कि अगर आप धारा को दोगुना करते हैं, तो उत्पन्न ऊष्मा चार गुना हो जाएगी।

 * चालक का प्रतिरोध (Resistance, R): चालक का प्रतिरोध जितना अधिक होगा, उतनी ही अधिक ऊष्मा उत्पन्न होगी। ऊष्मा की मात्रा प्रतिरोध के समानुपाती होती है (H \propto R)। उच्च प्रतिरोध वाले तार, जैसे कि हीटर में उपयोग होने वाले तार, अधिक ऊष्मा उत्पन्न करते हैं।

 * धारा प्रवाह का समय (Time, t): जितने अधिक समय तक विद्युत धारा प्रवाहित होती है, उतनी ही अधिक ऊष्मा उत्पन्न होगी। ऊष्मा की मात्रा समय के समानुपाती होती है (H \propto t)।

इन तीनों कारकों को मिलाकर जूल के तापन नियम का सूत्र बनता है:

H = I^2 Rt

जहाँ:

 * H उत्पन्न ऊष्मा है (जूल में)

 * I विद्युत धारा है (एम्पियर में)

 * R चालक का प्रतिरोध है (ओम में)

 * t समय है (सेकंड में)


शुक्रवार, 6 जून 2025

रूस का यूक्रेन पर भीषण हमला: 400 से अधिक ड्रोन, 40 मिसाइलों से तबाही, 3 आपातकालीन कर्मियों की मौत


रूस का यूक्रेन पर भीषण हमला: 400 से अधिक ड्रोन, 40 मिसाइलों से तबाही, 3 आपातकालीन कर्मियों की मौत




रूस का यूक्रेन पर भीषण हमला: 400 से अधिक ड्रोन, 40 मिसाइलों से तबाही-


कीव, यूक्रेन – रूस ने अपनी आक्रामक नीति को जारी रखते हुए आज यूक्रेन के शहरों और नागरिक जीवन पर एक और बड़ा हमला किया। इस हमले में लगभग पूरे यूक्रेन को निशाना बनाया गया, जिसमें वोलिन, लविवि, टेरनोपिल, कीव, सुमी, पोल्टावा, खमेलनित्स्की, चर्कासी और चेर्निहिव क्षेत्र शामिल थे। यूक्रेनी अधिकारियों के अनुसार, इस हमले में 400 से अधिक ड्रोन और 40 से अधिक मिसाइलों, जिनमें बैलिस्टिक मिसाइलें भी शामिल थीं, का इस्तेमाल किया गया।

यूक्रेनी रक्षा बलों ने कुछ मिसाइलों और ड्रोन को सफलतापूर्वक मार गिराया, लेकिन दुर्भाग्य से सभी को रोका नहीं जा सका। इस भीषण हमले के परिणामस्वरूप अब तक 49 लोग घायल हुए हैं, और यह संख्या बढ़ने की आशंका है क्योंकि अधिक लोग मदद के लिए आगे आ रहे हैं।

सबसे दुखद बात यह है कि इस हमले में यूक्रेन की राज्य आपातकालीन सेवा के तीन कर्मचारियों की मौत की पुष्टि हुई है। उनके परिवारों के प्रति गहरी संवेदना व्यक्त की गई है। सभी आवश्यक सेवाएँ अब घटनास्थल पर मौजूद हैं, मलबे को साफ करने और बचाव अभियान चलाने में जुटी हुई हैं। अधिकारियों ने आश्वासन दिया है कि सभी नुकसानों को निश्चित रूप से बहाल किया जाएगा।

यूक्रेनी सरकार ने रूस को इस हमले के लिए पूरी तरह से जवाबदेह ठहराया है। उन्होंने इस बात पर जोर दिया है कि युद्ध के पहले मिनट से ही रूस शहरों और गांवों पर हमला कर रहा है, जिसका उद्देश्य जीवन को नष्ट करना है। यूक्रेन ने अपनी रक्षा क्षमताओं को बढ़ाने के लिए दुनिया के साथ मिलकर महत्वपूर्ण प्रयास किए हैं।

यूक्रेनी नेतृत्व ने अब अमेरिका, यूरोप और दुनिया भर के सभी देशों से रूस पर निर्णायक दबाव बनाने का आह्वान किया है ताकि इस युद्ध को रोका जा सके। उन्होंने चेतावनी दी है कि यदि कोई दबाव नहीं बनाया जाता है और युद्ध को लोगों की जान लेने के लिए और समय दिया जाता है, तो यह मिलीभगत और जवाबदेही होगी। यूक्रेन ने वैश्विक समुदाय से निर्णायक रूप से कार्य करने का आग्रह किया है।


शनिवार, 24 मई 2025

भारत के न्याय प्रणाली कितना सुलभ जो न्याय पाने ने जीवन गुजर जाता है

 लखन पुत्र मंगली की कहानी, जिन्हें 43 साल जेल में रखने के बाद 103 साल की उम्र में बाइज्ज़त बरी किया गया, भारतीय न्याय व्यवस्था की जटिलताओं और चुनौतियों को उजागर करती है. यह घटना न्याय और अन्याय के बीच की महीन रेखा पर गंभीर सवाल खड़े करती है.

   


43 साल का इंतज़ार और एक शताब्दी की उम्र

लखन को 1977 में हत्या के आरोप में गिरफ्तार किया गया था. 1982 में निचली अदालत ने उन्हें आजीवन कारावास की सजा सुनाई, लेकिन लखन का कहना था कि वह निर्दोष हैं | उन्होंने उसी साल इलाहाबाद हाईकोर्ट में अपील दायर की. चौंकाने वाली बात यह है कि उनकी यह अपील 43 साल तक चलती रही  | और इस दौरान लखन जेल में ही बंद रहे. अंततः 2 मई 2025 को इलाहाबाद हाईकोर्ट ने उन्हें बाइज्ज़त बरी करने का आदेश दिया, जब उनकी उम्र 103 वर्ष हो चुकी थी |

यह घटना हमें सोचने पर मजबूर करती है कि क्या 43 साल का इंतज़ार, जिसमें एक व्यक्ति की पूरी जवानी और बुढ़ापा जेल में कट जाए, न्याय कहा जा सकता है? जिस व्यक्ति को निर्दोष साबित होने में इतना समय लगा, उसे उसके जीवन के सबसे महत्वपूर्ण वर्ष किसने लौटाए?

न्याय कितना महंगा है?

यह कहानी भारतीय न्याय प्रणाली में एक और गंभीर समस्या को सामने लाती है: न्याय की बढ़ती लागत. जैसा कि खबर में बताया गया है, भारत में मुकदमा लड़ना बहुत महंगा है. वकीलों की फीस, अदालती प्रक्रियाएँ और सालों तक चलने वाले मुकदमों का खर्च आम आदमी की पहुँच से बाहर होता जा रहा है | लखन जैसे गरीब व्यक्ति के लिए हाईकोर्ट या सुप्रीम कोर्ट में महंगे वकीलों का खर्च उठाना असंभव है |

कई लोग न्याय पाने के लिए अपनी ज़मीनें, मकान बेच देते हैं या कर्ज लेते हैं. इसके बावजूद, न्याय मिलने की कोई गारंटी नहीं होती और अक्सर लोगों की पूरी ज़िंदगी मुकदमेबाजी में गुजर जाती है. यह स्थिति उन गरीब और वंचित लोगों के लिए और भी कठिन हो जाती है, जो आर्थिक रूप से कमजोर होने के कारण न्याय से वंचित रह जाते हैं|

अंतिम उम्मीद, लेकिन कितनी सुलभ?

आज भी भारत में लोग अदालत को अपनी अंतिम उम्मीद मानते हैं. जब हर जगह से निराशा मिलती है, तो लोग कहते हैं, "मैं मुकदमा करूँगा, मैं अदालत जाऊँगा." यह लोगों का न्याय प्रणाली पर विश्वास दिखाता है, लेकिन क्या यह विश्वास हमेशा बरकरार रह पाता है, खासकर लखन जैसे मामलों में?

न्याय व्यवस्था चलाने वाले लोगों को इस बात पर गंभीरता से विचार करना होगा कि न्याय कितना महंगा हो गया है और यह सुनिश्चित करना होगा कि हर व्यक्ति को, चाहे वह कितना भी गरीब क्यों न हो, समय पर और उचित न्याय मिल सके. लखन की कहानी हमें यह भी याद दिलाती है कि न्याय में देरी, न्याय से इनकार के समान है|

लखन की रिहाई एक जीत है, लेकिन यह उन अनगिनत लोगों के लिए एक कड़वी सच्चाई भी है जो आज भी हमारी न्याय प्रणाली की धीमी गति और उच्च लागत से जूझ रहे हैं. क्या इस घटना से हमारी न्याय प्रणाली में कोई सुधार आएगा?


शनिवार, 13 जनवरी 2024

पौधों में जल और खनिज लवण का परिवहन कैसे होता है ?

       पौधों में जल और खनिज लवण का परिवहन कैसे होता है ? 

             पौधों में जाइलम कोशिकाएं मौजूद होती है  जिसके द्वारा पौधों में जल तथा खनिज लवण मृदा अर्थात मिट्टी से पत्तियों तक परिवहन करते रहता है | पादप में जाइलम कोशिकाएं  , जड़ , तना तथा पत्तियों से जाइलम कोशिकाएं परस्पर जुड़कर संयोजी मार्ग बनाता है |


  जब जड़ो की कोशिकाएं मृदा से लवण प्राप्त करती है तो ये मृदा तथा जड़ के लवणों में सांद्रता में फर्क उत्पन्न करती है जिसके कारण निरंतर गति जाइलम में होती रहती है |इसमें परासरण दबाव उत्पन्न होता है जिसके फलस्वरूप जल और खनिज लवण एक कोशिका से दूसरे कोशिका में परासरण के कारण परिवहित होते रहता है | जब पौधों में वाष्पोत्सर्जन के कारण जल की निरंतर ह्रास होता रहता है | जिसके कारण चूषक बल उतपन्न होता है जिसके फलस्वरूप पौधों में लवणोकि हमेशा गति होती रहती है और जल तथा लवणों का परिवहन होते रहता है | इस प्रकार पादपों में जल तथा खनिज लवणों का परिवहन होते रहता है | 


मंगलवार, 9 जनवरी 2024

मनुष्य में वहन तंत्र के घटक कौन कौन से है ? इन घटको के कार्य क्या है

  मनुष्य में वहन तंत्र के घटक कौन कौन से है ? इन घटको के कार्य क्या है ? 

       मनुष्य में वहन तंत्र के घटक कौन कौन है ? 

     मनुष्य में निम्नलिखित वहन तंत्र है 

    (i)  ह्रदय 

     (ii) रुधिर 

      (iii) रुधिर वाहिकाएँ 

     इन घटको के कार्य 

      (i)  ह्रदय -  ह्रदय मनुष्य के शरीर में एक पम्पिंग अंग है | ये मनुष्य के शरीर में पम्पिंग का कार्य करता है | ये मनुष्य के  शरीर में   रुधिर को प्रवाहित करता है | ह्रदय विऑक्सिजनित रुधिर को मनुष्य के शरीर के विभिन्न हिस्सो से प्राप्त करता है | तथा ऑक्सिजनित रुधिर को मनुषहिस्से शरीर के  पुरे हिस्से में पंप करता है |

  


  

  (ii) रुधिर  - रुधिर मनुष्य के शरीर में tतरल संयोजी उत्तक है , रुधिर में निम्न पदार्थ उपस्थित रहता है 

  ( a) प्लाज्मा  

  (b) लाल रक्त कनिका 

  (c) श्वेत रक्त कनिका 

  (d) प्लेटलेट्स  

           (a) प्लाज्मा - प्लाज्मा , मनुष्य के शरीर में तरल रूप में भोजन , कार्बन डाइऑक्साइड तथा नाइट्रोजनयुक्त उत्सर्जन पदार्थो का परिवहन करता है | 

           (b) लाल रक्त कनिका   - लाल रक्त कनिकाऐं  श्वशन गैसों तथा हार्मोनों का परिवहन करता है | 
          (c) श्वेत रक्त कनिका  -  श्वेत रक्त कणिकाएं मनुष्य की शरीर की रक्षा प्रणाली है जो संक्रमणो में मनुष्य को राक्षा करता है | 

           (d) प्लेटलेट्स   -  रुधिर प्लेटलेट्स भी मनुष्य के शरीर का अहम् हिस्सा है जो मनुष्य में रुधिर हानि को रोकता है | 

       जब मनुष्य घायल हो जाता है तो उस समय उसके शरीर के किसी भी हिस्से  से जब रक्त गिरने लगता है | तो उस समय  प्लेटलेट्स रक्त को थक्का बनाकर रक्त को गिरने से रोकती है |  

      (iii)  रुधिर वाहिकाएं  -  रुधिर वाहिकाओं का एक जाल होता है | जो मनुष्य के पुरे शरीर में परिवहन मे मदद करता है | 

       

    स्वपोषी पोषण तथा विषमपोषी पोषण  में क्या अंतर है

शुक्रवार, 5 जनवरी 2024

स्वपोषी पोषण तथा विषमपोषी पोषण में अन्तर क्या है ?

              स्वपोषी पोषण तथा  विषमपोषी पोषण में अन्तर क्या है ? 

   स्वपोषी पोषण तथा विषमपोषी पोषण में क्या अन्तर है ? 

          उत्तर  - स्वपोषी पोषण - जब हरा पौधा अपना भोजन के       लिए सूर्य के प्रकाश की उपस्थिति में कार्बन डाइऑक्साइड तथा  जल की सहायता से अपना भोजन स्वयं बनता है तो वह स्वपोषी कहलाता है तथा इस  क्रिया को प्रकाश संश्लेषण कहा जाता है | 

     विषमपोषी पोषण -  जब  जीव जन्तु अपना भोजन  स्वयं नहीं बना पाता है वह अपना भोजन के लिए किसी दूसरे पर निर्भर रहता है  विषमपोषी कहलाता है | 
   


          इसे भी जानें 

 1) पौधे या पादप प्रकाश संश्लेषण के लिए आवश्यक कच्ची सामग्री कहाँ से प्राप्त करता है ? 

            पादप को  प्रकाश संश्लेषण की क्रिया के लिए मुख्य         रूप से निम्नलिखित कच्चे सामग्री की आवश्यता होती है -


  (i)  कार्बन डाइऑक्साइड - पेड़ - पौधे प्रकाश संश्लेषण की क्रिया    के लिए कार्बन डाइऑक्साइड ( CO2) वातावरण से पौधे अपने  रंध्रों के माध्यम से प्राप्त करता है |  

   (ii)  जल -  पादप अर्थात पेड़ -  पौधे  प्रकाश संश्लेषण की क्रिया     के लिए जल जड़ो द्वारा अवशोषण की क्रिया करके मृदा से प्राप्त   करता है तथा पत्तियों तक इसका परिवहन करता है | 


2) श्वशन के लिए ऑक्सीजन प्राप्त करने की दिशा में एक जलीय जीव की अपेक्षा स्थलीय जीव कैसे लाभप्रद है ? 



   3) प्राकृतिक  संसाधन किसे कहते है  ? प्राकृतिक संसाधन के बारे में वर्णन करें 



     

गुरुवार, 4 जनवरी 2024

श्वसन के लिए ऑक्सीजन प्राप्त करने की दिशा में एक जलीय जीव की अपेक्षाकृत स्थलीय जीव किस प्रकार लाभदायक है ?

    श्वसन के लिए ऑक्सीजन प्राप्त करने की दिशा में एक जलीय जीव की  अपेक्षाकृत स्थलीय जीव किस प्रकार लाभदायक है  ?

    

श्वसन के लिए ऑक्सीजन प्राप्त करने की दिशा में एक जलीय जीव की  अपेक्षाकृत स्थलीय जीव किस प्रकार लाभदायक है  ?

         
          
                वैसे जीव जो जल में निवास करता है वे जीव  अपने 
  यापन के लिए जल में घुली हुई ऑक्सीजन का प्रयोग करती है |     लेकिन जल  जल में घुली  हुई ऑक्सीजन की मात्रा बहुत कम 
 होती है इसलिए जलीय जीव में श्वशन की दर अधिक होती है |

                 जबकि स्थलीय जीव को देखे तो पर्याप्त ऑक्सीजन       वाले वातावरण में रहता है  | जो वातावरण से अपनी  श्वशन 
 अंगो के द्वारा ऑक्सीजन ग्रहण करता है | इसलिए इसका 
 श्वशन दर काफी कम होता है | 

               इसलिए हम कह सकते है श्वशन के लिए ऑक्सीजन           ग्रहण करने की दिशा में एक जलीय जीव की अपेक्षा स्थलीय
  जिव ज्यादा लाभप्रद होता है | 


जलीय जीवों की तुलना में स्थलीय जीवों को श्वसन के लिए ऑक्सीजन प्राप्त करने में कई फायदे होते हैं। यहाँ कुछ प्रमुख बिंदु दिए गए हैं:

 * ऑक्सीजन की उपलब्धता:

   * स्थलीय जीव: हवा में ऑक्सीजन की सांद्रता लगभग 21% होती है, जो बहुत अधिक और स्थिर होती है। इससे स्थलीय जीवों को श्वसन के लिए प्रचुर मात्रा में ऑक्सीजन आसानी से मिल जाती है।
   * जलीय जीव: पानी में घुली हुई ऑक्सीजन की मात्रा हवा की तुलना में बहुत कम होती है (लगभग 0.5% से 1% तक, तापमान और लवणता के आधार पर)। ठंडे पानी में अधिक ऑक्सीजन घुलती है, लेकिन फिर भी हवा की तुलना में काफी कम होती है। इसलिए, जलीय जीवों को ऑक्सीजन प्राप्त करने के लिए अधिक प्रयास करना पड़ता है।

 * गैस विनिमय की दक्षता:

   * स्थलीय जीव: स्थलीय जीवों (जैसे स्तनधारी) के फेफड़े सीधे हवा के संपर्क में होते हैं, जिससे गैस विनिमय (ऑक्सीजन लेना और कार्बन डाइऑक्साइड छोड़ना) बहुत कुशल होता है। फेफड़ों की सतह को नम रखने के लिए उन्हें केवल थोड़ी ऊर्जा खर्च करनी पड़ती है।
   * जलीय जीव: जलीय जीवों (जैसे मछलियाँ) को अपने गलफड़ों से बड़ी मात्रा में पानी गुजारना पड़ता है ताकि उसमें से ऑक्सीजन को निकाला जा सके। पानी हवा की तुलना में सघन और अधिक चिपचिपा होता है, इसलिए पानी को गलफड़ों से गुजारने में अधिक ऊर्जा खर्च होती है।

 * ऑक्सीजन का परिवहन:

   * स्थलीय जीव: हवा में ऑक्सीजन का प्रसार पानी की तुलना में बहुत तेज होता है। फेफड़ों में ऑक्सीजन तेजी से रक्त में घुल जाती है और शरीर के विभिन्न भागों तक पहुंचाई जाती है।
   * जलीय जीव: पानी में ऑक्सीजन का प्रसार धीमा होता है, जिससे जलीय जीवों को ऑक्सीजन को कुशलतापूर्वक अवशोषित करने के लिए विशेष अनुकूलन (जैसे बड़े और पतले गलफड़े) की आवश्यकता होती है।

 * तापमान का प्रभाव:

   * स्थलीय जीव: हवा में ऑक्सीजन की उपलब्धता तापमान से सीधे प्रभावित नहीं होती है।
   * जलीय जीव: पानी का तापमान बढ़ने पर उसमें घुली हुई ऑक्सीजन की मात्रा घट जाती है। गर्म पानी में जलीय जीवों को ऑक्सीजन की कमी का सामना करना पड़ सकता है, खासकर जब पानी में कार्बनिक पदार्थ अधिक हों और सूक्ष्मजीवों द्वारा ऑक्सीजन का उपभोग हो रहा हो।
संक्षेप में, स्थलीय जीव हवा में प्रचुर मात्रा में और आसानी से उपलब्ध ऑक्सीजन का लाभ उठाते हैं, जबकि जलीय जीवों को पानी में ऑक्सीजन की कम सांद्रता, इसके धीमे प्रसार और इसे कुशलतापूर्वक निकालने के लिए अधिक ऊर्जा खर्च करने की चुनौतियों का सामना करना पड़ता है।



          
     

विद्युत धारा के उष्मीय प्रभाव किन किन कारकों पर निर्भर करता है ?  

   

             किसी चालक तार का प्रतिरोध किन कारको पर  
             निर्भर   करता है ?


रविवार, 31 दिसंबर 2023

प्राकृतिक संसाधन किसे कहते हैं ? प्राकृतिक संसाधन के बारे में वर्णन करें

    प्राकृतिक संसाधन किसे  कहते है ?

प्राकृतिक संसाधन  :  पृथ्वी द्वारा प्राप्त वैसे सामग्री जो हमारे जीवन को सुगमय बनता है तथा लोगो को जरूरतों को पूरा करने के लिए किया जाता है प्राकृतिक संसाधन कहलाता है |

          किसी देश की अर्थव्यवस्थ वहां पर उपलब्ध प्राकृतिक संसाधनों पर निर्भर करती है इसलिए उनकी स्थिति , उपलब्धता , विकास तथा  संरक्षण की जानकारी आवश्यक है |

            कुछ प्राकृतिक संसाधन निम्नलिखित है

      भूमि संसाधन किसे कहते है इसके बारे में वर्णन करे 

 भूमि एक प्राकृतिक संसाधन है जिसका अनेक कार्यों के लिए उपयोग होता है | पर्यावरण की सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए इसका उचित उपयोग आवश्यक है |देश का भू राजस्व विभाग भू उपयोग संबंधी अभिलेख रखता है |भूख उपयोग संवर्गों का योग कुल  प्रतिवेदन क्षेत्र के बराबर होता है |जो कि भौगोलिक क्षेत्र से भिन्न है भारत की प्रशासकीय इकाइयों के भौगोलिक क्षेत्र की सही जानकारी देने का दायित्व भारतीय सर्वेक्षण विभाग के पास है |

 भू राजस्व तथा सर्वेक्षण विभाग दोनों में मूलभूत अंतर यह है कि भू राजस्व द्वारा प्रस्तुत क्षेत्रफल प्रतिवेदित  क्षेत्र पर आधारित है जो  की कम या अधिक हो सकता है  | जबकि कुल भौगोलिक क्षेत्र भारतीय सर्वेक्षण विभाग के सर्वेक्षण पर आधारित है और यह स्थाई होता है |

                      भू  उपयोग वर्गीकरण

 भारत के 328.726 मिलियन  हेक्टेयर भौगोलिक क्षेत्र में से केवल 305.51 मिलियन  हेक्टेयर भौगोलिक क्षेत्र  के बारे में ही भूमि उपयोग आंकड़े प्राप्त है | भारत का वर्तमान भूमि उपयोग प्रतिरूप स्थलाकृति , जलवायु , मिट्टी , मानव क्रियाओं , और प्रौद्योगिकी आदानों   ऐसे अनेक कारको का प्रतिफल है |

                    वनों के अधीन क्षेत्र

 वर्गीकृत वन क्षेत्र तथा वनों के अंतर्गत वास्तविक क्षेत्र दोनों पृथक है | सरकार द्वारा वर्गीकृत वन क्षेत्र का सीमांकन इस प्रकार किया जाता है जहां वन  विकसित हो सकते हैं |भू राजस्व अभिलेखों में इसी परिभाषा को सतत अपनाया गया है इस प्रकार इस संवर्ग के क्षेत्रफल में वृद्धि दर्ज हो सकती है किंतु इसका अर्थ यह नहीं कि यहां वास्तविक रूप से वन पाए जाएंगे  |
 वनों के वर्गीकरण तथा वृक्षारोपण कार्यक्रम के फलस्वरूप हमारे देश में वन क्षेत्र में कुछ  वृद्धि हुई है |
 वर्ष 1950 से 1951 में वन प्रदेश केवल 4.0  करोड़ हेक्टेयर था वही वन रिपोर्ट वर्ष 2017 के  अनुसार देश में वनों के अधीन 802088 वर्ग किलोमीटर है  | जो देश की कुल भूमि का 24.39% है |

                      अन्य कृषि रहित भूमि

 वैसे भूमि जिस पर कृषि नहीं की जाती है कृषि रहित भूमि कहा जाता है परंतु इसमें परती भूमि को सम्मिलित नहीं किया जाता है | इस भूमि में निरंतर कमी आ रही है इस प्रकार की भूमि के अग्रलिखित उपवर्ग हो सकते हैं |
 स्थाई चरागाह तथा अन्य चराई  भूमि देश के कई भागों में इस प्रकार की भूमि को साफ करके कृषि योग्य  बनाया जा सकता है |

         वृक्षों , फसलों तथा उपवनों के अधीन भूमि - 

 इस वर्ग में ऐसी भूमि सम्मिलित की गई है जिस पर बाग वा अनेक प्रकार के पेड़ पाए जाते हैं | जिसमें फल आदि प्राप्त होते हैं  वर्तमान समय में देश की बढ़ती हुई जनसंख्या की खाद्यान पूर्ति के लिए भूमि के बहुत से भाग पर कृषि  होने लगी है |

                  कृषि योग्य परंतु बंजर भूमि

 यह  वह  भूमि है जो किसी भी काम के लिए प्रयोग नहीं की जाती है|  आधुनिक तकनीकी सहायता से उत्तम बीज , खाद  तथा सिंचाई की व्यवस्था करके कृषि के लिए इसका प्रयोग किया जा सकता है | बढ़ती हुई जनसंख्या के संदर्भ में भारत के लिए इस भूमि का बड़ा महत्व है पंजाब , हरियाणा तथा उत्तर प्रदेश में इस भूमि  का काफी विस्तार मिलता है  पिछले कुछ वर्षों में इस भूमि में सुधार करने के प्रयास किए गए हैं |

                              परती भूमि

 यह वह  भूमि है जिस पर पहले कृषि  की जाती थी परंतु अब इस भूमि पर कृषि नहीं की जाती है ऐसे भूमि पर निरंतर कृषि  करने से भूमि की उपजाऊ शक्ति कम हो जाती और  ऐसी भूमि पर कृषि करना आर्थिक दृष्टि से लाभदायक नहीं रहता है | अतः इसे कुछ समय के लिए खाली छोड़ दी जाता है | इसे फिर से उर्वरा शक्ति का विकास होता है और वह कृषि  के लिए उपयुक्त हो जाती है |

                                कृषित भूमि

 यह वह भूमि है जिस पर वास्तविक रूप से कृषि की जाती है इसे कुल या  सकल बोया गया क्षेत्र भी कहा जाता है | भारत में लगभग आधी भूमि पर कृषि की जाती है जो विश्व में सर्वाधिक भाग है भारत की कुल भूमि का 43.41% भाग कृषित है  |

                   निवल  बोया गया क्षेत्र

 यह वह  भूमि है जिस पर फसलें उगाई व काटी जाती है यह निवल बोया गया क्षेत्र कहलाता है | स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद इसमें पर्याप्त वृद्धि हुई है  इस वृद्धि के मुख्य कारण निम्नलिखित है |

   रेह तथा उसर भूमि को उपजाऊ बनाना

 बेकार खाली पड़ी भूमि को कृषि योग बनाना

 कृषि भूमि को पड़ती भूमि के रूप में ना छोड़ना

 चारागाह तथा बागों के लिए उपयोग की गई भूमि को कृषि के लिए प्रयोग करना

 सबसे अधिक कृषित भूमि पंजाब तथा हरियाणा में पाई जाती है जहां 80% भूमि पर कृषि की जाती है | 

                  एक से अधिक बार बोया गया क्षेत्र 

 भारत में कुल कृषित क्षेत्र का लगभग 25% भाग ऐसा है जिस पर वर्ष  में एक से अधिक बार फसल प्राप्त की जाती है  |इससे यह स्पष्ट होता है कि हम अपनी भूमि  का उचित प्रयोग  नहीं कर रहे हैं  क्योंकि 75% भूमि पर वर्ष में केवल एक ही फसल उगाई जाती है |

        जल संसाधन के बारे में बताएं

 जल बहुमुल्य प्राकृतिक संसाधन है और देश के सामाजिक और आर्थिक विकास का मूल आधार है |  भारत में ताजे जल का मुख्य स्रोत वर्षन है |  वर्षन से भारत में 4000 घन किमी  जल प्राप्त होती है |
 अकेले मानसूनी वर्षा  द्वारा 3000 घन किमी जल प्राप्त होता है| इसका बहुत सा भाग या तो  वाष्पीकरण  तथा वाष्पोत्सर्जन द्वारा वायुमंडल में चला जाता है या फिर भूमी मे रिसकर  भूमिगत जल का भाग बन जाता है |  जल संसाधन मंत्रालय के अनुसार हमारे देश में कुल 1869 घन किमी  जल उपलब्ध है  परंतु भू आकृतिक परिस्थितियों तथा जल संसाधनों के असमान वितरण के कारण उपयोग के योग कुल 1122 अरब घन मीटर जल ही उपलब्ध है |

 भारत में उपलब्ध कुल जल को दो विभिन्न वर्गों में बांटा जा सकता है धरातलीय जल तथा भूगर्भिक जल

                      धरातलीय जल

 सतही जल हमें नदियों , झीलों , तालाबों तथा अन्य जलाशयों के रूप में मिलता है | नदियों में जल वर्षा होने अथवा बर्फ के पिघलने से प्राप्त होता है सबसे अधिक सतही जल नदियों में पाया जाता है  भारत की नदियों का अनुमानित औसत वार्षिक प्रवाह 8869 अरब धन मीटर है | परंतु स्थालाकृति , जल विज्ञान संबंधी  तथा अन्य बाधाओं के कारण केवल 690 अरब घन मी  धरातलीय जल ही उपयोग के लिए उपलब्ध है  कुल धरातलीय  जल का लगभग 60% भाग भारत के तीन प्रमुख नदियों सिंधु , गंगा और ब्रह्मपुत्र में से होकर बहता है  भारत में निर्मित तथा निर्माणाधीन जल भंडार की क्षमता स्वतंत्रता के समय केवल 18 अरब घन मी थी  जो अब बढ़कर 147 अरब घन मीटर हो गई है यह भारतीय नदी द्रोणीओं में प्रवाहित होने वाली कुल जल राशि का 8.47% है |

                 भौम जल या भूगर्भिक जल

 वर्षा से प्राप्त हुए जल की कुल मात्रा का कुछ भाग भूमि द्वारा सोख लिया जाता है | इसका 60% भाग मिट्टी की ऊपरी सतह तक ही पहुंचता है | यही जल कृषि उत्पादन के लिए बहुत महत्वपूर्ण है शेष जल धरातल के भीतर  प्रवेश  स्तर तक  पहुंचता है   इस जल को कुआं खोदकर प्राप्त किया जाता है अनुमान है | कि भारत में कुल  अपूरणीय भौम जल क्षमता लगभग 432 अरब घन मीटर है |
 देश में भूगर्भिक जल का वितरण बहुत  आसामान है इस पर चट्टान की संरचना धरातलीय दशा जलापूर्ति की दशा आदि कारणों का प्रभाव पड़ता है भारत के समतल मैदानी भागों में स्थित जल  चट्टानों वाले अधिकांश भागों में भूगर्भीय जल की अपार राशि  विद्यमान है यहां पर प्रवेश्य  चट्टाने पाई जाती है  | जिसमें से जल आसानी से रिसकर  भूगर्भिक जल का रूप धारण कर लेता है  लगभग 42% से अधिक भौम जल भारत के  विशाल  मैदानो के  राज्यो में पाया जाता है |
 इसके विपरीत  प्रायद्वीपीय पठारी भाग कठोर तथा अप्रवेश्य  चट्टानों का बना हुआ है  | जिसमें से जल रिसकर  नीचे नहीं जा सकता इसलिए इस क्षेत्र में भूगर्भिक जल का अभाव है |

                   भौम जल का उपयोग

 भौम जल का लगभग 92% भाग कृषि में प्रयोग किया जाता है तथा शेष 8% भाग घरेलू  औद्योगिक तथा अन्य संबंधित उद्देश्यों की पूर्ति करता है | भारत में भूमिगत जल के विकास की बड़ी संभावनाएं हैं| क्योंकि अभी तक कुल उपलब्ध संसाधनों का केवल 37.23% भाग ही विकसित किया गया है |
 राज्य स्तर पर भौम जल संसाधनों की कुल संभावित क्षमता की दृष्टि से बहुत विषमता में पाई जाती है | राज्यों में भौम जल के विकास में अंतर जलवायु के कारण पाया जाता है |

           जल संसाधनों का प्रबंधन एवं संरक्षण…

 जल के प्रबंधन एवं संरक्षण का उद्देश्य जल की बढ़ती हुई मांग को पूरा करना तथा  जल के स्रोतों को  ह्रास से बचाना है जल संसाधनों के संरक्षण के लिए निम्नलिखित कदम उठाए  हैं|
  धरातलीय जल का संरक्षण करने के लिए नदियों पर बांध बनाकर वर्षा ऋतु के अतिरिक्त जल का संरक्षण किया जा सकता है अन्यथा वह जल भरकर समुद्र में चला जाता है |
 हमें भूजल पुनर्भरण की संस्कृति विकसित करनी होगी ताकि तेजी से समाप्त हो रहे हो भू जल का संरक्षण किया जा सके इसके लिए वर्षा जल संग्रहण सबसे अच्छी तकनीकी है |

 वनीकरण द्वारा वर्षा जल के भूमि रिसने की दर को बढ़ाया जा सकता है |

 जल के पुनर्चक्रण तथा पुनः प्रयोग द्वारा हम जल की कमी को पूरा कर सकते हैं |

 उपयुक्त तकनीक का विकास कर समुद्री जल का खराबपन दूर कर उसका उपयोग करना|

 जल सम्भर प्रबंधन कार्यक्रम द्वारा जल के स्रोतों का संरक्षण करना

 रेन वाटर हार्वेस्टिंग की तकनीक को लोकप्रिय बनाना |

                       राष्ट्रीय  जल नीति

 जल की आपूर्ति , मांग तथा उसके तर्कसंगत उपयोग व प्रबंधन को ध्यान में रखकर केंद्रीय  सरकार ने तीन  राष्ट्रीय जल नीतियाँ अपनाई है  |

                       राष्ट्रीय जल नीति 1987

 यह राष्ट्रीय स्तर पर जल संसाधन संबंधित प्रथम नीति है इस नीति का मुख्य उद्देश्य जल का राष्ट्रीय हित में प्रबंधन करना तथा योजना तैयार करना था  इस नीति में जल के विकास संबंधी योजना बनाने का अधिकार राज्य सरकारों को दिया गया |

                   राष्ट्रीय जल नीति 2002

 वर्ष 2002 में वर्ष 1987 की नीति के स्थान पर एक नई नीति अपनाई गई इस नीति में उपयुक्त रूप से विकसित सूचना व्यवस्था , जल संरक्षण के परंपरागत तरीकों , जल प्रयोग , गैर परंपरागत तरीकों और मांग के प्रबंधन को  महत्वपूर्ण तत्व के रूप में स्वीकार किया गया है | इसमें सबके लिए पेयजल की व्यवस्था को सर्वोच्च प्राथमिकता दी गई है |

                  राष्ट्रीय जल नीति 2012

 राष्ट्रीय जल बोर्ड ने जून 2012 को हुई अपनी  14वीं  बैठक में संस्तुत प्रारूप राष्ट्रीय जल नीति को  प्रस्तुत किया |  इस नीति में भू जल के उपयोग पर प्रयोक्ता  शुल्क लगाने के लिए तर्कसंगत प्रणाली विकसित करने की भी बात कही गई है प्रत्येक राज्य में जल विनियामक प्राधिकरण की स्थापना और पड़ोसी देशों के साथ द्विपक्षीय सहयोग पर करार किया गया है |

           महासागरीय संसाधन के बारे में लिखें …

 अन्य प्राकृतिक संसाधन की तरह महासागरीय संसाधन भी  महत्वपूर्ण संसाधन है  इसे दो वर्गों में बांटा जा सकता है |

                         खनिज संसाधन 

 खनिज संसाधन अनेक महत्वपूर्ण समुद्री बेसिन में पाए जाते हैं नीचे पाए जाने वाले समुद्री खनिजों में नॉड्यूल्स तथा मैग्नीज  ऑक्साइडो  तथा कोबाल्ट, निकेल , तांबे तथा लोहे के सल्फाइडों के टुकड़े पाए जाते हैं  आज विश्व के कुल तेल एवं प्राकृतिक गैस उत्पादन का पाँचवें भाग से अधिक भाग का उत्पादन अपतट कओं से आता है |

 भारत का पश्चिमी तट पूर्वी तट की तुलना में अधिक संसाधनों से युक्त है उदाहरण स्वरूप  बॉम्बे हाई मे  लगभग 750 करोड टन का पेट्रोलियम भंडार है  पूर्वी तट कावेरी , गोदावरी तथा महानदी के डेल्टा में भी प्राकृतिक  गैस और तेल के विशाल भंडार पाए जाते हैं इसके अतिरिक्त समुद्री मछलियां , मोती , शैवाल तथा प्रवाल भित्तियाँ भी समुद्री संसाधनों के  अंतर्गत आता है |

                  बहु  धात्विक नॉड्युल्स

  1970 के दशक के आरंभ में गहरे समुद्र में बहु  धात्विक नॉड्यूल्स के व्यापक स्रोत का पता चला है इसमें प्रमुख हैं  मैंगनीज , पिण्ड ,  जिसमें मुख्यत:  कोबाल्ट , तांबा , निकेल  एवं मैंगनीज धातु पाई जाती है  इन पिण्डो मे   अनेक भौतिक तथा रासायनिक पदार्थ पाए जाते हैं जो विभिन्न आकारों में पाए जाते हैं |

Note  गहरे समुद्र खनन में भारत के प्रयास से

[  हिंद महासागर में बहु धात्विक पिण्डो की खोज सर्वप्रथम वर्ष 1977 में गोवा स्थित राष्ट्रीय समुद्र विज्ञान संस्थान द्वारा की गई इस कार्य के लिए गार्डन रीच  वर्कशॉप कोलकाता द्वारा निर्मित प्रथम महासागरीय अनुसंधान  पोत गवेषणी  का प्रयोग किया गया जिसमें 28 जनवरी 1981 को पहली बार  हिंद महासागर की गहराइयों से बहु धात्विक खनिज पिण्डोंफ  को निकालने में सफलता प्राप्त की

 गणेषणी  के बाद आर पार एक भुवनेश्वर नामक जलयान का निर्माण भी सागर तल से  बहु धात्विक पिण्डो को  निकालने के उद्देश्य से किया गया  इस प्रकार भारत वर्ष 1987 में विश्व का पहला देश बना जिससे खनन क्षेत्र में पंजीकृत बहु धात्विक संसाधनों की पहचान एवं आकलन का कार्य किया इन संसाधनों के उत्खनन के लिए प्रौद्योगिकी तथा कार्मिकों के विकास के क्षेत्र में भारत में काफी प्रगति की है ]

                        जैविक संसाधन…

 समुद्र हमारी पृथ्वी के जीवीए पर्यावरण का सबसे बड़ा घटक है समुद्री जल में अनेक प्रकार के पौधे एवं जीव पनपते हैं समुद्री जैविक संसाधन के अंतर्गत पादप प्लवक , प्राणी प्लवक , नितलस्थ   प्राणी जल कृषि तथा मत्स्य शामिल है |

 भारतीय प्रयोग के लिए निर्धारित विशिष्ट आर्थिक क्षेत्र में 70 मीटर से अधिक गहराई में समुद्री जीव संसाधनों का आकलन करने तथा महासागर जीव विज्ञान कारको में  मत्स्य उपलब्धता का  संबंध जोड़ने के उद्देश्य से वर्ष 1997 -1998 में बहु विषयों तथा बहू संस्थानों वाला कार्यक्रम आरंभ किया गया |
 इस कार्यक्रम का मूल उद्देश्य है सतत विकास तथा प्रबंधन के लिए भारत के ईईजेड  मैं उपलब्ध समुद्री जीव संसाधनों की उपलब्धता की वास्तविक एवं विश्वसनीय जानकारी प्राप्त करना  तथा भारतीय समुद्रों में समुद्री जीव संसाधनों की उपलब्धता को बढ़ाना |

              समुद्री जल से शुद्ध जल की प्राप्ति …

 प्राकृतिक रूप से समुद्र तटीय  क्षेत्र के समुद्र जल में विभिन्न प्रकार के लवण जैसे सोडियम क्लोराइड मैग्निशियम क्लोराइड  इत्यादि पाए जाते हैं  जो उसे खारा बनाता है समुद्री जल में फ्लोरीन होने के कारण फ्लोरोसिस नामक बीमारी हो  जाती है जिससे हड्डियों में दर्द होता रहता है |
 समुद्री जल के खारेपन को दूर करने के लिए बहुत से उपाय किए गए हैं जो निम्नलिखित हैं |

                    सौर ऊर्जा तकनीक

 सौर ऊर्जा तकनीक के अंतर्गत सूर्यताप को केंद्रित करके समुद्री जल को उबाला जाता है और इससे उत्पन्न वाष्प से   शुद्ध जल को प्राप्त किया जाता है  भारत में गुजरात के अविनया गांव में इस तकनीक से पर्याप्त जल उपलब्ध कराया जाता है |

                   लैश  डिस्टीलेशन तकनिक 

 इस तकनीक के अंतर्गत गर्म किए गए समुद्री खारे जल को अनेकों ऐसे कक्ष  से गुजारा जाता है  जिसके अंदर दाब वायुमंडलीय दाब से कम हो जाता है इससे इसकी कक्ष  के प्रत्येक भाग में वाष्पीकरण होता है तथा इस वाष्प को ट्यूबों  के बंडल में संघनित  कर लिया जाता है  इस प्रकार प्रत्येक चरण में आसवित  जल को एकत्र करके शुद्ध जल के रूप में प्रयोग किया जाता है |

             इलेक्ट्रोडायलिसिस तकनिक 

 इस तकनीक के अंतर्गत समुद्री जल का खरापन दूर करने के लिए लोहे की चुनी हुई झीलियो  का प्रयोग किया जाता है  यह तकनीक 5000 पीपीएम से  कम मात्रा में खरापन दूर करने की सबसे कम खर्चीली  तकनीक है भारत में इस पद्धति का सफलतापूर्वक प्रयोग किया जा रहा है |

                    विपरीत परासरण तकनीक

 यह तकनीक सर्वाधिक प्रचलित है इस तकनीक में अनुकूल परासरण झिल्लियों  का प्रयोग किया जाता है जो उच्च दबाव के अंतर्गत  समुद्री जल से  खरापन को दूर करती हैं  भारत के समुद्री तट के क्षेत्रों में 50000 से 100000 लीटर की  क्षमता वाले संस्थान लगाए गए भारत हेवी इलेक्ट्रिकल्स लिमिटेड द्वारा विपरीत परासरण तकनीक पर आधारित देश के सबसे बड़े डिसैलिनेशन प्लांट का डिजाइन तैयार किया गया है  इसे तमिलनाडु में स्थापित किया गया है | जहां से जलाभाव वाले रामनाथपुरम जिले के 226 गांव में से 26 लाख से अधिक व्यक्तियों को  पीने का पानी उपलब्ध कराया जाएगा इस प्लांट की क्षमता 38 लाख लीटर समुद्री पानी को पीने योग्य बनाने की है | 

                समेकित तटीय व समुद्री क्षेत्र प्रबंधन …

 तटीय इलाकों की समस्याओं जैसे मिट्टी का अपरदन , प्रदूषण और अधिवास का नष्ट होना आदि से निपटने के लिए  वैज्ञानिक उपाय और तकनीकों का उपयोग करने के उद्देश्य से समेकित तटीय व समुद्री क्षेत्र प्रबंधन कार्यक्रम वर्ष 1998 में शुरू किया गया  इसमें मैंग्रोव , पर्वतों तथा अन्य जीव विज्ञान के महत्वपूर्ण क्षेत्रों की स्थिति का आकलन दूरसंवेदी यंत्रों से किया जा सकता है |

         तटीय समुद्र निगरानी एवं अनुमान प्रणाली

 समुद्री पर्यावरण की स्थिति का लंबे समय के लिए अनुमान लगाने के लिए तटीय समुद्र निगरानी एवं अनुमान प्रणाली को वर्ष 1990 में लागू किया गया | इसमे समुद्र से मिलने वाले औद्योगिक व घरेलू अस्वच्छ अपशिष्ट जल में रसायनों की मात्रा का आकलन किया जाता है  वर्तमान समय में यह भारत के 76 तटीय इलाकों में कार्यरत है |

                 एकॉस्टिक टाइड गेज

 यह एक प्रकार की समर्पित संकेत प्रसंस्करण प्रणाली है  जिसके एनालॉग इलेक्ट्रॉनिक हार्डवेयर के सभी हिस्से महासागर विकास विभाग के विभिन्न केंद्रों में विकसित किए गए हैं एटीजी प्रणाली का डिजाइन एवं विकास इस प्रकार किया गया है कि बिना किसी सहयोग के यह अकेले एक  महीने तक ज्वार भाटे में काम कर सकते हैं |

                        मत्स्यन

 हमारे देश में मत्स्यन के लिए एक प्रमुख व्यवसाय है यह  व्यवसाय निर्यात द्वारा विदेशी मुद्रा अर्जित करने में सहायक है भारत में लगभग 18000 प्रकार की मछलियां पकड़ जाती है इसमें से कुछ हीं जाति की मछलियां पर्याप्त मात्रा में पकड़ी जाती है मत्स्यन उत्पादन के क्षेत्रों को दो भागों में बांटा जा सकता है  समुद्री मत्स्य क्षेत्र और ताजे  जल के मत्स्य क्षेत्र |

                        समुद्री  मत्स्य  क्षेत्र

 समुद्र में लगभग 200 मीटर की गहराई तक महाद्वीपीय मग्नतट पर मछलियों के विकास तथा  प्रजनन के लिए अनुकूल परिस्थितियां होती है  और वहां से बहुत बड़ी मात्रा में मछली पकड़ी जाती है |

                    ताजे जल के मत्स्य क्षेत्र

 ताजे जल के मत्स्य क्षेत्र जैसे नदियों , नहरों , तालाबों , नालो पोखरो  आदि में ताजा जल होता है और इसमें से  पकड़ी जाने वाली मछली को ताजे जल की मछली कहा जाता है यह देश के आंतरिक भागों में पाई जाती है इसलिए इसे अंतर्देशीय मछली भी कहा जाता है |

           भारत में मत्स्य उत्पादन 

 भारत का विश्व के मछली उत्पादन में दूसरा स्थान है  विश्व के कुल उत्पादन में भारत का योगदान लगभग 5.4% है  | प्रारंभ में समुद्री मछली का उत्पादन अधिक होता था परंतु बाद में अंतर्देशीय मछली के उत्पादन में बड़ी  तीव्रता से वृद्धि हुई है  समुद्री मछली के संदर्भ में भारत का अधिकांश मछली उत्पादन  पश्चिमी तट पर होता है जहां 75% समुद्री मछलियां पकड़ी जाती है बाकी की 25% मछलियां पूर्वी तट से पकड़ी जाती है |

 भारत में ताजे जल की मछलियां गंगा , ब्रह्मपुत्र  व सिंधु तथा इसकी सहायक नदियों में बड़ी मात्रा में पकड़ी जाती है  दक्षिण भारत की नदियों में भी मछलियां पकड़ी जाती है यद्यपि देश के सभी राज्यों एवं केंद्र शासित प्रदेशों में कुछ न कुछ मछली का उत्पादन होता है परंतु लगभग 70% उपज में केवल छ: राज्यों पश्चिम बंगाल , आंध्र प्रदेश , गुजरात , केरल , तमिलनाडु एवं महाराष्ट्र का योगदान है  कुल मछली उत्पादन में आंध्र प्रदेश प्रथम स्थान पर है जबकि सागरीय मछली उत्पादन में गुजरात प्रथम स्थान पर है और अन्त: स्थलीय  मछली के उत्पादन में आंध्र प्रदेश प्रथम स्थान पर है |

        महासागरीय  विकास कार्यक्रम 

 भारत में महासागरीय अनुसंधान की योजना बनाने तथा उनके समन्वय एवं स्वदेशी  क्षमताओं  के विकास हेतु वर्ष 1976 में विज्ञान और  प्रौद्योगिकी विभाग के अंतर्गत महासागर विज्ञान और प्रौद्योगिकी एजेंसी की स्थापना की गई महासागर विकास की गतिविधियों को आयोजित समन्वित  और प्रोत्साहित  करने के लिए एक नोडल संस्था के रूप में जुलाई  1981 में कैबिनेट सचिवालय के अधीन महासागर विकास विभाग की स्थापना की गई मार्च 1982 से महासागर विकास विभाग को पृथक रूप से एक केंद्रीय राज्य मंत्री के अधीन कर दिया गया वर्ष 1982 में समुद्री कानून के संबंध में हुए संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन में समझौते के अनुमोदन के लिए  एक अंतरराष्ट्रीय कानून स्थापित किया गया वर्ष 1982 में यूनाइटेड नेशंस कन्वेंशन ऑन द  लॉ द सी द्वारा निर्मित इस नए समुद्री क्षेत्र के प्रभाव पर भी  भारत द्वारा हस्ताक्षर किए गए थे |

          संबंधित प्रमुख संस्थान

                        पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय

 महासागर  विकास मंत्रालय का नाम बदलकर उसे पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय कर दिया गया तथा इसकी अधिसूचना 12 जुलाई 2006 को जारी की गई यह मंत्रालय महासागर  संसाधन , महासागरों की स्थिति मानसून , तूफान , भूकंप आदि विषयों से संबंधित अध्ययन हेतु सर्वोत्तम सेवाएं उपलब्ध  कराता है |

                राष्ट्रीय सागर विज्ञान संस्थान 

 नई दिल्ली स्थित वैज्ञानिक और औद्योगिक अनुसंधान परिषद के अंतर्गत वर्ष 1966 में गोवा में एक राष्ट्रीय समुद्री विज्ञान संस्थान की स्थापना की गई इस संस्थान की स्थापना का मुख्य उद्देश्य भारत के समीपवर्ती सागरों के भौतिक , रासायनिक , जीवविज्ञान विज्ञान ,  भूगर्भ विज्ञान और इंजीनियरिंग पक्षों  के संबंध में पर्याप्त ज्ञान विकसित करना है |
 इस संस्थान के पास स्वयं अपना महासागरीय अनुसंधान पोत गवेषणी है  जिसके कारण भारत सागर क्लब में स्थान पा सका था  इसके अतिरिक्त संस्थान द्वारा सागर विकास की  बहुउद्देशीय सागर जलयान सागर कन्या और समुद्री वैज्ञानिक अनुसंधान जलयान सागर सम्पदा का प्रबंधन कार्य भी सौंपा गया है संस्थान का आंकड़ा केंद्र सागर संबंधी आंकड़ों का भंडारण और प्रबंध भी करता है तथा समुद्री क्षेत्र के उपभोक्ता समुदाय को इस आंकड़ों के संबंध में जानकारी उपलब्ध कराता है |

            राष्ट्रीय महासागर प्रौद्योगिकी संस्थान

 महासागर विकास के अंतर्गत समुद्री क्षेत्र से संबंधित प्रौद्योगिकी विकास करने के उद्देश्य से चेन्नई में राष्ट्रीय महासागर प्रोद्योगिकी संस्थान की स्थापना नवंबर 1993 में एक पंजीकृत संस्था के तौर पर की गई |

 


 

शनिवार, 18 फ़रवरी 2023

परिवहन किसे कहते हैं ? परिवहन के मुख्य साधन के बारे में बताएं ?भारतीय रेल परिवहन के बारे में वर्णन करें

 

    परिवहन  किसे कहते हैं ?

 एक स्थान से दूसरे स्थान तक यात्रियों एवं वस्तुओं को लाना एवं ले जाना परिवहन कहलाता है | परिवहन कृषि एवं व्यापार के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है | परिवहन की सुविधा के कारण भौगोलिक दूरी बहुत कम हुआ  परिवहन के सुविधा के कारण विश्व कुछ ही घंटों की दूरी में सिमट गया है |





       परिवहन  के मुख्य साधन के बारे में बताएं  ?

           परिवहन के चार मुख्य साधन है 

                       (1) स्थल परिवहन 

                       (2) वायु परिवहन 

                       (3) जल परिवहन

                     (4) पाइप लाइन परिवहन 

          स्थल परिवहन क्या है 

 जब यात्रियों एवं वस्तु को एक स्थान से दूसरे स्थान तक ले जाने एवं लाने के लिए स्थल मार्ग  का प्रयोग किया जाता है | स्थल परिवहन कहा जाता है |

 यात्रियों वस्तुओं एवं सेवाओं का अधिकांश परिवहन स्थल मार्ग द्वारा ही होता है | गांव की गलियों से महानगरों एवं बंदरगाहों तक को जोड़ने में स्थल परिवहन की काफी महत्वपूर्ण भूमिका रही है |

        स्थल परिवहन को दो वर्गों में बांट सकते हैं

          (i) सड़क परिवहन

          (ii) रेल परिवहन

            (i) सड़क परिवहन किसे कहते है 

 जब यात्रियों एवं वस्तु को एक स्थान से दूसरे स्थान तक ले जाने एवं लाने के लिए सड़क मार्ग का प्रयोग किया जाता है तो उसे सड़क परिवहन  कहते | सड़क परिवहन अपेक्षाकृत कम दुरियों के लिए सबसे सस्ता एवं सुलभ साधन है  |  जल परिवहन एवं रेल परिवहन की तुलना में सड़क परिवहन की पहुंच बहुत बेहतर है  क्योंकि यह घर के दरवाजे तक पहुंच जाती है | सड़क परिवहन के विकास एवं विस्तार पर भौगोलिक उच्चावचों  का प्रत्यक्ष प्रभाव पड़ता है |  इसी प्रभाव के कारण मैदानी भागों में सड़कों की सघनता अधिक होती है | अर्थात मैदानी भागों में सड़क परिवहन का विकास अधिक देखने को मिलता है जबकि पर्वतीय , वन्यीय  एवं मरुस्थलीय भागों में सड़क परिवहन का विकास बहुत कम हुआ है | सड़कों के विकास पर आर्थिक स्थिति का भी  प्रभाव होता है  इसलिए विकसित देशो में सड़कों का विकास अधिक हुआ है | 

 सड़क परिवहन को अधिक उपयुक्त बनाने के लिए या यात्रिओ  की अधिक सुविधा हेतु महामार्ग  का निर्माण किया जा रहा है | भारत में  अनेक महामार्ग जो प्रमुख शहरों एवं नगरों को जोड़ती है | जैसे राष्ट्रीय महामार्ग संख्या 7 जो वाराणसी  को कन्याकुमारी से जोड़ती है जो देश का सबसे लंबा राष्ट्रीय महामार्ग है | सड़क परिवहन को और सुदृढ़ बनाने के लिए स्वर्णिम  चतुर्भुज परियोजना द्वारा प्रमुख महानगरों नई दिल्ली , मुंबई , बंगलुरु , चेनई  , कोलकाता , हैदराबाद को जोड़ने की योजना है |

  विश्व में सर्वाधिक सड़क मार्ग प्रथम स्थान पर अमेरिका द्वितीय स्थान पर चीन तृतीय स्थान पर भारत है |

            (ii) रेल परिवहन किसे कहते है 

 जब यात्रियों एवं वस्तु को एक स्थान से दूसरे स्थान तक ले जाने एवं लाने के लिए रेल मार्ग का प्रयोग करते है उसे रेल परिवहन कहा जाता है | रेल  परिवहन स्थल परिवहन का एक महत्वपूर्ण अंग है | विश्व में रेल मार्गों का सर्वाधिक जाल यूरोप एवं पूर्वी संयुक्त राज्य अमेरिका में पाया जाता है | रेल औद्योगिक विकास के साथ-साथ राजनैतिक स्थिरता प्रदान करने में मदद करती हैं | 

                    विश्व के प्रमुख रेल मार्ग

                     ट्रांस साइबेरियन रेलमार्ग  

 ट्रांस साइबेरियन विश्व की सबसे लंबी रेल मार्ग इसकी लंबाई 9300 किलोमीटर से अधिक है यह मार्ग बाल्टिक सागर के तट पर स्थित लेनिनग्राद के सुदूर है | पूर्व में प्रशांत महासागर के तट पर स्थित ब्लाडीवोस्टक  तक के साथ जोड़ता है |

    भारतीय रेल परिवहन के बारे में वर्णन करें 

  भारतीय रेल नेटवर्क  विश्व का तीसरा सबसे बड़ा नेटवर्क है रेलवे परिवहन विश्व का सबसे बड़ा  नियोक्ता है यह भारत में  माल और यात्रियों के परिवहन का मुख्य साधन है  आज देश भर में रेल का व्यापक जाल बिछा हुआ है अरुणाचल प्रदेश की राजधानी ईटानगर एवं मेघालय राज्य भी रेलवे के मानचित्र पर 2014 से जुड़ गए हैं जो अभी तक इससे अछूता था रेल मार्ग की कुल लंबाई 66687 किलोमीटर है रेल मार्गो पर कुल 7216 स्टेशन स्थित है भारतीय रेल लगभग तीन करोड़ यात्रियों और 2.8 मिलियन टन माल को प्रतिदिन ढोती  है

    भारतीय रेल यात्रियों की दृष्टिकोण से सबसे सस्ती एवं सुलभ साधन है |

भारत में पहली रेल लार्ड डलहौजी के शासनकाल में 16 अप्रैल 1853 को मुंबई से ठाणे के बिच चलाई गई थी | इसकी कुल लम्बाई लगभग 34 किमी थी | भारत में दूसरी रेल लाइन 1854 में कोलकाता से रानीगंज (180 किमी )  बिछाई गई | तथा 1856 में  चेन्नई से अरकोनम के बीच रेल यातायात शुरू हुई

     भारत में तीन  रेलवे गेज  है

बड़ी लाइन अथवा ब्रॉड गेज   इसकी दोनों परियों की आपस की दूरी अर्थात चौड़ाई 1.676 मीटर होती है

 मीटर गेज या मध्यम लाइन  इसकी चौड़ाई 1 मीटर होती है अर्थात दोनों पटरियों के बीच की दूरी 1 मीटर होती है

 छोटी लाइन या नैरोगेज इसकी चौड़ाई 0.762 मीटर तथा 0.610 मीटर इसका विस्तार मुख्यता पहाड़ी क्षेत्रों में स्थित है

भारत में पहली विद्युतीकृत रेल लाइन लार्ड रीडिंग के शासनकाल में वर्ष 1925 में मुंबई से कुर्ला के बीच चलाई गई थी | 

विधुत से चलनेवाली पहली इंजन डेक्कन क्वीन था |

 भारतीय रेलवे एशिया की सबसे बड़ी और विश्व की तीसरी रेल प्रणाली है |

भारत का पहला रेल जोंन मुंबई वीटी है जिसकी स्थापना 1951 में हुआ था |

भारत की सबसे लम्बी रेल सुरंग पीर - पंजाल रेल सुरंग है |

भारत में सबसे लम्बा रेल मार्ग  असम  के  डिब्रूगढ़ से  कन्याकुमारी तक है |

भारत में सबसे लम्बी दूरी तक चलने वाली रेलगाड़ी विवेक एक्सप्रेस है |जो डिब्रूगढ़ से कन्याकुमारी तक चलती है |

एक्वर्थ कमिटी के रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 1924 से रेल वजट को आम वजट से अलग किया गया था |

भारतीय रेलवे को सफल सञ्चालन के लिए 17 रैल जोनो में विभाजित किया है |

क्र .सं .             जोन का नाम                 मुख्यालय 

(1)                उत्तरी रेलवे                      दिल्ली 

(2)              उत्तरी पूर्वी रेलवे                   गोरखपुर 

 (3)              उत्तरी पश्चिम रेलवे              जयपुर 

 (4)              उत्तरी  मध्य रेलवे                प्रागराज 

  (5)             दक्षिण रेलवे                       चेनई 

  (6)              दक्षिण पूर्वी रेलवे               कोलकाता 

  (7)        दक्षिण पूर्वी मध्य रेलवे             बिलासपुर 

  (8)        दक्षिण पश्चिम रेलवे                  हुबली 

  (9)         मध्य रेलवे                            मुंबई वीटी

  (10)        पूर्वी रेलवे                          कोलकाता 

  (11)     पूर्वी मध्य रेलवे                      हाजीपुर 

  (12)    पूर्वी तटवर्ती रेलवे                   भुवनेश्वर 

  (13)  उत्तर पूर्वी सीमांत प्रांत रेलवे      मालीगांव गुवाहाटी

  (14)  दक्षिण मध्य रेलवे                     सिकंदराबाद

  (15)  पश्चिम रेलवे                             मुंबई चर्चगेट

  (16) पच्छिम मध्य रेलवे                    जबलपुर 

  (17) कोलकाता मेट्रो                        कोलकाता 

         कोंकण रेल परियोजना के बारे में बताएं 

   कोंकण रेल परियोजना मार्च 1990 में गोवा , महाराष्ट्र , कर्णाटक तथा केरल के बीच छोटे से छोटे रेलवे मार्ग द्वारा एक लिंक प्रदान करने के लिए यह परियोजना  परियोजना प्रारम्भ की गई थी | जिसे 1984 तक पूरा कर लेने का लक्ष्य निर्धारित किया गया था | इस परियोजना में  रहा से मंगलौर के बीच 760 किमी की दुरी सम्मिलित है | 26 जनवरी , 1998  को इस परियोजना का कार्य पूरा कर लिया गया था | इस दिन रोहा (महाराष्ट्र ) से मंगलौर (कर्णाटक ) तक  पूरे रेल मार्ग पर यातायात प्रारंभ हो गया |

                कैनेडियन पैसिफिक रेल मार्ग 

कैनेडियन पैसिफिक रेलमार्ग कनाडा के पूर्वी तट पर स्थित हेलीफैक्स को प्रशांत महासागर के तट पर स्थित एक  फ्रेजर नदी के मुहाने पर स्थित वैंकूबर नगर से मिलता है | यह रेलमार्ग 7050 किमी लम्बी है |

             ऑस्ट्रेलियन ट्रांस महाद्वीपीय रेलमार्ग

 ऑस्ट्रेलियन ट्रांस महाद्वीपीय रेलमार्ग ऑस्ट्रेलिया के पूर्वी तट पर स्थित नगर सिडनी को पश्चिम में स्थित पर्थ से जोड़ता है | यह इस महाद्वीप का सबसे लंबा रेल मार्ग है |

                     ट्रांस  एण्डीज  रेल मार्ग

 ट्रांस  एण्डीज  रेल मार्ग दक्षिणी अमेरिका का यह रेल मार्ग चिल्ली के वालप्रेजो नगर को  महाद्वीप के दूसरे किनारे पर स्थित है ब्यूनर्स आयर्स  नगर को जोड़ती है |

                  ट्रांस एशियन रेलवे नेटवर्क

          ट्रांस एशियन रेलवे नेटवर्क यूरोप व एशिया में एकीकृत रेलवे नेटवर्क बनाने की योजना जिसकी लंबाई 117500 किलोमीटर है | जो 28 सदस्य देशों को अपनी सेवा प्रदान करेगी ट्रांस एशिया रेलवे नेटवर्क परियोजना 1992 में प्रारंभ हुई थी  जो संयुक्त राष्ट्र के आर्थिक और सामाजिक आयोग के लिए एशिया और प्रशांत क्षेत्र की परियोजना है | यह परियोजना निर्माणाधीन है तथा जल्द पूरी हो जाने की संभावना है |

               रेल परिवहन में लम्बाई के दृष्टिकोण  प्रथम स्थान पर अमेरिका द्वितीय स्थान पर चीन तृतीय स्थान पर रूस तथा चतुर्थ स्थान पर भारत है |


        वायु परिवहन किसे कहते है 

 जब यात्रियों ,  वस्तुयो , एवं सेवाओं  को एक स्थान से दूसरे स्थान तक ले जाने एवं लाने के लिए वायु मार्ग का प्रयोग किया जाता है तो उसे वायु परिवहन कहा जाता है | वायु परिवहन की सुविधा होने के फलस्वरूप आज विश्व में बहुत ही कम समय में घुमा जा सकता है | वायु परिवहन के कारन आज एक देश से दूसरे देश जाना बहुत आसान हो गया है |

    वायु परिवहन  दुर्गम क्षेत्रों तक पहुंच एवं सामरिक महत्व की दृष्टि से बहुत महत्वपूर्ण है | वायु मार्ग सदा ही  भूमि की बनावट और वृहत वृतीय  मार्ग का अनुसरण करती हैं | विश्व के कुल वायु  मार्गो के 60% भाग  का प्रयोग  अकेला संयुक्त राज्य अमेरिका करता है |


        जल परिवहन किसे कहते है 

 जब यात्रियों एवं वस्तुओं तथा सेवाओं  को एक स्थान से दूसरे स्थान तक ले जाने एवं लाने के लिए  जल मार्ग का प्रयोग किया जाता है उसे जल परिवहन कहा जाता है |  प्रारंभ में भी परिवहन के लिए जल मार्गों का उपयोग किया जाता था | अधिक दूरी तक भारी व बड़े आकार वाले सामानों को ढोने के लिए जलमार्ग सबसे सस्ता साधन होता था |  अभी भी अधिक दूरी से भारी बा बड़े आकार वाले सामानों को ढोने के लिए जल परिवहन का इस्तेमाल किया जाता है |  इस परिवहन के लिए महत्वपूर्ण लाभ यह है कि जल मार्ग बनाने के लिए  किसी चीज की आवश्यकता नहीं पड़ती है अर्थात कहा जा सकता है कि जल मार्ग का निर्माण नहीं करना पड़ता है | जल मार्ग में परिवहन बहुत सस्ता होता है क्योंकि जल का  घर्षण स्थल की अपेक्षा बहुत कम होता है | जल परिवहन के ऊर्जा लागत अपेक्षाकृत बहुत कम होता है |

      जल परिवहन को दो भागों में बांटा जा सकता है 

               (i) समुद्री  मार्ग  

              (ii)  आंतरिक जलमार्ग

                        (i) समुद्री मार्ग

                    समुद्री मार्ग के मुख्य फायदे   

 समुद्री मार्ग में कोई रखरखाव लागत नहीं होता है |

 स्थल व वायु परिवहन की अपेक्षा  सस्ता होता है सभी दिशाओं में  मुड़ सकने वाले महामार्गों का सागरो द्वारा निर्माण  भारी पदार्थों का एक महाद्वीप से दूसरे महाद्वीप तक पहुंचने का सस्ता साधन शीघ्र नाशवान वस्तु के लिए वातानुकूलित सुविधाओं से युक्त पोत

                    महत्वपूर्ण समुद्री मार्ग     

                 (i) उत्तर अटलांटिक समुद्री मार्ग 

 उत्तर अटलांटिक समुद्री जलमार्ग विश्व के व्यस्ततम व्यापारिक जलमार्ग है | क्योंकि एक चौथाई विदेशी व्यापार इसी मार्ग से  होता है | यह मार्ग विकसित देशों के मध्य स्थित है जो उत्तर पूर्वी अमेरिका पश्चिमी यूरोप को जोड़ता है | इस मार्ग को वृहत ट्रंक मार्ग भी कहा जाता है |

           (ii) भूमध्य सागर - हिंद महासागरीय समुद्री मार्ग  

 यह समुद्री मार्ग किसी भी अन्य मार्ग की अपेक्षा अधिक देशों और लोगों को सेवाएं प्रदान करती है | औधोगिक पश्चिमी यूरोपीय प्रदेश को पश्चिमी अफ्रीका दक्षिण अफ्रीका दक्षिण पूर्वी एशिया और ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड की वाणिज्यिक कृषि व  पशुपालन आधारित अर्थव्यवस्थाओं से जोड़ता है | स्वेज नहर खुल जाने से इन देशों के बीच की दूरी 6400 किमी कम हो गई है | 

             (iii) उत्तरी प्रशांत समुद्री जलमार्ग   

 यह जलमार्ग उत्तरी अमेरिका के पश्चिमी तट के पत्तनो  को एशिया के पत्तनो  से जोड़ता है |  

            (iv)  दक्षिणी प्रशांत समुद्री जलमार्ग  

 यह जलमार्ग पश्चिम यूरोप और उत्तरी अमेरिका को ऑस्ट्रेलिया न्यूजीलैंड और पनामा नहर से होते हुए प्रशांत महासागर में फैले द्वीपों  तक विस्तृत है होनोलुलु इस  मार्ग पर स्थित महत्वपूर्ण पतन है | 

                     नौ  परिवहन नहरे   

  स्वेज और पनामा दो ऐसी  मानव निर्मित नहर है अथवा जलमार्ग है |जो पूर्वी एवं पश्चिमी विश्व दोनों के लिए ही प्रवेश द्वार का काम करती है |

                  स्वेज नहर के बारे बताएं 

सन 1854  में  फ्रेंच  इंजीनियर फर्डिनेंड डी लैसेप्स ने स्वेज  नहर का निर्माण कार्य प्रारम्भ किया जो 1869 ई. में बनकर तैयार हुआ |  वर्तमान समय में स्वेज नहर की लंबाई लगभग 164 किलोमीटर (163.30 किमी ) और 11 से 15 मीटर गहरी है |  इस नहर से होकर लगभग 100 जलयान आवागमन करते हैं इस नहर को पार करने में जलयान को 10 से 12 घंटे का समय लगता है |

                            नई स्वेज नहर

 स्वेज नहर की क्षमता में वृद्धि करने के लिए नई स्वेज नहर नाम से एक 35 किमी नहर बनाई गई है | इस  नहर का निर्माण विपरीत  दिशा में चलने वाले जहाजों के  पृथक आवागमन  के लिए किया गया है |

           पनामा नहर के बारे में वर्णन करे 

 पनामा नहर  पूर्व में अटलांटिक महासागर को पश्चिम में प्रशांत महासागर से  जोड़ती है | इसका निर्माण पनामा जलसंधि के आरपार पनामा नहर एवं कोलोन के बीच संयुक्त राज्य अमेरिका के द्वारा  वर्ष  1914 ई.  में किया गया | जिसमें दोनों ही और के 8 किमी क्षेत्र को खरीद कर इसे नहर मंडल का नाम दिया गया | इसकी लंबाई 77 किलोमीटर है जो लगभग 12 किमी लंबी अत्यधिक गहरी कटान से   युक्त है  इस नहर को चालू हो जाने से न्यूयॉर्क  एवं सेनफ्रांसिस्को के  मध्य लगभग 13000 किमी की दूरी कम हो गई है | इस नहर का आर्थिक महत्व स्वेज नहर की अपेक्षा  बहुत कम है  फिर भी दक्षिणी अमेरिका की अर्थव्यवस्था में इसकी महत्वपूर्ण भूमिका है |

                          आंतरिक जलमार्ग

 नदियों एवं  झीलों  का उपयोग करके आंतरिक जलमार्ग के उपयोग में लाया जा सकता है | नदियां , नहरे , झीले  तथा तटीय क्षेत्र प्राचीन समय से ही महत्वपूर्ण जलमार्ग रहे हैं | नावे , स्टीमर यात्रिओ  तथा माल वाहन हेतु परिवहन के साधन के रूप में उपयोग किया जाता है जल मार्गों का विकास नहरो  की नौगम्यता ,  चौड़ाई और गहराई  जल प्रवाह की निरंतरता तथा उपयोग में लाए जाने वाली परिवहन प्रौद्योगिकी पर निर्भर करता है | अतः  आंतरिक जलमार्ग स्थानों पर परिवहन का प्रमुख साधन है जहां नदी चौड़ी गहरी एवं गाद   से मुक्त है |

                 पाइपलाइन के बारे में बताएं 

 जल पेट्रोलियम तथा प्राकृतिक गैस जैसे तरल एवं गैसीय पदार्थों की अबाधित प्रवाह   और परिवहन के लिए पाइप लाइनों का व्यापक रूप से प्रयोग किया जाता है | विश्व के अनेक भागों में रसोई गैस अथवा एलपीजी की आपूर्ति पाइप लाइनों द्वारा की जाती है| पाइपलाइन परिवहन का एक सुरक्षित व अबाधित  साधन है | लेकिन प्रारंभिक लागत बहुत अधिक होती है | तथा एक से अधिक देशों से गुजरने वाली पाइप लाइनों की स्थापना में भू  राजनीतिक समस्याएं पैदा होती है|



शुक्रवार, 11 नवंबर 2022

घरेलू विद्युत परिपथ में श्रेणी क्रम संयोजन का उपयोग क्यों नहीं किया जाता है ?

  घरेलू विद्युत परिपथ में श्रेणी क्रम संयोजन का उपयोग क्यों नहीं किया जाता है ? 

 घरेलू विद्युत परिपथ में श्रेणी क्रम  संयोजन का उपयोग नहीं किया जाता है , क्योंकि श्रेणी क्रम में प्रतिरोध बहुत अधिक हो जाता है | और अधिक प्रतिरोध होने के कारण परिपथ में प्रवाहित होने वाली विद्युत धारा की मात्रा बहुत कम हो जाती है | जबकि देखा जाए तो पाशर्व क्रम  या समानांतर क्रम में परिपथ को जोड़ने पर प्रतिरोध का मान बहुत कम हो जाता है | जिसके कारण धारा का मान बहुत बढ़ जाता है | इसलिए घरेलू परिपथ में श्रेणी क्रम संयोजन का उपयोग नहीं करते हैं | क्योंकि इससे धारा की मात्रा बहुत कम हो जाने के कारण सही मात्रा में धारा नहीं मिल पाता है | इसलिए घरेलू परिपथ में समांतर क्रम का उपयोग किया जाता है |

शनिवार, 5 नवंबर 2022

विद्युत लैंपो के तंतुओं के निर्माण में प्राय: एकमात्र टंगस्टन का ही उपयोग क्यों किया जाता है ?

  विद्युत लैंपो के तंतुओं के निर्माण में प्राय:  एकमात्र टंगस्टन का ही उपयोग क्यों किया जाता है ? 

 विद्युत लैम्प  के निर्माण में  टंगस्टन का ही उपयोग करते हैं क्योंकि टंगस्टन का गलनांक अत्यधिक उच्च होता है  यह बिना गले 2700 डिग्री सेल्सियस  श्वेत तप्त ताप  प्राप्त कर सकता है और प्रकाशित हो जाता है | 

    इसलिए  विधुत लैंपों के तंतुओ के निर्माण में प्रायः एक मात्र टंगस्टन का ही उपयोग किया जाता है | 

शुक्रवार, 16 सितंबर 2022

हिमालय एवं प्रायद्वीपीय नदियों में अंतर लिखें ?

 

     हिमालय एवं प्रायद्वीपीय नदियों  में अंतर 



 (i) हिमालय की नदियां अधिक लंबी होती है जबकि प्रायद्वीप पठार की नदियां कम लंबी होती है

(ii)  हिमालय की नदियां hहिमाच्छादित  प्रदेशों से निकलती है और वर्षा तथा बर्फ के पिघलने से जल प्राप्त करती हैं अतः यह वर्ष भर  बहने वाली नदियां होती है जबकि  प्रायद्वीपीय नदियां वर्षा पर निर्भर करती है इसलिए ग्रीष्म ऋतु में सूख जाती है |

 (iii)  हिमालय की नदियां गहरे गार्ज  का निर्माण करती है जबकि प्रायद्वीपीय  नदियां उथली  घाटियों में बहती है |

  (iv)  हिमालय की नदियां विसर्प  बनाती है और मार्ग  भी बदल लेती है जबकि प्रायद्वीपीय नदियां अपेक्षाकृत सीधा मार्ग अपनाती है और अपना मार्ग नहीं बदलती है

  (v)  हिमालय की नदियां अपने विकास की बाल्यावस्था में है जबकि प्रायद्वीपीय नदियां प्रौढ़ावस्था में पहुंच चुकी है |

  (vi)  हिमालय की नदियां पूर्ववर्ती है जबकि प्रायद्वीपीय नदियां अनुवर्ती है|

मंगलवार, 13 सितंबर 2022

किसी चालक तार का प्रतिरोध किन बातों पर निर्भर करता है ?

  किसी चालक तार का प्रतिरोध किन बातों पर निर्भर करता हैu ? 

   किसी चालक तार का प्रतिरोध निम्नलिखित बातों पर निर्भर करता है |

 (1) चालक तार की लंबाई पर - किसी  चालक तार का प्रतिरोध R और उसकी लंबाई l के समानुपाती होता है|

                            R    l .

 अर्थात तार की लंबाई जितनी अधिक होगी उसका प्रतिरोध उतना ही अधिक होगा |

 (2) तार की मोटाई पर - किसी चालक तार का प्रतिरोध R और उसके अनुप्रस्थ काट का क्षेत्रफल A के  व्युत्क्रमानुपाती  होता है | 

                     R     1/A

 अर्थात  तार जितना ही मोटा होगा उसका प्रतिरोध उतना ही कम होगा ,  तथा तार जितना ही पतला होगा उसका प्रतिरोध उतना ही अधिक होगा |

(3)  चालक तार के पदार्थ पर -  किसी चालक तार का प्रतिरोध चालक तार के पदार्थ पर भी निर्भर करता है |  जैसे भिन्न-भिन्न पदार्थों के तार समान लंबाई और समान मोटाई  के  हो तो  भी उनके प्रतिरोध भिन्न-भिन्न होगा |

(4)  चालक के ताप पर - चालक पदार्थ के ताप बढ़ने से चालक का प्रतिरोध बढ़ता है |

शुक्रवार, 1 अप्रैल 2022

विद्युत धारा के उष्मीय प्रभाव किन किन कारकों पर निर्भर करता है ?

     विद्युत धारा के उष्मीय प्रभाव किन किन कारकों पर निर्भर करता है ?  

 विद्युत धारा का उष्मीय प्रभाव जब किसी चालक से विद्युत धारा प्रवाहित की जाती है तब वह चालक गर्म हो जाता है , अर्थात विद्युत ऊर्जा का ऊष्मा  उर्जा में रूपांतरण होता है | इसे ही विद्युत धारा का उष्मीय प्रभाव कहा जाता है|

 विद्युत धारा के उष्मीय प्रभाव  निम्नलिखित कारकों पर निर्भर करता है - 

        1) प्रतिरोधकता -  जब किसी अवयव का प्रतिरोधकता अधिक हो तो इनमें कम धारा प्रवाहित होने के फलस्वरूप भी अधिक ऊष्मा उत्पन्न हो सकती है| 

      2)  अवयव का  गलनांक -  जब किसी  चालक अवयव का गलनांक उच्च होता है तब इसमें प्रवल धारा प्रवाहित होने के फलस्वरूप  अत्यधिक ऊष्मा का प्रवाह होती है इसके वाबजूद अवयव नहीं गलता है | 


शुक्रवार, 18 मार्च 2022

किसी विद्युत हीटर के परिपथ में जुड़ा चालक तार क्यों उत्तप्त नहीं होता है जबकि उसका तापन अवयव उत्तप्त हो जाता है ?

  किसी विद्युत हीटर के परिपथ में जुड़ा चालक तार क्यों उत्तप्त  नहीं होता है   जबकि उसका तापन अवयव उत्तप्त  हो जाता है ? 


 किसी विद्युत हीटर के परिपथ में जुड़ा चालक तार  प्रायः तांबे का होता है जबकि विद्युत हीटर का तापन  अवयव  प्रायः नाइक्रोम का  बना होता है और नाइक्रोम की प्रतिरोधकता तांबे से बहुत अधिक होती हैं इसलिए तार उत्तप्त  नहीं होता है  जबकि तापन अवयव उत्तप्त   हो जाता है |

गुरुवार, 17 मार्च 2022

विद्युत तापन युक्तियों जैसे ब्रेड टोस्टरो तथा विद्युत इस्तरीयो के तापन अवयव शुद्ध धातु के न बनाकर किसी मिश्र धातु के क्यों बनाये जाते है ?

 विद्युत तापन युक्तियों जैसे ब्रेड टोस्टरो तथा विद्युत इस्तरीयो  के तापन अवयव शुद्ध धातु के न बनाकर किसी मिश्र धातु के क्यों बनाये जाते है ? 

      विद्युत तापन अवयव का मतलब होता है कि उससे ऊष्मा  अधिक मात्रा में निकले अर्थात इस अवयव से  ऊष्मा अधिक मात्रा में निकले जब इससे  ऊष्मा अधिक  मात्रा में निकलेगा तो निश्चित रूप से इस अवयव का गलनांक भी अधिक होनी चाहिए नहीं तो इसका गलनाक कम होने पर ये अवयव बहुत जल्द ही गल जायेगा | 

    इसलिए  विद्युत तापन युक्तियों  के तापन अवयव  शुद्ध धातु के ना बनाकर किसी मिश्र धातु जैसे नाइक्रोम के बनाए जाते हैं | क्योंकि इसका प्रतिरोधकता बहुत अधिक होती है | और इसका गलनांक अत्यधिक उच्च  होता है | 

मंगलवार, 15 मार्च 2022

ऐमीटर तथा वोल्टमीटर किसे कहा जाता है ? ऐमीटर तथा वोल्टमीटर में अंतर लिखे

     ऐमीटर तथा वोल्टमीटर  किसे कहा जाता है ? ऐमीटर तथा वोल्टमीटर में  अंतर लिखे   

                       ऐमीटर 

  वैसे यंत्र जिसके द्वारा किसी विद्युत परिपथ की धारा को मापा जाता है उसे ऐमीटर कहा जाता है | 

        ऐमीटर को किसी परिपथ में जुड़े उपकरणों के साथ इस  प्रकार जोड़ा जाता है कि  परिपथ की कुल धारा इस यंत्र से होकर प्रवाहित हो |

                  वोल्टमीटर

 वैसे यंत्र जिसके द्वारा किसी विद्युत परिपथ के किन्ही दो बिंदुओं के बीच विभवांतर को  मापा जाता है उसे  वोल्टमीटर कहा जाता है |

                 ऐमीटर तथा वोल्टमीटर में  अंतर लिखे   

         ऐमीटर और वोल्ट्मीटर में अंतर निम्नलिखित है -

 (1) वैसे यंत्र जिसके द्वारा किसी विद्युत परिपथ की धारा को मापा जाता है उसे ऐमीटर कहा जाता है | 

           जबकि वैसे यंत्र जिसके द्वारा किसी विद्युत परिपथ के किन्ही दो बिंदुओं के बीच विभवांतर को  मापा जाता है उसे  वोल्टमीटर कहा जाता है | 

(2)  एमीटर किसी विद्युत परिपथ में विद्युत धारा की प्रबलता को मापता है | 

           जबकि वोल्टमीटर  किसी विद्युत परिपथ में किन्ही दो बिंदुओं के बीच विभवांतर को मापता है | 

(3)   ऐमीटर का स्केल  एंपियर में अंकित रहता  है | 

         जबकि वोल्टमीटर का स्केल वोल्ट में अंकित रहता है | 

(4) ऐमीटर को किसी विद्युत परिपथ में श्रेणी क्रम में जोड़ा जाता है |

                जबकि वोल्टमीटर को किसी विद्युत परिपथ में समानांतर क्रम में जोड़ा जाता है |



शुक्रवार, 11 मार्च 2022

निम्न की परिभाषा लिखें विद्युत विभव विद्युत धारा विभवंतार प्रतिरोध इसके si मात्रक भी लिखे

  निम्न की परिभाषा लिखें विद्युत विभव , विद्युत धारा , विभवंतार , प्रतिरोध ,  विधुत धारा की प्रबलता ? इसके si  मात्रक भी लिखे  

                विधुत विभव 

  इकाई धन आवेश को अनंत से किसी बिंदु तक लाने में किए गए कार्य को उस बिंदु पर विद्युत विभव कहा जाता है इस का एस आई मात्रक वोल्ट होता है जिसे V से सूचित किया जाता है |

    1V  = 1J/C होता है 

                         विधुत धारा 

              किसी चालक पदार्थ में किसी भी दिशा में दो बिंदुओं के बीच आवेश के व्यवस्थित प्रवाह  होता है उस प्रवाह को विद्युत धारा कहा जाता है | 

 विद्युत धारा का मात्रक एंपियर होता है जिसे अंग्रेजी के बड़े अक्षर A से सूचित किया जाता है | 

   1A = 1C/1S  होता है | 

                            विभवांतर 

            दो बिंदुओं के बीच निम्न विभव से उच्च  विभव तक  इकाई धन आवेश को ले जाने में किया गया  कार्य को विभवांतर कहा जाता है |

                विभवांतर का भी एस आई  ( SI  ) मात्रक बोल्ट होता है जिसे अंग्रेजी के बड़े अक्षर V से सूचित किया जाता है  |

                           प्रतिरोध 

 किसी पदार्थ का वह गुण जो उससे होकर विद्युत धारा के प्रवाह का विरोध करता है | उस पदार्थ का विद्युत प्रतिरोध या केवल प्रतिरोध कहा जाता है |

              प्रतिरोध का एस आई  ( SI ) मात्रक ओम होता है | जिसे ग्रीक भाषा के बड़े अक्षर ओमेगा (     ) द्वारा सूचित किया जाता है |

   1 ओम = 1V/1A = V/A

                     विधुत धारा की प्रबलता 

 किसी चालक के किसी अनुप्रस्थ काट को पार करने वाले विद्युत धारा की प्रबलता उस अनुप्रस्थ काट  से होकर प्रति इकाई समय में प्रवाहित आवेश का परिमाण होता है | 


गुरुवार, 10 मार्च 2022

विद्युत परिपथ किसे कहते हैं ? विद्युत परिपथ में फ्यूज तार क्यों लगाए जाते हैं ?

  विद्युत परिपथ किसे कहते हैं ? विद्युत परिपथ में फ्यूज तार क्यों लगाए जाते हैं ?

                        विद्युत परिपथ 

 जिस पथ से होकर विद्युत धारा का प्रवाह होता है उसे विद्युत परिपथ कहा जाता है | 

 विद्युत धारा का प्रवाह तभी हो सकता है जब उसका पथ  पूरा हो  खुले विद्युत परिपथ में धारा का प्रवाह नहीं होता है | 

    विद्युत परिपथ में फ्यूज तार क्यों लगाए जाते हैं ? 

      विद्युत परिपथ में फ्यूज तार सुरक्षा की दृष्टि से लगाया जाता है |

 बिजली के ऊपर उपस्करों तथा  बिजली की धारा ले जाने के लिए जो परिपथ बनाया जाता है | उसमें फ्यूज तार लगा जाता है फ्यूज तार जस्ता या लेड और टीन  की मिश्र धातु का तार लगा होता है |  फ्यूज तार की प्रतिरोधकता अधिक और गलनांक कम होता है | जिसके कारण जब परिपथ में अचानक धारा की प्रबलता आवश्यकता से अधिक बढ़ जाती है | तब धारा से उत्पन्न अत्यधिक उस्मा फ्यूज के तार को पिघला देती हैं | क्योंकि फ्यूज के तार का गलनांक कम होता है | इसलिए यह  पिघल जाती है | और परिपथ टूट जाता है जिसके कारण उस परिपथ में धारा का प्रवाहित होना बंद हो जाता है | और उसमें लगे  सभी उपकरण  जैसे पंखे , बल्ब,  फ्रीज , टेलीविजन , ट्रांजिस्टर , मोटर आदी   जलने से बच जाते हैं |

              इस प्रकार विद्युत परिपथ में फ्यूज तार लगाकर सभी उपकरण को सुरक्षा दी जाती हैं | जिसके कारण सभी उपकरण सुरक्षित रहते हैं |

        इसीलिए विद्युत परिपथ में फ्यूज तार लगाई जाती है | ताकि विद्युत परिपथ में लगे सभी उपकरण  जलने से बचे रहे |

बुधवार, 2 फ़रवरी 2022

जब लोहे की कील को कॉपर सल्फेट के विलयन में डुबोया जाता है तो विलयन का रंग क्यों बदल जाता है ?

 जब लोहे की कील को कॉपर सल्फेट के विलयन में डुबोया जाता है तो विलयन का रंग क्यों बदल जाता है  ?

    उत्तर 

      जब लोहे की कील को कॉपर सल्फेट के विलयन में डुबोया जाता है तो विलयन का रंग बदल जाता है क्योंकि लोहे के द्वारा कॉपर सल्फेट को विस्थापित कर देता है और इस विस्थापन अभिक्रिया के   कारण लौह सल्फेट का निर्माण होता है  | 

        इसलिए  जब लोहे की कील को कॉपर सल्फेट के विलयन में डुबोया जाता है तो विलयन का रंग  बदल जाता है |

     CuSO4 + Fe    ⟶   FeSO4 + Cu 

शुक्रवार, 28 जनवरी 2022

रासायनिक समीकरण को संतुलित करना क्यों आवश्यक होता है

 रासायनिक समीकरण को संतुलित करना क्यों आवश्यक होता है ? 

  उत्तर 

        रासायनिक समीकरण को संतुलित करना  आवश्यक होता है क्योंकि रासायनिक समीकरण को संतुलित करने से समीकरण की वास्तविक जानकारी प्राप्त करते है | साथ ही साथ अभिकारकों एवं उत्पादों की वास्तविक संख्या की जानकारी भी प्राप्त कर सकते है | 

शनिवार, 15 जनवरी 2022

ऊष्माक्षेपी एवं ऊष्माशोषी अभिक्रिया का क्या अर्थ है ? उदहारण दीजिए

 ऊष्माक्षेपी एवं ऊष्माशोषी अभिक्रिया का क्या अर्थ है ? उदहारण दीजिए 


ऊष्माक्षेपी अभिक्रिया -     वैसी अभिक्रिया जिसमे अभिक्रिया के दौरान  ऊर्जा मुक्त होती है उसे ऊष्माक्षेपी अभिक्रिया कहा जाता है | 

   जैसे  

 CH4 + 2O2 ⟶  CO2 + 2H2O + ऊष्मा 

 ऊष्माशोषी अभिक्रिया  -  वैसी अभिक्रिया जिसमे अभिक्रिया के दौरान ऊष्मा अवशोषित होती है उसे ऊष्माशोषी अभिक्रिया कहा जाता है | 


  CaCO3 ---गर्म करने पर ----- ⟶ CaO + CO2 


प्राकृतिक संसाधन किसे कहते हैं ?प्राकृतिक संसाधन के बारे में वर्णन करे

 

               प्राकृतिक संसाधन किसे  कहते हैं ? 

 किसी देश की अर्थव्यवस्था वहां पर उपलब्ध प्राकृतिक संसाधनों पर निर्भर करती है इसलिए उनकी स्थिति , उपलब्धता , विकास तथा  संरक्षण की जानकारी आवश्यक है

            कुछ प्राकृतिक संसाधन निम्नलिखित है

      भूमि संसाधन किसे कहते है इसके बारे में वर्णन करे 

 भूमि एक प्राकृतिक संसाधन है जिसका अनेक कार्यों के लिए उपयोग होता है पर्यावरण की सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए इसका उचित उपयोग आवश्यक है देश का भू राजस्व विभाग भू उपयोग संबंधी अभिलेख रखता है भूख उपयोग संवर्गों का योग कुल  प्रतिवेदन क्षेत्र के बराबर होता है जो कि भौगोलिक क्षेत्र से भिन्न है भारत की प्रशासकीय इकाइयों के भौगोलिक क्षेत्र की सही जानकारी देने का दायित्व भारतीय सर्वेक्षण विभाग के पास है

 भू राजस्व तथा सर्वेक्षण विभाग दोनों में मूलभूत अंतर यह है कि भू राजस्व द्वारा प्रस्तुत क्षेत्रफल प्रतिवेदित  क्षेत्र पर आधारित है जो  की कम या अधिक हो सकता है  जबकि कुल भौगोलिक क्षेत्र भारतीय सर्वेक्षण विभाग के सर्वेक्षण पर आधारित है और यह स्थाई होता है

                      भू  उपयोग वर्गीकरण

 भारत के 328.726 मिलियन  हेक्टेयर भौगोलिक क्षेत्र में से केवल 305.51 मिलियन  हेक्टेयर भौगोलिक क्षेत्र  के बारे में ही भूमि उपयोग आंकड़े प्राप्त है भारत का वर्तमान भूमि उपयोग प्रतिरूप स्थलाकृति , जलवायु , मिट्टी , मानव क्रियाओं , और प्रौद्योगिकी आदानों   ऐसे अनेक कारको का प्रतिफल है 

                    वनों के अधीन क्षेत्र

 वर्गीकृत वन क्षेत्र तथा वनों के अंतर्गत वास्तविक क्षेत्र दोनों पृथक है सरकार द्वारा वर्गीकृत वन क्षेत्र का सीमांकन इस प्रकार किया जाता है जहां वन  विकसित हो सकते हैं भू राजस्व अभिलेखों में इसी परिभाषा को सतत अपनाया गया है इस प्रकार इस संवर्ग के क्षेत्रफल में वृद्धि दर्ज हो सकती है किंतु इसका अर्थ यह नहीं कि यहां वास्तविक रूप से वन पाए जाएंगे 

 वनों के वर्गीकरण तथा वृक्षारोपण कार्यक्रम के फलस्वरूप हमारे देश में वन क्षेत्र में कुछ  वृद्धि हुई है

 वर्ष 1950 से 1951 में वन प्रदेश केवल 4.0  करोड़ हेक्टेयर था वही वन रिपोर्ट वर्ष 2017 के अनुसार देश में वनों के अधीन 802088 वर्ग किलोमीटर है  जो देश की कुल भूमि का 24.39% है

                      अन्य कृषि रहित भूमि

 वैसे भूमि जिस पर कृषि नहीं की जाती है कृषि रहित भूमि कहा जाता है परंतु इसमें परती भूमि को सम्मिलित नहीं किया जाता है इस भूमि में निरंतर कमी आ रही है इस प्रकार की भूमि के अग्रलिखित उपवर्ग हो सकते हैं

 स्थाई चरागाह तथा अन्य चराई  भूमि देश के कई भागों में इस प्रकार की भूमि को साफ करके कृषि योग्य  बनाया जा सकता है

         वृक्षों , फसलों तथा उपवनों के अधीन भूमि - 

 इस वर्ग में ऐसी भूमि सम्मिलित की गई है जिस पर बाग वा अनेक प्रकार के पेड़ पाए जाते हैं जिसमें फल आदि प्राप्त होते हैं  वर्तमान समय में देश की बढ़ती हुई जनसंख्या की खाद्यान पूर्ति के लिए भूमि के बहुत से भाग पर कृषि  होने लगी है

                  कृषि योग्य परंतु बंजर भूमि

 यह  वह  भूमि है जो किसी भी काम के लिए प्रयोग नहीं की जाती है आधुनिक तकनीकी सहायता से उत्तम बीज , खाद  तथा सिंचाई की व्यवस्था करके कृषि के लिए इसका प्रयोग किया जा सकता है  बढ़ती हुई जनसंख्या के संदर्भ में भारत के लिए इस भूमि का बड़ा महत्व है पंजाब , हरियाणा तथा उत्तर प्रदेश में इस भूमि  का काफी विस्तार मिलता है  पिछले कुछ वर्षों में इस भूमि में सुधार करने के प्रयास किए गए हैं

                              परती भूमि

 यह वह  भूमि है जिस पर पहले कृषि  की जाती थी परंतु अब इस भूमि पर कृषि नहीं की जाती है ऐसे भूमि पर निरंतर कृषि  करने से भूमि की उपजाऊ शक्ति कम हो जाती और  ऐसी भूमि पर कृषि करना आर्थिक दृष्टि से लाभदायक नहीं रहता है अतः इसे कुछ समय के लिए खाली छोड़ दी जाता है  इसे फिर से उर्वरा शक्ति का विकास होता है और वह कृषि  के लिए उपयुक्त हो जाती है 

                                कृषित भूमि

 यह वह भूमि है जिस पर वास्तविक रूप से कृषि की जाती है इसे कुल या  सकल बोया गया क्षेत्र भी कहा जाता है  भारत में लगभग आधी भूमि पर कृषि की जाती है जो विश्व में सर्वाधिक भाग है भारत की कुल भूमि का 43.41% भाग कृषित है 

                   निवल  बोया गया क्षेत्र

 यह वह  भूमि है जिस पर फसलें उगाई व काटी जाती है यह निवल बोया गया क्षेत्र कहलाता है स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद इसमें पर्याप्त वृद्धि हुई है  इस वृद्धि के मुख्य कारण निम्नलिखित है

   रेह तथा उसर भूमि को उपजाऊ बनाना

 बेकार खाली पड़ी भूमि को कृषि योग बनाना

 कृषि भूमि को पड़ती भूमि के रूप में ना छोड़ना

 चारागाह तथा बागों के लिए उपयोग की गई भूमि को कृषि के लिए प्रयोग करना

 सबसे अधिक कृषित भूमि पंजाब तथा हरियाणा में पाई जाती है जहां 80% भूमि पर कृषि की जाती है

                  एक से अधिक बार बोया गया क्षेत्र 

 भारत में कुल कृषित क्षेत्र का लगभग 25% भाग ऐसा है जिस पर वर्ष  में एक से अधिक बार फसल प्राप्त की जाती है इससे यह स्पष्ट होता है कि हम अपनी भूमि  का उचित प्रयोग  नहीं कर रहे हैं  क्योंकि 75% भूमि पर वर्ष में केवल एक ही फसल उगाई जाती है

        जल संसाधन के बारे में बताएं

 जल बहुमुल्य प्राकृतिक संसाधन है और देश के सामाजिक और आर्थिक विकास का मूल आधार है  भारत में ताजे जल का मुख्य स्रोत वर्षन है वर्षन से भारत में 4000 घन किमी  जल प्राप्त होती है 

 अकेले मानसूनी वर्षा  द्वारा 3000 घन किमी जल प्राप्त होता है इसका बहुत सा भाग या तो  वाष्पीकरण  तथा वाष्पोत्सर्जन द्वारा वायुमंडल में चला जाता है या फिर भूमी मे रिसकर  भूमिगत जल का भाग बन जाता है  जल संसाधन मंत्रालय के अनुसार हमारे देश में कुल 1869 घन किमी  जल उपलब्ध है  परंतु भू आकृतिक परिस्थितियों तथा जल संसाधनों के असमान वितरण के कारण उपयोग के योग कुल 1122 अरब घन मीटर जल ही उपलब्ध है 

 भारत में उपलब्ध कुल जल को दो विभिन्न वर्गों में बांटा जा सकता है धरातलीय जल तथा भूगर्भिक जल

                      धरातलीय जल

 सतही जल हमें नदियों , झीलों , तालाबों तथा अन्य जलाशयों के रूप में मिलता है नदियों में जल वर्षा होने अथवा बर्फ के पिघलने से प्राप्त होता है सबसे अधिक सतही जल नदियों में पाया जाता है  भारत की नदियों का अनुमानित औसत वार्षिक प्रवाह 8869 अरब धन मीटर है परंतु स्थालाकृति , जल विज्ञान संबंधी  तथा अन्य बाधाओं के कारण केवल 690 अरब घन मी  धरातलीय जल ही उपयोग के लिए उपलब्ध है  कुल धरातलीय  जल का लगभग 60% भाग भारत के तीन प्रमुख नदियों सिंधु , गंगा और ब्रह्मपुत्र में से होकर बहता है  भारत में निर्मित तथा निर्माणाधीन जल भंडार की क्षमता स्वतंत्रता के समय केवल 18 अरब घन मी थी  जो अब बढ़कर 147 अरब घन मीटर हो गई है यह भारतीय नदी द्रोणीओं में प्रवाहित होने वाली कुल जल राशि का 8.47% है 

                 भौम जल या भूगर्भिक जल

 वर्षा से प्राप्त हुए जल की कुल मात्रा का कुछ भाग भूमि द्वारा सोख लिया जाता है इसका 60% भाग मिट्टी की ऊपरी सतह तक ही पहुंचता है  यही जल कृषि उत्पादन के लिए बहुत महत्वपूर्ण है शेष जल धरातल के भीतर  प्रवेश  स्तर तक  पहुंचता है   इस जल को कुआं खोदकर प्राप्त किया जाता है अनुमान है कि भारत में कुल  अपूरणीय भौम जल क्षमता लगभग 432 अरब घन मीटर है

 देश में भूगर्भिक जल का वितरण बहुत  आसामान है इस पर चट्टान की संरचना धरातलीय दशा जलापूर्ति की दशा आदि कारणों का प्रभाव पड़ता है भारत के समतल मैदानी भागों में स्थित जल  चट्टानों वाले अधिकांश भागों में भूगर्भीय जल की अपार राशि  विद्यमान है यहां पर प्रवेश्य  चट्टाने पाई जाती है  जिसमें से जल आसानी से रिसकर  भूगर्भिक जल का रूप धारण कर लेता है  लगभग 42% से अधिक भौम जल भारत के  विशाल  मैदानो के  राज्यो में पाया जाता है 

 इसके विपरीत  प्रायद्वीपीय पठारी भाग कठोर तथा अप्रवेश्य  चट्टानों का बना हुआ है  जिसमें से जल रिसकर  नीचे नहीं जा सकता इसलिए इस क्षेत्र में भूगर्भिक जल का अभाव है

                   भौम जल का उपयोग

 भौम जल का लगभग 92% भाग कृषि में प्रयोग किया जाता है तथा शेष 8% भाग घरेलू  औद्योगिक तथा अन्य संबंधित उद्देश्यों की पूर्ति करता है भारत में भूमिगत जल के विकास की बड़ी संभावनाएं हैं क्योंकि अभी तक कुल उपलब्ध संसाधनों का केवल 37.23% भाग ही विकसित किया गया है 

 राज्य स्तर पर भौम जल संसाधनों की कुल संभावित क्षमता की दृष्टि से बहुत विषमता में पाई जाती है राज्यों में भौम जल के विकास में अंतर जलवायु के कारण पाया जाता है

           जल संसाधनों का प्रबंधन एवं संरक्षण…

 जल के प्रबंधन एवं संरक्षण का उद्देश्य जल की बढ़ती हुई मांग को पूरा करना तथा  जल के स्रोतों को  ह्रास से बचाना है जल संसाधनों के संरक्षण के लिए निम्नलिखित कदम उठाए गए हैं

  धरातलीय जल का संरक्षण करने के लिए नदियों पर बांध बनाकर वर्षा ऋतु के अतिरिक्त जल का संरक्षण किया जा सकता है अन्यथा वह जल भरकर समुद्र में चला जाता है

 हमें भूजल पुनर्भरण की संस्कृति विकसित करनी होगी ताकि तेजी से समाप्त हो रहे हो भू जल का संरक्षण किया जा सके इसके लिए वर्षा जल संग्रहण सबसे अच्छी तकनीकी है

 वनीकरण द्वारा वर्षा जल के भूमि रिसने की दर को बढ़ाया जा सकता है

 जल के पुनर्चक्रण तथा पुनः प्रयोग द्वारा हम जल की कमी को पूरा कर सकते हैं

 उपयुक्त तकनीक का विकास कर समुद्री जल का खराबपन दूर कर उसका उपयोग करना

 जल सम्भर प्रबंधन कार्यक्रम द्वारा जल के स्रोतों का संरक्षण करना

 रेन वाटर हार्वेस्टिंग की तकनीक को लोकप्रिय बनाना

                       राष्ट्रीय  जल नीति

 जल की आपूर्ति , मांग तथा उसके तर्कसंगत उपयोग व प्रबंधन को ध्यान में रखकर केंद्रीय सरकार ने तीन राष्ट्रीय जल नीतियाँ अपनाई है

                       राष्ट्रीय जल नीति 1987

 यह राष्ट्रीय स्तर पर जल संसाधन संबंधित प्रथम नीति है इस नीति का मुख्य उद्देश्य जल का राष्ट्रीय हित में प्रबंधन करना तथा योजना तैयार करना था  इस नीति में जल के विकास संबंधी योजना बनाने का अधिकार राज्य सरकारों को दिया गया

                   राष्ट्रीय जल नीति 2002

 वर्ष 2002 में वर्ष 1987 की नीति के स्थान पर एक नई नीति अपनाई गई इस नीति में उपयुक्त रूप से विकसित सूचना व्यवस्था , जल संरक्षण के परंपरागत तरीकों , जल प्रयोग , गैर परंपरागत तरीकों और मांग के प्रबंधन को  महत्वपूर्ण तत्व के रूप में स्वीकार किया गया है इसमें सबके लिए पेयजल की व्यवस्था को सर्वोच्च प्राथमिकता दी गई है

                  राष्ट्रीय जल नीति 2012

 राष्ट्रीय जल बोर्ड ने जून 2012 को हुई अपनी  14वीं  बैठक में संस्तुत प्रारूप राष्ट्रीय जल नीति को  प्रस्तुत किया |  इस नीति में भू जल के उपयोग पर प्रयोक्ता  शुल्क लगाने के लिए तर्कसंगत प्रणाली विकसित करने की भी बात कही गई है प्रत्येक राज्य में जल विनियामक प्राधिकरण की स्थापना और पड़ोसी देशों के साथ द्विपक्षीय सहयोग पर करार किया गया है

           महासागरीय संसाधन के बारे में लिखें …

 अन्य प्राकृतिक संसाधन की तरह महासागरीय संसाधन भी  महत्वपूर्ण संसाधन है  इसे दो वर्गों में बांटा जा सकता है

                         खनिज संसाधन 

 खनिज संसाधन अनेक महत्वपूर्ण समुद्री बेसिन में पाए जाते हैं नीचे पाए जाने वाले समुद्री खनिजों में नॉड्यूल्स तथा मैग्नीज  ऑक्साइडो  तथा कोबाल्ट, निकेल , तांबे तथा लोहे के सल्फाइडों के टुकड़े पाए जाते हैं  आज विश्व के कुल तेल एवं प्राकृतिक गैस उत्पादन का पाँचवें भाग से अधिक भाग का उत्पादन अपतट कओं से आता है 

 भारत का पश्चिमी तट पूर्वी तट की तुलना में अधिक संसाधनों से युक्त है उदाहरण स्वरूप  बॉम्बे हाई मे  लगभग 750 करोड टन का पेट्रोलियम भंडार है  पूर्वी तट कावेरी , गोदावरी तथा महानदी के डेल्टा में भी प्राकृतिक  गैस और तेल के विशाल भंडार पाए जाते हैं इसके अतिरिक्त समुद्री मछलियां , मोती , शैवाल तथा प्रवाल भित्तियाँ भी समुद्री संसाधनों के  अंतर्गत आता है 

                  बहु  धात्विक नॉड्युल्स

  1970 के दशक के आरंभ में गहरे समुद्र में बहु  धात्विक नॉड्यूल्स के व्यापक स्रोत का पता चला है इसमें प्रमुख हैं  मैंगनीज , पिण्ड ,  जिसमें मुख्यत:  कोबाल्ट , तांबा , निकेल  एवं मैंगनीज धातु पाई जाती है  इन पिण्डो मे   अनेक भौतिक तथा रासायनिक पदार्थ पाए जाते हैं जो विभिन्न आकारों में पाए जाते हैं 

Note  गहरे समुद्र खनन में भारत के प्रयास से

[  हिंद महासागर में बहु धात्विक पिण्डो की खोज सर्वप्रथम वर्ष 1977 में गोवा स्थित राष्ट्रीय समुद्र विज्ञान संस्थान द्वारा की गई इस कार्य के लिए गार्डन रीच  वर्कशॉप कोलकाता द्वारा निर्मित प्रथम महासागरीय अनुसंधान  पोत गवेषणी  का प्रयोग किया गया जिसमें 28 जनवरी 1981 को पहली बार  हिंद महासागर की गहराइयों से बहु धात्विक खनिज पिण्डोंफ  को निकालने में सफलता प्राप्त की

 गणेषणी  के बाद आर पार एक भुवनेश्वर नामक जलयान का निर्माण भी सागर तल से  बहु धात्विक पिण्डो को  निकालने के उद्देश्य से किया गया  इस प्रकार भारत वर्ष 1987 में विश्व का पहला देश बना जिससे खनन क्षेत्र में पंजीकृत बहु धात्विक संसाधनों की पहचान एवं आकलन का कार्य किया इन संसाधनों के उत्खनन के लिए प्रौद्योगिकी तथा कार्मिकों के विकास के क्षेत्र में भारत में काफी प्रगति की है ]

                        जैविक संसाधन…

 समुद्र हमारी पृथ्वी के जीवीए पर्यावरण का सबसे बड़ा घटक है समुद्री जल में अनेक प्रकार के पौधे एवं जीव पनपते हैं समुद्री जैविक संसाधन के अंतर्गत पादप प्लवक , प्राणी प्लवक , नितलस्थ   प्राणी जल कृषि तथा मत्स्य शामिल ह

 भारतीय प्रयोग के लिए निर्धारित विशिष्ट आर्थिक क्षेत्र में 70 मीटर से अधिक गहराई में समुद्री जीव संसाधनों का आकलन करने तथा महासागर जीव विज्ञान कारको में  मत्स्य उपलब्धता का  संबंध जोड़ने के उद्देश्य से वर्ष 1997 -1998 में बहु विषयों तथा बहू संस्थानों वाला कार्यक्रम आरंभ किया गया 

 इस कार्यक्रम का मूल उद्देश्य है सतत विकास तथा प्रबंधन के लिए भारत के ईईजेड  मैं उपलब्ध समुद्री जीव संसाधनों की उपलब्धता की वास्तविक एवं विश्वसनीय जानकारी प्राप्त करना  तथा भारतीय समुद्रों में समुद्री जीव संसाधनों की उपलब्धता को बढ़ाना 

              समुद्री जल से शुद्ध जल की प्राप्ति …

 प्राकृतिक रूप से समुद्र तटीय  क्षेत्र के समुद्र जल में विभिन्न प्रकार के लवण जैसे सोडियम क्लोराइड मैग्निशियम क्लोराइड  इत्यादि पाए जाते हैं  जो उसे खारा बनाता है समुद्री जल में फ्लोरीन होने के कारण फ्लोरोसिस नामक बीमारी हो  जाती है जिससे हड्डियों में दर्द होता रहता है

 समुद्री जल के खारेपन को दूर करने के लिए बहुत से उपाय किए गए हैं जो निम्नलिखित हैं

                    सौर ऊर्जा तकनीक

 सौर ऊर्जा तकनीक के अंतर्गत सूर्यताप को केंद्रित करके समुद्री जल को उबाला जाता है और इससे उत्पन्न वाष्प से   शुद्ध जल को प्राप्त किया जाता है  भारत में गुजरात के अविनया गांव में इस तकनीक से पर्याप्त जल उपलब्ध कराया जाता है

                   लैश  डिस्टीलेशन तकनिक 

 इस तकनीक के अंतर्गत गर्म किए गए समुद्री खारे जल को अनेकों ऐसे कक्ष  से गुजारा जाता है  जिसके अंदर दाब वायुमंडलीय दाब से कम हो जाता है इससे इसकी कक्ष  के प्रत्येक भाग में वाष्पीकरण होता है तथा इस वाष्प को ट्यूबों  के बंडल में संघनित  कर लिया जाता है  इस प्रकार प्रत्येक चरण में आसवित  जल को एकत्र करके शुद्ध जल के रूप में प्रयोग किया जाता है

             इलेक्ट्रोडायलिसिस तकनिक 

 इस तकनीक के अंतर्गत समुद्री जल का खरापन दूर करने के लिए लोहे की चुनी हुई झीलियो  का प्रयोग किया जाता है  यह तकनीक 5000 पीपीएम से  कम मात्रा में खरापन दूर करने की सबसे कम खर्चीली  तकनीक है भारत में इस पद्धति का सफलतापूर्वक प्रयोग किया जा रहा है

                    विपरीत परासरण तकनीक

 यह तकनीक सर्वाधिक प्रचलित है इस तकनीक में अनुकूल परासरण झिल्लियों  का प्रयोग किया जाता है जो उच्च दबाव के अंतर्गत  समुद्री जल से  खरापन को दूर करती हैं  भारत के समुद्री तट के क्षेत्रों में 50000 से 100000 लीटर की  क्षमता वाले संस्थान लगाए गए भारत हेवी इलेक्ट्रिकल्स लिमिटेड द्वारा विपरीत परासरण तकनीक पर आधारित देश के सबसे बड़े डिसैलिनेशन प्लांट का डिजाइन तैयार किया गया है  इसे तमिलनाडु में स्थापित किया गया है जहां से जलाभाव वाले रामनाथपुरम जिले के 226 गांव में से 26 लाख से अधिक व्यक्तियों को  पीने का पानी उपलब्ध कराया जाएगा इस प्लांट की क्षमता 38 लाख लीटर समुद्री पानी को पीने योग्य बनाने की है  

                समेकित तटीय व समुद्री क्षेत्र प्रबंधन …

 तटीय इलाकों की समस्याओं जैसे मिट्टी का अपरदन , प्रदूषण और अधिवास का नष्ट होना आदि से निपटने के लिए  वैज्ञानिक उपाय और तकनीकों का उपयोग करने के उद्देश्य से समेकित तटीय व समुद्री क्षेत्र प्रबंधन कार्यक्रम वर्ष 1998 में शुरू किया गया  इसमें मैंग्रोव , पर्वतों तथा अन्य जीव विज्ञान के महत्वपूर्ण क्षेत्रों की स्थिति का आकलन दूरसंवेदी यंत्रों से किया जा सकता है

         तटीय समुद्र निगरानी एवं अनुमान प्रणाली

 समुद्री पर्यावरण की स्थिति का लंबे समय के लिए अनुमान लगाने के लिए तटीय समुद्र निगरानी एवं अनुमान प्रणाली को वर्ष 1990 में लागू किया गया | इसमे समुद्र से मिलने वाले औद्योगिक व घरेलू अस्वच्छ अपशिष्ट जल में रसायनों की मात्रा का आकलन किया जाता है  वर्तमान समय में यह भारत के 76 तटीय इलाकों में कार्यरत है

                 एकॉस्टिक टाइड गेज

 यह एक प्रकार की समर्पित संकेत प्रसंस्करण प्रणाली है  जिसके एनालॉग इलेक्ट्रॉनिक हार्डवेयर के सभी हिस्से महासागर विकास विभाग के विभिन्न केंद्रों में विकसित किए गए हैं एटीजी प्रणाली का डिजाइन एवं विकास इस प्रकार किया गया है कि बिना किसी सहयोग के यह अकेले एक  महीने तक ज्वार भाटे में काम कर सकते हैं

                        मत्स्यन

 हमारे देश में मत्स्यन के लिए एक प्रमुख व्यवसाय है यह  व्यवसाय निर्यात द्वारा विदेशी मुद्रा अर्जित करने में सहायक है भारत में लगभग 18000 प्रकार की मछलियां पकड़ जाती है इसमें से कुछ हीं जाति की मछलियां पर्याप्त मात्रा में पकड़ी जाती है मत्स्यन उत्पादन के क्षेत्रों को दो भागों में बांटा जा सकता है  समुद्री मत्स्य क्षेत्र और ताजे  जल के मत्स्य क्षेत्र

                        समुद्री  मत्स्य  क्षेत्र

 समुद्र में लगभग 200 मीटर की गहराई तक महाद्वीपीय मग्नतट पर मछलियों के विकास तथा  प्रजनन के लिए अनुकूल परिस्थितियां होती है  और वहां से बहुत बड़ी मात्रा में मछली पकड़ी जाती है

                    ताजे जल के मत्स्य क्षेत्र

 ताजे जल के मत्स्य क्षेत्र जैसे नदियों , नहरों , तालाबों , नालो पोखरो  आदि में ताजा जल होता है और इसमें से  पकड़ी जाने वाली मछली को ताजे जल की मछली कहा जाता है यह देश के आंतरिक भागों में पाई जाती है इसलिए इसे अंतर्देशीय मछली भी कहा जाता है

           भारत में मत्स्य उत्पादन 

 भारत का विश्व के मछली उत्पादन में दूसरा स्थान है  विश्व के कुल उत्पादन में भारत का योगदान लगभग 5.4% है  प्रारंभ में समुद्री मछली का उत्पादन अधिक होता था परंतु बाद में अंतर्देशीय मछली के उत्पादन में बड़ी  तीव्रता से वृद्धि हुई है  समुद्री मछली के संदर्भ में भारत का अधिकांश मछली उत्पादन  पश्चिमी तट पर होता है जहां 75% समुद्री मछलियां पकड़ी जाती है बाकी की 25% मछलियां पूर्वी तट से पकड़ी जाती है

 भारत में ताजे जल की मछलियां गंगा , ब्रह्मपुत्र  व सिंधु तथा इसकी सहायक नदियों में बड़ी मात्रा में पकड़ी जाती है  दक्षिण भारत की नदियों में भी मछलियां पकड़ी जाती है यद्यपि देश के सभी राज्यों एवं केंद्र शासित प्रदेशों में कुछ न कुछ मछली का उत्पादन होता है परंतु लगभग 70% उपज में केवल छ: राज्यों पश्चिम बंगाल , आंध्र प्रदेश , गुजरात , केरल , तमिलनाडु एवं महाराष्ट्र का योगदान है  कुल मछली उत्पादन में आंध्र प्रदेश प्रथम स्थान पर है जबकि सागरीय मछली उत्पादन में गुजरात प्रथम स्थान पर है और अन्त: स्थलीय  मछली के उत्पादन में आंध्र प्रदेश प्रथम स्थान पर है

        महासागरीय  विकास कार्यक्रम 

 भारत में महासागरीय अनुसंधान की योजना बनाने तथा उनके समन्वय एवं स्वदेशी  क्षमताओं  के विकास हेतु वर्ष 1976 में विज्ञान और  प्रौद्योगिकी विभाग के अंतर्गत महासागर विज्ञान और प्रौद्योगिकी एजेंसी की स्थापना की गई महासागर विकास की गतिविधियों को आयोजित समन्वित  और प्रोत्साहित  करने के लिए एक नोडल संस्था के रूप में जुलाई  1981 में कैबिनेट सचिवालय के अधीन महासागर विकास विभाग की स्थापना की गई मार्च 1982 से महासागर विकास विभाग को पृथक रूप से एक केंद्रीय राज्य मंत्री के अधीन कर दिया गया वर्ष 1982 में समुद्री कानून के संबंध में हुए संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन में समझौते के अनुमोदन के लिए  एक अंतरराष्ट्रीय कानून स्थापित किया गया वर्ष 1982 में यूनाइटेड नेशंस कन्वेंशन ऑन द  लॉ द सी द्वारा निर्मित इस नए समुद्री क्षेत्र के प्रभाव पर भी  भारत द्वारा हस्ताक्षर किए गए थे

          संबंधित प्रमुख संस्थान

                        पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय

 महासागर  विकास मंत्रालय का नाम बदलकर उसे पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय कर दिया गया तथा इसकी अधिसूचना 12 जुलाई 2006 को जारी की गई यह मंत्रालय महासागर  संसाधन , महासागरों की स्थिति मानसून , तूफान , भूकंप आदि विषयों से संबंधित अध्ययन हेतु सर्वोत्तम सेवाएं उपलब्ध  कराता है

                राष्ट्रीय सागर विज्ञान संस्थान 

 नई दिल्ली स्थित वैज्ञानिक और औद्योगिक अनुसंधान परिषद के अंतर्गत वर्ष 1966 में गोवा में एक राष्ट्रीय समुद्री विज्ञान संस्थान की स्थापना की गई इस संस्थान की स्थापना का मुख्य उद्देश्य भारत के समीपवर्ती सागरों के भौतिक , रासायनिक , जीवविज्ञान विज्ञान ,  भूगर्भ विज्ञान और इंजीनियरिंग पक्षों  के संबंध में पर्याप्त ज्ञान विकसित करना है 

 इस संस्थान के पास स्वयं अपना महासागरीय अनुसंधान पोत गवेषणी है  जिसके कारण भारत सागर क्लब में स्थान पा सका था  इसके अतिरिक्त संस्थान द्वारा सागर विकास की  बहुउद्देशीय सागर जलयान सागर कन्या और समुद्री वैज्ञानिक अनुसंधान जलयान सागर सम्पदा का प्रबंधन कार्य भी सौंपा गया है संस्थान का आंकड़ा केंद्र सागर संबंधी आंकड़ों का भंडारण और प्रबंध भी करता है तथा समुद्री क्षेत्र के उपभोक्ता समुदाय को इस आंकड़ों के संबंध में जानकारी उपलब्ध कराता है

            राष्ट्रीय महासागर प्रौद्योगिकी संस्थान

 महासागर विकास के अंतर्गत समुद्री क्षेत्र से संबंधित प्रौद्योगिकी विकास करने के उद्देश्य से चेन्नई में राष्ट्रीय महासागर प्रोद्योगिकी संस्थान की स्थापना नवंबर 1993 में एक पंजीकृत संस्था के तौर पर की गई |